ADVERTISEMENTREMOVE AD

रूस यूक्रेन विवाद में तटस्थता भारत के मूल्यों के खिलाफ है?

यूक्रेन पर रूस के हमले के साथ लोकतांत्रिक मूल्यों को पिछले 77 वर्षों में सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

पिछले तीस सालों से मैंने अपनी पेशेवर जिंदगी का ज्यादातर समय विश्व के दो बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच रिश्तों को मजबूत करने में बिताया है. क्लिंटन प्रशासन में बतौर असिस्टेंट सेक्रेटरी ऑफ कॉमर्स, मैंने भारत में पहले प्रेजिडेंशियल बिजनेस डेवलमेंट मिशन की रूपरेखा तैयार करने और उसे आयोजित करने में मदद की.

अमेरिकी कांग्रेस में अमेरिका-भारत सिविल न्यूक्लियर डील की मंजूरी की कोशिश करने वाले कोलिशन का मैं सेक्रेटरी रह चुका हूं. भारत-अमेरिका समन्वय पर मैंने दो किताबें लिखी हैं, और वॉशिंगटन के दो मशहूर थिंक टैंक्स में इंडिया प्रोग्राम में मैं सक्रिय हूं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

यूएस-इंडिया फ्रेंडशिप काउंसिल का मैं फाउंडिंग डायरेक्टर हूं.लेकिन भारत से मेरा लगाव और जुड़ाव इससे भी गहरा है. सबसे पहले 1964 में मैं फुलब्राइट स्कॉलर के तौर पर भारत आया था और मेरे पिता उससे भी पहले. वह एक अमेरिकी सरकारी अधिकारी थे, और इंडियन पी.एल. 480 प्रोग्राम और हरित क्रांति के समय भारत आए थे.

अपना काम करते हुए मैं हमेशा से यह विश्वास करता रहा हूं कि भारत और अमेरिका के एक जैसे मूल्य हमारे रिश्तों का आधार है.साथ ही, दोनों देशों के बीच मजबूत भागीदारी, न सिर्फ हमारे, बल्कि दुनिया के दूसरे देशों की समृद्धि और शांति के लिए भी फायदेमंद है. इन मूल्यों में सबसे महत्वपूर्ण है, लोकतंत्र और बुनियादी मानवाधिकार.

परमाणु युद्ध विनाशकारी हो सकता है

यूक्रेन पर रूस के हमले के साथ लोकतांत्रिक मूल्यों को पिछले 77 वर्षों में सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. इन मूल्यों की रक्षा करना मुश्किल है, क्योंकि बहुत से देशों के पास परमाणु हथियार हैं. इन हथियारों के कूटनीतिक इस्तेमाल से मौत और विनाश का ऐसा तांडव हो सकता है जिसकी अब तक विश्व ने कल्पना भी नहीं की होगी. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सामूहिक विनाश करने वाले इन हथियारों के इस्तेमाल से मानव सभ्यता का अंत हो जाएगा. इसीलिए हमारा दायित्व है कि हम लोकतंत्र की रक्षा और शांति कायम करने का यत्न करें.

यूक्रेन के साथ रूस की लड़ाई उन लोकतांत्रिक और मानवीय मूल्यों के खिलाफ है जो भारत और अमेरिका को प्रिय है. किसी देश पर राजनैतिक कब्जा जमाने के लिए मौत और विनाश का सहारा लेना साम्राज्यवाद की जड़ में है जिसका भारत ने लंबे समय तक विरोध किया है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

कानून का शासन एक मौलिक लोकतांत्रिक मूल्य है. यह सिद्धांत लोकतंत्र का आधार है कि विवाद को नियम आधारित व्यवस्था के माध्यम से हल किया जाना चाहिए, न कि हिंसा के जरिए.अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कानून का शासन, भले ही वह पूर्ण न भी हो, 21 वीं सदी को तबाही से बचाता है. वह तबाही जो मानव इतिहास में साफ नजर आती है और जो बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में अपने चरम पर पहुंच गई थी.

1947 में आजादी मिलने के बाद आधुनिक भारत अक्सर रूस, यानी उसके यूएसएसआर के अवतार के साथ रहा. उसका तर्क था, कि यह उस साम्राज्यवाद का विकल्प है जिसने भारत को इतने लंबे समय तक पीड़ित किया था. लेकिन यह बेझिझक कहा जा सकता है कि यूक्रेन पर पुतिन का हमला बरसों पुरानी साम्राज्यवादी महात्वाकांक्षा का उदाहरण ही है जिसे हिंसा के जरिए पूरा करने की कोशिश की जा रही है.

रूस ने 18वीं सदी के अंत में यूक्रेन पर नियंत्रण किया था और अब उसे अपने साम्राज्य में मिलने का इरादा किए हुए है. यूक्रेन पर आक्रमण का सबसे भयावह पहलू यह है कि यदि इस मकसद को पूरा कर लिया जाता है तो इससे पुतिन दूसरे कई देशों को भी हथियाने की कोशिश करेंगे जो कभी रूसी साम्राज्य का अंग हुआ करते थे, जैसे लिथुआनिया, लातविया, इस्टोनिया और पोलैंड के कुछ हिस्से. इन नाटो देशों पर हमले का नतीजा युद्ध में तब्दील हो जाएगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारत ने जो पुतिन से जो अपील की, वह बहुत कमजोर थी

पीढ़ियों से भारत शांति के पक्ष में खड़ा रहा है. गांधी के अहिंसा के सिद्धांत और उसे अमल में लाने के तौर तरीके ने विश्व को राह दिखाई है. लेकिन इस वक्त, भारत ने पुतिन से धीमी आवाज में सिर्फ अपील की है, उनका विरोध नहीं किया है- ऐसा करके, भारत किसकी तरफ से खड़ा है? जब 141 देशों ने रूस के हमले और सैन्य अभियानों की निंदा की, तो भारत तटस्थ हो गया.

भारत ने जिन बुनियादी मूल्यों के उल्लंघन की निंदा से परहेज किया, उसकी स्थापना भी उन्हीं मूल्यों पर हुई थी. क्या इसे समझना मुश्किलन नहीं? इनके लिए भू राजनैतिक कारणों का हवाला दिया गया है. कहा गया है कि इससे हथियारों की खरीद पर असर पड़ सकता है.

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक, 2015 और 2020 के बीच भारत में जितने हथियारों का आयात किया गया, उसमें से करीब आधे रूस से मिले थे. लेकिन 2011 और 2015 की अवधि के मुकाबले आयात में करीब 70% की गिरावट भी हुई है. फिलहाल रूस के हमले का विरोध करने वाले कई देश लोकतंत्र को कायम किए हुए हैं और हथियार बेचने को तैयार हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इशारा किया है कि भारत का अंतिम लक्ष्य अपने सैन्य हथियार खुद बनाना है. जैसा कि चीन करता है. इसलिए रूसी हथियारों की खरीद का तर्क कमजोर है जिसकी भारत दुहाई दे रहा है.

ज्यादातर भारतीय विश्लेषक कहते हैं कि चीन, प्रत्यक्ष तरीके से और पाकिस्तान के जरिए भारत के लिए बड़ा खतरा बन रहा है.सच्चाई तो यह है कि चीन न सिर्फ हिमालयी क्षेत्र, बल्कि अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों पर भी दावा कर रहा है. और चीन का सबसे करीबी सहयोगी कौन है- बेशक रूस. उदाहरण के लिए यूक्रेन पर हमला के वक्त ही रूस ने चीन से सहमति भी जताई है कि वह बीजिंग विंटर ओलंपिक्स में दखल नहीं देगा.

जो भी मानता है कि एक दबंग (यानी रूस) दूसरे दबंग (यानी चीन) का विरोध करने में भारत का साथ देगा, वह सच्चाई से नावाकिफ है. इसके अलावा भारत के जोखिम में पड़ने पर रूस उसकी मदद करेगा, यह तर्क भारत की तटस्थता को सही नहीं ठहरा सकता.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

शीत युद्ध इतिहास है, भविष्य का सच कुछ और ही है

कुछ लोगों का कहना है कि भारत के इस रवैये की वजह शीत युद्ध है. यानी भारत ऐतिहासिक कारणों से रूस की आलोचना से बच रहा है. लेकिन भारत के सामने जो सवाल है, वह इतिहास के पन्नों में दफन नहीं है. यह उसके वर्तमान और भविष्य का सवाल है.

भारतीय मूल्य क्या उसके भविष्य की तरफ इशारा करते हैं? क्या पुतिन का जो व्यवहार है, भारत के मूल्य उस ओर इशारा करते हैं? बिल्कुल नहीं.

10 दिसंबर, 2021 को समिट फॉर डेमोक्रेसी में मोदी ने कहा था,

“बहुदलीय चुनाव, एक स्वतंत्र न्यायपालिका और स्वतंत्र मीडिया जैसी संरचनात्मक विशेषताएं लोकतंत्र के महत्वपूर्ण साधन हैं. हालांकि, लोकतंत्र की असली ताकत वह भावना और लोकाचार है जो हमारे नागरिकों और हमारे समाजों में निहित है. लोकतंत्र केवल जनता का नहीं, जनता के द्वारा, जनता के लिए, बल्कि जनता के साथ, जनता के भीतर भी होता है."

आखिर में उन्होंने कहा था, "लोकतांत्रिक देश एक साथ मिलकर, हमारे नागरिकों की आकांक्षाओं को पूरा कर सकते हैं और मानवता की लोकतांत्रिक भावना का जश्न मना सकते हैं. भारत इस नेक प्रयास में दूसरे लोकतांत्रिक देशों के साथ काम करने के लिए तैयार है.”

ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारत को यह तय करना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिन मूल्यों को व्यक्त किया था, और जिन पर उसकी स्थापना हुई, क्या उसे उसी पर कायम रहना है. रूस एक लोकतांत्रिक देश का दमन करने, उसे कब्जाने के लिए जिस मौत और विनाश का सहारा ले रहा है, उस भारत की चुप्पी और तटस्थता से क्या उसके मूल्यों और सिद्धांतों की रक्षा हो पाएगी.

(रेमंड विकरी क्लिंटन प्रशासन में एक पूर्व करियर डिप्लोमैट रह चुके हैं. वह वॉशिंगटन डीसी में थिंक टैंक सीएसआईएस में यूएस इंडिया पॉलिसी स्टडीज़ की वाधवानी चेयर में सीनियर एसोसिएट हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×