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22 मार्च को जब शाम के पांच बजे तो हर घर की खिड़की से, बॉलकनी से आवाज आई कि मोदी जी आप आवाज तो दीजिए हम आपके साथ हैं. लेकिन क्या सरकार इस मुश्किल घड़ी में लोगों के साथ है? जनता कर्फ्यू से पहले कहा गया कि कोरोनावायरस के कारण लॉकडाउन नहीं होगा और फिर जनता कर्फ्यू खत्म होते-होते देश के 80 से ज्यादा जिलों में लॉकडाउन हो गया. पंजाब और महाराष्ट्र में तो कर्फ्यू है. ऐसा लग रहा है कि प्लानिंग और पारदर्शिता की कमी के कारण करोड़ों की जिंदगी लॉकडाउन हो गई है.
लॉकडाउन जरूरी भी है तो इसका ऐलान करते समय लगता है सरकारें उन करोड़ों लोगों को भूल गईं, जो घर से न निकलें तो जिंदगी रुक जाती है. कोरोनावायरस के आर्थिक असर को लेकर भी सरकार की ढिलाई साफ नजर आ रही है.
जब पीएम मोदी जनता कर्फ्यू का ऐलान कर रहे थे तब भी उन्होंने कहा कि सामान जमा करने की जरूरत नहीं है. अब लॉकडाउन है. राशन के लिए बाहर निकल भी सकते हैं तो जोखिम रहेगा क्योंकि जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं कोरोनवायरस से संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं. अगर इस कैटेगरी के लोगों को थोड़ा वक्त मिल जाता तो शायद वो इस लॉकडाउन को बेहतर प्लान कर सकते थे.
अब आते हैं दूसरी कैटेगरी के लोगों पर. शहरों की चमक-दमक में बैठे बहुत सारे लोगों को ये अंदाजा भी नहीं कि आज भी देश में ऐसे करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें रात की रोटी तब नसीब होती है जब वो दिन भर पसीना बहाते हैं. ये लोग रोज घर से निकलते हैं, काम तलाशते हैं और काम मिलता है तो खाना मिलता है.
वर्ल्ड बैंक ग्लोबल फिंडेक्स डेटाबेस 2017 के मुताबिक भारत के 80% युवाओं के पास बैंक अकाउंट तो था लेकिन पिछले एक साल में सिर्फ 43% ने पैसे निकाले थे. आप कल्पना कीजिए ऐसा क्यों हुआ होगा. जरा सोचिए कि अगर ये लोग काम पर नहीं निकलेंगे तो इनके घर का दाना-पानी कैसे चलेगा? ये भी याद रखिए कि इस वक्त देश में 45 साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है. एक दो सरकारों को छोड़कर किसी राज्य ने लॉकडाउन का ऐलान करते समय ये नहीं बताया कि इनके यहां चूल्हा कैसे जलेगा?
कहीं-कहीं छिटपुट मदद
2009 में आई तेंदुलकर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक देश में करीब 22 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं. जाहिर है ये आंकड़ा पुराना है और इसपर विवाद है. अब इसके पैमाने को भी देख लीजिए. शहरों में रोज जिनकी कमाई 32 रुपए, और गांवों में 27 रुपए से ज्यादा है, वो गरीब नहीं हैं. अब जो गरीब नहीं हैं, वो ढेर सारी सरकारी मदद वाली योजनाओं से भी बाहर हैं.
18 मार्च को उपभोक्ता और खाद्य मामलों के मंत्री राम विलास पासवान ने ऐलान किया कि पीडीएस (सरकारी राशन दुकान) में लोगों को एक साथ 6 महीने की राशन उठाने की छूट दी जाएगी. लेकिन समस्या ये है कि सबसे गरीब 40% लोगों में से 40% फीसदी के पास राशन कार्ड तक नहीं. तो ऐसे दिहाड़ी मजदूर, ऐसे गरीब लोग लॉकडाउन में कैसे राशन पाएंगे? क्या सरकार ने सोचा?
फसलों की सही कीमत नहीं मिलने के कारण किसानों की आत्महत्या इस देश में आम बात है. जरा सोचिए अगर उनकी फसल बिके ही नहीं तो क्या होगा? गेहूं और दलहन की फसल तैयार है. लेकिन सरकारी मंडियां बंद होंगी तो किसान की फसल कौन खरीदेगा. सरकार द्वार तय सही कीमत कौन देगा? तो क्या सरकार ने इनके बारे में सोचा?
लॉकडाउन के कारण फैक्ट्रियां बंद हो रही हैं. मारुति, होंडा ने काम कम करने का ऐलान किया है. डिमांड अचानक घट जाएगी. कंपनियों को होने वाले नुकसान की भरपाई कौन करेगा? उन्हें राहत देने के लिए आखिर सरकार कब कदम उठाएगी? मंदी से चरमराई हमारी अर्थव्यवस्था अपूर्व संकट के मुहाने पर खड़ी है. इसके लिए क्या एक्शन प्लान है? उम्मीद थी कि वित्त मंत्री 23 मार्च को लोकसभा में किसी राहत पैकेज का ऐलान करेंगी लेकिन ऐसा हुए बिना ही कार्यवाही स्थगित हो गई. यानी फिलहाल राहत की उम्मीद, उम्मीद ही है.
देश में 600 से ज्यादा जिले हैं. लॉकडाउन है 100 से कम जिलों में. तो बाकी जिलों का क्या? मुंबई का उदाहरण लीजिए. जब वहां लॉकडाउन की सुगबुगाहट हुई तो बड़ी तादाद में लोग अपने गांव लौटने लगे. कौन कहां गया पता नहीं. किसी की जांच नहीं हुई. ठीक वैसे ही जैसे चीन के वूहान से शुरुआती दिनों में करीब 50 लाख लोग दूसरे शहरों में गए और फिर वहां से लोग पूरी दुनिया में. मुंबई में इस भगदड़ के बाद अब कर्फ्यू लगाया गया है. तो लॉकडाउन की मौजूदा रणनीति कितनी कारगर होगी, शक है. आखिर क्यों बिहार से अचानक एक व्यक्ति की मौत हो गई, जबकि वहां संक्रमण की खबर भी नहीं थी. एक्सपर्ट कह भी रहे हैं कि आंशिक लॉकडाउन से काम नहीं चलेगा. WHO का तो कहना है कि सिर्फ लॉकडाउन से काम नहीं चलेगा.
माइक रयान के मुताबिक लॉकडाउन के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि जब ये खत्म होगा तो लोग अचानक बड़ी संख्या में बाहर निकलेंगे और फिर खतरा बढ़ जाएगा. तो बेहतर होता कि सरकार टुकड़ों में लॉकडाउन के बजाय पूरे देश में करती. लोगों को समय रहते लॉकडाउन के बारे में खुलकर बताती. जिन्हें जरूरत है, उनके लिए राहतों का ऐलान करती और स्वास्थ्य का पूरा अमला चुस्त और दुरुस्त करती. जनता कर्फ्यू के दिन दिखा कि जनता सहयोग करने को तैयार है, क्या सरकार तैयार है?
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Published: 23 Mar 2020,09:31 PM IST