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दुनिया में कोरोनावायरस की महामारी फैलाने के बाद, चीन झूठ और धमकी की घातक महामारी फैलाकर खुद को नेता साबित करने पर आमादा है, जबकि जवाबी ताकत के रूप में अमेरिका लगभग नदारद है.
चीन को अभी एक मौका दिख रहा है, और इस मौके को भुनाने की वो भरसक कोशिश में लगा है. अच्छी खबर ये है कि उसकी बेशर्मी ज्यादातर नाकाम ही रही है. बुरी खबर ये है कि अमेरिका कमान संभालने और विश्व को रास्ता दिखाने में पीछे छूट गया है क्योंकि वो अपने घर में वायरस को संभालने में लगा है. अमेरिका में मेडिकल आपूर्ति के साथ-साथ तर्कसंगत रणनीति की कमी भी दिख रही है.
ट्रंप अब भी कुछ कर रहे हैं ये साफ नहीं है, क्योंकि चीन और इटली को पीछे छोड़ते हुए अमेरिका इस महामारी का केन्द्र बन चुका है. आखिरी गिनती तक वहां कोरोनावायरस से संक्रमण के 1,42,070 मामले सामने आ चुके हैं और 2484 लोगों की मौत हो चुकी है.
ट्रंप एक तरफ कोराना के केन्द्र बने न्यूयॉर्क जैसे राज्यों को मदद का भरोसा दे रहे हैं, दूसरी तरफ देश को कारोबार के लिए खोलने के बेचैन हैं. ये सब तर्कसंगत नहीं लग रहा. जहां वैज्ञानिक इस संकट से उबरने का रास्ता ढूंढने में लगे हैं, ट्रंप रामबाण तलाशने की बात कर रहे हैं.
ट्रंप अपनी चाल से जो हासिल करना चाहते हैं वो ठीक नहीं है – एक तरह वो वीजा नियमों में छूट देकर विदेशी डॉक्टरों को अमेरिकी गांवों में आने का प्रलोभन दे रहे हैं, दूसरी तरफ साउथ कोरिया से मेडिकल उपकरण की मांग कर रहे हैं. जब महामारी शुरू हुई तो ट्रंप ने सिर्फ अमेरिका के लिए वैक्सीन तैयार करने के लिए जर्मनी की एक कंपनी को खरीदने की कोशिश की.
एक दिन ट्रंप कहते हैं कि इस मुहिम को निजी कंपनियां आगे बढ़ाएंगी, तो दूसरे दिन वो वेंटिलेटर बनाने के लिए जनरल मोटर्स के साथ मोलतोल करते हैं. प्राइवेट कंपनियों को इस प्रक्रिया में शामिल करने के लिए डिफेंस प्रोडक्शन एक्ट लागू करने में उन्होंने बहुत देर कर दी, आखिरकार ये काम शुक्रवार को पूरा हुआ.
कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित न्यूयॉर्क शहर में बहुत तेजी से पिछड़े देशों जैसी डरावनी हालत होती जा रही है. रिपोर्ट्स के मुताबिक यहां की नर्सें सुरक्षा के लिए कूड़ेदान में इस्तेमाल किए जाने वाले बैग पहन रही हैं और संक्रमण से बचाव के साधनों की कमी में डॉक्टर मास्क को दोबारा इस्तेमाल करने पर मजबूर हैं.
जहां साफ तौर पर अमेरिका की तैयारी अपर्याप्त है. चीन ना सिर्फ पटरी पर लौट आया है बल्कि मौके का फायदा उठाने में लगा है.
लेकिन सब कुछ ठीक वैसा ही नहीं है जैसा दिख रहा है. ऐसी रिपोर्ट भी आ रही हैं कि यूरोप में मौजूद चीन के समृद्ध प्रवासी जनवरी में मेडिकल सामग्रियां खरीदने में लगे थे. क्योंकि बीजिंग में उनकी पहुंच की वजह से उन्हें पता था कि चीन में बड़ी त्रासदी आने वाली है, ताकि इटली में चीनी समुदाय के लोगों की मदद की जा सके.
स्पेन से लेकर चेक गणराज्य और इटली तक हालात बिलकुल एक जैसे हैं – खराब टेस्ट किट्स, चीन से मेडिकल सामग्रियों की खरीदारी - जिसे मानवीय मदद का नाम दिया जा रहा है - और चीनी रेड क्रॉस का दुरुपयोग. चीनी अधिकारी यूरोप में मौजूद चीनी सरकार-समर्थित कंपनियों के साथ मिलकर ‘भूराजनीतिक आगजनी’ को अंजाम दे रहे हैं.
फरवरी के आखिर में, जब चीन में स्वास्थ्य संकट अपने चरम पर था, ऑस्ट्रेलिया में मौजूद चीन की एक रियल-एस्टेट कंपनी वहां से 80 टन से ज्यादा मेडिकल सामग्रियां खरीदकर वूहान ले गई. जिसमें एक लाख संक्रमण से बचाव के कपड़े और 10 लाख जोड़े दस्ताने शामिल थे, Risland Australia नामकी इस कंपनी ने खुद बताया.
अब ऑस्ट्रेलिया वायरस की चपेट में है और बेहद परेशान है क्योंकि यहां जरूरी मेडिकल संसाधनों की कमी हो गई है. हर रोज चीन के छल और धोखे की नई कहानियां सामने आ रही हैं. चीन के नकाब के पीछे राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कम्यूनिस्ट सरकार का असली चेहरा अब सामने आ चुका है. यूरोप के जिन देशों ने चीन की बेल्ट रोड परियोजना को बड़े उत्साह के साथ गले लगाया था, अब उन्हें असलियत का अंदाजा लग रहा है और चीन के राजनीतिक रौबदारी के परिणाम उन्हें दिखने लगे हैं.
गौर करने की बात ये है कि 27 मार्च को जब कोरोना वायरस लगभग पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले चुका था अमेरिकी गृह मंत्रालय ने एक बयान जारी कर बताया कि वॉशिंगटन ने अलग-अलग देशों और WHO को 274 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मानवीय सहायता दी है. ये घोषणा महज अमेरिका की अपनी मौजूदगी का एहसास कराने की कोशिश भर नजर आई.
अब भी कई ऐसी बातें हैं जो अमेरिका के हक में दिख रही हैं, हालांकि अमेरिकी विश्लेषक पहले ही इसके वर्चस्व के अंत का ऐलान कर चुके हैं. चीन की ताकत – या दुनिया भर में वायरस फैलाने के बाद चीन जो भी दिखाने की कोशिश कर रहा है – और कुछ भी हो, लेकिन किसी जिम्मेदार नेतृत्व की निशानी नहीं है.
ये बहुत कुछ आंखों की किरकिरी जैसा है. लेकिन क्या करें जब हर तरफ किरकिरी ही नजर आ रही हो.
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