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सोशल मीडिया के तौर पर एक सीमित दायरे में ट्विटर का आकर्षण कुछ ऐसा है कि यहां यूजर्स का जो मन करता है वे उसी तरह के कमेंट्स करते हैं. पलभर में सही या गलत चीजें, भद्दी गालियां और बेवकूफाना कमेंट्स साइबर स्पेस में आ जाते हैं, जहां उनको कोई भी पढ़ सकता है.
ये कमेंट्स कहीं से भी प्रमाणित नहीं होते. निश्चित तौर पर ट्विटर खराब ट्वीट और झूठ के सहारे बदनाम करने वाली जानकारियों को मॉनिटर जरूर करता है, लेकिन इस टास्क को प्रभावी तरीके से करने का काम बहुत बड़ा है. जब दो राष्ट्रों के बीच लंबे समय तक मतभेद उभरते हैं, या सीमा पर तनाव होता है या झड़प की बस एक घटना होती है तो इससे दो चीजें पैदा होती हैं:
पहला, ऐसा गंभीर विश्लेषण जो जानकारी के आधार पर होता है, जिससे हमें ये पता चलता है कि कारण क्या है, विकल्प क्या हैं. ये काम रणनीतिक विशेषज्ञ करते हैं, जिन्हें डोमेन की गहन जानकारी हो. वीडियो और टेक्स्ट के जरिए आवाम को शिक्षित किया जाता है. ये सरकार या सेना के फैसलों और कार्रवाई को सही बताते हैं या फिर फिर सकारात्मक लहजे में आलोचना होती है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का पक्ष रखा जाता है.
सोशल मीडिया पर गुस्से का निशाना दुश्मन, देश के राजनेता और सैन्य नेतृत्व या मीडिया भी बन जाता है. ये सब फ्रीडम ऑफ स्पीच के तहत किया जाता है और हम इसे अपना अधिकार मानकर भारत के लोकतंत्र का आनंद उठाते हैं. लेकिन क्या ये अधिकार का दुरुपयोग नहीं है?
हम यहां जिस प्रसंग का जिक्र कर रहे हैं, वो लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर भारत और चीन के गतिरोध का हिस्सा है.
अप्रैल 2013 में दौलत बेग ओल्डी (DBO) के पास रकी नाला में दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने आ गए थे. फिर सितंबर 2014 में दोनों देशों के बीच 250 किलोमीटर दक्षिण में चुमार में सबसे खतरनाक गतिरोध की स्थिति बनी थी. बीते 15 सालों में दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव ज्यादा हुआ क्योंकि इस दौरान चीनी सेना ने खुद को काफी अत्याधुनिक बना लिया. 1986 में अरुणाचल के सुमडोरोंग चू में सबसे लंबा गतिरोध हुआ. इसके अलावा अगस्त 1967 नाथुला में खूनी संघर्ष की कहानी हम सभी जानते हैं.
सिवाय बाद वाले गतिरोध के बाकी सभी घटनाओं में दोनों देश के सैनिकों के बीच एक भी गोली नहीं चली. वे एक-दूसरे को धकेलते, और पत्थर मारते हैं. हाल ही में लोहे की छड़ों से हमले की घटना भी आम हो चली है. इस तरह की झड़प में शामिल होने वाला चीन आखिर क्या बताना चाहता है? पहला- वो ये साबित करना चाहता है कि चीनी सेना बेहतर है, (चीनी सेना के पास अत्याधुनिक साजो-सामान, बेहतर ट्रेनिंग और मजबूत फोर्स है) वो भारतीय पक्ष को भयभीत कर डॉमिनेट करता है. दूसरा, जहां भी विवादित सीमाओं का मामला है, वहां कई क्षेत्रों में सीमा उल्लंघन करते हुए वह उल्टा भारत पर आक्रमण का और कब्जा करने का आरोप लगाता है. दरअसल, मुख्य रूप से उसका इरादा सामने वाले देश की जनता के मन में भ्रम पैदा करने का होता है.
ये डोमेन पीएलए के 1993 के डॉक्टरिन का हिस्सा है. इसमें सूचना की मदद से युद्ध के हालात पैदा करने की बात कही गई है. (यह दअरसल 1990 में पहली गल्फ वॉर की स्टडी पर आधारित है.) इसके अलावा 2003 में थ्री वॉरफेयर्स की रणनीति भी बनाई गई. (कानून, मीडिया, मनोवैज्ञानिक (इसे अक्सर साइबर के साथ भी जोड़ जाता है).
इस रणनीति का फोकस दुश्मन के विचारों को भ्रमित करना होता है और फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भी भ्रम की स्थिति पैदा होती है. इसके साथ ही राजनयिक सम्मेलनों , वरिष्ठ अधिकारियों के दौरे का आदान-प्रदान, सीमावार्ता, ट्रेड और इकनॉमिक डेलीगेशन तनाव के साथ चलते रहते हैं. कई मायनों में यह पुराने कम्युनिस्ट प्रोपेगैंडा का नया रूप है, जिसे सत्ता का एक अहम हथकंडा माना जाता था.
यह सूचना का डोमेन है जो रणनीति का हिस्सा होता है और कई बार ज्यादा अहम. और इसके साथ ही सीमा पर थोड़ा आगे बढ़ने का काम भी चलता है. इस सूचना डोमेन में डिजिटल मीडिया में चीन की बातों को बढ़ा-चढ़ाकर बताना और तस्वीरों के जरिए सेना, साजो-सामान, नेतृत्व को लेकर डींगे हांकना शामिल है. 2017 में डोकलाम के दौरान चीन तिब्बत में युद्धाभ्यास का प्रदर्शन कर रहा था और डिजिटल मीडिया पर इसका प्रचार-प्रसार कर रहा था. लेकिन इस बार चीन, भारत और उसके सैनिकों के झड़प के वीडियो का इस्तेमाल कर रहा है. इसमें वह घायल भारतीय सैनिकों को दिखा रहा है. इसके अलावा भारत-चीन के बीच 1962 की जंग का हवाला भी दिया जा रहा है. इस जंग में भारत को हार मिली थी.
असर को कई गुना बढ़ाने के लिए चीन ने पाकिस्तान के आईएसपीआर को भी काम पर लगा दिया है. जिन्हें काफी अरसे से भारतीय सोशल मीडिया स्पेस में देखा जा रहा है. रणनीति ये है कि ट्विटर पर कई फर्जी अकाउंट बनाए जाते हैं और बार-बार 1962 की जंग में भारत की हार का जिक्र ट्वीट के जरिए किया जाता है. इसमें बताया जाता है कि कैसे पीएलए (चीनी सेना) ने अपनी मातृभूमि की भारतीय आक्रमण से रक्षा की. भारतीय सेना के खिलाफ कब्जा करने के आरोप टूटी-फूटी अंग्रेजी में लगाए जाते हैं और यह सब राष्ट्रवाद जगाने के नाम पर, हॉन्ग कॉन्ग से ध्यान हटाने और महामारी में चीन की भूमिका पर लगे आरोपों से ध्यान भंग करने का नाम पर किया जाता है.
चीन में टि्वटर पर पाबंदी है. वहां सरकार का वीबो प्लेटफॉर्म मौजूद है. इस पर चीनी सरकार कंटेंट में हेराफेरी कर देशवासियों और विदेशियों के लिए फेक न्यूज प्रसारित करती है. इसी तरह सरकार के दो मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स और पीपुल्स डेली पूरी तरह से डिजिटल और सोशल मीडिया का ही आईना हैं. ये लगातार नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी के स्कॉलर्स और दूसरे स्ट्रैटजिक एक्सपर्ट्स की मदद से अपने कंटेंट को प्रमाणिकता देने की कोशिश करते हैं. ताजा मामला COVID-19 का है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय में आलोचना से तिलमिलाए चीन ने इन्फोर्मेशन वॉयफेयर का सोच-समझकर कम इस्तेमाल किया और वह पहली बार इस पर ज्यादा डिफेंसिव देखा गया. देश में राष्ट्रवाद को बढ़ाने के लिए चीन LAC पर गतिरोध को टूल की तरह का इस्तेमाल करता है.
गार्जियन ने 2018 में लिखा था कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में चीन की अच्छी तस्वीर पेश करने के लिए बीजिंग कई मीडिया आउटलेट को खरीद रहा है. साथ ही फॉरेन जर्नलिस्टों को ट्रेनिंग के दौरान कहा गया कि वे लोग चीन की अच्छी मिसाल पेश करें. यही चीज दुनियाभर में उसके प्रोपेगैंडा कैंपेन का हिस्सा है.
2017 में डोकलाम में तनाव के दौरान, भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया उकसावे से बचाने वाली रिपोर्टिंग कर रहा था. वहीं प्रिंट मीडिया ने भी अपनी परिपक्वता का परिचय दिया और इस मुद्दे पर बैलेंस कवरेज की थी.
ये सोशल मीडिया था, जिस पर पहली बार चीन के खिलाफ बोलने की व्यक्तिगत आजादी का टेस्ट लिया गया. कई विश्लेषकों ने हालात को समझाने और संयम बरतने की सलाह दी लेकिन कई बार इस पर उग्र राष्ट्रवाद और पागलपन हावी हो गया.
मगर अब ये 2020 है. वही सब एक बार फिर से अनुभव किया जा रहा है. दोनों पक्षों के ट्विटर वॉरियर्स ताजा गतिरोध पर झड़प के वीडियो पोस्ट कर रहे हैं. शुरुआती वीडियो में चीन के साथ, भारतीय सैनिक बचाव की मुद्रा में दिखाई दिए. चीन उस छवि को बदलने की कोशिश कर रहा है, जो 2017 में डोकलाम में बनी थी. उस वक्त भारतीय फौज उन पर भारी पड़ी थी और उन्होंने चीनियों को सड़क बनाने से रोक दिया था. पीएलए की इस छवि से चीन को नुकसान पहुंचा. इसलिए कई विश्लेषकों का मानना है कि चीन पुरानी गलती से सीखकर इस बार अपनी वही आक्रामक छवि को वापस पाना चाहता है इसलिए भारत के साथ ताजा गतिरोध पैदा कर रहा है.
सरकार और भारतीय फौज की मंशा साफ है कि वे संयम बरतना चाहती हैं और अनावश्यक उकसावे को भी रोकना चाहती हैं, क्योंकि चीनी पक्ष के साथ कई मौकों पर बातचीत के रास्ते तलाश कर लिए जाते हैं. इसी तरह से चीनियों की मंशा भी यही है. वे भी गतिरोध खत्म कर अपनी पुरानी आक्रामक छवि को वापस गढ़ना चाहते हैं. ग्राउंड पर भारतीय फौज भारतीय हितों को ध्यान में रखकर काम करती है. यानी आक्रामक और रक्षात्मक दोनों तरीकों से. नीति में पारदर्शिता की मांग वाजिब है, लेकिन इसका फैसला सरकार को करने देना चाहिए कि राष्ट्रहित में क्या बेहतर है.
शायद भारतीय सेना के लिए पॉजिटिव और बिना उकसावे वाले कंटेंट को सोशल मीडिया पर डालने की एक अच्छी पहल की जा सकती है, इससे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की अच्छी छवि बनेगी. बीते 27 सालों से चीन प्रॉविजनल LAC पर उसकी पॉजिशन को लेकर बातचीत करने से भी इनकार करता रहा है. इस बात से दुनिया अनजान है. स्कॉलर्स के एनालिटिक कंटेंट की मदद से चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को मजबूत करने के लिए चीन और पाकिस्तान की आपसी साठगांठ के बारे में भी पूरी दुनिया को बताना चाहिए.
सोशल मीडिया पर अनौपचारिक और खराब कंटेंट को नियंत्रित करने से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि सुधरेगी. इस काम को करने के लिए विशेषज्ञों की मदद ली जा सकती है. सरकार हस्तियों का इस्तेमाल भारतीय हित में संदेश देने के लिए कर सकती है. इसी तरह भारत के राष्ट्रवाद को पॉजिटिव तरीके से, उकसावे के बजाय सही प्लानिंग के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है.
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Published: 06 Jun 2020,02:54 PM IST