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''अगर आप किसी चीज को राज रखना चाहते हैं तो उसे खुद से भी छिपाइए'' -जॉर्ज ओरवेल, 1984
आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले जॉर्ज ऑरवेल के कोट से नहीं शुरू होते. लेकिन पेगासस मामले पर 27 अक्टूबर 2021 को कोर्ट का ऑर्डर इसी के साथ शुरू हुआ. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पहले पैराग्राफ में ‘Orwellian’ टर्म का भी इस्तेमाल किया गया और इसमें कहा गया, रिट याचिकाओं की हालिया खेप ने एक Orwellian कंसर्न को पैदा किया है.
इस ऑर्डर के ही जरिए कोर्ट ने साइबर हथियार के इस्तेमाल और हजारों भारतीय नागरिकों (जिनमें से कुछ उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे लोग हैं) की प्राइवेसी (Privacy) के उल्लंघन, के आरोपों की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी नियुक्त की.
फरवरी में, कमेटी ने एक प्रारंभिक रिपोर्ट सबमिट की है, लेकिन इसका अंतिम निष्कर्ष आना अभी बाकी है.
वैश्विक रूप से स्थापित पेगासस, फोन प्राइवेसी के सबसे बड़े और खराब उल्लंघन के लिए तैयार किया गया है और इसका मतलब है फोन ओनर के लिए खतरा, जिस पर अटैक के लिए इसे लगाया जाता है.
इस स्कैंडल ने इजरायली संस्थान को हिला कर रख दिया और इसकी पैरेंट कंपनी NSO के अस्तित्व को लेकर भी गंभीर सवाल उठने लगे.
फ्रेंच, अमेरिकी सभी लोकतांत्रिक देशों को इस स्कैंडल ने छुआ और इसके बाद इन सभी देशों की सरकारों ने आरोपों के जवाब में जांच की शुरुआत कर दी. हालांकि इसमें भारत शामिल नहीं है, जहां सरकार ने अड़ियल रुख अपनाते हुए संसद और चीफ जस्टिस की बेंच दोनों जगह इस पर जवाब देने से मना कर दिया.
ये यकीन कि सरकार इसे बेशर्मी से जारी रख सकती है, ये इस मौलिक धारणा पर निर्भर है कि लोगों की कल्पना में प्राइवेसी प्रजातंत्र या नागरिकों के अधिकारों से जुड़ी हुई नहीं है. इसे ये कहकर खारिज किया जाता है कि ये विशिष्ट वर्ग का मुद्दा है.
पेगासस मामले के सामने आने के बाद ऐसे कई डेवलपमेंट्स हुए हैं, जिसमें प्राइवेसी को लेकर गंभीर परिणाम सामने आए हैं और ये लोकतंत्र के जीवित रहने के लिए खतरे की घंटी को बजाने जैसा होना चाहिए.
इनमें से एक वो कानून है, जो आधार को मतदाता सूची से लिंक करने की इजाजत देता है और दूसरा है, सीसीटीवी को तेजी से बढ़ाते जाना साथ ही फेशियल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल. इसे क्राइम से लड़ने का हल बताया जा रहा है.
150 शहरों पर किए गए एक सर्वे के मुताबिक, दिल्ली 2.75 लाख सीसीटीवी के साथ पेरिस, सिंगापुर और लंदन से ऊपर है. ऐसी योजना है कि इस संख्या को 4.15 लाख तक ले जाया जाएगा. वहीं तेलंगाना के सीसीटीवी और फेशियल रेकगनिशन टेक्नोलॉजी सिस्टम पर जिसका कोई कानूनी आधार नहीं है, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने पिछले साल एक चेतावनी जारी की थी. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसे प्राइवेट स्पेसेज पर हमला बताया था.
यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के AI में Institute for Ethics के फैकल्टी ऑफ फिलॉसफी में एसोसिएट प्रोफेसर Carissa Veliz का काम और उसमें भी खास करके उनकी किताब Privacy Is Power हमारे समय का मेनिफेस्टो होना चाहिए.
जहां सरकारें और बड़े इंफॉर्मेशन कॉरपोरेट्स ऐसी जनता से डाटा निकालने की कोशिश में हैं, जो इसे लेकर बिल्कुल अनभिज्ञ है, ये किताब बहुत ही सावधानी से और बहुत सही तरीके से लोकतंत्र के लिए प्राइवेसी के उल्लंघन के खतरों के बारे में बताती है. इसके 147 पन्नों और कई चैप्टर्स में डाटा प्राइवेसी के उल्लंघन के जोखिम और इसके अलग अलग कई पहलुओं का जिक्र किया गया है.
नागरिकों को इस बात का एहसास नहीं है कि कैसे आराम से डाटा दे देना, ये सब बिना किसी कीमत के नहीं है, ये वापस आकर उन्हें परेशान कर सकता है और उन्हें कमजोर बना सकता है, जिससे वो धोखेबाजी और किसी के नियंत्रण में आने का शिकार हो सकते हैं.
जब शक्तिशाली लोग, सरकारें और बड़े व्यवसाय नागरिकों के बारे में वो सभी कुछ जान सकते हैं, जिनके बारे में उन्हें जानना है, जैसे वो किससे बात करते हैं, उनका मत, उनके डर और उनकी चिंताएं तो इस डाटा का इस्तेमाल वो उन लोगों के वर्गीकरण के लिए कर सकते हैं, जो उनकी नीतियों के साथ नहीं हैं और फिर उनके साथ भेदभाव किया जा सकता है. लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण है कि ये साइकोमेट्रिक प्रोफाइल (लोग क्या सोचते हैं, इसकी पहचान) बना सकते हैं और चालाकी से इसका इस्तेमाल कर सकते हैं, जिससे असल पसंद को चुनना असंभव हो जाए.
वेलिज डाटा के गिद्धों पर लिखती हैं - सरकारें अपने नागरिकों के बारे में बहुत ज्यादा जानती हैं जितना पहले कभी नहीं जानती थीं. जर्मन स्टेट सिक्योरिटी सर्विस Stasi का उदाहरण लें तो ये पूर्वी जर्मनी में मुश्किल से एक तिहाई आबादी की ही फाइल्स जुटा पाई, जबकि इसकी इच्छा थी कि सभी नागरिकों की पूरी सूचना इसके पास हो.
आज इंटेलिजेंस एजेंसियों के पास पूरी आबादी की इससे कहीं ज्यादा सूचनाएं हैं. यहां नए लोगों के लिए ये बता दें कि लोगों की संख्या का एक बड़ा हिस्सा सोशल नेटवर्क पर अपनी निजी सूचनाएं स्वेच्छा से दे देता है.
दूसरी संभावनाओं के बीच इस तरह की सूचना सरकार को ये क्षमता देती है कि वो विरोध को लेकर पहले से ही एक अनुमान लगा ले और लोगों को पहले ही गिरफ्तार कर ले. विरोध प्रदर्शन के बारे में इसके होने से पहले जानने की ताकत और फिर इसे समय पर कुचल देना, ये निरंकुश शासन का सपना रहा है.
इसी हफ्ते बातचीत में प्रोफेसर वेलिज ने अपने तर्कों का सार प्रस्तुत किया—
प्राइवेसी हमें सत्ता के बुरे व्यवहार से बचाती है, इसलिए ये हर समय में हमारे लिए इतनी ही महत्वपूर्ण है. ये जोखिम हमेशा रहेगा कि लोग अपनी ताकत का इस्तेमाल करेंगे और वो देश जहां कानून का शासन कमजोर है, ये खतरा और ज्यादा है. यहां प्राइवेसी का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है.
वह कहती हैं, मुझे लगता है कि मेरी किताब के आने के बाद पेगासस एक महत्वपूर्ण डेवलपमेंट है, अगर इसे प्राइवेसी के नजरिए से देखें.
मैं नहीं मानती कि ये एक संयोग है कि वो देश जिसे पेगासस लिस्ट में सबसे ज्यादा दिखाया गया यानी मेक्सिको, ये वही देश है, जहां हर साल पत्रकारों की हत्या के मामले सामने आते हैं.
नागरिकों के बारे में जरूरत से ज्यादा जानना, यहां तक कि उनके लिए जो ये सोचते हैं कि छोटी मछलियां हैं और मायने नहीं रखतीं, उन पर लगातार सीसीटीवी मॉनिटरिंग या आधार को वोटर आईडी से लिंक करके, जो सरकार के हाथों में पूरा नियंत्रण सौंपने का अद्भुत कदम है, ये सब निगरानी रखने का एक तरीका है.
यहां ऑरवेल का उल्लेख करें जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने किया, बिग ब्रदर वाला ये काम लोकतंत्र को संकुचित करने और मुरझाने का काम करेगा.
वेलिज लिखती हैं, जब हर जगह सर्विलांस होता है, तो ऐसे में सुरक्षित ये है कि आप चुप रहें या ऐसी राय दें जिसे दूसरे स्वीकार करें. लेकिन समाज ऐसे लोगों की बहस को सुनते हुए ही आगे बढ़ता है, जो आलोचना करते हैं, वो लोग जो यथास्थिति के खिलाफ विद्रोह कर सकें.
अगर नागरिकों को सरकारों और डेटा गिद्धों की तरह व्यवहार करते कॉरपोरेट्स से बचाना है तो भारत की संस्थाओं को आगे आना होगा.
अगर ऐसा नहीं होता तो हमारी संस्थाएं संरक्षक के तौर पर नीचे चली जाएंगी, ऐसे संरक्षक जो फेल कहे जाएंगे, अगर वो अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं करते.
पेगासस मामले की बात करें तो शीर्ष न्यायालय द्वारा नियुक्त कमेटी के रेफरेंस को लेकर दो अति महत्वपूर्ण सवाल हैं.
क्या पेगासस समूह के किसी भी स्पाइवेयर को केंद्र सरकार या किसी भी राज्य सरकार या किसी सेंट्रल या स्टेंट एजेंसी ने हासिल किया था? जिसका इस्तेमाल वो भारत के नागरिकों के खिलाफ कर सकें और अगर किसी भी सरकारी एजेंसी ने पेगासस समूह के स्पाइवेयर का इस्तेमाल इस देश के नागरिकों पर किया तो ये बताना होगा कि किस कानून, नियम, गाइडलाइन और प्रोटोकॉल और कानूनी प्रक्रिया के तहत ऐसा किया गया.
हालांकि सरकार को वो सिद्धांत जिसे जवाबदेह बताया जाता, उसे सफलतापूर्वक पलट दिया गया है और अब नागरिकों को जवाबदेह बताया जा रहा है, उनके डाटा तक चालाकी से अपनी पहुंच बनाकर.
नागरिकों की प्राइवेसी की रक्षा करना महत्वपूर्ण है क्योंकि, ये तय करेगा कि भारत का लोकतंत्र कितना स्वस्थ है और अब ये हमारी संस्थाओं के ऊपर है.
(सीमा चिश्ती एक लेखिका और पत्रकार हैं. अपने दशकों लंबे करियर में बीबीसी और द इंडियन एक्सप्रेस जैसे संगठनों से जुड़ी रही हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @seemay. यह एक ओपिनियन पीस है. इससे क्विंट का सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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