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झारखंड में चुनाव होने जा रहे हैं. पता नहीं क्यों होने जा रहे हैं? सरकार ही तो बनेगी. सरकार थी तो. जहां सरकार का गढ़ था, वहीं से तो वो स्टूडेंट अगवा कर ली गई.
सरकार तो तेलंगाना में भी है. उस डॉक्टर के काम आई क्या? उसे भी वहीं से ले गए, जहां सरकार का गढ़ है. ले गए उसे एक टोल से खींचकर, जैसे जंगल से सटे किसी गांव से बाघ मासूमों को खींचकर ले जाते हैं. ये जंगल ही तो है.
और फिर सरकार तो चंडीगढ़ में भी होगी. कहते तो हैं. वहां एक नाबालिग को ऑटो वाला उठा ले गया. उसके साथ भी वही इंतेहा. और दिल्ली में तो है ही सरकार. फिर क्यों वहां आज भी रो रही है निर्भया की मां?
28 नवंबर: 27 साल की डॉक्टर. बेखौफ थी. सपनों ने अभी उड़ान भरना शुरू ही किया था. काम से लौट रही थी.
एक बार फिर देश में हल्ला मच गया है. सोशल मीडिया से सड़क तक स्यापा. लेकिन राज्य के गृहमंत्री ने क्या कहा -
शर्म तो आई नहीं आपको? टोल प्लाजा से उठाकर ले गए थे उसे. क्या कर रही थी आपकी पुलिस?
26 नवंबर : सत्ता का दूसरा गढ़. झारखंड की राजधानी. राजधानी का भी केंद्र-कांके का इलाका. करीब में सीएम का घर-हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस का घर-राज्य के डीजीपी का घर. मगर खींच ले गए दरिंदे.
22 नवंबर. 32 साल की महिला. बाइक पर एक रिश्तेदार के साथ घर का सामान लेकर लौट रही थी. रास्ते में पांच शराबियों ने रोक लिया. रिश्तेदार को डरा धमकाकर भगा दिया. फिर गुंडों ने गैंगरेप किया. ‘पहले कौन’ को लेकर झगड़ा भी हुआ. चारों ने मिलकर अपने पांचवे साथी को मार डाला. अगले दिन महिला थाने पहुंच पाई.
और इस बीच 2012 में अपनी बेटी के साथ हुई दरिंदगी का इंसाफ मांगती फिर रही निर्भया की मां रो रही हैं. वो एक साल से दोषियों को फांसी दिलाने के लिए दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट के चक्कर काट रही हैं. 29 नवंबर को भी वह इंसाफ की आस में कोर्ट पहुंची थीं, लेकिन उस वक्त उनकी आंखों में आंसू छलक उठे, जब कोर्ट ने दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट जारी करने से इनकार कर दिया. मामला राष्ट्रपति के पास है.
ऐसी सरकारें चाहिए क्या? जिनके राज में लड़कियों को पढ़ने में डर लगे. काम पर जाने में डर लगे. घर लौटने में डर लगे. NCRB का नया डेटा (जो पुराना है क्योंकि 2017 का डेटा है) कहता है कि देश में हर घंटे महिलाओं के लिए खिलाफ हिंसा की 41 घटनाएं हो रही हैं.
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Published: 29 Nov 2019,08:42 PM IST