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बर्मिंघम (Birmingham) में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स (CWG 2022) में भारतीय वेटलिफ्टिंग दल की कामयाबी की खुशियों के भंवर में फंस जाना आसान है.
सामूहिक हर्ष की ताकत ऐसी होती है कि ये अपने काम की समीक्षा करते वक्त किसी भी तरह के संतुलन के लिए जगह नहीं छोड़ती, लेकिन वास्तविकता से परिचय होना भी जरूरी है.
बर्मिंघम स्थित नेशनल एग्जिबिशन सेंटर हॉल 1 में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स में 38 देशों और प्रदेशों ने वेटलिफ्टिंग में अपने दल भेजे. इसमें 15 देशों ने कम से कम एक पदक जीता है, वहीं 9 देश कम से कम एक स्वर्ण पदक हासिल करने में कामयाब रहे.
भारत के लिए टोक्यो 2020 ओलंपिक गेम्स में रजत पदक विजेता और 2017 में विश्व चैंपियन बनी मीराबाई चानु (महिला 49 किग्रा वर्ग) ने सबकी उम्मीदों के अनुसार ही प्रदर्शन किया. वहीं युवा जेरेमी लालरिन्नूंगा (पुरुष 67 किग्रा वर्ग) और अचिंता शेउली (पुरुष 73 किग्रा वर्ग) ने अपने सुनहरे जीत से कॉमनवेल्थ खेलों में डेब्यू किया.
भारत को रजत पदक दिलाने में संकेत महादेव सरगर (पुरुष 55 किग्रा वर्ग), विकास ठाकुर (पुरुष 96 किग्रा वर्ग) और बिंदियारानी देवी (जिन्होंने 'क्लीन एंड जर्क' महिला 55 किलोग्राम भार वर्ग में राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा) शामिल हैं. वहीं, गुरुराजा पुजारी (पुरुष 61 किग्रा वर्ग), लवप्रीत सिंह (पुरुष 109 किग्रा वर्ग), गुरदीप सिंह (पुरुष +109 किग्रा वर्ग) और हरजिंदर कौर (महिलाओं के 71 किग्रा) ने कांस्य पदक जीते.
अजय सिंह, पॉपी हजारिका, पूनम यादव, उषा कुमारा और पूर्णिमा पांडे का सफर पोडियम पर जाने से पहले ही खत्म हो गया. इन सब के बीच पूनम यादव को वेटलिफ्टिंग के सबसे बुरे सपने से गुजरना पड़ा जो है “नौ-मार्क” जिसके कारण उन्हें “Did Not Finish” का तगमा लगा.
यदि वेटलिफ्टर अपने निजी प्रदर्शन में सुधार कर फिर से राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाते तो प्रशंसनीय होता. बिलकुल वैसे जैसे लवप्रीत सिंह ने "स्नैच, क्लीन और जर्क" में 109 किलोग्राम भार वर्ग में किया.
हालांकि ये विवाद का विषय हो सकता है कि खिलाड़ियों के जख्मों को ध्यान में रख कर अपने आप को अति उत्साहित नहीं करना है, खास तौर से तब जब उनका मुख्य लक्ष्य गोल्ड पर नजर रखते हुए पोडियम पर जाना है.
सब कुछ कहने सुनने के बाद, खिलाड़ियों और खेल फेडरेशन के अध्यक्षों की तरफ से जो आवश्यक है वो तो होगा ही, मगर खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर प्रतिक्रिया तो उनके चाहने वाले और आलोचकों के हाथों में है.
कॉमनवेल्थ खेलों में भाग लेने वाले भारतीय वेटलिफ्टिंग दल के दो तिहाई खिलाड़ियों की सफलता पर भारत की क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए?
इसे पलट कर देखें तो, प्रतियोगिता से एक महीने पहले बर्मिंघम में होने के बावजूद पदक प्राप्त करने में एक तिहाई दल की विफलता के दृष्टिकोण से भारत को देखना चाहिए क्या?
बेशक, कॉमनवेल्थ खेलों में जीते गए हर पदक का जश्न मनाया जाना चाहिए, न केवल इसलिए कि यह राष्ट्रीय ध्वज और भारत को अंक तालिका में ऊपर उठाता है, बल्कि इसलिए भी कि ये महीनों की योजना और कड़ी मेहनत का नतीजा है, जो पोडियम पर जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
दरअसल, सुर्खियों में रहते हुए एक रिकॉर्ड ब्रेकिंग प्रदर्शन के साथ पदक जीतना अभी बाकी है.
इन सभी चीजों को सही नजर से देखना भी जरूरी है. इस बात पर बहस की जा सकती है कि किसी ने भी अन्य कॉमनवेल्थ देशों को अपने कौशल में सुधार करने से रोक नहीं रखा है. सच्चाई ये है कि मुक्केबाजी, कुश्ती, जुडो, बैडमिंटन और टेबल टेनिस की तरह कॉमनवेल्थ खेलों में वेटलिफ्टिंग के मानक की तुलना एशियाई या वैश्विक स्तर पर नहीं की जाती है.
अगर कोई भी रुक कर सर्वश्रेष्ठ भारतीयों और विश्व खिलाड़ियों के बीच के अंतर को देखे तो उसे समझने में मदद मिलेगी.
बेशक, डोपिंग से तबाह एक खेल में, कॉमनवेल्थ प्रतियोगिता में सफलता अधिक युवाओं को खेल, प्रशिक्षण और प्रतिस्पर्धा करने के लिए आकर्षित करेगी. कॉमनवेल्थ खेलों के पदक विजेता- मणिपुर और मिजोरम से लेकर महाराष्ट्र, पंजाब और कर्नाटक तक हैं. यह दर्शाता है कि इस खेल का विस्तार अभी की तुलना में आगे ज्यादा होने की गुंजाइश है.
किसी भी चीज से पहले भारत को प्रत्येक भार वर्ग में बेंच स्ट्रेंथ विकसित करने की दिशा में काम करना चाहिए ताकि वह प्रतियोगिता का अनुमान लगा सके. भारतीय वेटलिफ्टिंग महासंघ और भारतीय खेल प्राधिकरण के सर्वोत्तम प्रयास के बावजूद ऐसा होना दूर की कौड़ी लगता है.
22 वेटलिफ्टर को ओलंपिक पोडियम योजना के तहत सहयोग मिल रहा है और लगभग 100 की पहचान खेलो इंडिया एथलीटों के रूप में की गई है, लेकिन फिर भी उच्च प्रदर्शन वाली भावना मुश्किल ही दिखती है.
बहुत सी चीजें सही काम कर रही हैं, लेकिन जिस तरह से टोक्यो 2020 के पदक विजेता उससे कम प्रतिस्पर्धा वाले कॉमनवेल्थ खेलों में वेटलिफ्टिंग का नेतृत्व कर रहे हैं, इससे संकेत मिलते हैं कि सुधार की गुंजाइश है.
कॉमनवल्थ खेलों का उपयोग ज्यादा युवाओं को कड़े मुकाबले के लिए तैयार करने के लिए किया जा सकता है, जिससे उन्हें उस माहौल में रहने का अनुभव मिल सके और उस दबाव से परिचित कराया जा सके जो बहु- अनुशासनात्मक स्पर्धाओं में भाग लेने के अवसर के साथ आता है, लेकिन सभी स्तरों पर एक ये सोच होनी चाहिए कि अगर सुरक्षित पदकों की संख्या उतनी नहीं है तो भी ठीक है.
यदि उल्लासपूर्ण भवर में फंसने के बजाय एक बेहतर दृष्टिकोण हासिल कर लिया जाए तो भारत एक महान खेल राष्ट्र होगा.
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