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हम शर्मिंदा हैं- यही है मुजफ्फरपुर शेल्टर होम रेप केस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बयानों का लब्बोलुआब. हालांकि अब ऐसा दिखने लगा है कि नीतीश दोषियों पर कार्रवाई को लेकर गंभीर है. जब प्रदेश सरकार में मंत्री मंजू वर्मा के इस्तीफे की मांग हर ओर उठने लगी, तब जाकर उनका इस्तीफा लिया गया.
दरअसल, इस मामले में नीतीश सरकार की छवि को बड़ा नुकसान पहुंचा है. पहले तो महीनों लंबी चुप्पी ने कुमार की तुरंत एक्शन लेने वाले नेता के रूप में छवि पर चोट पहुंचाई, वहीं शुरुआत में मंजू वर्मा के साथ में खड़े होने से उनके 'सुशासन' और 'न्याय के साथ विकास' जैसे दावों पर सवाल उठने लगे.
इसके अलावा, बीजेपी ने भी इस गंभीर मामले पर मोटे तौर पर चुप्पी की चादर ओढ़ ली है. बिहार बीजेपी का कोई भी नेता इस बारे में खुलकर बोलने को तैयार नहीं. आखिर क्या है बिहार में एनडीए की इस रहस्मयी चुप्पी का राज?
सूत्रों की मानें, तो कारण सियासी ही है. दरअसल, आम चुनावों से ठीक पहले नीतीश और बीजेपी अपनी सोशल इंजीनियरिंग या चुनावी गणित को बिगाड़ना नहीं चाहते.
इस मामले में कार्रवाई की सबसे ज्यादा मांग समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के खिलाफ हो रही थी. दरअसल, मुजफ्फरपुर के गिरफ्तार चाइल्ड प्रोटेक्शन ऑफिसर रवि रौशन की पत्नी शिभा सिंह ने इस मामले में सीधे-सीधे मंजू वर्मा के पति चंदेश्वर वर्मा पर आरोप लगाए हैं. उनके मुताबिक पेशे से ठेकेदार चंदेश्वर वर्मा पर बार-बार मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में आने का आते थे.
पुलिस सूत्रों की भी मानें, तो वर्मा और ठाकुर के बीच लगातार बात होती थी. पुलिस के मुताबिक इस साल जनवरी से 31 मई के बीच दोनों ने 17 बार फोन पर बात की थी. हालांकि, मंजू वर्मा ने इन आरोपों से साफ इनकार किया है. साथ ही, मंत्री मैडम के मुताबिक कुशवाहा जाति से आने की वजह से उनके खिलाफ साजिश की जा रही है.
अपने बचाव के लिए जाति कार्ड को खेलने को लेकर जब मुख्यमंत्री से सवाल किया गया, तो नीतीश ने इसकी आलोचना की बजाए पहले वर्मा का ही साथ दिया. उन्होंने कहा, "हर किसी को अपनी बात कहने का अधिकार है. जब विपक्ष के नेताओं को हम पर बेबुनियाद आरोप लगाने का अधिकार है तो मंजू वर्मा को भी अपने बचाव का अधिकार है."
हालांकि, जनता दल (यूनाइटेड) के नेताओं के मानें तो कुशवाहा जाति से आना ही उनकी सबसे बड़ी ढाल है.
पार्टी के एक बड़े नेता ने बताया, “2015 में कुशवाहा समुदाय ने हमें बढ़-चढ़ वोट दिया था. इस बारे में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी उपेंद्र कुशवाहा भी बुरी तरह पिटे थे. अब फिर चुनाव है और उपेंद्र कुशवाहा ने अपना अलग राग गाना शुरू कर दिया है. मंजू वर्मा को हटाने से कुशवाहा को हमारे वोट बैंक मे सेंघ लगाने का मौका मिल जाएगा. ऐसे में मंजू वर्मा को हटाना आत्मघाती कदम हो सकता है. वैसे भी अभी जांच पूरी कहां हुई है?”
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो इस मामले में अपनी चुप्पी तोड़ दी है, लेकिन अब भी बिहार से बीजेपी का कोई बड़ा नेता कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है. आमतौर पर ऐसे मामलों में खुलकर बोलने वाले बीजेपी नेता इस मामले को लेकर असहज रूप से चुप हैं. सभी का एक बयान है कि कानून अपना काम कर रहा है.
करीब दो साल पहले आरजेडी विधायक राजवल्लभ यादव पर बलात्कार का आरोप लगाने वाली नाबालिग के घर का दौरा कई बीजेपी नेताओं ने किया था. वहीं इस मामले में अब तक किसी बीजेपी नेता ने पीड़ित बच्चियों से मिलने की भी जहमत नहीं उठाई है.
दरअसल, बिहार में भूमिहार समाज की तादाद तो काफी कम है, लेकिन कई जिलों में जमीन, कारोबार और समाज पर इनका दबदबा है.
2014 के आम चुनाव और 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में इस समाज ने बीजेपी को मुखर समर्थन दिया था. इसीलिए बीजेपी नेताओं का एक वर्ग इस मामले सिर्फ ब्रजेश ठाकुर पर ही कार्रवाई से नाराज है. ऊंची जातियों से आने वाले इन नेताओं के मुताबिक, अगर सिर्फ आरोप के आधार पर नीतीश कुमार ब्रजेश ठाकुर पर कार्रवाई कर सकते हैं, तो इसी आधार पर मंजू वर्मा पर भी कार्रवाई जायज है.
हालांकि, सुशील मोदी और उनके खेमे के ज्यादातर बीजेपी नेता फूंक-फूंककर कदम रखना चाहते हैं. उन्हें डर है कि इस मामले में ज्यादा 'चुस्ती' से बिहार में गठबंधन को नुकसान पहुंच सकता है. साथ ही, मामले पर ज्यादा बयानबाजी से कई दूसरे नेताओं तक भी जांच की आंच पहुंच सकती है. इससे पार्टी को नुकसान ज्यादा होगा.
(निहारिका पटना की जर्नलिस्ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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