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गौरक्षक, हिंसा और राजनीति: जुनैद-नासिर का मामला कहीं ठंडे बस्ते में न चला जाए

जुनैद नासिर केस में हिंदुत्व समूहों की भूमिका और हरियाणा पुलिस की मिलीभगत ने केस को कमजोर कर दिया है

राजन महान
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>गौरक्षक, हिंसा और राजनीति: जुनैद-नासिर का मामला कहीं ठंडे बस्ते में न चला जाए</p></div>
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गौरक्षक, हिंसा और राजनीति: जुनैद-नासिर का मामला कहीं ठंडे बस्ते में न चला जाए

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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इस साल फरवरी में भरतपुर के नासिर और जुनैद (Junaid Nasir Murder Case) का बर्बरता से किया गया अपहरण, हमला और हत्या विशेष रूप से पिछले एक दशक में गौ रक्षा से जुड़े इतिहास का भयावह अध्याय है.

लेकिन उनकी हत्या और जलाए जाने के छह महीनों बाद, 30 आरोपियों में से केवल तीन को ही गिरफ्तार किया गया है. इससे खुद को गौरक्षक बताने वाले लोगों के खतरे से निपटने में हरियाणा और राजस्थान पुलिस पर सवाल खड़ा होता है.

इस घटना के बाद पीड़ित परिवारों को जो आघात लगा है उसकी की कल्पना तक करना आसान नहीं है. जुनैद-नासिर अपने पीछे छोड़ गए अनाथ बच्चे, शोक में डूबे माता-पिता और रिश्तेदार डर से भरे हुए हैं. परिवार को जो आजीविका का नुकसान हुआ है और इस पर पुलिस का उदासीन रवैया भी परेशान करने वाला है.

जुनैद-नासिर की हत्या की, उन्हें जला दिया

बता दें कि, 16 फरवरी को हरियाणा पुलिस को भिवानी जिले के एक दूरदराज इलाके में एक जली हुई बोलेरो मिली थी जिसमें दो लोगों शवों के अवशेष थे. दरअसल राजस्थान के भरतपुर जिले के घाटमिका गांव के नासिर और जुनैद का एक दिन पहले गोरक्षकों ने अपहरण कर लिया था, जबकि उनके पास कोई गाय नहीं थी.

बेरहमी से पीटने के बाद, हमलावर उन्हें लेकर हरियाणा चले गए और उन्होंने कथित तौर पर गंभीर रूप से घायल पीड़ितों को फिरोजपुर झिरका पुलिस के हवाले करने की कोशिश की. लेकिन पुलिस ने घायलों को लेने से इनकार कर दिया, तो पीड़ितों और उनके वाहन को जलाने से पहले हमलावर 16 घंटे से अधिक समय तक हरियाणा में ही घूमते रहे.

शुरू से ही, हरियाणा पुलिस का आचरण संदिग्ध रहा है, खासकर तब से जब नूंह पुलिस स्टेशन के पुलिसकर्मियों ने असहाय पीड़ितों को बचाने के लिए कुछ नहीं किया और न ही उच्च अधिकारियों को मामले की सूचना दी.

बाद में, जब राजस्थान पुलिस आरोपी श्रीकांत के गांव पहुंची, तो उसके परिवार ने आरोप लगाया कि पुलिसकर्मियों ने आरोपी की गर्भवती पत्नी के साथ मारपीट की, जिसके बाद जन्मे बच्चे की मौत हो गई. हालांकि राजस्थान पुलिस ने आरोपों से इनकार किया है, लेकिन हरियाणा पुलिस ने उनके खिलाफ मामला दर्ज कर लिया, जो विश्वास की कमी और राजस्थान पुलिस की जांच को कमजोर करने के प्रयास का संकेत है.

हिंदुत्व समूहों की भूमिका और हरियाणा पुलिस की मिलीभगत

ये जानते हुए कि अपराध को कितनी भयावह स्थिति में अंजाम दिया गया है, विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल जैसे हिंदुत्व समूहों ने गिरफ्तारी के दौरान अत्यधिक बल प्रयोग करने के लिए राजस्थान पुलिस की आलोचना की.

मुख्य आरोपियों में से एक रिंकू सैनी को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया और हिंदुत्व समूहों ने राजस्थान पुलिस पर दबाव बनाने के लिए विशेष पंचायतें आयोजित कीं.

भिवानी में एक महापंचायत में, एक उग्र हिंदुत्व नेता ने राजस्थान पुलिस को यह कहकर धमकी दी कि, "अगर उन्होंने मोनू मानेसर को गिरफ्तार करने की हिम्मत की तो वे अपने पैरों पर वापस चलकर नहीं जा पाएंगे."

हिंदुत्व समूहों के दबाव और हरियाणा पुलिस के सहयोग की कमी के कारण, यह केस बहुत ही धीमी गति से आगे बढ़ रहा है.

30 आरोपियों में से अब तक केवल तीन को गिरफ्तार किया गया है. रिंकू सैनी को 17 फरवरी को पकड़ा गया था, वहीं राजस्थान पुलिस ने मोनू राणा और गोगी को 14 अप्रैल को गिरफ्तार किया था. 16 मई को तीनों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल होने के बावजूद मोनू मानेसर समेत बाकी आरोपी लगातार फरार चल रहे हैं.

राजस्थान पुलिस की जांच से हरियाणा पुलिस और गौरक्षकों के बीच घनिष्ठ संबंधों का पता चला है. खुलासा हुआ है कि कई आरोपी पुलिस के मुखबिर थे और नासिर-जुनैद अपहरण में इस्तेमाल की गई कार पहले हरियाणा सरकार की गाड़ी थी. यह हमलावरों और हरियाणा अधिकारियों के बीच संबंध (यदि मिलीभगत नहीं हो तो) को दर्शाता है.
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मोनू मानेसर जैसे लोग जो कर रहे हैं उसे अब सामाजिक सेवा बताया जा रहा है

गौरक्षकों और हरियाणा पुलिस के बीच कथित संबंध एक कानून की वजह से उपजे हैं. 2015 में कठोर गाय संरक्षण अधिनियम लागू करने के बाद, हरियाणा सरकार ने 2021 में हर जिले में एक विशेष गाय संरक्षण टास्क फोर्स स्थापित करने के लिए एक अधिसूचना जारी की.

इसमें 11 सदस्य होंगे और पांच गैर-आधिकारिक सदस्यों को नामित करने की अनुमति दी गई थी, जिनमें से दो स्थानीय गौ रक्षक समूहों से चुने जाएंगे. इससे हुआ ये कि इन गौरक्षक सदस्यों के पास संबंधित घटनाओं में हस्तक्षेप करने की आधिकारिक मंजूरी मिल गई, जिन्हें वे गौ तस्करी या गौहत्या का अपराध मानते हैं.

विशेष गाय संरक्षण टास्क फोर्स एक तरह से पुलिस का और पुलिस जैसा ही काम करने लगे हैं...इससे गलत संदेश जा रहा है. गुंडागर्दी को बढ़ावा मिल रहा है, लेकिन कानून की वजह से गुंडागर्दी को संरक्षण मिल रहा है. मोनू मानेसर के जैसे गौरक्षकों के कामों को सोशल मीडिया पर सामाजिक सेवा की तरह देखा जा रहा है. लेकिन असल में वह अपराध कर रहे हैं.

लेकिन प्रशासन से जुड़े और गैर-प्रशासनिक लोगों के बीच का नेक्सस जुनैद-नासिर मामले में हरियाणा पुलिस की जांच में बाधा है और यह हरियाणा और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों के बीच हाल ही में विवाद का कारण भी बना.

कांग्रेस भी हिंदू वोट खोने की चिंता में सख्ती से कार्रवाई करने में झिझकती है

अगस्त की शुरुआत में नूंह में सांप्रदायिक तनाव के बीच हरियाणा के सीएम खट्टर ने कहा था कि राजस्थान पुलिस आरोपी बजरंग दल सदस्य मोनू मानेसर के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है. जवाब में, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने न केवल हरियाणा पुलिस से सहयोग की कमी की आलोचना की, बल्कि इस बात पर जोर दिया कि मानेसर पर खट्टर के बयान केवल सांप्रदायिक हिंसा से जनता का ध्यान भटकाने के लिए थे.

दुख की बात है कि कांग्रेस भी हिंदू वोट खोने की चिंता के कारण सख्ती से कार्रवाई करने में झिझक रही है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि नासिर-जुनैद के परिवारों को गहलोत सरकार द्वारा दिया गया मुआवजा भी पिछले साल उदयपुर में मारे गए कन्हैया लाल के परिवार को दिए गए मुआवजे से बहुत कम है. जहां कन्हैया के परिवार को 50 लाख रुपये और दोनों बेटों को सरकारी नौकरियां मिलीं, वहीं नासिर-जुनैद परिवारों को केवल 5-5 लाख रुपये दिए गए, जो शायद ही राहुल गांधी के 'मोहब्बत की दुकान' के सिद्धांत का पालन करते हैं.

नासिर-जुनैद परिवारों की दुर्दशा से समझ आता है कि गौरक्षकों के विरोध में भारत में सभी नागरिकों के साथ निष्पक्ष और समान व्यवहार एक मृगतृष्णा (मिराज) बनी हुई है.

अब चूंकी इन गौ रक्षकों के कामों को अक्सर राजनेता वैध ठहराते हैं, इसलिए ये अक्सर बच निकलते हैं, जैसा कि राजस्थान में पहले गौ हत्या मामले में हुआ था, जहां पहलू खान मामले में सभी आरोपियों को पुलिस की घटिया जांच के कारण बरी कर दिया गया था. अगर नासिर-जुनैद मामले का भी ऐसा ही हश्र हुआ तो एक बार फिर जघन्य अपराध को अंजाम देने वाले बच निकलेंगे.

(लेखक एक अनुभवी पत्रकार और राजस्थान की राजनीति के विशेषज्ञ हैं. एनडीटीवी में रेजिडेंट एडिटर के रूप में काम करने के अलावा, वह जयपुर में राजस्थान विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के प्रोफेसर रहे हैं. वह @rajanmahan के नाम से ट्वीट करते हैं. यह एक राय है. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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