advertisement
पाकिस्तान (Pakistan) के प्रधान मंत्री इमरान खान (Prime minister Imran Khan)के भाग्य पर मुहर लग चुकी है. कभी सेना की आंखों का तारा रहने वाले इमरान को आर्मी ने ही गद्दी दिलाई थी, लेकिन वक्त बदला और वह आंखों का तारा किसी कांटे की तरह चुभने लगा जिसके बाद सेना ने विदाई का रास्ता भी बनाया. अब सेना इमरान खान और खुद के बीच जितनी संभव हो सके उतनी दूरी बनाना चाहती है. इसका मतलब यह है कि एक संगठन के तौर पर सेना का इमरान के साथ अब रिश्ता खत्म हो चुका है यानी सेना का इमरान से मन भर गया है. विपक्ष द्वारा इमरान को अलग-थलग करने और सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए जो कुछ किया जा रहा है उससे भी सेना खुश ही है. लेकिन सेना का यह मिजाज तब तक ही है जब तक विपक्ष अपने आप में एक मजबूत या अजेय ताकत न बन जाए.
उनके पागलपन व बेहुदापूर्ण दांव की सबसे हालिया घटना तब सामने आई जब उन्होंने कुछ दिनों पहले इस्लामाबाद के परेड ग्राउंड में "मिलियन मैन" जलसा में अपने कंटेनर से एक "पत्र" निकालकर लहराया था. उन्होंने यह बयान देकर राष्ट्रवादी भावना को भड़काना चाहा कि उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव एक अंतर्राष्ट्रीय साजिश थी क्योंकि वह जुल्फिकार अली भुट्टो की तरह "एक स्वतंत्र विदेश नीति" चला रहे थे. उन्होंने पूरे विपक्ष पर इस साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया. इसके साथ ही उन्होंने इस साजिश में सेना के शामिल होने का संकेत भी दिया. इमरान ने चेतावनी भरे शब्दों में कहा "मैं भुट्टो नहीं बनूंगा", ऐसा उन्होंने संभवत: सेना की वजह से अपने पतन के संदर्भ में कहा.
बुधवार सुबह तक, असद उमर ने साफ तौर पर कहा कि नवाज शरीफ इस साजिश में सीधे तौर पर शामिल थे और "पत्र" में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि यदि अविश्वास विफल हुआ तो इसके परिणाम गंभीर होंगे. फवाद चौधरी के मुताबिक नवाज शरीफ ने इजरायल के राजदूत से मुलाकात की थी. वहीं बुधवार की शाम तक फैसल वावड़ा ने आरोप लगाया कि इमरान खान की जान को खतरा है. यह सब पागलपन से परे था और इसके मूल आधार में उन्माद पैदा की भावना थी.
यह पता चला कि अविश्वास प्रस्ताव विफल होने पर गंभीर परिणाम की धमकी देने वाला किसी भी विदेशी शक्ति का कोई पत्र नहीं था. यह वाशिंगटन डीसी में मौजूद एक पाकिस्तानी राजनयिक द्वारा जारी की गई एक नियमित केबल थी जिसमें संभवतः पाकिस्तान की कुछ नीतियों के बारे में चर्चाओं की बातों को रेखांकित किया गया था. इस स्टंट ने निश्चित रूप से उसके आधार को सक्रिय कर दिया, लेकिन इसमें सेना को बैकफुट पर रखने की कोशिश करना एक जोखिम भरा दांव था.
ऐसा प्रतीत होता है कि इस दांव का उद्देश्य सेना को अपनी बात मनवाने या अपने ढर्रे पर चलने और फिर से "गैर-तटस्थ" बनने के लिए डराना था.
कुछ गुमनाम ट्विटर अकाउंट के अलावा, कई जाने-माने पीटीआई अकाउंट और टीवी एंकर सेना का हाथ बेरहमी से छोड़ने के साथ ही आर्मी के खिलाफ कीचड़ उछालनों वालों में शामिल हो गए. हालांकि, नाम वाले या ज्ञात अकाउंट्स ने समझदारी से अपने ट्वीट हटा दिए हैं.
घोर विडंबना यह है कि पाकिस्तान दिवस समारोह के बाद जनरल कमर जावेद बाजवा ने पत्रकारों से बात करते हुए शिकायत की थी कि 'जब हम सियासत में हस्तक्षेप करते हैं तब भी हमें गालियां पड़ती हैं और जब हस्तक्षेप नहीं करते हैं तब भी गालियां पड़ती हैं.' जो वो कह रहे थे वह वाकई में सही है. जब सेना राजनीति में दखल देती है तो लोकतांत्रिक विचारधारा वाले लोग अपना गुस्सा निकालते हैं और सेना को गालियां देते हैं.
और अब पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार हमने पीटीआई समर्थकों को इमरान खान के असंवैधानिक "समर्थन" को वापस लेने के लिए सेना को गालियां देते हुए देखा. लेकिन यह देखना भी किसी दुख से कम नहीं है कि आखिर सेना खुद को कहां उतार रही है. कभी सम्मानित और दूसरों में भय पैदा करने वाली संस्था के मुखिया अब सार्वजनिक तौर पर यह कह रहे हैं कि सेना जनता के गुस्से का शिकार हो रही है. लेकिन इस तरह की उम्मीदों को जगाने और पीटीआई को बिना शर्त समर्थन व दंड से मुक्ति की भावना प्रदान करने के लिए केवल खुद को दोषी ठहराया जाता है, जिसे इसके आधार ने हल्के में लेना शुरू कर दिया था.
लेकिन हताशा का यह अंतिम कार्य सत्ता बनाए रखने के पागल व बेहुदे प्रयासों की एक श्रृंखला के बाद देखने को मिला. इमरान सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक प्रेसिडेंशियल रेफरेंस (राष्ट्रपति संदर्भ) दायर किया गया है, जिसमें पार्टी के उन सदस्यों के खिलाफ उठाए जा सकने वाले कदमों और कार्रवाई पर स्पष्टता की मांग की गई है, जो इमरान सरकार के खिलाफ मतदान कर सकते हैं. इसमें या शासन करने के लिए कि उनके वोटों की गिनती नहीं की जाएगी, या शासन करने के लिए यदि वे सरकार के खिलाफ मतदान करते हैं तो इन सदस्यों को जीवन के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. विचाराधीन खंड की व्याख्या नहीं की जा सकती है क्योंकि यह स्पष्ट रूप से और सरल रूप से एक प्रक्रिया की रूपरेखा तैयार करता है जिससे फ्लोर-क्रॉसर को डी-सीट किया जा सकता है. यहां पर बस इतना ही. अगर सुप्रीम कोर्ट को इसमें कुछ और पढ़ना है, तो यह संविधान में संशोधन करने जैसा होगा.
रविवार को मतदान का अंतिम दिन है. इसलिए हम आराम से संविधान को नष्ट करने के इस काल्पनिक प्रयास के समाप्त होने पर भी विचार कर सकते हैं. वोट के बाद, जो लगभग निश्चित रूप से इमरान खान को सत्ता से बाहर कर देगा, वहीं राष्ट्रपति इस्तीफा दे देंगे यदि वह इस्तीफा नहीं देंगे तो उन पर महाभियोग चलाया जाएगा और रेफरल यानी कि संदर्भ या तो व्यर्थ हो जाएगा या उसे सामान्यत्: वापस भेज दिया जाएगा.
अतीत में जनरल बाजवा और कॉर्प कमांडरों को "मनाने" के प्रयासों में "हक" और "बाटिल" यानी अच्छाई और बुराई के संघर्ष में तटस्थ होने के लिए उन्हें "जानवर" कहना शामिल था. इमरान खान ने बार-बार कहा कि केवल जानवर ही अच्छे और बुरे के बीच अंतर नहीं बता सकते हैं. बुराई और अच्छाई के बीच की लड़ाई में अल्लाह लोगों को अच्छाई का साथ देने की अनुमति देता है. ऐसा करके उन्होंने न केवल धर्म कार्ड खेला, बल्कि सेना की संस्था पर बमुश्किल परोक्ष रूप से गालियां भी दीं. मौजूदा हंगामे में सेना के अलावा किसी को भी तटस्थता का दावा करने लिए कष्ट नहीं हुआ है.
सत्ता बनाए रखने के लिए उनकी सभी हथकंडे या दांव स्पष्ट रूप से ट्रम्पियन रहे हैं. सिंध हाउस पर उनका पहले ही शारीरिक हमला हो चुका है, जहां पीटीआई के सदस्य जो मतदान करना का इरादा रख रहे हैं, उनकी रक्षा की जा रही है. जनरल बाजवा को और हमले को रोकने के लिए पुलिस का इस्तेमाल करने के लिए आंतरिक मंत्री शेख रशीद को बुलाना पड़ा.
सुप्रीम कोर्ट के बयानों ने इस पर विराम लगा दिया और सरकार पीछे हट गयी. इमरान खान ने बुधवार को अपनी पसंद के "वरिष्ठ पत्रकारों" को साजिश का "धमकी भरा पत्र" दिखाने और फिर "राष्ट्र को संबोधित करने" की योजना बनाई. लेकिन डीजी आईएसआई नदीम अंजुम ने उनसे मुलाकात की और बाद में दोनों योजनाएं रद्द कर दी गईं.
उनकी कोई भी रणनीति या दांव अब तक सफल नहीं दिख रहे हैं. यहां तक की उनकी उस्मान बुजदार उर्फ वसीम अकरम प्लस से अचानक इस्तीफा लेने के बाद पीएमएलक्यू के चौधरी परवेज इलाही को पंजाब के मुख्यमंत्री पद देने की रणनीति भी कारगर नहीं रही.
इमरान जिस वांछित परिणाम की कल्पना कर रहे थे वे दूर की कौड़ी साबित हुए. टेबल बदल गए हैं या कि "न्यूट्रल" एक बार फिर "नॉन-न्यूट्रल" बन गए हैं यह सोचकर कोई भी सहयोगी या फ्लोर-क्रॉसर्स वापस नहीं लौटे. इसके बजाय इस्तीफे के बाद इस्तीफे हुए और इमरान के खिलाफ वोट करने की घोषणा हुई. ऐसा प्रतीत होता है कि जनरल फैज हमीद या उनके पुराने अधीनस्थों में से एक ने चौधरी परवेज इलाही को फोन करके उन्हें प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए कहा था. लेकिन यह पता चला कि बाकी सेना एक ही बोर्ड पर नहीं थी. जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ रही है अब उस छोटी सी अवज्ञा को सुलझाया जा रहा है.
जैसा कि ऊपर मैंने लिखा है कि पीटीआई पूर्व सहयोगियों, फ्लोर-क्रॉसर्स और विपक्षी सदस्यों को अधीन करने के इरादे से डराने-धमकाने के लिए चुनाव के दिन लाखों लोगों को विधानसभा में लाने की धमकी दे रहा है. यह ट्रम्प विद्रोह के दौरान 6 जनवरी 2021 को कैपिटल हिल पर हुए हमले की याद दिलाते हुए यह एक बार फिर हिंसा के खतरे को दर्शाता है.
हेरफेर व धांधली के जरिए सत्ता में आने के लिए (पाकिस्तान के मामले में यहां चुनाव में भारी धांधली होती है), आदतन झूठ बोलने के लिए, इतिहास की कोई समझ नहीं रखने के लिए, मीडिया पर हमला करने के लिए, अवैध और असंवैधानिक काम करने के लिए, भाई-भतीजावाद के लिए और अंत में हिंसा व अराजकता के माध्यम से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नष्ट करने के हताश प्रयासों के लिए इमरान खान काफी हद तक ट्रंप को फॉलो कर रहे हैं.
कोई भरोसा नहीं है, और ऐसा लगता है कि सेना ऐसी किसी भी बातचीत को सक्षम करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है. इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि पाकिस्तानी सेना इमरान खान के शासन का एक और दिन भी नहीं चाहती है.
यह देखना बाकी है कि पाकिस्तानी राजनीति में उनका या उनकी पार्टी का क्या भविष्य हो सकता है. साथ ही साढ़े तीन साल में ऐसा क्या हुआ जिसने उन्हें इतनी शानदार और पवित्र शुरुआत के बाद इस मुकाम तक पहुंचाया जहां वे अभी खड़े हैं. यह कुछ ऐसा है जिसे मैं अगले लेख में उठाऊंगी.
(गुल बुखारी, पाकिस्तानी पत्रकार और अधिकारों के लिए काम करने वाली एक्टिविस्ट हैं. ये ट्विटर पर @GulBukhari से ट्वीट करती हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined