मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019मराठा आरक्षण पर SC की रोक: ठाकरे ने गेंद केंद्र के पाले में डाली

मराठा आरक्षण पर SC की रोक: ठाकरे ने गेंद केंद्र के पाले में डाली

एक-दूसरे पर दोषारोपण का यह खेल अभी लंबा चलेगा, क्योंकि MVA और बीजेपी दोनों को इससे फायदा हो सकता है

स्मृति कोप्पिकर
नजरिया
Updated:
<div class="paragraphs"><p>सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा एवं नौकरी में मराठा आरक्षण को निरस्त करार दिया</p></div>
i

सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा एवं नौकरी में मराठा आरक्षण को निरस्त करार दिया

अर्निका कला ,द क्विंट 

advertisement

5 मई को सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा एवं नौकरी में मराठा आरक्षण को निरस्त करार दिया. यह अंतिम चीज होगी जो कोविड-19 संकट और बीजेपी का सामना कर रहे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे चाहते होंगे .महाराष्ट्र में इसने राजनैतिक सरगर्मी को भी बढ़ा दिया है .

इस निर्णय ने फिर से भारत में आरक्षण के विवादास्पद मुद्दे को चर्चा के बीच में ला दिया है और संविधान के 102वें संशोधन और अन्य कानूनी पहलुओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

सुप्रीम कोर्ट के द्वारा महाराष्ट्र राज्य सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़े वर्ग कानून(SEBC Act) को असंवैधानिक करार देने के घंटे भर के अंदर बेसब्र युवा मराठों ने 2017-18 में हुए पूरे महाराष्ट्र में 55 विशाल 'मूक मार्च' की तर्ज पर रैली निकालने की घोषणा कर दी. हालांकि मराठा संगठनों के नेताओं ने कोविड-19 प्रतिबंधों को देखते हुए इस पर रोक लगा दी.

बावजूद इसके पूरे पश्चिम महाराष्ट्र में स्थानीय विरोध हुए ,जहां मराठा सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है. साथ ही पुनर्विचार याचिका दायर करने की भी बात चल रही है.

निर्णय पर समुदाय की तीखी नाराजगी हद से बाहर जा सकती है, सरकार के लिए लॉ एंड ऑर्डर की समस्या बन सकती है या सरकार को हराने के लिए बेताब बीजेपी इसका फायदा उठा सकती है. इसे रोकने के लिए कदम उठाना या इसको काउंटर करना ठाकरे के लिए तात्कालिक चुनौती है. उसी शाम उद्धव ठाकरे ने नपा-तुला कदम उठाते हुए प्रधानमंत्री मोदी को लिखने और जरूरत पड़े तो मिलने का वादा किया.

ठाकरे शांति बनाए रखने की प्रार्थना, बिना अनुसूचित जाति-जनजाति को नाराज किये सरकारी कार्यवाही करने और इस दोष को नकारने के बीच उलझे रहे कि उनकी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती के साथ नहीं रखा. यह एक कठिन रास्ता है और इसके लिए उनके राजनैतिक कौशल की जरूरत होगी, खासकर आने वाले महीनों में.ठाकरे को इस बात से सांत्वना मिलेगी कि NCP के अध्यक्ष और सेना-NCP-कांग्रेस के महा-अगाड़ी सरकार को मूर्त रूप देने वाले शरद पवार से वह सलाह मशवरा कर सकते हैं.

पवार से बेहतर मराठा राजनीति की पेचीदगियों को समझने वाला और राजनैतिक नेगोशिएशन के कौशल वाला शायद ही कोई और होगा. हालांकि कुछ मराठा संगठनों का संबंध उनसे गर्मजोशी वाला नहीं है, बावजूद इसके मराठा क्रांति मोर्चा NCP राजनेताओं से रणनीतिक समर्थन पाती रही है.

आखिरकार NCP पश्चिमी महाराष्ट्र और मराठों की पार्टी है .इसके अलावा कांग्रेस पार्टी के मराठा नेता भी सरकार के साथ हैं. वास्तव में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चौहान ने मराठा आरक्षण पर कैबिनेट सब-कमेटी की अध्यक्षता की थी .यह तथ्य पहली बार मुख्यमंत्री पद संभाल रहे ठाकरे को सांस लेने की जगह देता है. यह इस धारणा को भी बनाता है कि इस मुद्दे को एक मराठा ने ही हैंडल किया था.

शक्ति का संतुलन

पवार ,ठाकरे और चौहान शायद मिलकर महाअगाड़ी सरकार पर इस तात्कालिक खतरे को टाल दें .इनमें से कोई भी महा-अगाड़ी को अभी टूटते और शक्ति खोते नहीं देखना चाहता. बावजूद इसके उनके बीच शक्ति का केंद्र चुपचाप बदल गया है. मराठा समुदाय के हितों का कथित नेतृत्व करने वाली NCP और कांग्रेस इस मुद्दे पर मजबूत स्थिति में है. लेकिन गठबंधन सरकार के नेता के रूप में ठाकरे को अपने सहयोगियों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए इस जजमेंट पर सरकार की प्रतिक्रिया पर अंतिम निर्णय लेना होगा.

उम्मीद यही है कि सरकार इसके कानूनी निहितार्थ को राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव डालने देगी क्योंकि अकेला महाराष्ट्र ऐसा राज्य नहीं है जहां 50% से अधिक आरक्षण है. यह उन कारणों से में से एक है जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को असंवैधानिक घोषित किया है. चौहान ने अपने कैबिनेट सदस्यों को बताया कि कम से कम 15 राज्य ऐसे हैं जहां 50% से अधिक आरक्षण है .

दो अन्य आधार थे -महाराष्ट्र में कोई 'असाधारण परिस्थिति या हालात' नहीं थे जिसकी वजह से 50% की सीमा के ऊपर जाया जाए और मराठा समुदाय के लिए यह अलग से आरक्षण -जिसको बॉम्बे हाईकोर्ट ने सही ठहराया था -अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार )और 21 (कानून की उचित प्रक्रिया) का उल्लंघन है .सरकार कानूनविदों के पैनल बनाने पर विचार कर रही है जो उसे इस पर कानूनी सलाह दें.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

राजनीतिक रूप से ठाकरे ने अब गेंद केंद्र के पाले में डाल दी है. उन्होंने चौहान के पूर्व बयान को ही दोहराया कि प्रधानमंत्री को संसद में जरूरी विधायक लाकर और राष्ट्रपति द्वारा पारित करवाकर मराठाओं उनको आरक्षण देना चाहिए .उन दोनों ने मोदी सरकार द्वारा किए गए संविधान संशोधन का उल्लेख करते हुए कहा कि अब समुदायों का पिछड़ापन निर्धारित करने और आरक्षण देने की शक्ति राज्य के पास नहीं बल्कि केंद्र सरकार के पास है.

इसके दो फायदे हैं -ठाकरे को सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय पर नॉन-लीगल प्रतिक्रिया देने का अवसर मिला और दूसरा कि इससे सरकार मराठा समुदाय के गुस्से को अपनी तरफ से दूसरी तरफ मोड़ देगी. सरकार की कानूनी प्रतिक्रिया संभवत: लंबा रास्ता लेगी लेकिन सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर यह नॉन-लीगल प्रतिक्रिया का असर जमीन पर दिखेगा .

नॉन-लीगल जवाबों का यह गुच्छा पिछले साल के सितंबर से ही तैयार था जब सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर विचार करने के लिए रोक लगा दी थी .इसमें मराठा विद्यार्थियों के लिए छात्रवृत्ति ,गुजारा भत्ता योजना, उच्च शिक्षा के लिए हॉस्टल सुविधा में छूट, 'सारथी' (छत्रपति शाहू महाराज रिसर्च ट्रेंनिंग एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट) के लिए ₹130 का आवंटन समुदाय,समुदाय के उद्यमियों को वित्तीय सहायता के लिए अन्नासाहेब पाटील कॉर्पोरेशन को 400 करोड़ का आवंटन, इत्यादि शामिल था .संभवत: ठाकरे इन आवंटनो को बढ़ाएंगे और काम में तेजी लाएंगे.

बीजेपी पर असर

ठाकरे और चौहान ने मुद्दे को बीजेपी की तरफ मोड़ दिया है. उन्होंने इसका दोषारोपण फडणवीस पर लगाते हुए कहा कि उन्होंने ढाई साल पहले मराठा आरक्षण कानून बनाते समय संविधान के 102वें संशोधन का ख्याल नहीं रखा था और लोगों को गुमराह किया. यह संविधान संशोधन 14 अगस्त 2018 को लागू हुआ जबकि नया मराठा कोटा कानून उसी साल 30 नवंबर को लागू हुआ, जब फडणवीस मुख्यमंत्री थे.

हर समय तकरार के मूड में रहने वाले फडणवीस ने इसका जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि नवंबर 2018 में लागू कानून केवल जुलाई 2014 के ओरिजिनल कानून का संशोधन था और राज्य सरकार की लीगल टीम ने सुप्रीम कोर्ट बेंच के सामने यह तर्क नहीं रखा.

एक-दूसरे पर दोषारोपण का यह खेल अभी लंबा चलेगा, क्योंकि MVA और बीजेपी दोनों को इससे फायदा हो सकता है और सबसे जरूरी बात कि.अपने समुदाय में उनकी इज्जत बची रहेगी .

मराठा क्रांति मोर्चा ,जब वें संगठित थे, तब फडणवीस सरकार के लिए चिंता की वजह थे. 'एक मराठा-लाख मराठा' के नारे के साथ समुदाय की शक्ति को प्रदर्शित करने के लिए चले आंदोलन को ब्राह्मण मुख्यमंत्री के लिए चुनौती के रूप में देखा गया. यह गौर करने वाली बात है कि तब ठाकरे की शिवसेना सरकार में सहयोगी थी.

ना ही ठाकरे, ना ही उनकी पार्टी ने विरोध झेला क्योंकि तब फडणवीस मराठा आरक्षण को लागू करने का सारा श्रेय खुद लेना चाहते थे. लेकिन अब शिवसेना सारा दोष उन पर डाल कर खुश है.

बुनियादी तर्क

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने 9 सदस्यों वाली. एम.जी गायकवाड कमीशन के निष्कर्षों पर सवाल खड़े कर दिए हैं, जिन्होंने पूरे महाराष्ट्र में घूमकर मराठा समुदाय पर अध्ययन किया, सार्वजनिक मीटिंग बुलाई और लगभग 2 लाख प्रतिनिधियों ,ग्राम पंचायत सदस्यों, सार्वजनिक अधिकारियों और गैर-मराठी लोगो से मिलकर उनका मत लिया था .

व्यापक परामर्श के आधार पर कमीशन ने पाया कि मराठाओं को राज्य सहायता की जरूरत है. उनके निष्कर्ष के अनुसार 50% मराठा मिट्टी के घरों में रहते हैं, सिर्फ 35% को प्राथमिक शिक्षा मिली है और लगभग 13.5% अनपढ़ है ,77% मराठा परिवार कृषि से जुड़ा हुआ है -जिनमें से अधिकतर छोटे किसान या कृषि मजदूर हैं और सबसे जरूरी बात की 38% मराठा परिवार गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करता है जबकि राज्य का औसत 24% है.

कमीशन ने पाया कि महिलाओं की दशा अभी भी कमजोर और दयनीय है. इस योद्धा समुदाय का इतिहास रहा कि मर्द युद्ध में लड़ने जाएंगे और दुश्मन सेना से महिलाओं की 'रक्षा' होनी चाहिए. मराठों ने अपना स्वाभिमान खो दिया है जिसे -कमीशन ने सुझाया- सामाजिक एवं आर्थिक पिछड़े वर्ग के अंतर्गत आरक्षण देकर वापस जगाया जा सकता है.

उदारीकरण के बाद बदलती आर्थिक संरचना ने उद्योग से जुड़े रोजगार को महाराष्ट्र के शहरों तक रोक दिया है और खेती में भी व्यापक बदलाव आया है. लगातार जारी कृषि संकट, शैक्षणिक संस्थाओं और सरकारी रोजगार में जबरदस्त प्रतियोगिता ने इस समुदाय को उसके पुराने रुतबे से दूर कर दिया है. लगता है आरक्षण ही इलाज है.

इसके बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र में घटते रोजगार और पब्लिक यूनिवर्सिटियों के घटते स्तर को देखते हुए आरक्षण सबसे अच्छा जवाब नहीं लगता. जब मराठा जाति को इंडियन हुमन डेवलपमेंट सर्वे डाटा के कास्ट स्पेक्ट्रम पर रखकर देखते हैं ,जैसा अर्थशास्त्री डॉ अश्विनी देशपांडे ने किया ,तब मराठा जाट और पटेल के समान ही दिखते हैं- ब्राह्मणों से नीचे प्रति व्यक्ति खपत ,ब्राह्मणों जितने गरीब लेकिन यकीनन SC और ST से अच्छी स्थिति में.

मराठा आरक्षण कि यह पहेली सामाजिक- आर्थिक लाभ को तराशने की है इस तर्क में मेरिट है कि मराठा समुदाय बड़े हिस्से का हकदार है लेकिन राजनेता -मुख्यत: मराठा एलिट- चाहते हैं कि यह उनके हिस्से से नहीं दूसरों के हिस्से से आए . सुप्रीम कोर्ट ने इसको नकार दिया है .

(स्मृति कोप्पिकर एक मुंबई-बेस्ड वरिष्ठ पत्रकार है जो राजनीति ,शहर, जेंडर और मीडिया पर लिखती है. उनका ट्विटर हैंडल है @smrutibombay. यह एक ओपिनियन पीस है .यहां लिखे विचार लेखिका के अपने हैं. द क्विंट का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 08 May 2021,03:46 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT