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गुजरात के बाद केंद्र में मोदी सरकार को सत्ता में आए हुए 42 महीने हो गए हैं. अब कार्यकाल पूरा होने में 18 महीने ही बचे हैं. जैसा कि किसी भी सरकार के साथ होता है, बीजेपी को भी लग रहा है कि उसने जो भी अच्छे काम किए हैं, उनकी वजह से उसे और पांच साल मिलने चाहिए.
लेकिन कड़वा सच यह है कि महंगाई को कंट्रोल में रखने के अलावा इस सरकार की कोई ऐसी बड़ी उपलब्धि नहीं है, जिससे वोटर विपक्ष को रिजेक्ट कर दें. इसकी पहली झलक गुजरात में दिखी, जहां बीजेपी को मामूली अंतर से जीत मिली. सच तो यह है कि 2012 की तुलना में उसकी सीटें 115 से घटकर 99 रह गईं.
2018 में मध्य प्रदेश और कर्नाटक में चुनाव होने हैं. मध्य प्रदेश में बीजेपी लगातार तीन चुनाव जीत चुकी है. कर्नाटक में वह कांग्रेस को चुनौती दे रही है. इन चुनावों से साफ हो जाएगा कि हवा का रुख क्या है. मध्य प्रदेश में चौहान सरकार का मानना है कि उसका कोई भरोसेमंद विकल्प नहीं है. अगर वहां कोई मजबूत विपक्ष खड़ा होता है, तो बीजेपी हार भी सकती है या उसकी कम सीटों के साथ सत्ता में वापसी होगी.
इसके अलावा, गुजरात में जिस तरह से मोदी का जादू चला,उसकी उम्मीद कर्नाटक में नहीं की जा सकती.
पिछले 42 महीनों में बीजेपी ने करीब-करीब हर वोटर वर्ग को नाराज किया है, भले ही वह इसे न माने. इसकी सबसे बड़ी वजह आर्थिक है. वह नए रोजगार के मौके नहीं बना पाई. ऐसी नीतियां बनाई गईं, जिनसे लोगों की आमदनी कम हुई है.
बीजेपी को लग रहा है कि हिंदुत्व, राम मंदिर और गोरक्षा जैसे सामाजिक-धार्मिक मुद्दों से इसकी भरपाई हो जाएगी. उसका सांगठनिक ढांचा भी बहुत मजबूत है और इस मामले में विपक्ष काफी कमजोर है. लेकिन यह अफसोस की बात है, क्योंकि बीजेपी अच्छे दिनों के वादे के साथ सत्ता में आई थी.
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दरअसल, इसके लिए जिन बुनियादी बदलावों की जरूरत थी, वो नहीं किए गए. मोदी सरकार ने जो रिफॉर्म किए, उनका सिलसिला गलत था. अब उसके लिए ऐसे बुनियादी बदलाव करना संभव नहीं है. इसलिए जहां तक इकनॉमी की बात है, बीजेपी सरकार असहाय है और उसे सिर्फ यह मनाना चाहिए कि कुछ ऐसा न हो, जिससे अर्थव्यवस्था की हालत और खराब हो जाए.
यह भी सच है कि नोटबंदी और जीएसटी को गलत तरीके से लागू करने के अलावा उसने कोई बड़ी गलती नहीं की, लेकिन उसने आर्थिक माहौल बदलने के लिए कोई नाटकीय पहल भी नहीं की है. आर्थिक मामलों में पहले वाली ही नीतियां चल रही हैं और इसके लिए मौजूदा सरकार दोषी है. ऐसा लगता है कि उसका दिल कमजोर है.
पिछले 42 महीनों में एक बड़ा विरोधाभास दिखा है. मोदी कमाल के नेता हैं, जिन्हें देश की जनता पसंद करती है. वह बहुत मेहनती हैं, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था को बदलने के लिए कुछ नहीं कर पाए हैं.
2014 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने इसका वादा किया था और इसी वजह से लोगों ने उन्हें चुना था. गलती कहां हुई, यह बाद में इतिहासकार बताएंगे, लेकिन कई बार ऐसे मामलों में जवाब बड़ा आसान होता है.
केंद्र में गुजरात मॉडल के फेल होने की वजह यह नहीं है कि छोटे राज्य की तुलना में पूरे देश को संभालना अलग होता है. इसकी वजह यह है कि देश को सर्वसम्मति से चलाया जाता है, जबकि राज्यों में मनमानी चल जाती है.
यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान 6 साल तक जीएसटी को रोकने वाले मोदी भारतीय लोकतंत्र की यह बुनियादी बात भूल गए. 2019 आम चुनाव में बीजेपी को इसकी कीमत बहुमत गंवाकर चुकानी पड़ सकती है.
(लेखक आर्थिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखने वाले वरिष्ठ स्तंभकार हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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