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बेहद सम्मानित आठ पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारियों की कतर (Qatar) की एक जेल से रिहाई निश्चित रूप से पूरे देश के लिए खुशी की खबर है. सभी आठ अधिकारियों को रिहा कर दिया गया है और सात सुरक्षित घर लौट आए हैं. एक अधिकारी बीमार होने की वजह से दोहा में ही हैं. इन्हें पहले मौत की सजा सुनाई गई और फिर ऊपरी अदालत में अपील करने पर सजा को अलग-अलग अवधि के लिए कैद में बदल दिया गया. इनके बरी होने और रिहाई के लिए भारत सरकार इनकी कैद के 18 महीनों के दौरान लगातार कोशिशों में जुटी रही थी.
मामला गोपनीयता की चादर से ढका हुआ था और मीडिया में लीक हुई खबरों में इजरायल को डिफेंस सीक्रेट्स सौंपने के आरोप में “जासूसी” और “देशद्रोह” का आरोप सामने आने के बाद संदेह गहरे हो उठे.
यह अधिकारी कतर की एक कंपनी के लिए काम करते थे, जो अब बंद हो चुकी है. कंपनी कतर के सशस्त्र बल के अधिकारियों के लिए ट्रेनिंग सर्विस मुहैया कराती थी. अपुष्ट मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि इन अधिकारियों ने कतर द्वारा पनडुब्बियों की खरीद को लेकर इजरायल को कुछ जानकारी दी होगी. हालांकि, इसकी संभावना बहुत कम है कि ये अनुभवी अफसर जानबूझकर इजरायल की ओर से जासूसी में शामिल में हुए होंगे.
कतर की कानूनी प्रणाली में पारदर्शिता का अभाव है और कानूनी कार्यवाही एकांत में चलती है. यह स्थिति लोकतंत्रिक देशों के उलट है, जहां कानूनी मुद्दों पर बहस की जाती है और जनता के सामने खुली अदालतों में फैसला किया जाता है. कतर में अकेले शेख परिवार का शासन है जो गैस बेचकर मिलने वाले विशाल वित्तीय संसाधनों का इस्तेमाल कर अपना शासन चलाता है.
जलवायु परिवर्तन की चिंताओं, स्वच्छ ईंधन और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के चलते दुनिया में गैस की मांग काफी बढ़ गई है. पाकिस्तान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा खाड़ी देशों में, जिन पर वह हमेशा अपना पहला हक मानता रहा है, भारत की पहुंच को लेकर बहुत ज्यादा फिक्रमंद है.
खाड़ी देशों के साथ भारत के बढ़ते आर्थिक रिश्तों के बीच, पाकिस्तान अब आर्थिक हितों के उलट मजहब को एक जोड़ने वाले कारक के रूप में इस्तेमाल नहीं कर सकता है. पाकिस्तान के लिए बाहर से भेजा जाने वाला धन विदेशी मुद्रा का एक महत्वपूर्ण जरिया है, खासकर इसकी खराब आर्थिक हालत में.
कतर में करीब 8 लाख भारतीय काम करते हैं और पाकिस्तानी कामगारों की संख्या करीब 1.5 लाख है. भारत के साथ रिश्तों में जहर घोलकर, पाकिस्तान हालात को अपने हक में मोड़कर कतर को अपने देश से ज्यादा कामगारों की भर्ती करने और वहां से भेजी जाने वाली अपनी कमाई को बढ़ाने की उम्मीद रखता है.
भारत के बिना शोर मचाए खामोशी से की गई कोशिशों और पीएम मोदी की महत्वपूर्ण व्यक्तिगत कूटनीति ने दोनों देशों के बीच बराबरी से बातचीत का माहौल बनाया. इन कोशिशों के अंतिम नतीजे में मोदी की निर्णायक भूमिका महत्वपूर्ण थी.
विदेश मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और भारत के राजदूत और राजनयिकों के परदे के पीछे चले राजनयिक प्रयासों ने इस अनुकूल नतीजे की भूमिका तैयार की. पीएम मोदी ने आगे बढ़कर नेतृत्व किया और तमाम देशों के नेताओं के साथ निजी रिश्ता कायम करने की उनकी क्षमता जगजाहिर है.
पीएम मोदी ने संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की अपनी मौजूदा यात्रा के बाद दोहा जाने का फैसला किया. UAE में उन्होंने प्रेसिडेंट मुहम्मद बिन जायद अल नाहयान के साथ पहले हिंदू मंदिर का उद्घाटन किया. मोदी ने जब 2015 में UAE की अपनी पहली यात्रा की थी, तो यह करीब तीन दशकों बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा थी.
यह तथ्य इस महत्वपूर्ण रिश्ते के प्रति भारत के पिछले नेतृत्व की उपेक्षा को खुद दर्शाता करता है. इस तरह पूर्व-सैन्य अधिकारियों को रिहा कराने में नाकाम रहने के लिए पीएम मोदी पर विपक्ष के हमले अब उनकी सफलता पर बेमन से अनुमोदन पर सीमित हो गए हैं.
कतर अपनी विदेश नीति में काफी हद तक मनमौजी रहा है. इसकी अपने अरब पड़ोसियों के साथ नहीं बनी और बहरीन, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र की सामूहिक पाबंदी का निशाना बना. इन सभी ने मार्च 2014 में कतर से राजनयिक संबंध तोड़ दिए– 1981 में खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के गठन के बाद से यह सबसे कठोर कार्रवाई थी.
सऊदी अरब कतर के ईरान से करीबी रिश्ते, इस्लामिक ब्रदरहुड जैसे इस्लामी चरमपंथी समूहों को समर्थन और कतर के मालिकाना हक वाले अल जजीरा न्यूज चैनल, जो कतर के वैचारिक पूर्वाग्रह से जुड़ी खबरें और रिपोर्ट पेश करने के लिए जाना जाता है, की आलोचनात्मक मीडिया कवरेज से नाराज था.
कई अरब देशों में 2011 के “अरब स्प्रिंग” विद्रोह के दौरान हुए घटनाक्रम ने खतरे की घंटी बजा दी थी और सत्तारूढ़ परिवार जनता द्वारा उखाड़ फेंके जाने के डर से फिक्रमंद थे. ये अलोकतांत्रिक सरकारें खुद को बचाने के लिए एकजुट हो गईं लेकिन कतर ने विद्रोह के असर वाले अरब देशों में विपक्षी गुटों के साथ रिश्ते बनाए और अल-जजीरा ने विपक्षी गुटों को सकारात्मक कवरेज दी.
कतर ने तख्तापलट की निंदा की जिससे मिस्र के साथ उसके रिश्ते बुरी तरह खराब हो गए. काहिरा में अल जजीरा का दफ्तर बंद कर दिया गया. तब सऊदी अरब की अगुवाई में उठाई गई कतर के बहिष्कार की मांग को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुलकर समर्थन दिया था. तुर्की कतर के सबसे दमदार समर्थक के रूप में उभरा और पाबंदी से उबरने में मदद के लिए फूड शिपमेंट और हजारों सैनिक मुहैया कराए. ईरान ने भी कतर को खाद्य सामग्री भेजी.
कतर ने अमेरिका के साथ नजदीकी रिश्ते विकसित किए और एक गैर-नाटो सहयोगी होते हुए अल-उदेद अमेरिकी एयर बेस के लिए जगह दी, जो इस इलाके का सबसे बड़ा हवाई अड्डा है.
कतर का दावा है कि यह कदम आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में मदद के लिए उठाया गया है. कतर ने अमेरिका और तालिबान के बीच मध्यस्थता में भी मदद की जिसके नतीजे में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी हुई और तालिबान सरकार की वापसी हुई. इसने दोहा में हमास नेताओं की मेजबानी की है और इजरायल और फिलिस्तीनी आतंकवादी गुट के बीच बातचीत का रास्ता तैयार करने में मदद की है.
कतर की मध्यस्थता से हमास की तरफ से तकरीबन 110 इजरायली बंधकों की रिहाई में मदद मिली.
तेल की बिक्री से हासिल बेपनाह दौलत से आबाद कतर अमेरिकी हथियार उद्योग के लिए भी एक फायदेमंद जरिया है.
भारतीय पूर्व सैन्य अधिकारियों की रिहाई के लिए हुई बातचीत के बारे में अटकलें जारी हैं. हालांकि, यह मान लेना बहुत आसान है कि यह अगले दस साल तक कतर द्वारा भारत को गैस आपूर्ति के 78 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सौदे से जुड़ा है, जो पूर्व सैनिकों की रिहाई से पहले हुआ था.
क्या कतर ने जासूसी के मनगढ़ंत आरोप लगाए और गैस सौदा हो, यह सुनिश्चित करने के लिए भारत के खिलाफ दबाव बनाने को कानूनी कार्रवाई की? यह सवाल भी अटकलों के दायरे में है. जैसा कि कहावत है, “अंत भला सो सब भला” और भारत-कतर संबंध दोस्ताना और एक-दूसरे के लिए फायदे वाली स्थिति में हैं.
कतर की लीडरशिप की सोच व दूरदर्शिता और पीएम मोदी के दृढ़ संकल्प व नेतृत्व ने द्विपक्षीय संबंधों में संतुलन बहाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
(लेखक विदेश मंत्रालय में पूर्व सचिव रह चुके हैं; उन्होंने बांग्लादेश में डिप्टी हाई कमिश्नर और बाद में हाई कमिश्नर के रूप में काम किया है; वह थिंक टैंक डीपस्ट्रैट के संस्थापक निदेशक और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में विजिटिंग फेलो हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यह लेखक के अपने विचार हैं. क्विंट हिंदी इनके लिए जिम्मेदार नहीं है.)
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