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रंगीला (1995) की नायिका उर्मिला मातोंडकर, 90 के दशक में बॉलीवुड में जिनके जलवे थे, अब उत्तरी मुंबई से कांग्रेस की उम्मीदवार हैं. उत्तरी मुंबई सीट कांग्रेस के लिए भारी चुनौती है. इस क्षेत्र में भाषाई और धार्मिक विविधताएं हैं, आलीशान इमारतें हैं, झुग्गियों की भरमार है, पुरानी पूर्वी भारतीयगोथन्स और उपनगरियां हैं, जहां पिछले डेढ़ दशकों में तेजी से विकास हुआ है.
अगले चुनाव में उनकी पार्टी के सहयोगी संजय निरुपम ने 5,700 वोटों से नाइक को हराया था, लेकिन 2014 में बीजेपी के गोपाल शेट्टी के हाथों उनकी 4,45,000 वोटों से जबरदस्त हार हुई थी.
इस क्षेत्र में भगवा का प्रभाव इतना प्रबल है कि कांग्रेस को अपना उम्मीदवार चुनने में भारी परेशानी हो रही थी. आखिरकार मातोंडकर ने बीड़ा उठाया. जैसे ही उन्होंने चुनावी अखाड़े में कदम रखा वो निशाने पर आ गईं. उन्हें आलोचनाओं के पारम्परिक तौर-तरीकों का जमकर सामना करना पड़ा: बॉलीवुड एक्ट्रेस को राजनीति के बारे में क्या मालूम है? उन्हें इस संसदीय क्षेत्र के बारे में क्या मालूम है? उन्हें सिर्फ अपने ‘चेहरे’ के आधार पर उम्मीदवार चुना गया है. ग्लैमर से वोट नहीं मिलते... बगैरह-बगैरह.
विपक्षी हमले में एक नया आयाम जुड़ गया – उनके विवाह और धर्म को लेकर. मातोंडकर को एक कश्मीरी मुस्लिम से विवाह करने, इस्लाम धर्म स्वीकार करने और अपना नाम बदलकर ‘मरियम अख्तर मीर’ करने पर ट्रोल किया गया, जबकि वास्तविकता इससे परे है. उन्हें एक इंटरव्यू में हिन्दू धर्म का अपमान करने के आरोप में पुलिस थाने में भी हाजिरी लगानी पड़ी, जबकि वो भी गलत आरोप था. कुछ लोगों ने तो ये कहकर भी ट्रोल किया कि उर्मिला के पति मोहसिन अख्तर मीर, जो एक व्यापारी और मॉडल-एक्टर हैं, दरअसल पाकिस्तानी हैं.
मातोंडकर ने क्विंट से कहा, “मुझे मालूम था कि मौजूदा माहौल में ये मुद्दा बनेगा. मैं उसका सामने करने के लिए तैयार थी. लेकिन अपशब्द, झूठ और ट्रोल बेहद निचले स्तर के बेहद परेशान करने वाले हो गए हैं.”
अगर मातोंडकर ने इस्लाम धर्म कबूल कर भी लिया और मुस्लिम नाम रख भी लिया, तो क्या इससे उनके भारतीय होने, या चुनाव लड़ने या सार्वजनिक जीवन जीने पर पाबंदी लग जाती है? विवाह, धार्मिक विश्वास, धर्मपरिवर्तन निजी फैसले होते हैं और उन्हें निजी ही रहने देना चाहिए. लेकिन बहुलवादी और कट्टर हिन्दुत्व के मौजूदा वातावरण में हिन्दू महिला का मुस्लिम से विवाह कर इस्लाम स्वीकार करने को हेय दृष्टि से देखा जाता है, मुस्लिमों को हिकारत से देखा जाता है और ‘लव जिहाद’ का झूठ फैलाया जाता है.
इस विवाद के दूसरे छोर पर एक और बॉलीवुड स्टार हैं. पुराने जमाने की ‘ड्रीम गर्ल’ हेमा मालिनी, जो उत्तर प्रदेश के मथुरा से दोबारा सांसद बनने की तैयारी में हैं. 2014 में उन्होंने राष्ट्रीय लोक दल के सांसद जयंत चौधरी को 3,30,740 वोटों के अंतर से हराया था. इस बार एसपी-बीएसपी-आरएलडी के संयुक्त उम्मीदवार, कुंवर नरेन्द्र सिंह, हेमा मालिनी को चुनौती दे रहे हैं.
मार्च के आखिर में अपना पर्चा दाखिल करने के बाद से हेमा मालिनी अपने संसदीय क्षेत्र के गांवों का दौरा कर रही हैं. नकली अवतरित किसानों के साथ वीडियो और तस्वीरें खिंचवा रही हैं. उनकी तस्वीरों में गेहूं के खेत में हाथ में हंसुआ लिये, सिर पर लकड़ी का गट्ठर लिये महिला के साथ, ट्रैक्टर चलाते हुए तस्वीरें शामिल हैं. इंटरव्यू में जब उनसे पूछा जाता है कि वो तो इनमें से कोई भी काम नहीं करतीं, तो उनका कहना होता है कि “मैं एक एक्टर, एक सेलेब्रिटी हूं.”
अपने इंटरव्यू में हेमा मालिनी बार-बार मथुरा के साथ अपने आत्मिक रिश्तों का बखान करती हैं. “मुझे लगता है कि मेरा कोई आत्मिक सम्बंध है, मैं ताउम्र राधा और मीरा का अभिनय करती रही, जब मेरी उम्मीदवारी का ऐलान किया गया, उस वक्त मैं एक मंदिर में थी.” उन्होंने पीटीआई को बताया.
ये पूछे जाने पर कि मुंबई में अपने घर की तुलना में उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र में ज्यादा वक्त बिताया है, तो उनका जवाब था, “पिछले पांच सालों में मैं यहां 250 से ज्यादा बार आ चुकी हूं... मुझे वाकई दुख होता है, जब कोई पूछता है कि ‘आपने क्या काम किया?”
सच ये है कि वो हिन्दू नहीं हैं या कुछ समय के लिए हिन्दू नहीं थीं. अपने स्वार्थ के लिए धर्म का दुरुपयोग करते हुए उन्होंने और एक्टर धर्मेन्द्र ने अगस्त 1979 में विवाह करने के लिए इस्लाम धर्म अपना लिया था. हेमा मालिनी का नाम था/है आयशा बी और धर्मेन्द्र का नाम था/है दिलावर खान.
लगता है कि इस्लाम के लिए उनकी स्वीकारोक्ति, हिन्दू धर्म परिवर्तन और बीजेपी से करीबी रिश्ते बनाने के आड़े नहीं आई.
उन्हें इस बात से जरा भी परेशानी नहीं दिखती, कि उनकी पार्टी उनके द्वारा अपनाए गए इस्लाम को भारत का दुर्भाग्य मानती है और मुसलमानों को भारत में दोयम दर्जे का नागरिक मानती है.
मुस्लिम टैग से हेमा मालिनी को कोई परेशानी नहीं है. इसके कारण उनके प्रतिद्वंदी उन्हें ट्रोल नहीं करते, उन्हें पुलिस स्टेशन तक नहीं खींचते. ये सवाल 2004 में भी उठा था, जब धर्मेन्द्र ने बीकानेर से लोकसभा चुनाव लड़ा था और जीते थे. शुरू में उन्होंने धर्म परिवर्तन की बात कबूल नहीं की. लेकिन विरोधियों ने संबंधित कागजात उजागर कर दिए.
इन कागजात में उनका निकाहनामा भी शामिल था, जिसमें स्पष्ट लिखा था, “दिलावर खान केवल कृष्ण (44 वर्ष) आयशा बी आर चक्रवर्ती (29 वर्ष) को 21 अगस्त 1979 को रुपये 1,11,000 मेहर की रकम देकर दो चश्मदीदों को मौजूदगी में अपनी पत्नी स्वीकार करते हैं.”
धर्मेन्द्र पहले से शादीशुदा थे और बिना पहली पत्नी को तलाक दिए दूसरी शादी नहीं कर सकते थे. तलाक देना उनके विकल्प से परे था. लिहाजा, इस्लाम धर्म स्वीकार करना बॉलीवुड की इस जोड़ी को मुफीद लगा. क्योंकि इस्लाम में चार शादियां मंजूर हैं. इसके विपरीत मातोंडकर ने इन दिखावों में पड़ने के बजाय दूसरे धर्म में विवाह के लिए प्राकृतिक तरीका अपनाया.
धर्म, विवाह या धर्मान्तरण को लेकर किसी से सवाल नहीं किया जाना चाहिए, या उसे शर्मिन्दगी महसूस नहीं करानी चाहिए. इस कारण उसके भारतीय होने पर कभी सवाल नहीं उठना चाहिए. फिर भी भारत की विशालतम और सत्ता में काबिज राजनीतिक पार्टी बार-बार अपने चुनाव प्रचार में अपने विरोधी राहुल गांधी के गोत्र या जनेऊ को लेकर सवाल उठाती रही है.
“अली” कहकर मुस्लिमों के साथ गलत व्यवहार किया जाता है, और मुस्लिमों की सामूहिक हत्या से आंखें फेर ली जाती हैं. दूसरी ओर, निजी हित साधने के लिए धर्म परिवर्तन कर इस्लाम का दामन थामने वाले जोड़े को हाथों-हाथ लिया जाता है.
बीजेपी समर्थक सुरेश नखुआ ने कुछ दिन पहले मातोंडकर के खिलाफ “हिन्दू-विरोधी टिप्पणी” करने के आरोप में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. ये उस ऊर्जा और उत्साह को कम करने के लिए किया गया, जिसके साथ मातोंडकर अपने चुनावी अभियान में जुटी हुई हैं और नफरत की राजनीति, डॉक्टर नरेन्द्र दाभोलकर और गोविन्द पन्सारे जैसे उदारवादियों की हत्या की आलोचना, झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के लिए सुधार और रेल यात्रियों के लिए सुविधाओं जैसे मुद्दों की बात करती हैं.
लेकिन कभी-कभी इस बात से जरूर निराश हो जाती हैं कि एक मुस्लिम से विवाह करने के कारण उनपर उंगली उठाई जाती है, या उनके धर्म पर सवाल खड़े किए जाते हैं, और इनका इस्तेमाल गलत तरीके से चुनाव में जीत हासिल करने के लिए किया जा रहा है.
दुर्भाग्य यही है कि बीजेपी के लिए 2019 आम चुनावों में हिन्दू-मुस्लिम, ‘बजरंगबली-अली’ और भारत-पाकिस्तान ही बड़े मुद्दे हैं.
(स्मृति कोप्पिकर, मुंबई आधारित स्वतंत्र पत्रकार और सम्पादक हैं. वो राष्ट्रीय प्रकाशनों में राजनीति, लिंगभेद तथा विकास जैसे मुद्दों पर करीब तीन दशक से रिपोर्टिंग कर रही हैं. उन्हें @smrutibombay पर ट्वीट किया जा सकता है. आलेख में दिये गए विचार उनके निजी विचार हैं और क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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Published: 15 Apr 2019,07:51 PM IST