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मॉब लिंचिंग और फेक न्यूज जैसे मसलों पर केंद्र की एनडीए सरकार अचानक ज्यादा ही संजीदा नजर आ रही है. इस सिलसिले में सचिवों की कमेटी ने मॉब लिंचिंग के खिलाफ सख्त कानून बनाने की सिफारिश की है.
पिछले महीने ‘भीड़तंत्र’ के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद 23 जुलाई, 2018 को केंद्रीय गृह सचिव राजीव गाबा की अध्यक्षता में ये कमेटी बनाई गई थी.
गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाले ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कमेटी ने कहा है:
इसी चर्चा में ये बात सामने आई कि खासतौर पर मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून में प्रावधान जोड़ने पर
आसान हो जाएगा.
हालांकि फिलहाल ये सिर्फ सिफारिशें हैं. ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स ये रिपोर्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपेगा और कानून में बदलाव के लिए संसद की मंजूरी लेनी होगी. यानी दिल्ली अभी दूर है.
29 जुलाई, 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नमो ऐप के जरिए वाराणसी के बीजेपी कार्यकर्ताओं से बात की. बातचीत के दौरान सोशल मीडिया पर भी चर्चा हुई. पीएम ने साफ कहा कि लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल गंदगी फैलाने के लिए न करें. पीएम मोदी ने कहा:
वैसे ये दिलचस्प है कि पीएम मोदी अपने आधिकारिक हैंडल पर करीब 2000 लोगों को फॉलो करते हैं. जिनमें से कईयों पर ट्रॉलिंग के आरोप लग चुके हैं. ये सवाल भी उठे हैं कि क्या पीएम उन ट्रॉल्स को अनफॉलो ना करके उन्हें शह नहीं दे रहे?
21 अगस्त, 2018 को WhatsApp के सीईओ क्रिस डेनियल से मुलाकात में आईटी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि उनके मंच से फैलने वाली अफवाहों को रोकने की जिम्मेदारी WhatsApp की है.
सरकार ने WhatsApp को आगाह किया कि यदि सुधार रोकथाम न हुई तो कम्पनी को भारत में आपराधिक घटनाओं के बढ़ावा देने में मदद का जिम्मेदार भी ठहराया जा सकता है.
जुलाई 2018 में आई वेब पोर्टल इंडियास्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक
साफ है कि जमीनी हकीकत सरकार के ‘तीखे तेवरों’ से मेल नहीं खाती. ऐसे में ये सवाल उठाना लाजिमी है कि
मॉब लिंचिंग और फेक न्यूज पर सरकार वाकई सीरियस है या फिर सब दिखावा है?
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Published: 30 Aug 2018,05:25 PM IST