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आजादी के अमृत महोत्सव पर इस बार आजादी की 75वीं सालगिरह पर हर शख्स को अपने घर तिरंगा लाने के लिए प्रेरित किया गया. उन्हें तिरंगा अपने घर में फहराने के लिए प्रेरित किया गया. तिरंगा के साथ हमारा रिश्ता अक्सर ही औपचारिक और सांस्थानिक ज्यादा रहा है. आजादी के 75वें साल में एक देश के तौर पर घर घर तिरंगा लाने की मुहिम तिरंगे के साथ निजी भावनात्मक कनेक्शन ही नहीं बल्कि राष्ट्रनिर्माण को लेकर प्रतिबद्धता भी बन गई है. इस पहल के पीछे लोगों के दिलों में देशभक्ति बढ़ाना और तिरंगे को लेकर जागरुकता बढ़ाना है.
पिछले दो साल भारत के लिए बहुत ही कठिन रहे हैं. लगभग आधी सदी में पहली बार लद्दाख में चीनी सेना के साथ हमारा टकराव हुआ, जो अभी खत्म भी नहीं हुआ है. कोविड -19 महामारी के कारण देश आर्थिक मंदी से गुजरा. कई उथल-पुथल के दौर का हमें सामना करना पड़ा. इससे लाखों लोगों की जान चली गई.. लाखों को दुख और आघात पहुंचा.
इसलिए स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में तिरंगे को लेकर पूरे देश को एकजुट करने का ये बढ़िया मौका बना. 'हर घर तिरंगा' लोगों के भीतर नई ऊर्जा और राष्ट्रवादी गौरव, देशभक्ति जगाने के लिए सही मूड साबित करने वाला है.
झंडे को लेकर कुछ तो खास है जो अक्सर देश के नागरिकों को प्रेरित करता है. पर्वतारोही अभियान पर अपनी टीम और राष्ट्रीय ध्वज को ले जाते हैं और उसे शिखर पर लगाते हैं. अंटार्कटिका, हो या फिर चंद्रमा के लिए अभियान सब जगह अपना राष्ट्रीय ध्वज लगाया जाता है.
विश्व के दिग्गज नेता भी जब कोई बड़ी अंतरराष्ट्रीय बैठक करते हैं तो बैकग्राउंड में झंडे को रखते हैं. यहां तक कि ऑनलाइन मीटिंग के दौरान भी झंडा ही प्रमुखता से रखा जाता है. कोई भी राष्ट्रीय झंडा दरअसल ‘जोश’ को एक अलग ही स्तर पर ले जाता है. यह विजय का प्रतीक है. इसलिए तो जवान भी पताका और झंडे को लेकर जंग की मैदान में जाते हैं. सेना भी अपने किला और दुश्मन पर फतह के बाद वहां झंडा लगाती है.
पिछले महीने, भारत ने कारगिल विजय दिवस की सालगिरह मनाई. हम सभी ने वो तस्वीरें देखीं जब सैनिकों ने फतह की गई चोटी पर तिरंका लहराया. कारगिल युद्ध के दौरान जब समाचारों में साल 1999 में इन तस्वीरों का रीयल टाइम ब्रॉडकास्ट किया गया और युद्ध के बारे में जानकारी दी गई तो इसने नागरिकों, सैनिकों में जबरदस्त गर्व पैदा किया.
हां, झंडे के बारे में कुछ तो होना चाहिए. प्रत्येक सशस्त्र बल का अपना झंडा होता है. राजनीतिक दलों के पास है, यहां तक कि कॉरपोरेट जगत के पास भी . इस साल जनवरी में व्हाइट हाउस दंगों के दौरान दंगाईयो ने कैपिटल हिल पर धावा बोलकर अपने झंडे लहरा दिए. वहीं गणतंत्र दिवस पर नई दिल्ली में दंगाइयों ने भी लाल किले पर धार्मिक झंडा फहराने का प्रयास किया.
यहां सेना में झंडे के बारे में एक और दिलचस्प सैन्य तथ्य है. रेजिमेंट के अपने फ्लैग होते हैं. उनके 'रंग' या 'मानक' वाला फ्लैग. बटालियन और रेजिमेंटों को राष्ट्र की सेवा में उनके बलिदान के लिए राष्ट्रपति उन्हें ये देते हैं. सभी सैनिक ‘रंगों’ का अत्यधिक सम्मान करते हैं. जब परेड ग्राउंड पर रेजिमेंट के ‘रंग’ लाए जाते हैं, तो सभी उपस्थित होते हैं और ‘रंगों’ को सलामी देते हैं. मुख्य अतिथि भी ‘रंगों’ को सलाम करते हैं. ऐसा नहीं करना बेअदबी होती है ? यह लगभग पूजा जैसी है?
जब एक सैनिक अपनी जान जोखिम में डालकर दुश्मन से लड़ता है तो वह 'नाम, नमक, निशान' या अपनी यूनिट के नाम और गौरव, अपनी रेजिमेंट के झंडे और राष्ट्रीय ध्वज के लिए लड़ता है. तिरंगा उन्हें देश के लिए अपनी जान जोखिम में डालने के लिए प्रेरित करता है. जो लोग युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देते हैं, उनके पार्थिव शरीर को राष्ट्रीय ध्वज में लपेटकर घर लाया जाता है. यह सर्वोच्च सम्मान है जो किसी को दिया जा सकता है. राष्ट्र के लिए उनके सर्वोच्च बलिदान के सम्मान में ही अंतिम संस्कार से पहले तिरंगा हटकार सभी राजकीय सम्मान के साथ इसे लपेटकर परिवार को सौंपा जाता है जो सबसे बड़ा सम्मान होता है.
कभी-कभी जाति तो कभी समुदाय के नाम पर लोग लड़ लेते हैं. लोगों के दिलों में देशभक्ति की भावना जगाने के अलावा, आइए हम सभी भारतीयों के बीच सौहार्द और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए तिरंगे का उपयोग करें. आइए हम तिरंगे को न केवल घर लाएं, हम इसे दिल से लगाएं. आइए हम हर घर तिरंगा से हर दिल तिरंगा का प्रण लें.
जय हिंद !
(लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ कश्मीर में पूर्व कॉर्प कमांडर रहे हैं ..वो चीफ ऑफ इंटीग्रेटेड स्टाफ रहे हैं ...विचार लेखक हैं और The Quint ना तो इसको एंडोर्स करता है और ना ही इसके लिए जवाबदेह है. )
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