मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019भारत-जापान बातचीत: क्या मोदी और किशिदा की राय रूस-चीन पर एक जैसी हो सकती है?

भारत-जापान बातचीत: क्या मोदी और किशिदा की राय रूस-चीन पर एक जैसी हो सकती है?

भारत और जापान की सुरक्षा और सामरिक चिंताएं एक जैसी हैं लेकिन दोनों इसे अलग अलग तरीकों से डील करते हैं.

सी उदय भास्कर
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p><strong>Japan's Prime Minister Fumio Kishida with Prime Minister Narendra Modi</strong></p></div>
i

Japan's Prime Minister Fumio Kishida with Prime Minister Narendra Modi

the quint

advertisement

प्रधानमंत्री मोदी (Modi) और जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा (Fumio Kishida) ने दिल्ली में शनिवार, 19 मार्च को 14 वें भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन में दोनों देशों के रिश्तों पर चर्चा की. साल 2018 में जापान (Japan) में हुई शिखर बातचीत के बाद ये पहला समिट था. वहीं अक्टूबर 2021 में जापानी प्रधानमंत्री बनने के बाद किशिदा की प्रधानमंत्री के तौर पर दिल्ली की ये पहली यात्रा है. दौरा बहुत जल्दबाजी और कम समय में हुआ. ये समिट तब हुआ है जब यूक्रेन युद्ध और इससे बन रहे ग्लोबल हालात को अभी दोनों देश समझने में लगे हैं.

भारत-जापान (India-Japan) की दोस्ती का फलक बड़ा है और दोनों ही एक दूसरे को कई चीजों में सहयोग करते हैं और दोनों की ही चिंता चीन, कोविड-19 महामारी, और जलवायु परिवर्तन की भी है. 3,300 शब्दों का जो संयुक्त घोषणापत्र जारी हुआ उसमें भी इन मुद्दों को जगह दी गई है. जहां बातचीत काफी व्यापक रही है, वहीं इस दौरे का एक मुख्य लक्ष्य प्रधानमंत्री किशिदा का भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के साथ रिश्तों की बुनियाद मजबूत करना था. साथ ही उन चीजों पर और मजबूती से आगे बढ़ना था जिन पर पहले सहमति बन चुकी है.

चिंता एक जैसी पर रणनीति अलग

दरअसल भारत और जापान की सुरक्षा और सामरिक चिंताएं एक जैसी हैं लेकिन इससे निपटने को लेकर दोनों की रणनीतियां अलग-अलग हैं. रूस के यूक्रेन आक्रमण पर भी दोनों देशों का अलग-अलग रुख दिखा. शनिवार को अपनी मीटिंग में जापान के प्रधानमंत्री किशिदा ने जोर दिया कि यूक्रेन पर रूस की कार्रवाई को ‘माफ’ नहीं किया जाना चाहिए. मुलाकात के बाद जारी प्रेस रिलीज में प्रधानमंत्री किशिदा ने कहा- :

'यूक्रेन पर रूस का आक्रमण इंटरनेशनल ऑर्डर की बुनियाद को हिलाने वाला है .हमें इसका सख्ती से जवाब देना चाहिए. मैंने प्रधानमंत्री मोदी से इस बारे में बात की, और कहा कि हमें इसे माफ नहीं करना चाहिए या दुनिया की किसी भी ताकत को एकतरफा कार्रवाई करके किसी मौजूदा व्यवस्था को बदलने नहीं देना चाहिए’.

भले ही प्रधानमंत्री किशिदा ने अपने बयान में रूस के आक्रमण पर जोर दिया लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने ज्यादा सतर्कता दिखाई और ‘आक्रमण’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया लेकिन कहा कि “ जियोपोलिटिकल डेवलपमेंट से नई चुनौतियां खड़ी हो गईं हैं’ उन्होंने कहा “ इस संदर्भ में, भारत-जापान की दोस्ती में और मजबूती ना सिर्फ दोनों देशों बल्कि इंडो पैसिफिक रीजन के लिए भी जरूरी है. इससे शांति, समृद्धि और स्थिरता को दुनिया में बढ़ावा मिलेगा.

जहां इसमें ना तो रूस और ना ही चीन का जिक्र किया गया, इसलिए संयुक्त बयान में जो कहा गया है उस पर गौर करना जरूरी है “ दुनिया में शांति, स्थिरता, और समृद्धि के लिए दोनों देश प्रतिबद्ध हैं और चाहते हैं कि नियमों से देश चलें जहां किसी देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान किया जाए. सभी देश विवादों का समाधान अंतरराष्ट्रीय कानून से करें. किसी देश पर हमला किए बिना या ताकत का इस्तेमाल कर हालात को ना बदला जाए’

भले ही सीधे तौर पर बयानों में रूस या चीन पर कुछ नहीं कहा गया लेकिन इसे गौर से देखने पर संकेत समझ में आते है. इसमें इशारों इशारों में रूस-यूक्रेन रिश्ते, गलवान, लद्दाख में चीन की हरकत और दक्षिणी चीन महासागर में विवाद का जिक्र किया गया है. इसका एक निष्कर्ष तो ये है कि दिल्ली और टोक्यो दोनों के लिए ही फिलहाल बीजिंग एक बड़ा फैक्टर है. यूक्रेन को लेकर हाल में बाईडेन-शी जिनपिंग की वर्चुअल बातचीत में भी कुछ खास बात बनी नहीं जो चीन-अमेरिका के रिश्तों की डोर के और कमजोर होते जाने की ओर इशारा करती है. अगर मॉस्को-बीजिंग पार्टनरशिप अमेरिका-वेस्ट धुरी के खिलाफ खड़ी हो जाती है तो भारत, जापान जैसे देशों के लिए हालात बेहद जटिल हो जाएंगे.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

21वीं सदी में नीतिगत दुविधा

आज एक मजबूत राष्ट्रीय नीति बनाने में सामरिक और सुरक्षा संबंधी चिंताएं और इकोनॉमी और ट्रेड में मजबूती की नीति आपस में विरोधाभासी हो गई हैं. एक दूसरे से ओवरलैप हो रहा है. 21वीं सदी की शुरुआत में नीतियों को लेकर ये सबसे बड़ी दुविधा है.

यूक्रेन में जंग इस हिसाब से एक बड़ी केस स्टडी है . यूरोप जहां रूस पर से एनर्जी निर्भरता कम करने के लिए अपने चारों तरफ देख रहा है वहीं भारत-मॉस्को और वाशिंगटन के साथ अपनी दोस्ती में बैंलेंसिंग एक्ट में लगा हुआ है. अभी जापानी प्रधानमंत्री किशिदा इस जंग में यूक्रेन के साथ मजबूती से खड़े हैं वहीं ताईवान से जुड़ी गड़बड़ी और उत्तरी कोरिया को लेकर जंगी तैयारी में भी जुटा है.

यहां चीन की तरफ से चली जा रही चालों और चीनी चाय के पत्तों को ठीक से पढ़ना, भारत और जापान दोनों के लिए ही बहुत जरूरी है. इसे इसलिए भी ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि बीजिंग की पहल से ही चीन के विदेश मंत्री इस महीने के अंत में भारत की यात्रा पर आ रहे हैं. ऐसे में क्वाड इन तीनों देशों के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी.

एक तरफ प्रधानमंत्री किशिदा मई जून में क्वाड की एक मीटिंग की तैयारी में जुटेंगे जहां प्रधानमंत्री मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसॉन व्यक्तिगत तौर पर बुलाए जाएंगे, वहीं दूसरी ओर चीन चाहेगा कि इस की तरह की कोई ग्रुपिंग नहीं हो. चीन क्वाड को INDO-PACIFIC में NATO जैसा संगठन मानता है.

चीन इस फॉर्मूलेशन को स्वीकार करने से इनकार कर एशिया पैसिफिक में अपनी मर्जी चलाता है, जो पूरे इलाके में रणनीतिक तनाव का बड़ा कारण है. ये एक तरह से एशिया में बैलेंस ऑफ पावर की नई परेशानी है.

भारत-जापान और ईज ऑफ डुइंग बिजनेस का सच

चीन और अमेरिका दोनों ही जापान और भारत के लिए सबसे बड़े ट्रेडिंग पार्टनर हैं. जहां इस बारे में किशिदा के दौरे ने भारत में अगले पांच साल में ‘पांच ट्रिलियन येन ‘ करीब 42 बिलियन डॉलर निवेश का टारगेट रखा है. हाल में जो विदेशी निवेश आ रहे हैं उसके संदर्भ मे भी इसे रखकर समझना होगा.

अप्रैल-सितंबर 2021 में इंडिया में इक्विटी निवेश कुछ इस तरह का है सिंगापुर से 8 बिलियन अमरिकी डॉलर, अमेरिका से 4.63 बिलियन अमेरिकी डॉलर.मॉरिशस से 4.33 बिलियन अमेरिकी डॉलर, कैमेन आइलैंड्स से 2.15 बिलियन अमेरिकी डॉलर, नीदरलैंड्स से 2.15 बिलियन USडॉलर, UK से 1.15 US डॉलर तो जापान से 804 मिलियन अमेरिकी डॉलर का है.

किशिदा के दौरे पर भारत- जापान में सहयोग बढ़ाने के लिए कई MoU पर हस्ताक्षर हुए और ये सकारात्मक संकेत हैं. वहीं HR ट्रेनिंग, सप्लाई चेन, रीजनल कनेक्टिविटी में भी एक दूसरे को सहयोग बढ़ाने पर बात बनी है. लेकिन असल में एक बड़ा सच ये है कि भारत किसी रीजनल ट्रेडिंग ब्लॉक जैसे रीजनल कॉम्प्रेहिंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप’ RCEP’ का सदस्य नहीं है जो एक रुकावट है.

और जहां मारुति-सुजुकी ऑटोमोबाइल सक्सेस स्टोरी भारत-जापान दोस्ती की कामयाबी की बड़ी कहानी है वहीं मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल कॉरिडोर में जो देरी हो रही है उसकी जरा बात करते हैं.

हालांकि संयुक्त बयान में कहा गया है कि ‘दोनों प्रधानमंत्रियों ने इस प्रोजेक्ट ‘मुंबई-अहमदाबाद-हाई स्पीड रेल’ में काम की रफ्तार पर संतुष्टि जताई है’ लेकिन हकीकत थोड़ी निराशाजनक है. इस मेगा प्रोजेक्ट के लिए MoU फरवरी 2013 में हुए थे, लेकिन अभी इसे पूरा करने की अनुमानित डेडलाइन 2028 के आखिरी तक ले जाया गया. ये ईज ऑफ डुइंग बिजनेस की सचाई को दिखाता है.

क्या किशिदा के दौरे से दोनो देशों के रिश्ते मजबूत होंगे और मिशन क्वाड क्या और प्रभावी होगी , वो इस साल पता चलेगा. तब तक टोक्यो भारत के कदमों पर नजर रखता रहेगा. भारत के चीन और रुस के साथ होने वाले शिखर समिट पर भी जापान की आंखें गड़ी रहेंगी. अभी ऐसा लगता है कि विरोधाभासी नीतिगत मजबूरियां मौजूदा समय का सबसे बड़ा मूलमंत्र बना रहेगा.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT