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इजरायल के वार पर ईरान के पलटवार के क्या मायने, पूरे विवाद में अमेरिका कहां खड़ा?

Israel-Iran Tensions: इजरायल की निंदा करने में पश्चिम की विफलता का मतलब था कि ईरान के पास दमिश्क हमले का बदला लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.

सौरभ कुमार शाही
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>ईरान ने जवाबी कार्रवाई में इजरायली सैन्य ठिकानों पर हमला किया है.</p></div>
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ईरान ने जवाबी कार्रवाई में इजरायली सैन्य ठिकानों पर हमला किया है.

(फोटो: PTI)

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ईरान (Iran) ने रविवार, 14 अप्रैल की सुबह जवाबी हमले में इजरायली सैन्य (Israeli military bases) ठिकानों पर हमला किया. ईरानी की ओर से आत्मघाती ड्रोन और मिसाइलें दागी गईं. सद्दाम हुसैन (Saddam Hussein) के हमले बाद यह पहली बार है, जब किसी विदेशी ताकत ने इजरायल की जमीन पर हमला किया है. हालांकि, ऐसे हमले का अंदेशा काफी वक्त से लगाया जा रहा था.

इस महीने की शुरुआत में इजरायली F-35 विमानों ने दमिश्क में ईरानी दूतावास परिसर पर हमला किया, जिसमें सीरिया में शीर्ष ईरानी सैन्य सलाहकार ब्रिगेडियर रेजा जाहेदी (Brigadier Reza Zahedi) की मौत हो गई. ये हमला वियना कन्वेंशन (Vienna Convention) का खुला उल्लंघन था, जिसपर इजरायल और ईरान दोनों ने हस्ताक्षर किए हैं.

अमेरिका को हमले से कुछ मिनट पहले ही इसकी सूचना दी गई थी. हालांकि, अमेरिका ने अपने बैक चैनल सोर्स के माध्यम से ईरान को सूचित कर दिया है कि इस पूरे मामले से उसका कोई लेना-देना नहीं है.

हालांकि, बहुत जल्द अमेरिका ने अपना रुख बदल लिया. इस घटना को लेकर ईरान की ओर से UNSC की पूर्ण निंदा की मांग की गई लेकिन इजरायल के मजबूत सहयोगियों- अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने इसे विफल कर दिया. अमेरिका ने अपने मीडिया आउटलेट्स के जरिए यह धारणा बनाने की भी कोशिश की कि वह कोई राजनयिक इमारत नहीं थी और ऐसे में इजरायल ने वियना कन्वेंशन का उल्लंघन नहीं किया है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय कानून में इसकी कोई कानूनी वैधता नहीं है. केवल ईरान और सीरिया ही यह तय कर सकते हैं कि दमिश्क में कौन सी इमारतें राजनयिक संपत्ति हैं. तीसरे पक्ष का इसपर कोई अधिकार नहीं है.

अमेरिका की इस चालाकी भरी रणनीति के बाद ईरान के पास इजरायल पर हमला करने और प्रतिरोध/ डेटरेंस बहाल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा.

नोट: प्रतिरोध/ डेटरेंस का मतलब है सामने वाले देश को किसी सजा या बदले का डर दिखाकर उसे हथियार उठाने से रोकना है.

ईरान के हमले का सैन्य विवरण

इजरायल कई सालों से अपने एजेंट्स के जरिए ईरानी वैज्ञानिकों और जनरलों की हत्या कर रहा है. हालांकि, दूतावास की इमारत को निशाना बनाना एक अविवेकपूर्ण कदम था. ऐसा लगता है कि बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) ने इस बारे में नहीं सोचा था. कई इजरायली सैन्य टिप्पणीकारों ने यह स्वीकार किया है उन्होंने ईरान के जवाबी हमले को कम करके आंका था.

सामने आ रही जानकारी के मुताबिक, ऐसा लगता है कि ईरान ने पहले इजरायली एयर-डिफेंस (AD) बैटरियों को खत्म करने के लिए लगभग 200 आत्मघाती ड्रोन भेजे और फिर क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों को पंप करने के लिए बैटरी रिचार्ज करने के लिए जरूरी गैप का इस्तेमाल किया. डेविड स्लिंग, हेटेज 1, हेटेज 2, हेटेज 3 और यूएस पैट्रियट और थाड सिस्टम के साथ इजरायल के पास दुनिया का सबसे मजबूत AD सिस्टम है. ईरान की ओर से दागे गए कई ड्रोन और मिसाइलों को हवा में ही मार गिराया गया, वहीं सामने आ रही तस्वीरों से पता चलता है कि कई ड्रोन और मिसाइलें अपने टारगेट को हिट करने में सफल रहीं.

ऐसा प्रतीत होता है कि ईरान की सबसे उन्नत खैबर-शेकन हाइपरसोनिक मीडियम रेंज बैलिस्टिक मिसाइलें इजरायली और अमेरिकी AD सिस्टम को हराने और नेगेव रेगिस्तान के साथ-साथ नकाब क्षेत्र में ठिकानों पर हमला करने में कामयाब रहीं. नेवातिम एयरबेस को भी हमले झेलने पड़े, जहां दमिश्क में ईरानी दूतावास परिसर को निशाना बनाने वाले F-35 विमान हैं. AD प्रणालियों को भ्रमित करने के लिए मिसाइलों द्वारा नकली बमों का सफलतापूर्वक उपयोग करने के वीडियो सामने आए हैं.

संयुक्त राष्ट्र में ईरानी स्थायी प्रतिनिधि ने एक बयान जारी कर कहा है कि उनका बदला पूरा हो चुका है, लेकिन अगर इजरायल आगे बढ़ता है, तो वो युद्ध की सीढ़ी पर चढ़ने के लिए भी तैयार है.

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ईरान ऐसा क्यों करेगा?

ऐसा लगता है कि इजरायल के अंदर इन हमलों से ईरान ने अपने कई सामरिक और रणनीतिक लक्ष्य हासिल कर लिए हैं. ईरान ने न केवल इजरायल का प्रतिरोध किया है, बल्कि इसने अमेरिका को भी संकेत दिया है कि मध्य पूर्व में उसके ठिकानों (जवान और हथियार) को जब चाहे तब निशाना बनाया जा सकता है. अगर दुनिया की सबसे मजबूत एयर-डिफेंस तैनाती के साथ इजरायल हमले को पूरी तरह से नहीं रोक सका, तो सिंपल एयर-डिफेंस सिस्टम वाले अमेरिकी ठिकानों का क्या होगा?

ईरान ने मुस्लिम देशों को भी एक संकेत दिया है. जब तुर्की, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसी बड़ी सुन्नी सैन्य शक्तियां तेल अवीव का साथ दे रही थीं, तो एक शिया राष्ट्र ईरान ही था जो उन फिलिस्तीनियों की सहायता के लिए आया था जिनमें से अधिकांश सुन्नी हैं.

ईरान ने अपने बैलिस्टिक मिसाइल जखीरे का केवल 1.8-2.0 प्रतिशत ही इस्तेमाल किया है. वहीं इजरायल ने आत्मघाती ड्रोन हमलों को विफल करने के लिए अपने AD गोला-बारूद का कई गुना अधिक बर्बाद कर दिया है. अगर इजरायल आगे बढ़ता है, तो ईरानी हमले की हर नई लहर उसके बहुमूल्य AD गोला-बारूद को इस हद तक खत्म करती रहेगी कि प्रसिद्ध आयरन डोम, ऐसा कहा जा सकता है, एक आयरन छलनी बन जाएगा.

नेतन्याहू मसीहाई भाषा का इस्तेमाल कर खुद को बचाना चाहते हैं. वहीं अन्य इजरायली नेताओं के बीच दरार पैदा हो रही है, जिन्हें एहसास है कि वे बहुत ही अनिश्चित स्थिति में हैं.

और पश्चिम का क्या?

NATO स्पष्ट रूप से दो मोर्चों पर लड़ाई नहीं चाहता है. यह यूक्रेन में कमजोर दिख रहा है. लाल सागर में हुती-प्रभुत्व वाले अंसारल्लाह के दबाव में इसका नौसैनिक गठबंधन जर्जर हो गया है. इन परिस्थितियों में वह नेतन्याहू द्वारा किसी अन्य युद्ध में घसीटा जाना नहीं चाहता है. अमेरिका के बयान से पता चलता है कि वह अपनी G-7 मंडली के साथ एक कूटनीतिक कदम उठाएगा और ईरान के खिलाफ किसी भी सैन्य टकराव से बचेगा.

इसका सीधा संबंध राष्ट्रपति बाइडेन से है, जिन्हें चुनावी साल में अभूतपूर्व विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है. बड़ी संख्या में डेमोक्रेट मतदाता गाजा में युद्ध से निपटने के बाइडेन के तरीके से नाराज हैं. वे निश्चित रूप से नहीं चाहेंगे कि मृत शैनिकों के शव अमेरिका आने शुरू हो जाएं. यही बात बहुसंख्यक अनिर्णीत या मध्यमार्गी मतदाताओं पर भी लागू होती है, जिनका समर्थन उभरते हुए डोनाल्ड ट्रंप को हराने के लिए बाइडेन के लिए जरूरी है.

सही समय पर अमेरिकी सुरक्षा और सैन्य प्रतिष्ठान से जुड़े प्रेस ने ईरानी हमलों को कमतर आंकना और इसे विफल बताना शुरू कर दिया है. यह इजरायल के रूप में अमेरिका के अंदर घरेलू दर्शकों के एक वर्ग को संतुष्ट करने के लिए है जो आगे बढ़ना चाहते हैं. यह स्पष्ट संकेत है कि NATO तनाव कम करना चाहता है.

हालांकि, राष्ट्रपति बाइडेन को ऑप्टिक्स मोड से बाहर निकलने की जरूरत है. कोई भी यह नहीं मान सकता कि उनका इजरायलियों पर कोई नियंत्रण नहीं है. इसके लिए बस उनके एक फोन कॉल की जरूरत है और नेतन्याहू को पता चल जाएगा कि बॉस कौन है. और AIPAC जैसी इजरायली लॉबी का कोई भी दबाव इसे रोक नहीं सकता. हालांकि, उन्हें राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाने की जरूरत है जो इस समय नजर नहीं आ रही है.

गेंद अब वास्तव में नेतन्याहू के पाले में है. अगर वह इस क्षेत्र को व्यापक युद्ध में धकेलना चाहते हैं, तो आश्वस्त रहें कि तेहरान को बहुत कम या कोई शिकायत नहीं है. ईरान के लिए प्रतिरोध महत्वपूर्ण है. अब इजरायल के किसी भी हमले का वह उतनी ही ताकत से जवाब देगा. ईरानी नागरिक बुनियादी ढांचे पर इजरायली हमले से इजरायली परमाणु संयंत्र भी ईरानी निशाने पर आ जाएंगे. और फिर, सभी दांव बंद हो जाएंगे.

(सौरभ कुमार शाही पश्चिम और दक्षिण एशियाई मामलों के विशेषज्ञ पत्रकार हैं और क्षेत्र में अंतर-धार्मिक और अंतर-इस्लामिक संघर्ष में विशेष रुचि रखते हैं. यह एक ओपिनियन पीस. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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