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डार्क वेब: कश्मीर में काली करतूत के लिए पाकिस्तान का नया पैंतरा  

पाकिस्तान अपने आतंकी संगठनों को देसी अवतार देने की पूरी कोशिश कर रहा है,

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28 जुलाई को जारी 10 मिनट के एक वीडियो में हिजबुल मुजाहिदीन के नए ऑपरेशनल कमांडर सैफुल्लाह ने कहा कि “हम भारत सरकार और उसके प्रमुख नरेंद्र मोदी से शुक्रगुजार हैं.” सरकार, पत्रकारों और जम्मू-कश्मीर के बीजेपी कार्यकर्ताओं को दी गई नई धमकी में वो कहता है कि “ हम शुक्रगुजार हैं क्योंकि उनकी लोकतंत्र विरोधी और गैर कानूनी गतिविधियों के कारण अब आतंकवादियों में अपने लक्ष्य को पूरा करने को लेकर सामूहिक सहमति है. उन्हें ये न सोचने दें कि मुजाहिदीन का सफाया हो गया है, क्योंकि वो नहीं जानते कि ये रास्ता कयामत के दिन की सुबह के जैसा है, जो सूरज के निकलने और नदियों में पानी बहने तक चलता रहेगा.”

डार्क वेब पर पीपुल्स एंटी फैशिस्ट फ्रंट (PAFF) नाम के एक नए आतंकी संगठन ने 43 सेकेंड का एक वीडियो जारी किया है, जिसमें एक तीर से एक स्वास्तिक चिन्ह को निशाना बनाता दिखाया जा रहा है. वीडियो में चेहरा ढंके और हाथों में एके 47 रायफल लिए तीन आतंकवादी भारतीय सुरक्षा बलों की मदद करने वालों के खिलाफ नए हमले की धमकी दे रहे हैं.

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कश्मीर में PAFF का नाम पहले किसी ने नहीं सुना था. जानकार सूत्रों का कहना है कि कश्मीर में अगस्त 2019 के बाद जैसे दि रेसिस्टेंस फ्रंट सामने आया था. वैसे ही PAFF भी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के लिए इस्तेमाल किया जा रहा एक नाम है.

पाकिस्तान अपने आतंकी संगठनों को देसी अवतार देने की पूरी कोशिश कर रहा है, जो न सिर्फ ‘धर्मनिरपेक्ष’ लगे बल्कि ‘रेसिस्टेंस’ और ‘फैसिस्ट’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी कर रहा है, जो दूसरे देशों को पंसद आए. खुफिया विभाग के एक वरिष्ठ सूत्र का कहना है कि उनकी कोशिश नए आतंकियों की भर्ती करना और भारत में हमले करना है.

सूत्र का कहना है कि ये नया आतंकी संगठन कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के रावलकोट इलाके में कई आतंकी संगठनों के टॉप कमांडर की बैठक के बाद बनाया गया है. बैठक में पाकिस्तानी सेना और ISI के कुछ वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल थे.TRF की ही तरह उनकी कोशिश फिर से कश्मीरी युवाओं की आतंकी संगठनों में भर्ती और सुरक्षाबलों पर हमला करने की है.

कोरोना वायरस महामारी के कारण जनाजों पर प्रतिबंध है, इसलिए कश्मीर में अब युवाओं को आतंकवाद की ओर आकर्षित करने के लिए डार्क वेब के जरिए भर्ती और सोशल मीडिया से प्रचार किया जा रहा है.

स्नैपशॉट

आर्टिकल 370 को खत्म किए जाने के एक साल बाद गृह मंत्रालय की रिपोर्ट जम्मू-कश्मीर के नए केंद्र शासित प्रदेशों में आतंकवाद संबंधी घटनाओं में बड़ी कमी का संकेत देती है.

2019 में साल के पहले सात महीनों में आतंकी हमलों की 188 घटनाएं हुई थीं, इस साल इसी दौरान आतंकी हमलों की संख्या में बड़ी कमी आई और ये घटकर 120 रह गई.

सबसे ज्यादा नुकसान आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन को हुआ, उसके 50 आतंकवादी मारे गए.

इस साल अलगाववादियों में भी फूट पड़ते देखा गया, जिसकी पिछले साल तक कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.

जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी घटनाओं में बड़ी कमी

जम्मू-कश्मीर में वायरल हो रहे कुछ वीडियो अब सुरक्षाबलों के लिए नई चुनौती बनते जा रहे हैं ,जहां अब सीमा पार पाकिस्तान से घाटी में ऑपरेट किए जा रहे. आतंकी संगठन की मदद के लिए सोशल मीडिया से प्रचार पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है.

कोविड 19 के पहले आतंकवादियों के जनाजों में सैकड़ों, हजारों की संख्या में कश्मीरी शामिल होते थे, जिसके कारण ये आतंकवादी संगठनों के लिए भर्ती की एक जगह बन गई थी. जहां युवाओं को हथियार उठाने और आतंकी संगठनों में भर्ती होने के लिए तैयार किया जाता था. इसके बाद जल्द ही कई युवा, अक्सर 19 वर्ष तक के, आजादी के तथाकथित लक्ष्य के लिए अपनी जान देने घर से गायब हो गए.

चूंकि कोरोना वायरस महामारी के कारण जनाजे में बड़ी संख्या में लोगों के जुटने पर रोक लगा दी गई है और महामारी खत्म होने के बाद भी इस रोक के जारी रहने की संभावना है-अब कश्मीर में मासमू लड़कों को जाल में फंसाने और आतंकवाद की ओर ले जाने के लिए डार्क वेब रिक्रूटमेंट और सोशल मीडिया के ज़रिए प्रचार का सहारा लिया जा रहा है.

कश्मीर के पुलिस महानिरीक्षक विजय कुमार ने पत्रकारों को बताया कि

वर्चुअल आतंकी संगठन और सुरक्षा बलों और सरकार के खिलाफ फर्जी ऑनलाइन प्रचार हमारी सबसे बड़ी चुनौती है. आतंकवादी संगठनों में नई भर्तियां रोकना और इसे खत्म करना हमारी दूसरी बड़ी चुनौती है. तीसरी बड़ी चुनौती है विदेशी (पाकिस्तानी) आतंकवादियों की मौत की संख्या कम होना. हम ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए काफी पहले ही योजना बना ली थी और हमें इसके सकारात्मक नतीजे भी मिल रहे हैं. ”

अब जबकि 5 अगस्त 2020 को जम्मू-कश्मीर आर्टिकल 370 हटाए जाने के एक साल पूरे हो गए हैं, तब सिर्फ इस पत्रकार को मिली गृह मंत्रालय की रिपोर्ट से पता चलता है कि नए बने केंद्र शासित प्रदेश में आतंकवादी हिंसा, हत्या और हमलों में काफी कमी आई है. इस आंकड़े को जम्मू-कश्मीर पुलिस, भारतीय सेना और सीआरपीएफ, बीएसएफ और एसएसबी सहित केंद्रीय अर्धसैनिक बलों से इकट्ठा किया गया है.

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जम्मू-कश्मीर में टॉप पाकिस्तानी आतंकवादियों के मारे जाने की बढ़ती संख्या

2019 में साल के पहले सात महीनों में आतंकी हमलों की 188 घटनाएं हुई थीं, इस साल इसी दौरान आतंकी हमलों की संख्या में बड़ी कमी आई और ये घटकर 120 रह गई. कश्मीर में हुए कई एनकाउंटर में 138 से ज्यादा आतंकवादी ढेर हुए जिसमें एक दर्जन से ज़्यादा उत्तर कश्मीर में नियंत्रण रेखा से लगते इलाक़े में भारतीय सेना के साथ मुठभेड़ में मारे गए. 2019 में अनुच्छेद 370 हटने से पहले तक सिर्फ 126 आतंकवादी ही मारे गए थे. 2019 में इस समय तक सुरक्षाबलों के 75 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी जबकि 2020 में ये संख्या घटकर सिर्फ 35 रह गई है.

सितंबर 2019 में कश्मीर में 15वीं कोर कमांडर के लेफ्टिनेंट जनरल केजेएस ढिल्लन ने पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी दी थी.

कई चैनलों पर दिखाए गए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा था कि “हम पाकिस्तान का 1971 से भी बुरा हाल कर देंगे जिसे पाकिस्तानी सेना और ISI कभी भूल नहीं सकेगी”

कश्मीर में अधिकांश टॉप पाकिस्तानी आतंकवादियों की मौत के साथ ही सेना के इस टॉप कमांडर, जो अब डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी (DIA) के प्रमुख है, की चेतावनी कश्मीर में जमीन पर सच होती दिख रही है.

एक चिंताजनक ट्रेंड: 2020 में कश्मीर में मारे गए 110 आतंकवादी स्थानीय

इस साल 50 आतंकवादियों के मारे जाने के साथ आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है. लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के 20-20 आतंकवादी ढेर हुए जबकि जम्मू-कश्मीर इस्लामिक स्टेट (ISJK) और अंसार गजवात-उल-हिंद के करीब 14 आतंकवादी मारे गए हैं. ढेर किए गए आतंकवादियों में कुख्यात हिजबुल कमांडर रियाज नायकु, लश्कर कमांडर हैदर, जैश कमांडर कारी यासिर और अंसार का बुरहान कोका शामिल है.

केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2019 के पहले छह महीनों के मुकाबले इस साल स्थानीय आतंकवादियों की भर्ती में 40 फीसदी की कमी आई है. 2020 में अब तक सिर्फ 67 स्थानीय युवा ही आतंकवादी संगठनों में शामिल हुए हैं. इनमें से ज्यादातर को किसी तरह की ट्रेनिंग नहीं मिली है और उनके दिमाग में जहर भरा गया है, इसलिए इस साल ऐसे युवाओं की जिंदगी 30 दिन से लंबी नहीं चल रही है.

इस साल मारे गए 110 आतंकवादी स्थानीय हैं- जो कि एक चिंता का विषय है- करीब दो दर्जन पाकिस्तानी आतंकवादी भी सुरक्षाबलों के अलग-अलग आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन में ढेर किए गए हैं.

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इस उपलब्धि के अलावा जम्मू-कश्मीर पुलिस पिछले सात महीनों में 22 आतंकवादियों और उनके 300 सहयोगियों और ओवर ग्राउंड वर्कर्स (OGWs) को भी गिरफ्तार करने में कामयाब रही है. आतंकवादियों के छुपने के 22 ठिकानों का पता लगाया गया है, जहां से भारी मात्रा में हथियार बरामद किए गए हैं. इस साल 190 से ज्यादा हथियार बरामद किए गए हैं, जिसमें 120 मुठभेड़ की जगहों से (ज्यादतर एके 47 और पिस्टल) और 60 से ज्यादा आतंकवादियों के ठिकानों से मिले हैं.

“आतंकवाद की छोटी घटनाएं हुई हैं लेकिन बड़ी घटनाओं को जम्मू-कश्मीर पुलिस के मजबूत सिस्टम ने रोक दिया है”

सुरक्षा एजेंसियों का दावा है कि कश्मीर में कुल मिलाकर पिछले साल की तुलना में इस साल आतंकवाद संबंधी घटनाओं और हिंसा में 36 फीसदी की बड़ी कमी आई है. पिछले साल जहां 51 ग्रेनेड अटैक हुए थे इस साल अब तक सिर्फ 21 हुए हैं. 2019 में IED के जरिए 6 हमले किए गए थे जिनमें फरवरी में दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा में हुआ हमला भी शामिल है जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवानों को जान गंवानी पड़ी थी. इस साल अब तक IED के जरिए सिर्फ एक हमला किया गया है.

IGP कश्मीर आगे कहते हैं कि

छोटी आतंकी घटनाए हुई हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर पुलिस के ह्यूमन इंटेलिजेस और टेक्निकल इंटेलिजेंस के जरिए खुफिया सूचनाएं जुटाने के मजबूत सिस्टम से बड़ी आतंकी घटनाओं को रोका जा सका है. आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन के अलावा हम आतंकी हमले रोकने के लिए खुफिया सूचना इकट्ठा करने पर जोर दे रहे हैं. इंटेलिजेस ब्यूरो (IB) और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) जैसी हमारी सहयोगी एजेंसियां भी हमें घटना से पहले सूचनाएं मुहैया करा रही हैं. जहां आतंकवादियों के अधिकांश ओवर ग्राउंड वर्कर गिरफ्तार किए गए हैं .वहीं आतंकवादियों के कई मॉड्यूल का भंडाफोड़ भी किया गया है. ये पहली बार है कि जंग-ए-बदर के पहले कश्मीर में कोई आतंकवादी घटना नहीं हुई.
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उन्होंने कहा कि “इलाके के पहचाने हुए ओवर ग्राउंड वर्कर और पत्थरबाजी कराने वाले लोगों को गिरफ्तार किया गया और कुछ पर तो पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) के तहत कार्रवाई की गई. मुठभेड़ की सभी जगहों पर कानून व्यवस्था की स्थिति के मद्देनजर गांव के मुताबिक पहले से योजना बनाई गई. जैसे ही कोई मुठभेड़ शुरू होती है हम वहां तक पहुंचने के सभी संभावित रास्तों को बंद कर देते हैं जिससे पड़ोस के गांवों से पत्थरबाज वहां पहुंच नहीं सकें. जियो फेंसिंग, UAV ड्रोन और कैमरा लगी गाड़ियों की मदद से हमें पत्थरबाजों की पहचान कर उन्हें बाद में गिरफ्तार करने में मदद मिलती है.”

2020 में सुरक्षाबलों की बड़ी कामयाबी

वो आगे कहते हैं कि “ मुठभेड़ वाली जगह में हमारी कोशिश अतिरिक्त नुकसान को कम से कम करने की होती है इसलिए अब तक मुठभेड़ वाली जगह पर किसी नागरिक की मौत नहीं हुई है. हम आतंकवाद विरोधी अभियान के दौरान धार्मिक स्थलों की पवित्रता भी बनाए रखने की कोशिश करते हैं जैसा कि पंपोर और पुलवामा में हुआ, जहां आतंकवादी मस्जिद के अंदर छुपे हुए थे, लेकिन हमने मस्जिद को नुकसान नहीं पहुंचने दिया.

मुठभेड़ की जगह पर आतंकवादी के माता-पिता की ओर से सरेंडर करने की अपील भी कराई जाती है. अंत में हम ये सुनिश्चित करते हैं कि किसी का भी राजनीतिक दखल न हो जिससे पुलिस अपना काम पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से कर सके.” इस साल अलगाववादियों में भी फूट देखी गई जिसकी पिछले साल तक कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.

सैयद अली शाह गीलानी ने खुद को हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से अलग कर लिया, जिसे एक ऐतिहासिक कदम के तौर पर और कश्मीर में पिछले तीन दशक में कट्टरपंथी अलगाववादी ताकतों के लिए सबसे बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा था.

गीलानी पाकिस्तानी के हुर्रियत नेताओं के खुलेआम भ्रष्टाचार से नाराज़ थे जो ISI की योजना के मुताबिक उन्हें पद से हटाना चाहते थे और उनकी जगह पर POK के अपने व्यक्ति को बिठाना चाहते थे. गीलानी के समर्थकों का गुस्सा शांत करने के लिए पाकिस्तान की सीनेट ने एकमत से उनके नाम पर एक इंजीनियरिंग यूनिवर्सिटी का नामकरण करने के अलावा पाकिस्तान का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ‘निशान-ए-पाकिस्तान’ देने की सिफारिश की थी. हालांकि अपनी आखिरी सांसे गिन रहे हुर्रियत को फिर से खड़ा करने की ये कोशिश शायद ज्यादा काम न आए.

लेकिन आगे का रास्ता आसान नहीं है.

खुफिया एजेंसियों को जानकारी मिली है कि POK में 300 पाकिस्तानी आतंकवादी आतंकी हमलों के लिए भारत में घुसपैठ की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन भारतीय सेना और BSF की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के कारण उन्हें घुसपैठ करने में मुश्किल हो रही है. आने वाले हफ्ते और महीनों में कश्मीर में सुरक्षाबलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती कट्टरपंथ और स्थानीय आतंकियों की भर्ती को रोकना है.

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