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लगभग ठीक पांच साल पहले, संसद के 2018 के मानसून सत्र के दौरान विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव (No confidence motion) पेश किया था. यह अविश्वास प्रस्ताव सत्ता पक्ष के 325 वोटों के मुकाबले विपक्ष के 126 वोटों से फेल हो गया.
लेकिन अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान चली 12 घंटे की लंबी बहस ने 2019 में लोकसभा की लड़ाई के लिए माहौल तैयार कर दिया. और जिस तरह बीजेपी ने अविश्वास प्रस्ताव को संसद के अंदर धराशायी किया था, पार्टी ने 2014 से भी बड़े बहुमत के साथ 2019 का लोकसभा चुनाव भी जीता.
लेकिन..
बीजेपी फिर से सदन में जीतेगी और वो पहले से ही निचले सदन में अपनी आधिकारिक ताकत से अधिक वोट हासिल करने का दावा कर रही है. लेकिन इस बार विपक्ष बेहतर तैयारी में दिख रहा है. विपक्ष एक नैरेटिव से लैस है.
शायद ही किसी ऐसे प्रस्ताव ने पूरे देश और यहां तक की अंतर्राष्ट्रीय ध्यान को आकर्षित किया हो, जिसका भाग्य पहले ही तय हो चुका है.
मणिपुर में जारी हिंसा और दो कुकी महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाए जाने और बलात्कार किए जाने के वीडियो पर रिपोर्ट के साथ, विदेशी मीडिया मोदी सरकार के खिलाफ आगामी अविश्वास मत को भी व्यापक रूप से कवर कर रही है- जबकि नतीजे क्या होंगे, यह सबको पता है.
तो 2018 और 2023 के बीच क्या बदलाव आया है? तीन कारक अंतर दर्शाते हैं.
पहला वह मुद्दा है जिसके कारण अविश्वास प्रस्ताव आया है. एक वायरल वीडियो ने आखिरकार देश की अंतरात्मा को झकझोर दिया और आधिकारिक उदासीनता, या जैसा कि अब आरोप लगाया जा रहा है, आधिकारिक मिलीभगत के बीच मणिपुर में लगभग तीन महीने से चले आ रहे गृहयुद्ध की भयावहता के प्रति देश की आंखें खोल दीं.
दूसरा यह कि युद्ध का मैदान अब नया है- एकजुट विपक्ष और बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के बीच यह पहली झड़प होगी.
तीसरा है राहुल गांधी की अनुपस्थिति. मोदी के पसंदीदा पंचिंग बैग और उनके मुख्य आलोचक सदन से गायब रहेंगे. मानहानि के एक मामले में दो साल की सजा सुनाए जाने के बाद उनकी सदस्यता छीन ली गई है.
आइए अब इनपर एक-एक कर बात करें. 2018 में, विपक्ष, विशेष रूप से कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ मोदी की छवि खराब करने की उम्मीद में, राफेल जेट सौदे को अपने अविश्वास प्रस्ताव का मुख्य फोकस बनाया. यह रणनीति बुरी तरह फ्लॉप हो गई क्योंकि प्रधानमंत्री ने कांग्रेस शासन में हुए गलत कामों और दोहरेपन की एक लंबी सूची जारी कर दी.
यूपीए सरकार के खिलाफ अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की यादें अभी भी ताजा थीं. बहस में मोदी का दबदबा था और उन्होंने इसका पूरा फायदा उठाया.
इस बार, मुद्दे गंभीर हैं और उस सरकार की नब्ज को कुरेद रहे हैं जो राष्ट्रीय सुरक्षा और महिला सशक्तिकरण की बात करके गर्व करती है. मणिपुर में भीड़ में असहाय दिखती महिलाओं के वीभत्स वीडियो और प्रशासन द्वारा पुलिस शिकायतों पर आंखें मूंद लेने के साफ सबूतों ने "बेटी बचाओ" और "नारी शक्ति" के नारे का मजाक उड़ाया है.
म्यांमार के साथ खुली सीमा/ओपन बॉर्डर शेयर करने वाले एक संवेदनशील सीमावर्ती राज्य में कानून और व्यवस्था का पतन हुआ है और वहां अराजकता का माहौल है. यह स्थिति भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा प्रतिष्ठान में मौजूद कमियों को उजागर करती है. क्या खुफिया एजेंसियां इस क्षेत्र में अराजकता कायम रखने के खतरों से बेखबर थीं? ये ऐसा क्षेत्र है जिसने हिंसक विद्रोही आंदोलनों को देखा है और दशकों से अलगाव की गहरी भावना को बरकरार रखा है.
देर से ही सही, डैमेज कण्ट्रोल की कवायद चल रही है, लेकिन जैसे विपक्ष को उनके शासित राज्यों में महिला सुरक्षा के सवालों से घेरने की कोशिश चल रही है, उससे यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार के साथ-साथ बीजेपी (जो मणिपुर में सत्ता में है) बचाव की मुद्रा/डिफेंस मोड में है.
चलिए अब दूसरे अंतर पर बात करते हैं. पांच साल पहले, विपक्ष बिखरा हुआ था (हालांकि तब एकता के बारे में बहुत चर्चा हो रही थी) और कांग्रेस खुद को महत्व देने की भावना से ग्रस्त थी. आज विपक्ष 26 दलों की एकीकृत शक्ति के रूप में बहस में उतर रहे हैं. उनके गठबंधन का एक नाम है, 'INDIA'.
विपक्ष हरदिन सुबह साथ आकर बैठक कर रहा है और संसद में सुचारू रूप से आपस में को-ऑर्डिनेट कर रहा है. विपक्ष अपनी तीसरी बैठक की तैयारी भी कर रहा है जहां सीट बंटवारे पर बातचीत से महत्वपूर्ण नतीजे निकलने की उम्मीद है.
मौजूदा सत्र में यह रणनीति कई मौकों पर सफल होती दिखी, जहां विपक्ष बीजेपी की मुखर शक्ति के खिलाफ अपनी पकड़ बनाने में सक्षम रहा है. इसका एक उदाहरण उस समय देखने को मिला जब विपक्ष ने राज्यसभा में मोदी सरकार की विदेश नीति की सफलताओं पर बयान देते विदेश मंत्री एस जयशंकर को चुप करा दिया था.
और आखिर में सरकार के लिए सबसे बड़ी बाधा: राहुल गांधी की अनुपस्थिति. चलिए 2018 की बहस को वापस याद करते हैं जब राफेल सौदे को लेकर मोदी पर तीखा हमला करने के बाद राहुल गांधी पीएम के पास गए और उन्हें गले लगाया. वह अपनी सीट पर वापस गए, विजयी भाव से मुस्कुराए, और ज्योतिरादित्य सिंधिया की ओर आंख मारी, जो उस समय भी कांग्रेस में थे.
न केवल राहुल गांधी अपने इस प्रयास में गैर-गंभीर दिखे, बल्कि उनकी मुस्कुराहट और आंख मारने से किसी स्कूली बच्चे की शरारत का आभास हुआ. ऐसा प्रतीत हुआ कि इसने बीजेपी द्वारा उन्हें 'इमैच्योर वंशवादी' बताने पर एक प्रकार से मुहर लगा दी है.
अब इसबार यह देखना दिलचस्प होगा कि मोदी उस व्यक्ति की अनुपस्थिति को कैसे संभालते हैं जिन्होंने उनके कुछ सबसे आक्रामक भाषणों को प्रेरित किया है. बीजेपी का मानना है कि मोदी बनाम राहुल बाइनरी उसके लिए सबसे प्रभावी नैरेटिव है. इस बार पीएम समेत बीजेपी के दूसरे वक्ताओं को अपने इस फॉर्मूले में बदलाव करना होगा.
अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष और बीजेपी दोनों के लिए एक परीक्षा है. यह सदन में पास नहीं होगा. लेकिन इसपर बहस यह तय करेगी कि चुनाव से पहले धारणा की लड़ाई कौन जीत रहा है. भले ही इसबीच हिंसा की आग मणिपुर को निगलती रहे.
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