मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019CVC, ED से लोकपाल तक, लापता होती संस्थाएं: धीमी मौत मर रहा है लोकतंत्र?-8 उदाहरण

CVC, ED से लोकपाल तक, लापता होती संस्थाएं: धीमी मौत मर रहा है लोकतंत्र?-8 उदाहरण

भारत की संस्थाओं को खोखला कर दिया गया है या वे खतरनाक रूप से केंद्रीकरण की ओर बढ़ रही हैं.

सीमा चिश्ती
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>ED, CVC, CBI, RAW-कई संस्थाएं हैं जहां या तो हेड नहीं या नियमित हेड नहीं.</p></div>
i

ED, CVC, CBI, RAW-कई संस्थाएं हैं जहां या तो हेड नहीं या नियमित हेड नहीं.

(फोटो : विभूषिता सिंह / क्विंट हिंदी)

advertisement

भारत में एक लॉ कमीशन यानी कानून आयोग है, यह कानून के जटिल मुद्दों पर सरकार को सलाह देता है और समाज पर प्रभाव डालने वाले कानूनी मुद्दों पर सरकार को आगे विचार करने में मदद करता है. 2020 में 22वें लॉ कमीशन को अधिसूचित किया गया था, इसका तीन साल का कार्यकाल समाप्ति की ओर है. लेकिन सही मायने में देखें तो इस आयोग का अस्तित्व ही नहीं है, इसलिए इसे समाप्त करना कठिन होगा. 22वें कानून आयोग में कभी कोई अध्यक्ष, कोई सदस्य या पार्ट-टाइम सदस्य नहीं रहा. यह दर्शाता है कि भारत में संस्थानों कैसे खोखला किया जा रहा है. ये संस्थाएं सरकार पर निगरानी रखती हैं ताकि वो राजशाही या सल्तनत की तरह काम न करने लग जाए.

महत्वपूर्ण संस्थानों की "रिक्तियां" अपने आप में एक काली कहानी बयां कर रही हैं. एक विशाल और जटिल लोकतंत्र के संस्थागत स्तंभ कैसे कार्य करते हैं और कैसे नहीं करते हैं, इसको डॉक्यूमेंट करना काफी कठिन है.

  • महत्वपूर्ण संस्थानों में 'रिक्तियों' की प्रकृति बता रही है कि 22वें लॉ कमीशन को 2020 में अधिसूचित किया गया था और इसका तीन वर्षीय कार्यकाल अब समाप्ति की ओर है, लेकिन सही मायने में यह अस्तित्व में ही नहीं है, इसलिए इसे समाप्त करना कठिन होगा.

  • CVC की बात करें तो सुरेश एन पटेल (एक बैंकर) केवल एकमात्र कार्यवाहक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (Central Vigilance Commissioner) हैं. बाकी के दो पद 2020 से ही रिक्त पड़े हैं.

  • लोकपाल में भी केवल 'एक्टिंग' चेयरमैन यानी कार्यवाहक अध्यक्ष हैं, जिन्हें 28 मई 2022 को इसकी जिम्मेदारी दी गई. यहां महत्वपूर्ण रिक्तियां हैं. 4 में से 2 न्यायिक सदस्य के पद खाली पड़े हैं.

  • महत्वपूर्ण पदों पर लंबे समय तक किसी संस्था या एजेंसी के चीफ का एक्सटेंशन यानी विस्तार करने से जनता के बीच उस संस्था/एजेंसी, उसके/उसकी जूनियर्स और टीम में विश्वास कम होता है. लेकिन इस समय सीबीआई और ईडी दोनों के पास ऐसे निदेशक (director) हैं जो एक्सटेंशन पर काम कर रहे हैं.

  • क्रिटिकल चेक और बैलेंस की अनुपस्थिति केवल 'पॉलिसी पैरालिसिस' के बारे में नहीं है बल्कि यह केंद्रीकरण की खतरनाक राजनीति का परिणाम है.

यहां इस बात पर विस्तृत विश्लेषण किया गया है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) और मानवाधिकार आयोग एग्जीक्यूटिव के टूल की तरह काम कर रहे हैं. ये किसी भी तरह से सवाल नहीं उठाते हैं. इसके साथ ही ये (दोनों आयाेग) सत्ताधारी पार्टी और उसके पॉलिटिकल नैरेटिव को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं. हालांकि ऐसे मामले में जहां संस्थाएं गायब हो जाती हैं, क्योंकि उन पदों को भरने के लिए किसी को नहीं चुना जाता है, तो इसका तात्पर्य है यह कि जिन कार्यों को करने का उनका जो इरादा ( जैसे कि प्रहरी के तौर पर काम करना और तीसरे अंपायर और रेफरी के रूप में कार्य करना, जिसे एक जीवंत लोकतंत्र माना जाता है) था, वह पूरा नहीं हुआ. इसके बाद एग्जीक्यूटिव स्वतंत्र हो जाते हैं.

खोखले संस्थानों की एक लंबी सूची है

अन्य प्रमुख संस्थान कौन से हैं, जहां रिक्तियां हैं?

पहला, गत वर्ष 9 सितंबर 2021 को जनरल बिपिन रावत की एक हादसे में दुर्भाग्यपूर्ण मौत हो गई थी, उसके बाद आठ महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है लेकिन अभी तक चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) की कुर्सी खाली है. जैसा कि हमें बताया गया था कि सीडीएस का पद काफी अहम था और पूरे डिफेंस ढांचे को पुनर्गठित किया जा रहा था. हाल ही में जिस योजना को लेकर जमकर हल्ला मचा उस अग्निवीर योजना को बिना किसी पायलट प्रोजेक्ट या चर्चा के यहां तक कि बिना सीडीएस के समग्र रोलआउट की जिम्मेदारी लिए लागू किया गया.

दूसरा, CVC यानी केंद्रीय सतर्कता आयोग की बात करें तो सुरेश एन पटेल (एक बैंकर) केवल एकमात्र कार्यवाहक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (Central Vigilance Commissioner) हैं. बाकी के दो पद 2020 से ही रिक्त पड़े हैं. सरकार के प्रस्ताव पर 1964 में इस आयोग की स्थापना की गई थी, जिसे 2003 में एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय का दर्जा दिया गया. एक शीर्षस्‍थ सतर्कता संस्‍थान के तौर पर इसकी जिम्मेदारी भ्रष्टाचार से लड़ना और लोक प्रशासन एवं शासन प्रक्रियाओं में अखंडता सुनिश्चित करना है.

तीसरा, लोकपाल में भी केवल 'एक्टिंग' चेयरमैन यानी कार्यवाहक अध्यक्ष हैं, जिन्हें 28 मई 2022 को इस पद की जिम्मेदारी दी गई. यहां महत्वपूर्ण रिक्तियां हैं. न्यायिक सदस्य (Judicial Member) के 4 में से 2 पद खाली पड़े हैं. लोकपाल खुद को "सार्वजनिक पदाधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की पूछताछ और जांच करने के लिए स्वतंत्र भारत में अपनी तरह के पहले संस्थान के तौर पर वर्णित करता है. इसकी स्थापना लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत की गई है."

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दिलीप बी भोसले लोकपाल के उन चार न्यायिक सदस्यों में शामिल थे, जिन्हें मार्च 2019 में नियुक्त किया गया था. लेकिन जस्टिस भोसले ने शपथ लेने के ठीक नौ महीने बाद ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने द प्रिंट से कहा था कि "मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं अपना समय बर्बाद कर रहा हूं.... मैं पूरी तरह से निष्क्रिय या बेकार बैठा रहा... अगर लोकपाल इसी तरह से अपना काम जारी रखता है तो वह उपने उद्देश्यों से तालमेल बिठाने में विफल हो जाएगा. वह वहां तक नहीं पहुंच पाएगा."
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

चौथा, प्रवर्तन निदेशालय यानी की ED की जिम्मेदारी मनी लॉन्ड्रिंग और विदेशी मुद्रा कानून के उल्लंघन के मामलों को देखने और उसकी जांच करने की है. जैसा कि इस सप्ताह संसद में खुलासा किया गया कि ईडी के तहत 17 वर्षों में दर्ज किए गए मामलों में मोदी सरकार दो तिहाई से अधिक मामलों के लिए जिम्मेदार है. ईडी का प्रयोग काफी बढ़ गया है और इस समय यह लगातार खबरों में भी है, खासतौर पर तब जब इसमें बीजेपी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी शामिल हों. ईडी द्वारा राजनीतिक हस्तियों का पीछा करने या उन्हें टारगेट करना महज संयोग तो नहीं हो सकता.

अनुचित "एक्सटेंशन" का दौर

पांच, गृह और रक्षा सचिवों और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) के निदेशकों का कार्यकाल 2005 के नियमों के अनुसार दो साल का होना था. लेकिन यह नाजुक संस्थान एक अजीबोगरीब सिंड्राेम से जूझ रहे हैं, वह सिंड्रोम है चीफ 'एक्सटेंशन पर' हैं.

महत्वपूर्ण पदों पर लंबे समय तक किसी संस्था या एजेंसी के चीफ का एक्सटेंशन यानी विस्तार करने से जनता के बीच उस संस्था/एजेंसी, उसके/उसकी जूनियर्स और टीम में विश्वास कम होता है. प्रवर्तन निदेशालय (ED) के डायरेक्टर संजय कुमार मिश्रा 2020 में रिटायर हुए थे, लेकिन वे एक्सटेंशन पर रहकर ऑफिस में बने रहे. 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि मिश्रा को अब कोई और एक्सटेंशन नहीं दिया जाना चाहिए लेकिन इसके बावजूद भी उन्हें एक और एक्सटेंशन दिया गया. लंबे समय तक सेवा देने के तुरंत बाद वे मोदी सरकार द्वारा लाए गए विवादास्पद अध्यादेश के पहले लाभार्थी बने थे.

छह, रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के चीफ समर्थ गोयल भी एक साल के एक्सटेंशन पर हैं. सूचना और सुरक्षा के संस्थागत ढांचे में रॉ एक महत्वपूर्ण घटक के तौर पर शामिल है.

सात, देश के शीर्ष वित्तीय प्रहरी भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) कार्यालय में हैं. लेकिन द न्यू इंडियन एक्सप्रेस द्वारा एक आरटीआई से प्राप्त जानकारी के मुताबिक कैग रिपोर्ट अपने मानक प्रदर्शन के अनुरूप नहीं थीं. 2015 यानी मोदी सरकार आने के एक साल बाद कैग की रिपोर्ट अपने चरम पर थीं. लेकिन कुछ वर्षों बाद दृश्य बदला और 2017 में जहां इस एजेंसी (कैग) ने 8 डिफेंस ऑडिट रिपोर्ट प्रस्तुत की थी उसकी संख्या 2020 में घटकर शून्य (0) हो गई. 2014 से तीन साल पहले प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान कैग ने 2011 में 39, 2012 में 26 और 2013 में 34 रिपोर्ट दर्ज की थी. 2014 में यह आंकड़ा बढ़कर 37 पर पहुंच गया था और 2015 में जब कैग की रिपोर्ट्स अपने चरम पर थीं, तब यह आंकड़ा 55 का था.

इसके बाद के अगले पांच वर्षों यानी 2016, 2017, 2018, 2019 और 2020 में कैग रिपोर्ट्स में गिरावट दर्ज हुई. ये क्रमश: 42, 45, 23, 21 और 14 के आंकड़ों पर आ गईं. अखबार द्वारा जुटाई गई जानकारी से पता चला कि केंद्र सरकार और उसके मंत्रालयों से जुड़े कैग ऑडिट्स में इस दौरान " 74.5 प्रतिशत की गिरावट" आई थी.

आठ, पिछले आठ वर्षों में कई सालों तक केंद्रीय सूचना आयोग यानी सेंट्रल इंफॉर्मेशन कमीशन में कई सदस्य और इसके मुखिया लापता थे, जब तक कि याचिकाकर्ताओं ने नियुक्तियों को सुनिश्चित करने और जानकारी को नहीं दबाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का रुख नहीं किया. पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सूचना आयुक्तों के पदों को समयबद्ध भरने के अपने 2019 के फैसले के अनुपालन पर केंद्र और राज्यों को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था.

अनकहा शब्द केंद्रीयकरण है

जब नियुक्तियां नहीं होती हैं और नियुक्तियों की प्रक्रिया पारदर्शी, सहज और पहले से तय तौर पर नहीं होती है, तो इसके दूरगामी परिणाम होते हैं. अगर किसी व्यक्ति की नियुक्ति एक्सटेंशन पर होती है तो इससे उस व्यक्ति और संस्था की विश्वसनीयता के साथ-साथ उसकी सर्विस और टीम भी प्रभावित होती है. एक्सटेंशन की व्याख्या सर्विस में अविश्वास के तौर पर देखी जाती है.

संस्थाएं कार्यपालिका की जवाबदेही को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. राजनीतिक वैज्ञानिकों के अनुसार सरकार की जवाबदेही लोगों के लिए लंबवत (vertical), विधायिका के लिए क्षैतिज (horizontal) और संस्थानों, मीडिया एवं न्यायपालिका के लिए तिरछी (diagonal) होती है. जब सभी तरफ खींचतान बनी रहती है तभी नागरिकों को एक उत्तरदायी और सतर्क सरकार मिलती है.

खाली पदों और ऑफिसों के लिए राजनीतिक कार्यपालिका की उपेक्षा और अक्षमता का हवाला देना लुभावना है. लेकिन लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली के सभी सूचकांकों पर भारत का गिरता हुआ स्कोर हमें खुली वास्तविकता का सामना करने के लिए मजबूर करता है.

जांच से बचने के लिए इन महत्वपूर्ण कार्यालयों में से प्रत्येक में सरकार द्वारा एक वफादार की अथक खोज के गंभीर परिणाम हो सकते हैं.

निगरानी की अनुपस्थिति केवल 'पॉलिसी पैरालिसिस' के बारे में नहीं है बल्कि यह केंद्रीकरण की खतरनाक राजनीति का परिणाम है. जोकि पूर्ण सार्वजनिक दृष्टिकोण में लोकतंत्र को खोखला कर सकती है. संस्थाओं के लपता होने का मामला कोई ऐसी-वैसी बात नहीं है, जिसे हल्के में लिया जाए.

(सीमा चिश्ती दिल्ली में स्थित एक लेखिका और पत्रकार हैं. अपने दस साल से ज्यादा के करियर में वह बीबीसी और द इंडियन एक्सप्रेस जैसे संगठनों से जुड़ी रही हैं. उनका ट्विटर हैंडल @seemay है. यह राय लेखक के निजी है. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT