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UPA Vs NDA: सरकार कोई भी हो,चीन से लगातार बढ़ता गया आयात

भारते के कुल व्यापार घाटे में चीन का योगदान 40% है

मयंक मिश्रा
नजरिया
Updated:
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अब जब चीन से तनाव है तो इस बात पर सियासी बहस हो रही है कि यूपीए या एनडीए सरकार ने चीन से कारोबार और मुख्य रूप से आयात को बढ़ाया. लेकिन आंकड़े आईने की तरह साफ हैं, जो दिखाते हैं कि पिछले दो दशकों में चीनी माल का भारत में आना रुकने का नाम नहीं ले रहा है. हमें पता है कि इस दौरान हमने तीन स्थिर सरकारें देखीं. उससे चीन के साथ व्यापार पर कुछ फर्क पड़ा क्या?

2000 में दोनों देशों के बीच का कुल करोबार 2 अरब डॉलर का था जो 2018 में बढ़कर 95 अरब डॉलर का हो गया. इंडस्ट्री चैंबर PHDCCI का अनुमान है कि 2001 से 2016 के बीच चीन से आने वाला इंपोर्ट 33 गुना बढ़ा और व्यापार घाटा 57 गुना.

कुल व्यापार घाटे में चीन का योगदान 40%

अब 2018 के कॉमर्स मंत्रालय से जुड़े स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट पढ़िए.

(ग्राफिक्स: क्विंट हिंदी)

जहां 2013-14 में चीन से आने वाला इंपोर्ट सालाना 9 परसेंट की रफ्तार से बढ़ा, 2017-18 में बढ़ोतरी की दर 20 परसेंट रही. चीन के साथ जो हमारा व्यापार घाटा है वो हमारे कुल व्यापार घाटे का 40 परसेंट है.

हमारे कुछ इंपोर्ट का करीब 17 परसेंट अकेले चीन से! उसमें भी तब जब हम वहां से कच्चा तेल और गोल्ड इंपोर्ट नहीं करते हैं. कच्चा तेल और गोल्ड हमारे इंपोर्ट का दो बड़े अहम आइटम हैं. इसका मतलब साफ है कि कच्चा तेल और गोल्ड के अलावे हमारा सारा बड़ा इंपोर्ट चीन से ही होता है.

अब कुछ और आंकड़ों को देखते हैं. यूपीए 2 के समय में यानी 2009 से 2013 के बीच, चीन से आने वाला इंपोर्ट 68 परसेंट बढ़ा और एक्सपोर्ट 58 परसेंट बढ़ा. 2014 में सरकार बदली. उसके बाद से चीन को होने वाला एक्सपोर्ट काफी ऊपर-नीचे हो रहा है. लेकिन वैल्यू टर्म में 2018-19 में होने वाला एक्सपोर्ट 2013 के बराबर ही था. मतलब 5 साल में वहीं के वहीं.

(ग्राफिक्स: क्विंट हिंदी)
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हाल के दिनों में चीन अपना सामान हॉन्गकॉन्ग के जरिए भी भेजने लगा है

2018-19 में 8 परसेंट कमी का जश्न भी मनाया गया. लेकिन मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक वो कमी चीन के एक खेल का नतीजा थी. दरअसल हॉन्गकॉन्ग के जरिए वही सामान आने लगे जो पहले चीन से आते थे. 2018-19 में चीन और हॉन्गकॉन्ग के आंकड़ों को मिलाकर देखेंगे तो हमारा व्यापार घाटा पिछले साल की तुलना में बढ़ा. हमें पता है कि हॉन्गकॉन्ग चीन शासित ही है.

2014 से चीनी कंपनियों का निवेश तेजी से बढ़ा है

चीन से लगातार इंपोर्ट तो बढ़ ही रहे थे. लेकिन 2014 के बाद से एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है और वो है चीनी कंपनियों का भारत में बढ़ते निवेश का.

(ग्राफिक्स: क्विंट हिंदी)

इनमें से कुछ निवेश ऐसे भी हैं, जिनका ऐलान हो गया है लेकिन असल में निवेश होना बाकी है. इससे भी यही पता चलता है कि चीन की भारत की अर्थव्यवस्था में दिलचस्पी बढ़ी है. अब वो सिर्फ व्यापार के भरोसे नहीं है. अब वो निवेश करके अपने पैर और फैलाने की कोशिश कर रहा है.

आप अपने आसपास ही देखिए. आप पाएंगे कि हमारे आसपास चीनी कंपनियों की मौजूदगी तेजी से बढ़ी है. शाओमी, वन प्लस, और लेनोवो जैसी चीनी कंपनियों ने भारत के बाजार में अपनी भागीदारी काफी बढ़ा ली है. कैपिटल गुड्स, टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्टर, दवा बनाने के लिए जरूरी एपीआई- इन सारे मामलों में हमारी चीन पर निर्भरता लगातार बढ़ी ही है. और हाल के सालों में हमारी जिन कंपनियों ने अपनी पहचान बनाई है उनमें से कई ऐसी हैं जिनमें अलीबाबा और टेनसेंट जैसी चीनी कंपनियों की खासी हिस्सेदारी है. ऐसी कुछ कंपनियां है ओला, स्विगी, जोमेटो, स्नैपडील, और पेटीएम.

इस सबके वावजूद क्या हम कह सकते हैं कि फलां सरकार ने चीन से व्यापार को कंट्रोल में रखा जबकि फलां ने तो खुली छूट दे दी और चीन में बने सामानों का कब्जा हो गया? ऐसे तर्क भ्रामक हैं जो सही तस्वीर पेश नहीं करते हैं. अब जब चीन से तनाव के बीच सरकार ने टिकटॉक समेत 59 चाइनीज ऐप पर पाबंदी लगा दी है तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या आने वाले वक्त में चीन से आयात भी घटेगा?

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Published: 01 Jul 2020,07:51 PM IST

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