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कंझावला में एक महिला को एक कार ने 12 किलोमीटर घसीटा. सवाल है कि क्या किसी पुलिस वाले को नहीं दिखा? अक्सर ऐसे सवालों का होशियार लोग जवाब देते हैं कि पुलिस हर जगह तो नहीं हो सकती है. लेकिन कंझावला केस (Delhi Kanjhawala Case) में ये सवाल बेमानी है. क्योंकि इस वारदात के एक चश्मदीद दीपक ने क्विंट से बताया कि उसने पीसीआर को सामने से दिखाया कि देखो यही कार है जो लाश घसीटते हुए जा रही है...लेकिन पुलिस ने इग्नोर कर दिया. ये वही दीपक है जिसने आरोपियों की कार का डेढ़ घंटे पीछा किया था. दीपक का कहना है कि वो लगातार पुलिस को बलेनो कार की लोकेशन बता रहा था, पुलिस से 18-20 बार बात हुई लेकिन पुलिस नहीं आई?
क्या क्विंट को दिए.. दीपक के बयान का मतलब ये नहीं है कि पुलिसवालों ने लापरवाही की है? क्योंकि कुछ सवाल उठते हैं.
18-20 बार बात होने के बाद भी पुलिस क्यों नहीं पहुंची?
जब दीपक ने पीसीआर को दिखाया कि ये वही कार है तो पुलिस ने नजरअंदाज क्यों किया?
दीपक ने बलेनो कार का डेढ़ घंटे पीछा किया, क्या पहली कॉल के चंद मिनट में पुलिस पहुंचती तो युवती की जान बच सकती थी?
क्योंकि अभी ये साफ नहीं है कि उसकी मौत कब हुई. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने ही कहा है कि मौत टक्कर और घिसटने से हुई है.
तो जब उसे घसीटा जा रहा तब क्या वो जिंदा थी?
क्या दिल्ली पुलिस अपने लापरवाह लोगों को बचा रही है? एलजी ने कहा कि उनका सिर शर्म से झुक गया है. हमें ये समझना बाकी है कि क्या उनकी इस शर्म के पीछे पुलिस वालों की शर्मनाक लापरवाही भी है? अगर ऐसा है तो उन्होंने ये नहीं बताया क्या इसकी भी जांच हो रही है?
मंगलवार को स्पेशल सीपी सागर प्रीत हुड्डा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. चश्मदीद दीपक के मुताबिक डेढ़ घंटे तक पुलिस पहुंच नहीं पाई और ये प्रेस कॉन्फ्रेंस जानते हैं कितनी देर की थी. डेढ़ मिनट की. इसीलिए हम पूछ रहे हैं क्या ये डेढ़ घंटे की लापरवाही और डेढ़ मिनट की जवाबदेही का भी केस है?
डेढ़ मिनट की पीसी में स्पेशल सीपी ने कहा कि उस रात मृतका के साथ एक और लड़की थी जो हादसे के बाद वहां से चली गई थी. उस लड़की का बयान लिया गया है. लेकिन स्पेशल सीपी साहब ने पत्रकारों से कोई सवाल नहीं लिया. जबकि पत्रकारों को बहुत सारे सवालों के जवाब चाहिए थे? पत्रकारों को मौका मिलता तो वो पूछते कि
पुलिस स्टेशन से एक किलोमीटर दूर ये सब होता रहा तो पुलिस रोक क्यों नहीं पाई?
दीपक ने जब कथित तौर पर पीसीआर को बलेनो कार दिखाई तो पुलिस ने नजरअंदाज क्यों किया?
पूछते कि चश्मदीद के बेतहाशा कॉलों पर ऐसी बेपरवाही क्यों?
पूछते कि क्या आप मानते हैं कि किसी की लापरवाही है?
अगर नहीं मानते तो क्यों नहीं?
अगर मानते हैं कि लापरवाही हुई है तो क्या लापरवाह पुलिसवालों की पहचान हो गई है? पता तो होगा ही कि उस इलाके में उस रात किन लोगों की तैनाती थी?
पता है तो क्या कोई एक्शन ले रहे हैं?
पुलिस ने घटना के सामने आने के तुरंत बाद इसे हादसा क्यों करार दिया?
अब खुद ही ये कहने की नौबत क्यों आ रही है एक और लड़की थी?
और क्या कहानी इतनी ही है जितनी कि बताई जा रही है?
आरोपियों के मुताबिक कार में तेज म्यूजिक चल रहा था, इसलिए पता नहीं चला कि कुछ कार से लगकर घिसट रहा है? क्या ये बात पचने लायक लग रही है?
जब दूसरी लड़की को चोट नहीं लगी थी तो वो किस बात से डर गई थी? वो वहां से क्यों भागी थी?
जिस सीसीटीवी से पता चला कि मृतका के साथ कोई और लड़की थी उसी में दिख रहा है कि दोनों के बीच बहस हो रही है, तो ये बहस किस बात को लेकर हो रही थी?
आम आदमी पार्टी आरोप लगा रही है कि आरोपी कुछ पुलिस अफसरों के संपर्क में थे. सौरभ भारद्वाज कॉल रिकॉर्ड चेक करने की चुनौती दे रहे हैं? हमें नहीं मालूम कि इस आरोप में सच्चाई है भी या नहीं? क्या आप कॉल रिकॉर्ड चेक रहे हैं?
अफसोस इन सवालों के जवाब अभी नहीं मिल पाएंगे. हम उम्मीद ही कर सकते हैं कि आगे की जांच के बाद पुलिस इन सवालों के जवाब दे.
ये जानना जरूरी है. क्योंकि दिल्ली और देश जानना चाहता है कि 2012 में निर्भया कांड के बाद भी देश की राजधानी दिल्ली में कुछ बदला है या नहीं?
जहां शव पाया गया, उस जौंटी गांव से क्विंट ने जहां हादसा हुआ, उस सुलतानपुरी मार्केट तक का रात में सफर किया और पाया कि इस रास्ते का काफी हिस्सा अंधेरा रहता है. स्ट्रीटलाइन नहीं जल रही थी. सड़क खराब है. ऐसे में अगर पुलिस भी कोताही बरते तो किसके भरोसे है जनता?
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