ADVERTISEMENTREMOVE AD

Har Ghar Tiranga:90 साल में कई बार बदला रंग,फिर बना राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा-इतिहास

23 जून 1947 को डॉ राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में देश की संविधान सभा में तिरंगे के डिजाइन के लिए कमेटी बनी

Published
भारत
5 min read
Har Ghar Tiranga:90 साल में कई बार बदला रंग,फिर बना राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा-इतिहास
i
Like
Hindi Female
listen

रोज का डोज

निडर, सच्ची, और असरदार खबरों के लिए

By subscribing you agree to our Privacy Policy

तिरंगा...दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की आन, बान और शान. आजाद हिंदुस्तान की पहचान, जिसे अब हम आजादी के अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) पर हर घर तिरंगा (Har Ghar Tiranga) अभियान के तहत बड़े गर्व से अपने घर पर फहरा रहे हैं. क्या आप इस तिरंगे का इतिहास जानते हैं. कैसे तिरंगा भारत का राष्ट्रीय ध्वज बना और उससे पहले आजादी की लड़ाइयों में किस तरह के ध्वज हिंदुस्तान के स्वतंत्रता संग्राम के वाहक बने.

दरअसल भारत में जब स्वतंत्रता के लिए एक साथ संग्राम शुरू हुआ तो एक झंडे की जरूरत महसूस हुई. क्योंकि किसी भी आंदोलन के लिए प्रतीक की जरूरत होती है जो आंदोलनकारियों को उनके लक्ष्य को याद दिलाता है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास

आजादी से पहले बदलता रहा झंडे का रंग

गुलामी के दौर में हमारे देश के झंडे का रंग बदलता रहा, लेकिन भावना हिंदुस्तान की आजादी ही थी. सबसे पहले किसी ध्वज के नीचे भारत की आजादी के लिए 1857 में संग्राम हुआ था. लेकिन ये विद्रोह दबा दिया गया. इसके बाद सन् 1900 में जब फिर से राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत हुई तो एक झंडे की जरूरत पड़ी. स्वामी विवेकानंद की एक शिष्या हुआ करती थीं, जिनका नाम निवेदिता था. उन्हें बोधगया में वज्र का चिन्ह देखकर राष्ट्रीय ध्वज बनाने का आइडिया मिला. जो शक्ति का प्रतीक और इंद्र देवता का हथियार माना जाता है. ये साल 1904 की बात है.

इसके बाद उन्होंने एक झंडा तैयार किया जो वर्गाकार था, जिसका रंग लाल था और उसके बॉर्डर पर सफेद रंग से जलते हुए 101 दीप बनाए गए थे. इसके बीच में पीले रंग से वज्र का चिन्ह अर्जित किया गया था. इस झंडे के बीच में बंगाली भाषा में वंदे मातरम् लिखा हुआ था.

1906 में कोलकाता में फहराया गया अलग झंडा

बंगाल के विभाजन के विरोध में 7 अगस्त 1906 को कोलकाता में एक रैली निकाली गई. इसमें जो झंडा फहराया गया उसे सचिंद्र नाथ बोस ने डिजाइन किया था. इस झंडे में तीन पट्टियां थीं. सबसे ऊपर वाली पट्टी केसरिया रंग की थी, जिसमें 8 अधूरे कमल के फूल थे. बीच में दूसरी पट्टी पीले रंग की थी, जिसमें नीले रंग से वंदे मातरम् लिखा हुआ था. सबसे नीच हरे रंग की पट्टी थी, जिसमें एक चांद तारा और सूरज बना हुआ था. इस झंडे को सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने 101 पटाखों की सलामी देकर फहराया था.

1907 में भीकाजी कामा ने जर्मनी मे फहराया भारतीय ध्वज

1907 में भारत का ध्वज भीकाजी कामा ने जर्मनी में फहराया था. लेकिन इसका रंग कोलकाता में फहराये गये झंडे से अलग था. इसकी ऊपरी पट्टी हरे रंग की थी, जिस पर पहले की ही तरह 8 कमल के फूल थे. दूसरी और बीच की पट्टी केसरिया रंग की थी. जिस पर वंदे मातरम् लिखा था.

इसके नीचे वाली पट्टी लाल रंग की थी. इस झंडे को भीकाजी कामा, वीर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा ने मिलकर डिजाइन किया था. ये झंडा अभी भी पुणे की मराठा लाइब्रेरी में मौजूद है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

1921 में फिर बदल गया झंडा

अब तक देश के सामने अलग-अलग कई प्रकार के झंडे आ चुके थे लेकिन किसी पर भी आम सहमति नहीं बन पाई थी. फिर अप्रैल 1921 में गांधी जी जब विजयवाड़ा में कांग्रेस के एक अधिवेशन में भाग लेने पहुंचे चो उन्होंने पिंगली वैंकेया नाम के एक शख्स को बुलाया जो पांच साल से अलग-अलग देशों के झंडो का अध्ययन कर रहे थे. गांधी जी ने पिंगली वैंकेया को एक ऐसा झंडा डिजाइन करने के लिए कहा, जिसमें हरा और लाल रंग हो. जिस पर चरखा भी बना हो. पिंगली वैंकेया ने तीन घंटे में एक झंडा तैयार किया. जिसमें हरा और लाल रंग था और बीच में एक चरखा बना था, लेकिन महात्मा गांधी को ये झंडा पसंद नहीं आया.

इसके बाद वैंकेया ने तीन रंगो का झंडा तैयार किया. जिसमें सबसे ऊपर सफेद रंग, बीच में हरा रंग और सबसे नीचे लाल रंग था. इस झंडे के बीच में भी चरखा बना था. लेकिन आम सहमति इस झंडे पर भी नहीं बनी.

1931 में झंडा बनाने के लिए बनी कमेटी

किसी भी झंडे पर अब तक आम सहमति नहीं बन पाई थी. तो 2 अप्रैल 1931 को अखिल भारतीय कांग्रेस ने 7 सदस्यीय एक कमेटी का गठन किया. जिसे एक ऐसा झंडा तैयार करने का काम सौंपा गया जो सबको पसंद हो. इस कमेटी में पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, डॉ. बी पट्टा भाई सीतारमैया, मास्टर तारा सिंह, डॉ. एनएस हर्दिकर और दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेकर शामिल थे.

इसी साल कराची में कांग्रेस कमेटी की बैठक हुई जिसमें पिंगली वैंकेया ने एक और झंडे का डिजाइन पेश किया. ये झंडा आज के तिरंगे से मिलता-जुलता था. इसमें तीन रंगो की पट्टियां थी. सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और सबसे नीचे हरे रंग की पट्टी. बीच की सफेद पट्टी पर नीले रंग से चरखा बना हुआ था.

इसमें केसरिया रंग को साहस का, सफेद रंग को सच और शांति का, हरे रंग को विश्वास और समृद्धि का, जबकि चरखे को आर्थिक विकास का प्रतीक माना गया. इस झंडे को सर्वसम्मति से अपना लिया गया. जिसके नीचे आजादी की आखिरी लड़ाई लड़ी गई.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

तिरंगा भारत का राष्ट्रीय ध्वज कैसे बना?

1947 में जब देश आजाद होने वाला था तो सवाल आया कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज कैसा होगा. क्योंकि जिस झंडे के नीचे आजादी की लड़ाई लड़ी गई वो आखिरी झंडा कांग्रेस का था. इसके लिए 23 जून 1947 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में देश की संविधान सभा में एक एडहॉक कमेटी बनाई गई, जिसे भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के डिजाइन को अंतिम रूप देना था. इस कमेटी में डॉ. राजेंद्र प्रसाद के अलावा, अबुल कलाम आजाद, सरोजिनी नायडू, सी राजगोपालाचारी, केएम मुंशी और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर शामिल थे.

तीन हफ्ते तक इस कमेटी की कई बैठकें हुई. तय हुआ कि, अखिल भारतीय कांग्रेस का जो तिरंगा झंडा है उसमें कुछ बदलावों के साथ, उसे ही राष्ट्रीय झंडा मान लिया जाये. इसके बाद सम्राट अशोक के स्तंभ से अशोक चक्र को चरखे की जगह बीच में लगाया गया.

22 जुलाई 1947 को...यानी आजादी मिलने से महज 24 दिन पहले पंडित नेहरू ने संविधान सभा में तिरंगे को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज मानने का प्रस्ताव रखा. जिसे सर्वसम्मति से पारित किया गया. तब से अशोक चक्र वाला तिंरगा हमारा राष्ट्रीय ध्वज हो गया. 15 अगस्त 1947 को पहली बार करीब 5 लाख लोगों की मौजूदगी में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने यही तिरंगा फहराकर...भारत की आजादी का ऐलान किया.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
और खबरें
×
×