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पिछले दो दशक से क्षेत्रीय पार्टियां केंद्र की सरकार में अपनी जो ताकत दिखा रही थीं, 2014 आम चुनाव के बाद उस पर ब्रेक लग गया, जब बीजेपी ने अपने दम पर सरकार बनाई. अगले लोकसभा चुनाव के बाद जो सरकार बनेगी, तो मुमकिन है कि उसमें राज्यों की चले, क्योंकि क्षेत्रीय पार्टियां फिर से उभार पर हैं.
केंद्र और राज्य के संबंधों में समय के साथ जिस तरह का बदलाव आया है, क्या उसे देखते हुए देश के गवर्नेंस सिस्टम में तब्दीली लानी चाहिए?
रक्षा, संचार और करेंसी के मामलों में कोई समझौता नहीं हो सकता. इसमें संविधान के साथ कुछ और चीजें भी हैं. हालांकि इसमें ऐसी भी चीजें हैं, जिनकी संदर्भ बदलने की वजह से अब जरूरत नहीं रह गई है. इसलिए अगली सरकार को इसकी समीक्षा करके लिस्ट को छोटा करना चाहिए. इसमें से अधिक से अधिक चीजों को हटाकर उन्हें राज्यों की लिस्ट में डाला जा सकता है. राज्यों को अधिक ममलों में फैसले का अधिकार देना चाहिए.
दरअसल, कोई भी केंद्र से मिलने वाली ‘मलाई’ गंवाना नहीं चाहता. इसे देखते हुए यह सवाल किया जा सकता है कि केंद्र को कितना ताकतवर होना चाहिए? और आज पावरफुल होने का क्या मतलब है?
मेरे हिसाब से कानूनी, आर्थिक जानकारों के साथ नेताओं की एक समिति बनानी चाहिए, जो इसकी समीक्षा करे. इस समिति से हर हाल में पूर्व नौकरशाहों को बाहर रखना होगा, क्योंकि वे ऐसे हर बदलाव को रोकने की कोशिश करेंगे, जो उनके पेशेवर हितों के खिलाफ होगा.
मैं जो बात कह रहा हूं, उसकी अवधारणा सुप्रीम कोर्ट ने 1960 के दशक की शुरुआत में रखी थी. उसने कहा था कि भारत अमेरिका या कनाडा की तरह फेडरेशन नहीं है, बल्कि यह ‘राज्यों का संघ’ है.
हालांकि धीरे-धीरे सब बड़े हो जाते हैं. कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी देवगौड़ा और गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने हैं. केंद्र की कुर्सी हासिल करने की लाइन में कुछ और मुख्यमंत्री शामिल हैं. राज्यों की मेच्योरिटी की यह सच्चाई संविधान में भी दिखनी चाहिए, नहीं तो केंद्र अप्रासंगिक हो जाएगा.
हालांकि वह कई बार प्रोसेस को पावर मानने की गलती कर बैठता है. भारत का संविधान दुनिया का शायद इकलौता संविधान है, जिसमें प्रोसेस पर बहुत अधिक जोर दिया जाता है. इसमें कई चीजें अच्छी हैं, लेकिन जैसा कि आर्टिकल 311 से साबित होता है कि इनमें से कुछ से फायदे के बजाय नुकसान हो रहा है.
जब संविधान बन रहा था, तब बचाव के ये उपाय जरूरी थे, लेकिन अब इनमें से कुछ की समीक्षा करने का समय आ गया है. आज गवर्नेंस के केंद्र में यही सबसे बड़ा सवाल है.
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