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भारत-कतर संबंधों के लिए अग्निपरीक्षा है 8 पूर्व नौसेना अधिकारियों को मिली मौत की सजा

Death Sentence for 8 Ex-navy Officers: कतर की अदालत का फैसला एक अजीब समय पर आया है.

अदिति भादुड़ी
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>2015 में अमीर की भारत यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी के साथ शेख तमीम बिन हमद अल थानी</p></div>
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2015 में अमीर की भारत यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी के साथ शेख तमीम बिन हमद अल थानी

(फोटो- X/पीएम मोदी)

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Death Sentence for 8 Ex-navy Officers: 26 अक्टूबर को खबर आई कि कतर ने अगस्त 2022 में इजरायल के लिए जासूसी करने के आरोप में जिन आठ पूर्व भारतीय नौसैनिक अधिकारियों गिरफ्तार किया था, अब उन्हें मौत की सजा सुनाई गई है.

इस आरोपी पूर्व नौसैनिक अधिकारियों की पहचान कैप्टन नवतेज सिंह गिल, कैप्टन बीरेंद्र कुमार वर्मा, कैप्टन सौरभ वशिष्ठ, कमांडर अमित नागपाल, कमांडर पूर्णेंदु तिवारी, कमांडर सुगुनाकर पकाला, कमांडर संजीव गुप्ता और नाविक रागेश के रूप में हुई है.

ये सभी पूर्व भारतीय नौसेना हैं और उन्हें डहरा ग्लोबल ने काम पर रखा था. ये सभी कतर के नौसेना में स्टील्थ टेक्नोलॉजी वाली पनडुब्बियों को शामिल करने पर काम कर रहे थे.

इस खबर के आने के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा की कि वह "...मृत्युदंड के फैसले से बहुत स्तब्ध है और विस्तृत फैसले का इंतजार कर रहा है." आगे कहा गया, "हम उनके परिवार के सदस्यों और कानूनी टीम के संपर्क में हैं और सभी कानूनी विकल्प तलाश रहे हैं."

इसमें यह भी कहा गया है कि भारत "इस मामले को अत्यधिक महत्व देता है, और इस पर बारीकी से नजर रख रहा है. हम सभी कॉउंसलिंग और कानूनी सहायता देना जारी रखेंगे. हम फैसले को कतर के अधिकारियों के सामने भी उठाएंगे."

कतर ने दोषसिद्धि के बारे में कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है. प्रथम दृष्टया कतर में कोर्ट की पूरी सुनवाई अपारदर्शी रही है. साथ ही आरोपों को भी सार्वजनिक नहीं किया गया है.

आरोपों की संवेदनशीलता को देखते हुए, फैसला ऐसे समय पर आया है जब मध्य पूर्व एक बार फिर इजरायल और हमास के बीच युद्ध में घिरा हुआ है.

कतर हमास द्वारा अगवा किए गए इजरायली नागरिकों की रिहाई के लिए हमास और इजरायल के बीच मध्यस्थता करने की कोशिश कर रहा है. लेकिन युद्ध तेजी से नियंत्रण से बाहर होता दिख रहा है और इसमें क्षेत्र में पुरानी कटुता को फिर से कुरेदने का खतरा है.

यही वजह है कि इस मामले में भारत के पास विकल्प बहुत ज्यादा नहीं हैं.

भारत के पास क्या विकल्प हैं?

फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार मामले की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने इसकी पुष्टि की है कि आठ भारतीयों पर इजरायल के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया गया था और वे अपनी सजा के खिलाफ अपील कर सकेंगे.

कतर की ऊपरी अदालत में सजा के खिलाफ अपील करने के लिए जाहिर तौर पर भारत कतर के शीर्ष कानूनी विशेषज्ञों से संपर्क करेगा. साथ ही वह कतर के अमीर के पास दया याचिका भी दायर करेगा, जिसके पास क्षमा का अधिकार है.

एक अन्य विकल्प कैदियों को ट्रांसफर करने से जुड़े समझौते को सक्रिय करना है, जिस पर 2015 में कतर के अमीर, अमीर तमीम बिन हमद अल थानी की राजकीय यात्रा के दौरान भारत और कतर के बीच हस्ताक्षर किए गए थे.

इस समझौते के अनुसार, किसी अपराध के दोषी व्यक्ति को जेल की सजा काटने के लिए उसके अपने देश में ट्रांसफर किया जा सकता है. लेकिन इसके लिए मौत की सजा को कारावास में बदलना होगा.

और आखिरी विकल्प यह है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है.

भारत के प्रति कतर के दृष्टिकोण में दोहरापन

पहली नजर में, भारत और कतर के बीच मजबूत व्यापारिक संबंध हैं.

भारत कतर का दूसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है और 2022 में द्विपक्षीय व्यापार 17.2 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जिसमें पिछले वर्ष की तुलना में वृद्धि दर्ज की गई. कतर भारत को तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) का सबसे बड़ा सप्लायर है. कतर LNG के 40 प्रतिशत से अधिक आवश्यकताओं की आपूर्ति करता है.

लगभग 7 लाख भारतीय कतर में रहते हैं और काम करते हैं और कतर और भारत की अर्थव्यवस्था में अच्छा योगदान दे रहे हैं.

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कतर में हजारों भारतीय कंपनियां सक्रिय हैं, जबकि अमीरात के 450 अरब डॉलर के सॉवरेन वेल्थ फंड का भारत में पर्याप्त निवेश है और वह और अधिक निवेश करने की योजना बना रहा है.

जब साथी खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के सदस्यों ने कतर पर नाकाबंदी लगाई, तो भारत ने उसे खाद्य उत्पादों और अन्य आपूर्ति को हवाई मार्ग से पहुंचाने में मदद की. दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र में भी सहयोग है.

इन सब के बावजूद, द्विपक्षीय संबंधों को करीबी से देखने वाले एक्सपर्ट्स को भारत के प्रति कतर के दृष्टिकोण में दोहरेपन का एक पैटर्न दिखाई देगा. पिछले साल, नूपुर शर्मा विवाद के दौरान, कतर भारत के खिलाफ इस्लामोफोबिया के आरोप लगाने, दोहा में भारतीय राजदूत को तलब करने और यहां तक ​​कि माफी की मांग करने में सबसे आगे था.

दिलचस्प बात यह थी कि यह घटना घटित होने के लगभग एक सप्ताह बाद आई.

वहीं दूसरी तरफ, कतर ने दिवंगत चित्रकार एम एफ हुसैन को नागरिकता प्रदान की, जिन पर लाखों हिंदुओं ने वही आरोप लगाया था जो कतर ने भारत पर लगाया था - धार्मिक भावनाओं को आहत करने का.

अभी हाल ही में आतंकवाद को बढ़ावा देने के आरोप में भारत में वांटेड इस्लामवादी उपदेशक जाकिर नाइक को कतर द्वारा आयोजित फीफा विश्व कप के दौरान सार्वजनिक रूप से प्रचार करने के लिए कतर ने मंच मुहैया कराई थी.

अल जजीरा, एक मीडिया चैनल और कतर का एक जियो-पॉलिटिकल उपकरण, भारत और भारतीय चीजों की विवादास्पद कवरेज में जुटा हुआ है. हरदीप सिंह निज्जर की हत्या पर भारत-कनाडा राजनयिक विवाद के अपने कवरेज में, चैनल को यह निश्चित लग रहा था कि कनाडा द्वारा भारत के खिलाफ लगाए गए आरोप पूरी तरह सच हैं, भले ही कनाडा ने अभी तक इन आरोपों को सार्वजनिक नहीं किया है.

इसी तरह, वर्तमान इजरायल-हमास युद्ध में, अल जजीरा ने इजरायल के लिए भारत के समर्थन का एकतरफा नैरेटिव प्रसारित करना जारी रखा है, जबकि फिलिस्तीनियों के लिए भारत की पहुंच को तरजीह नहीं दी है.

भारत-कतर द्विपक्षीय संबंधों के लिए एक लिटमस टेस्ट

पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारियों के खिलाफ कतर की अदालत का फैसला एक अजीब समय पर आया है.

यह ऐसे समय में आया है जब कतर 7 अक्टूबर के हमले के दौरान फिलिस्तीनी उग्रवादी समूह हमास द्वारा पकड़े गए 200 से अधिक लोगों में से आम नागरिकों की रिहाई में मध्यस्थता करने की कोशिश कर रहा है.

दोहा में हमास का कार्यालय है और इजरायल पर हमले के समय हमास के लीडर यही थे. गाजा को कतर अनुमानित 2 बिलियन डॉलर का कैश ट्रांसफर किया है और इससे हमास को वहां बढ़ने में मदद मिली है.

कतर को हाल ही में एक प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी नॉमिनेट किया गया है. यह अपने अल उदीद हवाई अड्डे पर यूएस सेंट्रल कमांड की मेजबानी करता है और हाल के दिनों में कई मोर्चों पर मध्यस्थता में लगा हुआ है.

मध्यस्थता 2003 से कतर की विदेश नीति का एक प्रमुख भाग रहा है. 2003 में ही कतर राज्य के स्थायी संविधान ने यह सुनिश्चित किया कि कतर की विदेश नीति "अंतरराष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण समाधान को प्रोत्साहित करने के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को मजबूत करने के सिद्धांत पर आधारित है".

2012 से, कतर ने तालिबान को दोहा में एक प्रतिनिधि कार्यालय खोलने की अनुमति दी है और अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा समझौते में मदद की है, जिससे काबुल में अभी भी संयुक्त राष्ट्र की नजर में आतंकवादी समूह- तालिबान को सत्ता में बनाए रखने में मदद मिली है.

लेकिन कतर अपने कद से बहुत ऊपर जा रहा है, वह पश्चिम एशिया में आक्रामक विदेश नीति अपना रहा है, अरब स्प्रिंग में हस्तक्षेप कर रहा है, मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे इस्लामी समूहों और ट्यूनीशिया में एन्नाहदा, गाजा में हमास जैसे संबद्ध समूहों का समर्थन कर रहा है. जबकि उसने अपनी सीमाओं के भीतर कट्टरवाद से दूरी बनाए रखी.

इस्लामी संगठनों के लिए इस तरह के समर्थन से अंततः एक ओर कतर और दूसरी ओर सऊदी अरब, बहरीन, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र जैसे उसके अन्य खाड़ी सहयोगियों के बीच विभाजन हुआ, लेकिन हाल के दिनों में जाहिर तौर पर यह दूर हो गया.

हालांकि, 7 अक्टूबर को इजरायल में हमास द्वारा किए गए हमलों ने कट्टरपंथी और उग्रवादी समूहों के साथ संबंध बनाए रखने में कतर की भूमिका को उजागर कर दिया है. हम निश्चित रूप से नहीं जानते कि इजरायल के लिए जासूसी करने के आरोप में भारतीयों को मौत की सजा देने की घोषणा करने का इरादा क्या था. अगर इसके बाद के पोस्टमॉर्टम में इसके बीचे इजरायल-हमास युद्ध से जुड़े लिंक सामने आएं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी.

किसी भी स्थिति में, यह मुद्दा भारत-कतर द्विपक्षीय संबंधों के लिए एक अग्निपरीक्षा होगा.

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