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जादवपुर केस से शिक्षा की अंधेरी दुनिया बेनकाब, लेकिन सिस्टम की बंद आंखें खुलेंगी?

Jadavpur University मामले में निष्पक्ष न्याय जरूर होना चाहिए और सिर्फ अपराधियों की गिरफ्तारी तक मामला थमना नहीं चाहिए.

सुब्रता नाग चौधरी
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>JU केस से शिक्षा माफिया एक्सपोज हुए लेकिन क्या सिस्टम की आंखों पर बंधी पट्टी हटेगी ?</p></div>
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JU केस से शिक्षा माफिया एक्सपोज हुए लेकिन क्या सिस्टम की आंखों पर बंधी पट्टी हटेगी ?

(फोटो: कामरान अख्तर/द क्विंट)

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जादवपुर यूनिवर्सिटी (Jadavpur University) के 17 वर्षीय नाबालिग छात्र की मौत की जांच कर रहे पुलिस जांचकर्ताओं ने अलीपुर न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत को बताया कि यह छात्रों के एक समूह के "सुनियोजित अपराध" का नतीजा था.

9 अगस्त को यूनिवर्सिटी के मुख्य हॉस्टल में फर्स्ट ईयर के छात्र की रैगिंग और हत्या के साथ-साथ उसकी मौत के बाद आपराधिक साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार तीन और छात्रों को अदालत में पेश किया गया. इससे कुल गिरफ्तारियों की संख्या 12 हो गई. इसमें वर्तमान छात्रों और पासआउट छात्रों का समूह शामिल है, जो अवैध रूप से छात्रावास में रह रहे थे. पुलिस इस मामले में अन्य साजिशकर्ताओं की तलाश कर रही है. 

जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है, इससे कई खामियां भी उजागर हो रही हैं. देश के इस अग्रणी शैक्षणिक संस्थानों में से एक JU में ना केवल छात्रों को जान की बुनियादी सुरक्षा की गारंटी देने में नाकामी बल्कि परिसर के भीतर बेकाबू जघन्य अपराध को रोकने में भी चौंकाने वाली विफलता का खुलासा हो रहा है.  

मृतक छात्र के साथ की गई रैगिंग के भयानक विवरण एक गंभीर सिस्टैमेटिक खामी और अधिकारियों की घोर लापरवाही की ओर इशारा करता है. मृतक छात्र को शायद हॉस्टल की दूसरी मंजिल की बालकनी की पतली दीवार पर चलने के लिए मजबूर किया गया था, जहां से वह कथित तौर पर फिसलकर गिर गया, जिससे उसकी मौत हो गयी.

उत्पात का केंद्र  

एक भयानक घटना घटने के बाद उसकी अगली कड़ी के रूप में जो कुछ हुआ वो तो और भी बुरा है - अव्यवस्थाएं चरम पर और गुंडागर्दी ने कैंपस के शैक्षणिक माहौल का बेड़ा ही गर्क कर दिया. JU  पूरी तरह से अब छात्रों, शिक्षकों, गैर-शिक्षण कर्मचारियों और अंत में नेताओं के चक्रव्यूह में फंसा हुआ है. इससे और ज्यादा हिंसा और शत्रुता भड़कने के आसार हैं.  

हताशा की भावना और भी गहरी हो गई है.

यूनिवर्सिटी छात्रों, प्रबंधन, राज्य सरकार और राज्य के राज्यपाल के बीच सत्ता संघर्ष का केंद्र बन गया है. संघर्ष इस बात पर है कि यूनिवर्सिटी के कामकाज को कौन नियंत्रित करता है? लगातार आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है. 

UGC की एंटी रैगिंग गाइडलाइन का मखौल 

24 मई 2023 को, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के सचिव ने सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को पत्र लिखकर रैगिंग के खिलाफ निर्देश जारी किए.   

इनमें एंटी-रैगिंग कमिटियों का गठन भी शामिल है. इसके अंतर्गत नोडल अधिकारियों की नियुक्ति करनी थी और उनके कॉन्टैक्ट डिटेल्स सभी छात्रों को मुहैया कराना था.

इसमें यह सुनिश्चित करना भी शामिल है कि एडमिशन के समय सभी छात्रों को एंटी-रैगिंग शपथ पत्र दिया जाए. सीसीटीवी कैमरे लगाना था और रैगिंग के शुरुआती लक्षणों की पहचान करने के लिए छात्रों के साथ नियमित बैठकें आयोजित करना था. इसके साथ-साथ छात्रावासों, कैंटीन, मनोरंजन कक्षों आदि का औचक निरीक्षण जैसे दिशानिर्देश इसमें थे.   

ऐसे साफ-साफ और खास दिशानिर्देशों के बावजूद JU के उठाए गए कदमों से असंतुष्ट UGC ने छात्र की मौत के बाद यूनिवर्सिटी से इस बारे में रिपोर्ट मांगी थी.   

2 अगस्त 2023 को, छात्र की मृत्यु से ठीक एक सप्ताह पहले, जादवपुर यूनिवर्सिटी ने घोषणा की थी कि रैगिंग में लिप्त पाए जाने वाले छात्रों को कड़ी सजा दी जाएगी. इसमें ईयर बैक यानि पढ़ाई रोकने से लेकर हॉस्टल बोर्डरशिप की हानि और यहां तक कि यूनिवर्सिटी से सस्पेंशन तक शामिल है.

यूनिवर्सिटी के रिकॉर्ड के अनुसार 22 सदस्यीय रैगिंग विरोधी स्वयंसेवी फोर्स का भी गठन किया गया था. लेकिन जाहिर तौर पर ये सब सिर्फ कागजी ऐलान लग रहे थे.  

हालांकि, विडंबना यह है कि 9 अगस्त की दुर्भाग्यपूर्ण रात जब घटना घटी तो प्रशासन ने जो कुछ आदेश दिए थे, वो कहीं दिख नहीं रहे थे. 

छात्र के गिरने की सूचना जिस डीन को तुरंत दी गई, वो पूरी रात छात्रावास में नहीं पहुंचे. छात्रावास अधीक्षक तो इस भयावह घटना के सिर्फ मूक दर्शक बने रहे.  यही नहीं कथित तौर पर पुलिस को छात्रावास में जाने से रोक दिया गया.

छात्र नेता - जो अक्सर छात्र कल्याण और हितों के स्वयंभू संरक्षक होने का दावा करते हैं, सबके सब  मामले को दबाने, बंद कमरे में बैठकें करके बचाव की तैयारी में लगे हुए थे.

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JU में आखिर CCTV लगाने को लेकर इतना बवाल क्यों 

JU के अधिकारी कैंपस में सीसीटीवी लगाने की योजना से साल 2010 से ही पीछे हटते रहे हैं.  अब यह और अधिक स्पष्ट हो गया है कि मैनेजमेंट रैगिंग को रोकने के लिए एक सतत दीर्घकालिक योजना पर काम करने में विफल रहा.

अधिकारियों ने छात्रों की मांगें मान ली हैं कि CCTV या निगरानी  स्वतंत्रता और स्वच्छंदता, खुलेपन और सहजता की हवा को खराब कर देगी. तर्क दिया गया कि सीसीटीवी केवल 'अपराधियों' की पहचान करने में सक्षम होगा लेकिन रैगिंग को पूरी तरह से नहीं रोक पाएगा.  

हालांकि, अब इस हालिया घटना के बाद अधिकारियों ने आधे-अधूरे मन से ही सही लेकिन कैंपस के कुछ "स्ट्रैटेजिक" स्थानों पर सीसीटीवी लगाने का फैसला किया है.

WB में कैंपस में अराजकता: बढ़ता हुआ संकट 

जादवपुर कैंपस में छात्र की मौत राज्य के शैक्षणिक माहौल पर एक धब्बा है. गंभीर रैगिंग संस्कृति की चपेट में आने से जादवपुर छात्रावास में रैगिंग की और भी शिकायतें सामने आ रही हैं. 

बालीगंज साइंस कॉलेज का एक छात्र पिछले तीन साल से शिकायत कर रहा है कि सत्ताधारी दल के कुछ छात्र नेताओं ने उसके साथ लंबे समय तक रैगिंग की. उसका उत्पीड़न किया. पिछले तीन वर्षों से न तो कॉलेज अधिकारियों और न ही पुलिस ने उसकी शिकायतों को सुना.  अब जादवपुर की घटना के बाद, पुलिस जाग गई और उसकी शिकायत दर्ज करने के लिए उसे हाल ही में एक मजिस्ट्रेट के पास ले गई. 

जादवपुर के छात्र की मौत के साथ ही कलकत्ता हाई कोर्ट से खड़गपुर पुलिस को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), खड़गपुर के तीसरे वर्ष के छात्र फैजान अहमद की मौत की जांच शुरू करने का निर्देश मिला. पिछले साल अक्टूबर में फैजान अपने हॉस्टल के कमरे में मृत पाए गए थे.

कलकत्ता हाई कोर्ट ने हस्तक्षेप किया और फैजान की दूसरा पंचनामा करने का आदेश दिया. उसकी बॉडी असम के डिब्रूगढ़ में उसके पैतृक गांव में दफनायी गयी थी. जब फोरेंसिक विशेषज्ञ ने फैजान के शरीर पर चोट को "एंटीमॉर्टम" और "होमिसाइडल" प्रकृति का बताया तो शव को कब्र से बाहर निकाला गया और दूसरी बार पोस्टमार्टम किया गया. 

शिक्षा की जर्जर हालत और बढ़ता कुप्रबंधन 

अगर आप आज पश्चिम बंगाल में शिक्षा क्षेत्र के परिदृश्य पर निगाह डालते हैं तो -  तस्वीर काफी पीड़ाजनक लगती है और इसमें लगातार गिरावट आ रही है.   

यहां शिक्षा कभी मध्यम वर्ग के बंगालियों का सबसे बड़ा निवेश हुआ करता था. वो अपने बच्चों की पढ़ाई पर सबसे ज्यादा निवेश करते थे. लेकिन आज यह सब जर्जर हालत में है.

आज चौतरफा हताशा और निराशा है. सैकड़ों नौकरी चाहने वाल शिक्षक के रूप में नौकरी की मांग को लेकर हफ्तों और महीनों तक सड़कों पर आंदोलन करते देखे जाते हैं. 

स्कूली शिक्षकों की नौकरी के बदले करोड़ों रुपये के घोटाले की कलकत्ता हाई कोर्ट की निगरानी वाली ईडी-सीबीआई जांच में लगभग हर दिन भ्रष्टाचार की गंभीर और अलग–अलग तस्वीर निकलकर सामने आ रही है.

पश्चिम बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री और एक समय सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी के दूसरे नंबर के नेता - पार्थ चटर्जी - शिक्षा घोटाले में कथित संलिप्तता के लिए अब एक साल से अधिक समय से जेल में हैं. राज्य शिक्षा विभाग के लगभग एक दर्जन शीर्ष अधिकारी भी लगभग इसी हालत में हैं और इनमें से ज्यादातर तो जेलों में बंद हैं. 

इन सबके बीच, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच सत्ता का कड़वा संघर्ष ठना हुआ है. राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर एक महत्वपूर्ण विधेयक को लंबित रखने का आरोप है. इस विधेयक में राज्य के मुख्यमंत्री ही विश्वविद्यालयों के चांसलर होंगे ना कि राज्यपाल. राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने आरोप लगाया कि राज्यपाल अनिश्चित काल के लिए विधेयक को रोक नहीं सकते.  

इन सबके बीच, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच सत्ता के कड़वा संघर्ष ठना हुआ है. राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर एक महत्वपूर्ण विधेयक को लंबित रखने का आरोप है. इस विधेयक में राज्य के मुख्यमंत्री ही विश्वविद्यालयों के चांसलर होंगे ना कि राज्यपाल.  राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने आरोप लगाया कि राज्यपाल अनिश्चित काल के लिए विधेयक को रोक नहीं सकते.  

राज्यपाल और राज्य सरकार में टकराव से राज्य में शिक्षा के हालात बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं.  

जून से JU में कुलपति नहीं हैं. न तो इसमें कोई अंतरिम वीसी है और न ही कोई कार्यवाहक VC. इसके अलावा, यूजीसी के नियमों और निर्देशों को लागू नहीं किए गए हैं जिनका भयानक नतीजा यहां पर है.

एक्सीलेंस की तलाश में एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान तक पहुंचने के लिए संघर्ष करने वाले एक मेधावी युवा की दुखद कहानी और इस तरह की पृष्ठभूमि में असामयिक, हिंसक अंत पूरी स्थिति को और दुखद और निंदनीय बनाती है. 

इस मामले में बिना किसी किंतु-परंतु के निष्पक्ष न्याय होना चाहिए और मामले को सिर्फ चंद अपराधियों की गिरफ्तारी तक नहीं समेट कर रख देना चाहिए

इस भयावह घटना से ठीक एक सप्ताह पहले, जादवपुर विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने एक नोटिस में पारंपरिक चेतावनी जारी की थी: "रैगिंग न केवल एक सामाजिक बुराई है, बल्कि एक दंडनीय अपराध भी है. " निःसंदेह ये शब्द सिर्फ शब्द बनकर रह गए और इनका चालाकी से उल्लंघन भी हुआ और अंजाम इसका एक मेघावी छात्र का विनाश के तौर पर आया. 

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