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सोशल मीडिया के दौर में देश अब तक मणिपुर (Manipur) की तीन कुकी महिलाओं के साथ बलात्कार और यौन उत्पीड़न की भयावह घटना से रूबरू हो चुका है. लेकिन यह अभी थमा नहीं है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स कई राजनीतिक दलों के लिए युद्ध के मैदान में तब्दील होते नजर आ रहे हैं जो महिलाओं के साथ होने वाले जघन्य अपराधों का भरपूर फायदा उठाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
मणिपुर के बाद पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में महिलाओं के साथ यौन हिंसा की घटनाएं सामने आई हैं, जिससे राजनीतिक घमासान भी शुरू हो गया है.
यूं तो मणिपुर और पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में जो कुछ हुआ, उनके बीच तुलना नहीं की जा सकती. बेशक, दोनों की भर्त्सना की जानी चाहिए. हालांकि, दोनों घटनाओं के स्तर, स्वरूप और गंभीरता में बहुत अंतर है.
लेकिन ऐसा लगता है कि मालदा की घटना और महिलाओं के खिलाफ अत्याचार और अपमान के लगभग आधा दर्जन दूसरे मामलों को भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेताओं ने पश्चिम बंगाल के ‘हालात’ को दर्शाने और मणिपुर की घटनाओं को काउंटर करने के लिए चुना है.
निस्संदेह, बंगाल के वीडियो भयावह हैं और बताते हैं कि हमारी पुलिस और सुरक्षा व्यवस्था कितनी कमजोर है.
हालांकि, दोनों घटनाओं के बीच समानताएं स्थापित करना बहुत मुश्किल है- और इस तरह के सोशल मीडिया जंग की बहुत भारी कीमत चुनानी पड़ सकती है.
आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल के मालदा में चोरी के शक में दो महिलाओं को खुले बाजार में अमानवीय तरीके से प्रताड़ित किया गया. उन्हें पुलिस को सौंपने की बजाय जनता ने मामले को अपने हाथों में लेना का फैसला किया. उन्होंने बार-बार महिलाओं की पिटाई की और उनके कपड़े फाड़ दिए. बाजार में मौजूद सैकड़ों लोगों ने इस हरकत को लाइव देखा, लेकिन किसी ने इसे रोकने की कोशिश नहीं की.
मणिपुर और मालदा, दोनों ही अपराध की अलग-अलग घटनाएं हैं, जो उस सामाजिक बदहाली की तरफ इशारा करती हैं जो गहरी जड़ें जमाए हुए हैं.
हां, मालदा की घटना यह भी बताती है कि हमारे देश में औरतों को कैसे राजनीतिक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. उनके उत्पीड़न और बलात्कार की घटनाओं को कुछ इस तरह लपेटकर पब्लिक डोमेन में उतारा जाता है कि जनता का ध्यान खींचा जा सके.
22 जुलाई को बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख और पश्चिम बंगाल में पार्टी की तरफ से सह-पर्यवेक्षक अमित मालवीय ने ट्वीट किया:
24 जुलाई को उन्होंने ट्वीट किया: "एक बार फिर, पश्चिम बंगाल के बुरवान (मुर्शिदाबाद) में एक और महिला पर हमला किया गया और उसे निर्वस्त्र किया गया. उस पर TMC कार्यकर्ताओं ने हमला किया क्योंकि उसने एक स्वतंत्र उम्मीदवार का समर्थन किया था, जो अब कांग्रेस के साथ है. ममता बनर्जी ने चुप्पी साध रखी है. राहुल गांधी ने भी ऐसा ही किया...."
हालांकि, मालवीय के ट्वीट के बाद बीजेपी नेताओं ने ट्वीट्स और सोशल मीडिया पोस्ट्स की झड़ी लगा दी. इसमें उन्होंने ममता बनर्जी सरकार की जमकर आलोचना की और साथ ही INDIA नाम के राजनीतिक गठबंधन के दूसरे विपक्षी सहयोगियों को भी कटघरे में खड़ा किया. जैसे कहा गया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी वगैरह ने मालदा जैसी घटनाओं की निंदा नहीं की.
लेकिन 'INDIA' गठबंधन के सहयोगी दल जैसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी और पश्चिम बंगाल के कम्युनिस्ट्स सावधानी से आगे बढ़ रहे हैं.
अधीर रंजन चौधरी ने कहा, "मणिपुर मालदा नहीं है और मालदा मणिपुर नहीं है." दूसरी तरफ कम्युनिस्ट्स की प्रतिक्रिया नपी-तुली थी, जिससे 2024 के समीकरण न बिगड़ें.
कुछ नमूने इस तरह हैं- "पिछले चार वर्षों में राजस्थान में महिलाओं पर यौन उत्पीड़न के 33,000 हजार से अधिक मामले, 2016 से पश्चिम बंगाल में महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने के 10 से अधिक मामले...." मणिपुर के बाद सोशल मीडिया की इस जंग का नतीजा कड़वाहट भरा होने वाला है.
लेकिन सिर्फ दूसरे पर हमले करने से यह सब रुकने वाला नहीं है. सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को महिलाओं पर होने वाले जुर्म को रोकना होगा, उनकी गरिमा की हिफाजत करनी होगी, और इसके लिए तमाम उपाय करने होंगे.
(लेखक कोलकाता में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह एक ओपनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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