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65 साल के बदरुद्दीन जमाल (बदला गया नाम) कई वर्षों से जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर की सरकारी दुकान से दोगुनी कीमत पर चावल खरीदते रहे हैं.
जब उनके दोनों बच्चे बड़े हुए तो स्कूल में उनकी भर्ती कराने में भी उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ा. शहर के एक अस्पताल में उनकी बेटी का जन्म हुआ, लेकिन उन्हें उसका जन्म प्रमाण पत्र नहीं दिया गया. नगर निगम के अधिकारियों ने उन्हें लौटा दिया, क्योंकि कानून की नजर में वो ‘बाहरी’ थे.
जमाल कहते हैं- ‘नया कानून लाने के लिए मैं मोदी सरकार का शुक्रगुजार हूं. इससे मुझ जैसे लोगों की मुश्किलें खत्म होंगी. मैं पिछले 15 सालों से कश्मीर में काम कर रहा हूं. लेकिन मेरे साथ पराये जैसा बर्ताव होता रहा है.
लेकिन जमाल अपने वास्तविक नाम से पहचाने जाने से डरते हैं. इस मुद्दे ने, खासकर कश्मीर में, दुखती रग को छू लिया है, जहां की अवाम और सियासी पार्टियां नए कानून को बीजेपी की नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार द्वारा ‘हिंदूकरण’ के बढ़ावे के तौर पर देखती है.
‘मैं किसी तरह की परेशानी नहीं चाहता. अगर लोगों को मालूम हो जाए तो वो मुझे जिंदा जला देंगे,’ जमाल ने कहा.
इस सूची में केन्द्र सरकार, अखिल भारतीय सेवाओं, बैंक और PSU, संवैधानिक संस्थानों और केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के उन अधिकारियों के बच्चे भी शामिल होंगे जिन्होंने पूर्व जम्मू-कश्मीर राज्य में 10 साल तक काम किया हो.
नए नियम से गैर-स्थानीय लोग भी जम्मू-कश्मीर के बाशिंदों की तरह रोजगार, संपत्ति का स्वामित्व और सामाजिक सुरक्षा से जुड़े फायदों का लाभ उठा पाएंगे.
डोमिसाइल सर्टिफिकेट जारी करने वाली नोडल एजेंसी, जम्मू-कश्मीर के राजस्व विभाग के मुखिया पवन कोटवाल ने बताया कि जून में मोदी सरकार द्वारा लाए गए नए नियमों के लागू होने के बाद, जम्मू-कश्मीर सरकार ने, 6 अगस्त की शाम तक, करीब 6 लाख डोमिसाइल जारी किए थे, ज्यादातर हिंदू-बहुल जम्मू क्षेत्र में किए गए.
कोटवाल ने द क्विंट को बताया:
कोटवाल ने कहा कि ज्यादातर डोमिसाइल सर्टिफिकेट जम्मू-कश्मीर के वास्तविक नागरिकों को ही बांटे गए हैं. जब उसने पूछा गया कि कितने गैर-स्थानीय लोगों को सर्टिफिकेट दिए गए, तो उन्होंने कहा, ‘हम फिलहाल डोमिसाइल सर्टिफिकेट पाने वाले लोगों के आंकड़ों को वर्गीकृत कर अलग-अलग हिस्सों में बांट रहे हैं. कुछ दिनों में ये सब उपलब्ध हो जाएगा.’
जम्मू-कश्मीर सरकार में एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि लाभार्थियों में कुछ IAS अधिकारी, उनके परिवार के सदस्य, पूर्व पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थी और वाल्मिकी समाज और गोरखा समुदाय के सदस्य भी शामिल हैं.
‘इसमें करीब 2500 वाल्मिकी और 1000 गोरखा शामिल हैं, जो कि ज्यादातर जम्मू इलाके में रहते हैं,’ अधिकारी ने बताया.
हालांकि, इस मुद्दे पर कश्मीर में सियासी बवाल शुरू हो गया है. घाटी की राजनीतिक पार्टियों में दरार भी सामने आ गई है. नेशनल
कांफ्रेंस के वास्तविक मुखिया उमर अब्दुल्ला ने हाल में संकेत दिया कि अगर जम्मू-कश्मीर को दोबारा राज्य का दर्जा दिया जाता है तो उनकी पार्टी चुनाव में शिरकत करेगी, लेकिन डोमिसाइल विवाद पर उन्होंने अपना रुख साफ नहीं किया.
पार्टी ने पहले सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून 2019 की संवैधानिक वैद्यता को चुनौती दी थी जिसके तहत भूतपूर्व राज्य को दो भाग में बांट कर केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया था.
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, जिसकी मुखिया महबूबा मुफ्ती अभी भी हिरासत में हैं, को लगता है कि जम्मू-कश्मीर का मुस्लिम-बहुल होना संघ परिवार के हिंदू राष्ट्र प्रोजेक्ट के आड़े आ रहा है.
‘अब डेमोग्राफिक बदलाव और राजनीतिक और प्रशासनिक शक्ति छीनने का भूत इसी डोमिसाइल कानून पर सवार किया जाएगा,’ PDP के वरिष्ठ नेता और पार्टी प्रवक्ता फिरदौस टाक ने बताया.
‘5 अगस्त 2019 के संवैधानिक धोखे के बाद जो कुछ भी हुआ है वो जनता और PDP को कुबूल नहीं है. हम अपने सम्मान, अभिमान और पहचान की लड़ाई लड़ते रहेंगे,’ टाक ने कहा.
जब पूछा गया कि पार्टी कैसे इस लड़ाई को आगे बढ़ाएगी, तो टाक का जवाब था: ‘लोकतांत्रिक, कानूनी और संवैधानिक तरीके से. रोम पर एक दिन में जीत नहीं मिली थी. कॉन्स्टेंटिनोपल की हार एक रात में नहीं हुई थी. ऐतिहासिक लड़ाइयां पूरी दृढ़ता से लड़ी जाती है और जीत की उम्मीद से ही विरोध जिंदा रहता है.’
हालांकि, इस मुद्दे ने नया सियासी घमासान छेड़ दिया है, कई युवा कश्मीरी राजस्व विभाग के बाहर कतार लगाकर अपना डोमिसाइल सर्टिफिकेट हासिल कर रहे हैं. क्योंकि सरकारी नौकरियों में आवेदन के लिए डोमिसाइल सर्टिफिकेट जरूरी है.
श्रीनगर के एक इंजीनियरिंग ग्रेजुएट सज्जाद भट्ट ने कहा:
नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता रुहुल्ला मेहदी, रिपोर्ट के मुताबिक जिन्होंने इस मुद्दे पर पार्टी की चुप्पी की वजह से हाल ही में प्रवक्ता पद से इस्तीफा दे दिया, ने कहा कि डोमिसाइल नियम जम्मू-कश्मीर में ‘बीजेपी की बड़ी योजना का अहम हिस्सा है.’
‘जम्मू-कश्मीर में सियासी गतिविधियों की गैरहाजिरी जानबूझकर उनकी (बीजेपी) बहुसंख्यक नीतियों को आसानी से लागू करने के लिए बनाई गई है,’ बडगाम से तीन बार विधायक रहे रुहुल्ला ने कहा.
‘जिस तरह से उन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म किया, उन्होंने घड़ी को 70 साल पीछे मोड़ दिया है. हमें अपने सम्मान और राज्य के विशेष दर्जा की बहाली से कम किसी बात पर राजी नहीं होना चाहिए.’
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Published: 12 Aug 2020,10:31 PM IST