मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019क्या मोदी-शी अपने दूसरे कार्यकाल में फिर से आपसी दोस्ती और भरोसा बना सकते हैं?

क्या मोदी-शी अपने दूसरे कार्यकाल में फिर से आपसी दोस्ती और भरोसा बना सकते हैं?

गलवान में खूुूनी संघर्ष के बाद, भारत-चीन के बीच भरोसा बनाने की एक चौथाई सदी से भी पुरानी प्रक्रिया खत्म सी हो गई है.

मनोज जोशी
नजरिया
Published:
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ पीएम मोदी
i
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ पीएम मोदी
(फोटोः PTI)

advertisement

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की 20वीं कांग्रेस महासचिव के तौर पर शी जिनपिंग (Xi Jinping) के लिए एक और टर्म की मंजूरी पर मुहर लग गई. उन्हें नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के जरिए मार्च में तीसरे टर्म के राष्ट्रपति के रूप में चुना जाना लगभग तय माना जा रहा है. इधर भारत में व्यापक तौर पर माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) फिर से साल 2024 में प्रधानमंत्री बन सकते हैं. भारतीय जनता पार्टी अगले लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर सकती है.

निकट भविष्य में दोनों ही शख्स अपने-अपने देश का नेतृत्व करते नजर आ सकते हैं. ऐसे में दोनों देशों के नेताओं के बीच कैसे रिश्ते रहेंगे, उसकी भविष्यवाणी करना मुश्किल है. लेकिन अगर पुरानी घटनाओं को देखें तो ये काफी जटिल हो सकता है. खासकर 2020 की घटनाओं के बाद, जिसके कारण दोनों देशों के बीच आपसी भरोसा बनाने की एक चौथाई सदी से भी ज्यादा पुरानी प्रक्रिया खत्म सी हो गई है.

साल 2014 से ही मोदी और शी अपने-अपने देश के नेता के तौर पर एक दूसरे से बात करते रहे हैं. 2020 की गलवान घटना तक. मोदी और शी 6 साल में बहुपक्षीय और द्विपक्षीय बातचीत के लिए कम से कम 18 बार मिले. हालांकि इन बैठकों में उनके बीच उतार-चढ़ाव रहे हैं, लेकिन मोटे तौर पर ये मुलाकातें नीरस होने के बाद भी रेगुलर मीटिंग की तरह चलती रहीं.

  • साल 2020 में गलवान की घटना होने तक मोदी और शी एक दूसरे से 6 साल की अवधि में कम से कम 18 बार द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मुलाकात कर चुके हैं.

  • साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद नैरेटिव में एक बड़ा रीसेट आया था और दोनों ही एशियाई देश में एक मजबूत राष्ट्रवादी नेतृत्व की बात चर्चा में रही.

  • साल 2017 में भारत और चीन के बीच डोकलाम के मुद्दे पर दोनों देशों में गंभीर विवाद हो गया. हालांकि ये सब मसला भूटान की सीमा पर चीनी कार्रवाई को लेकर शुरू हुआ था लेकिन इनका असर भारतीय सुरक्षा चिंताओं पर भी दिखा.

मोदी–जिनपिंग के उतार चढ़ाव भरे रिश्ते

लेकिन पूर्वी लद्दाख में चीन की कार्रवाई और गलवान झड़प के बाद दोनों कभी नहीं मिले हैं. उनकी आखिरी मुलाकात चेन्नई समिट में साल 2019 में हुई थी. हालांकि दोनों ही शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन की समरकंद मीटिंग जो साल 2022 में मध्य सितंबर में हुई, में शामिल हुए लेकिन दोनों के बीच कोई मुलाकात, हैंडशेक या दुआ-सलाम का कोई रिकॉर्ड नहीं है.

साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से दोनों एशियाई देशों के रिश्तों में एक बड़ा रिसेट का नैरेटिव चला कि दोनों ही एक मजबूत राष्ट्रवादी नेतृत्व देने वाले नेता हैं. आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने वाले नेता के रूप में मोदी की पहचान और गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उनके कई चीन यात्राओं को देखते हुए यह माना जा रहा था कि चीन से बड़े पैमाने पर निवेश आएगा.

शुरू से ही मोदी की एक शैली थी कि वो वैश्विक नेताओं के साथ थोड़ा निजी कनेक्शन बनाते हैं और शी जिनपिंग के साथ रिश्ते में भी यह दिखा. प्रधानमंत्री बनने के एक महीने बाद ही ब्राजील में BRICS समिट में शी के साथ पहली मुलाकात में वो गर्मजोशी दिखी थी.

LAC पर शी का ‘अस्पष्ट’ रुख

कुछ महीनों बाद, मोदी ने शी जिनपिंग का भारत में स्वागत किया और पूरी गर्मजोशी और जोश से. यह दौरा कुछ अनौपचारिक तौर पर शुरू हुआ जब शी जिनपिंग सबसे पहले 17 सितंबर को मोदी के बर्थडे पर अहमदाबाद आए. उस शाम अगवानी खुद मोदी ने की और वो खुद ही शी जिनपिंग को कई सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थलों पर ले गए. औपचारिक बातचीत दूसरे दिन जिसमें सीमा विवाद भी था दिल्ली में हुई, इसमें इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर में सार्वजनिक भाषण भी दिया. वास्तविक तथ्य देखें तो चुमार घटना के बाद भी ये दौरा हुआ, जबकि सीमा पर तनाव बना हुआ था.

प्रधानमंत्री मोदी ने ये बात शी जिनपिंग के सामने रखी लेकिन शी की तरफ से उन्हें कोई खास रिस्पॉन्स नहीं मिला. 18 सितंबर को दिल्ली में हुई संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में शी जिनपिंग की तरफ देखते हुए मोदी ने सीधे तौर पर कहा था,

"मैंने सीमा पर बार-बार होने वाली घटनाओं पर अपनी गंभीर चिंता जताई. हमारे सीमा से जुड़े समझौते और विश्वास बहाली की प्रक्रिया पर अच्छे से काम किया. मैंने यह भी सुझाव दिया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर स्पष्टीकरण स्थिरता और शांति बनाए रखने के हमारे प्रयासों ने काम किया और LAC पर रुकी प्रक्रिया को फिर से शुरू करने के लिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बात की. जितनी जल्दी संभव हो उतनी जल्दी हम लोगों को सीमा विवादों को सुलझाना चाहिए."

चीनी पक्ष भारत के इस तरह से सीधी बात करने पर नाराज हुआ होगा लेकिन, लेकिन शी ने वही पुराने तरीके को दोहराते हुए बस इतना कहा कि सीमा का सीमांकन किया जाना बाकी है और ऐसी घटनाएं हो सकती हैं जिन्हें मौजूदा मैकेनिज्म से हल किया जाएगा. अपने सार्वजनिक भाषण में उन्होंने पुराने चीनी सूत्र को दोहराया कि समस्या "इतिहास से आई " थी और इसे शांति से हल किया जाएगा.

ट्रेड और निवेश को ध्यान में रखते हुए मोदी की चीन यात्रा

मई 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने चीन का दौरा किया. शी जिनपिंग के मेहमाननवाजी की शैली में, चीनियों ने सबसे पहले मोदी को शीआन की प्राचीन राजधानी में उनकी मेजबानी की, जो कि ह्वेन त्सांग के मठ का स्थान भी था.

यह भी यात्रा का औपचारिक हिस्सा होना था. लेकिन मोदी बिना वक्त गंवाए सीमा के मुद्दे पर आ गए और शी जिनपिंग के सामने अपनी बात रख दी. उन्होंने चीनी नेता को LAC के महत्व और उस पर शांति बनाए रखने के बारे में व्याख्यान दे दिया जैसा कि उन्होंने अहमदाबाद में किया था.

शी ने मोदी के कदम को नजरअंदाज कर दिया और अपने प्रधानमंत्री ली क्यांग पर सब कुछ छोड़ दिया यह बताने के लिए कि मोदी के सुझाई बातें बहुत फायदेमंद नहीं हैं. लेकिन मोदी कोशिश करते रहे. वो जब Tsinghua University में पब्लिक स्पीच दे रहे थे तब एक बार फिर से उन्होंने सीमा विवाद के मसले को उठा दिया.

उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों को सीमा मुद्दे को जल्दी से निपटाने की जरूरत है, और मौजूदा मैकेनिज्म ने शांति बनाए रखी है, जबकि "अनिश्चितता की छाया हमेशा सीमा क्षेत्र के संवेदनशील क्षेत्रों पर बनी रहती है." ऐसा इसलिए है क्योंकि "कोई भी पक्ष नहीं जानता कि इन क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा कहां है. "मोदी ने आगे अपनी स्पीच में कहा कि, इसलिए ही उन्होंने इसे स्पष्ट करने की प्रक्रिया का प्रस्ताव दिया है.''

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
सीमा मुद्दे के बारे में अपने आकलन में मोदी सही थे. LAC के कुछ हिस्सों पर विवाद की वजह से बार-बार समस्या खड़ी हो जाती है. भारतीय प्रधानमंत्री केवल 1993, 1996 और 2005 में लिखित समझौतों में की गई अपनी प्रतिबद्धता की बात ही चीनियों के सामने रख रहे थे कि दोनों पक्ष LAC पर मतभेदों के बिंदुओं को स्पष्ट करेंगे. उन्होंने दोनों देशों के बीच घनिष्ठ व्यापार और निवेश संबंधों की बेहतरी के लिए सीमा मुद्दे को हल करने के महत्व के बारे में जो कुछ कहा वो भी सही था.

तो फिर वो गलत कहां थे? चीन भी सीमा विवाद को सुलझाना चाहता है लेकिन वो इस मामले में बराबरी के स्तर पर आकर किसी बातचीत को आगे नहीं बढ़ाना चाहते. वो अपनी शर्तों पर ही समझौता चाहते हैं और जब तक सुलह होती नहीं है वो सीमा के आसपास ऐसी ही स्थिति बनी रहेगी.

सीमा सुरक्षा पर भारत-चीन शिखर सम्मेलन ने क्या संकेत दिया?

2017 में, भारत और चीन डोकलाम पर गंभीर गतिरोध में आ गए. हालांकि यह मुद्दा भूटानी इलाके पर चीनी कार्रवाई से संबंधित था, लेकिन भारतीय सुरक्षा पर उनका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा. दो महीने तक चले विवाद के बाद मामला आखिर शांत हुआ. इसके तुरंत बाद, दोनों नेताओं ने जियामेन में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मौके पर मुलाकात की, जहां उन्होंने "स्ट्रेटेजिक कम्युनिकेशन" को बढ़ावा देकर चीन-भारत में गहरी बातचीत की एक प्रणाली शुरू करने का फैसला किया.

इसी हिस्से के तौर पर, उन्होंने अनौपचारिक शिखर सम्मेलन का एक सिस्टम बनाने का भी फैसला किया. इसके तहत पहला समिट अप्रैल 2018 में वुहान में आयोजित किया गया था. शिखर सम्मेलन की तैयारी करते हुए, भारत ने यह भी संकेत दिया कि वह अब ‘तिब्बत कार्ड’ नहीं खेलेगा. सरकार ने अपने अधिकारियों से कहा कि वो दलाई लामा के भारत आगमन के 60 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में होने वाले कार्यक्रमों से दूर रहें.

शिखर सम्मेलन में यह तय हुआ कि दोनों देश अधिक से अधिक मंत्रिस्तरीय बैठक, बेहतर सीमा प्रबंधन और रणनीतिक स्वायत्तता पर काम करें. यह अपने संबंधों को बढ़ाने के लिए शिखर सम्मेलन का एक सामान्य प्रयास था.

डोकलाम-गलवान के बाद क्या भारत-चीन बराबरी के स्तर पर आ सकते हैं?

आम चुनाव के बाद जिसमें मोदी फिर से सत्ता में लौटे, दोनों पक्ष ने एक अनौपचारिक मीटिंग करने का फैसला किया और चेन्नई में अक्टूबर 2019 में आयोजन हुआ. फिर से शिखर सम्मेलन का कोई खास नतीजा सामने नहीं आया. लेकिन इसने दोनों पक्षों के बीच बातचीत में स्थिरता और अनुमान के बारे में कुछ इशारा कर दिया. 2019 के अंत तक, ऐसा लगने लगा कि उन्होंने डोकलाम के सवाल को सुलझा लिया था और दोनों देशों के बीच ट्रेड और सीमा विवाद पर बातचीत अहम तौर पर आगे बढ़ने लगी थी .

लेकिन जैसा कि हम जानते हैं, यह एक भ्रम था जो 2020 की गर्मियों में गलवान की ऊंचाई पर एक बर्फीली नदी के तट पर झड़प के तौर पर सामने आने पर टूट गया. लेकिन यह बदलाव डोकलाम और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) की 19वीं कांग्रेस के मद्देनजर हुआ था. चीन न केवल पहले से ज्यादा ताकत के साथ डोकलाम में खुद को मजबूत करने में लगा था बल्कि उसने तिब्बत में अपनी सेना की तैनाती दोगुने से भी ज्यादा कर दी थी. कुछ मायनों में, 2020 की घटनाएं इसी की परिणति थीं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT