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वैक्सीन डिप्लोमेसी में दिख रहे भारत के सॉफ्ट पॉवर को सहेजना जरूरी

शुरुआती आंकड़ों से साफ लग रहा है कि अपनी वैक्सीन डिप्लोमेसी काम कर रही है.

मयंक मिश्रा
नजरिया
Published:
कोरोना वैक्सीन के डिस्ट्रीब्यूशन, कीमत पर PM मोदी ने दिए ये जवाब
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कोरोना वैक्सीन के डिस्ट्रीब्यूशन, कीमत पर PM मोदी ने दिए ये जवाब
(फोटो- क्विंट हिंदी)

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72,000 की आबादी वाले देश डोमिनिका को कोरोना की वैक्सीन के 35,000 डोज की जरूरत थी. भारत को आग्रह किया तो तत्काल खेप भेज दी गई. अब वहां के प्रधानमंत्री भारत को धन्यवाद देते नहीं थक रहे हैं. डोमिनिका जैसे 17 देशों में मेड-इन-इंडिया वैक्सीन पहुंच गई है. 50 लाख से ज्यादा डोज सहायता की तरह और एक करोड़ से ज्यादा डोज उचित दाम लेकर. शुरुआती आंकड़ों से साफ लग रहा है कि अपनी वैक्सीन डिप्लोमेसी काम कर रही है.

अब इस लिस्ट पर भी गौर कीजिए-

  • नेपाल को 10 लाख वैक्सीन डोज की सप्लाई, बांग्लादेश को 20 लाख, श्रीलंका को 5 लाख, म्यांमार को 15 लाख, और भूटान और मालदीव को करीब 1-1 लाख.
  • ये सारे हमारे पड़ोसी हैं. कोई रुठा है तो किसी को चीन अपनी तरफ खींचने में कामयाब हो गया है. सब पर कोरोना का संकट एक साथ आया और सभी इससे निकलने की कोशिश में लगे हैं.
  • कोरोना कांड के फाइनल एक्ट में वैक्सीन की सप्लाई बहुत जरूरी है- महामारी पर काबू पाने के लिए, हर्ड इम्यूनिटी विकसित करने लिए और सबसे जरूरी, लोगों में भरोसा जगाने के लिए.
  • और वैक्सीन की रेस में भारत दूसरों से काफी आगे है. कोरोना से पहले पूरी दुनिया की 60 परसेंट वैक्सीन अपने देश में ही बनती थी. और प्रकाशित आंकड़ों के हिसाब से पूरी दुनिया में इस साल वैक्सीन के जितने डोज तैयार होंगे उसका करीब एक तिहाई अपने देश में ही बनेगा और ये चीन में तैयार होने वाले वैक्सीन डोज का करीब दोगुना है. अकेले सीरम इंस्टीट्यूट में हर दिन 25 लाख डोज तैयार हो रहे हैं.
  • वैक्सीन बनाने की तैयारी चीन में भारत से पहले शुरू हुई. वो देश स्केल अप करने में भी माहिर है और उसने वैक्सीन के बहाने दुनिया के कई देशों का दिल जीतने की कोशिश भी की. लेकिन वो रेस में पिछड़ क्यों गया और हम कैसे आगे निकल गए?

जितने वैक्सीन डोज की जरूरत उससे ज्यादा इसी साल तैयार होना है

एक अनुमान के मुताबिक देश में करीब 1.7 अरब वैक्सीन डोज की जरूरत होगी. लेकिन इसी साल प्रोडक्शन होगा करीब 3 अरब डोज से ज्यादा का. मतलब यह कि जितने की जरूरत है उससे ज्यादा वैक्सीन का प्रोडक्शन होना है. ऐसे में वैक्सीन आसानी से दूसरे देशों को सप्लाई किया जा सकता है. चीन में करीब 1.8 अरब डोज का इस साल प्रोडक्शन होना है. वो भी दूसरे देशों को वैक्सीन सप्लाई करने की रेस में है. लेकिन दुनिया में भारत में बनी वैक्सीन की मांग है, चीन की नहीं.

यही है अपना सॉफ्ट पावर जिसे हमें समझने की जरूरत है. वैक्सीन प्रोडक्शन को ही ले लीजिए. इस मामले में सीरम इंस्टीट्यूट की पूरी दुनिया में घाक है. क्योंकि वो पारदर्शी है, सारी प्रक्रियाओं का पालन करता है, दुनिया भर के रेगुलेटर से अप्रुवल हासिल करता है. इसीलिए उसकी साख है. चीन का वैक्सीन प्रोग्राम एक पहेली जैसा रहा है, एकदम सीक्रेट. इसीलिए वो कारगर होगी कि नहीं, उसके साइड एफेक्ट होंगे कि नहीं- इस बात पर दुनिया को भरोसा नहीं है.

फिर से दोहरा रहा हूं. पारदर्शिता और खुलेमन से सारी प्रक्रियाओं का पालन करना और ऐसा करते हुए दिखना—इससे साख बढ़ती है. और इसी से सॉफ्ट पावर मिलता है जिसकी बड़ी वैल्यू होती है. सोचिए ना, पूरी दुनिया की वैक्सीन जरूरतों को फाइजर और एस्ट्राजेनेका जैसी कंपनी ही पूरा करेगी. पूरी दुनिया को इनके प्रोसेस पर भरोसा है. और इस सॉफ्ट पावर के बदले में इन कंपनियों को इसी साल सिर्फ वैक्सीन से हजारों करोड़ रुपए का फायदा होगा.
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इस सॉफ्ट पावर का फायदा देखिए-

  • अभी तक दुनिया के 17 देशों ने मेड-इन-इंडिया वैक्सीन को अपनाया है और इसमें कनाडा जैसा विकसित देश भी है.
  • नेपाल, श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों ने मेड-इन-इंडिया वैक्सीन को तरजीह दी है. शायद अपने पड़ोसियों से संबंध फिर से दुरूस्त करने की यह नई शुरूआत साबित हो.
  • 50 लाख से ज्यादा डोज हमने अभी तक मुफ्त में ही बांटे हैं. लेकिन 1 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन के डोज कनाडा और सऊदी अरब जैसे देशों को सही कीमत लेकर सप्लाई की जा रही है. इससे गुडविल भी मिल रही है और डॉलर भी. है ना सोने पे सुहागा.
  • सीरम इंस्टीट्यूट ने WHO को 20 करोड़ वैक्सीन डोज देने का वादा किया है. इसे गरीब देशों में बांटा जाएगा. चीन इस काम के लिए 1 करोड़ वैक्सीन डोज ही दे रहा है. इस कदम से भारत और सीरम इंस्टीट्यूट की कितनी धाक बढ़ेगी इसका खुद अंदाजा लगाइए.

कोरोना से तबाह दुनिया में अपने देश के सॉफ्ट पावर के फायदे जानकर बड़ा सुकून मिलता है. ऐसे में हमें नहीं भूलना चाहिए कि सॉफ्ट पावर का हमें डिविडेंड मिलता रहे इसके लिए जरूरी है कि इंस्टीट्यूशनल ऑटोनॉमी को हम हर हाल में सहेजकर रखें, पारदर्शिता बनाए रखें, प्रक्रियाओं का सम्मान करें और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ समझौता ना करें. यही वो स्तंभ हैं जिनपर सॉफ्ट पावर टिका होता है. किसी एक को डिस्टर्ब कर सिस्टम को डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए.

आजाद भारत ने पिछले 7 दशक में खूब सॉफ्ट पावर हासिल की है. वैक्सीन डिप्लोमेसी में इससे कितना फायदा मिल रहा है वो हम देख रहे हैं. जरूरत है इसे याद रखने की और ऐसे कोशिशों को बढ़ावा देने की जिससे हमारे सॉफ्ट पावर में और भी इजाफा हो.

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