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ओडिशा में 2 जून की शाम को हुई बालासोर ट्रेन दुर्घटना (Balasore train accident) इस सदी में भारत की सबसे घातक रेल दुर्घटना है. इसमें आधिकारिक रूप से अबतक 275 लोग मारे गए हैं और 1,000 से अधिक घायल हुए हैं. इन दोनों पैसेंजर ट्रेनों में 3,400 से अधिक यात्री सफर कर रहे थे.
हालांकि विस्तृत जांच के बाद ही हादसे की सटीक वजह सामने आने की संभावना है. यह जांच नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत आने वाला रेलवे सुरक्षा आयुक्त करेंगे. लेकिन दूसरी तरफ इस दुर्घटना में योगदान देने वाले कई फैक्टर खुद इस बीमार रेलवे सिस्टम में ही मौजूद हैं.
मैनपावर की किल्लत: भारतीय रेलवे गैर-राजपत्रित/ नॉन गैजेटेड कर्मचारियों की कमी से घिरा हुआ है - लगभग 3.12 लाख पद (14.75 लाख ग्रुप सी पदों में से) खाली पड़े हैं. इसके अतिरिक्त, स्वीकृत 18,881 राजपत्रित/ गैजेटेड काडर पदों में से 3,018 विभिन्न विभागों में रिक्त हैं. मैनपावर की इस किल्लत के कारण लोकोमोटिव पायलटों को निर्धारित 12 घंटे से अधिक काम करना पड़ रहा है.
ऑल-इंडिया लोकोमोटिव रनिंग स्टाफ एसोसिएशन बेहतर कामकाजी परिस्थितियों और आठ घंटे के काम के लिए लंबे समय से आंदोलन कर रहा है. कई मामलों में, लोकोमोटिव पायलटों को छुट्टी, आराम से वंचित कर दिया गया है. यहां तक कि कई मामलों में उन्हें शौचालय जाने तक के लिए समय नहीं मिलता है.
हालांकि, वित्त वर्ष 2022-23 में रेलवे ने 2.40 लाख करोड़ रुपये का रिकॉर्ड रेवेन्यू कमाया. लेकिन इसके बावजूद रिक्त पद खाली पड़े हैं.
वैसे तो 1947 से ही भारत में ट्रेनों की संख्या में वृद्धि हो रही है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में विशेष रूप से ट्रेनों की संख्या में बड़ी वृद्धि देखी गई है. उदाहरण के लिए, 2024 के आम चुनावों से पहले 200 शहरों को वंदे भारत ट्रेनों से जोड़ने का प्रस्ताव है (रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के बयान के अनुसार) और सरकार ने 15 अगस्त तक 75 वंदे भारत ट्रेनों को चलाने का लक्ष्य रखा है .
फिर भी, इस लक्ष्य को पूरा करने की क्षमता की कमी के कारण स्टैंडर्ड 16-कोच के बजाय आठ-कोचों वाले ट्रेन सेटों का रोलआउट हो रहा है- सिर्फ इसलिए कि नई ट्रेनों की शुरूआत हो जाए और जनता का दिखाया जा सके.
इसके अलावा, अक्टूबर 2022 में, रेल मंत्रालय ने 500 ट्रेनों की गति बढ़ा दी. वर्तमान में, रेलवे लगभग 3240 मेल/एक्सप्रेस ट्रेनें, 3000 पैसेंजर ट्रेनें और 5600 उपनगरीय/सबअर्बन ट्रेनें चलाता है. हालांकि, पटरियों सहित रेलवे के बुनियादी ढांचे का एक समान विस्तार नहीं हुआ है. नतीजतन, कई ट्रेनें उनके बीच में कम समय के अंतराल के साथ चल रही हैं. यह स्थिति सटीक नियंत्रण की मांग करती हैं. यही कारण है कि नियंत्रण प्रणाली की एक छोटी सी विफलता भी आपदा की संभावना बना देती है.
"यात्री अनुभव" को बढ़ाने पर जोर: रेलवे में "यात्री अनुभव" को एक अनुचित महत्व दिया जा रहा है. इसमें 'आधुनिकीकरण' ट्रेन के अंदरूनी हिस्से के साथ-साथ 1,275 रेलवे स्टेशन शामिल हैं. कई विशेषज्ञ सवाल करते हैं कि ट्रेन के अंदरूनी हिस्से को एक हवाई जहाज की नकल क्यों करनी चाहिए या प्रस्तावित रेल टर्मिनल "दूसरे दर्जे के शॉपिंग मॉल" की तरह क्यों दिखने चाहिए? वो भी यह देखते हुए कि रेलवे के सबसे बड़े ग्राहक गरीब जनता है. एक्सपर्ट यह भी बताते हैं कि वंदे भारत की तुलना में लिंके हॉफमैन बुश (LHB) कोच सस्ते, मजबूत, ज्यादा स्पेस वाले, यदि उच्च गति नहीं तो समान गति से यात्रा करने में सक्षम, और कम रखरखाव लागत वाले हैं.
इसके अलावा, ट्रेन की गति सिर्फ ट्रेन पर निर्भर नहीं है. इसके लिए अच्छे ट्रेन के अलावा ट्रैक को अपग्रेड करने की भी आवश्यकता है. यही कारण है कि 160 किमी प्रति घंटे की अनुमानित गति वाली कुछ वंदे भारत ट्रेनें 64 किमी प्रति घंटे की औसत गति से यात्रा कर रही हैं. फिर भी, ध्यान प्रगति का भ्रम पैदा करने पर रहता है.
यात्री सुरक्षा पर कम जोर: समकालीन/ कंटेम्पररी सिग्नलिंग और ट्रेन टक्कर विरोधी (एंटी-कॉलिजन) प्रणालियों के कार्यान्वयन की गति रेलवे यातायात के विस्तार के अनुरूप नहीं है. जाहिर है, "यात्री अनुभव" और 1,275 रेलवे स्टेशनों के लिए चल रहे निजीकरण आधुनिकीकरण अभियान को प्राथमिकता दिया जा रहा है जबकि ट्रेन और यात्री सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं है.
रेलवे का राजनीतिकरण: भारतीय रेलवे का 170 वर्षों का अपना लंबा इतिहास है और यह दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में से एक को चलाता है. यह एक सक्षम संगठन है जिसमें अलग-अलग पदों पर बड़ी संख्या में असाधारण पेशेवर बैठे हैं. हालांकि, इस संगठन को जिन मुख्य समस्याओं का सामना करना पड़ा है, उनमें से एक 'ट्रेनों का राजनीतिकरण' है. यह एक ऐसा चलन है जो पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है. नेताओं ने ट्रेन की संख्या में वृद्धि और "विकास" के रूप में "यात्री अनुभव" में सुधार का दावा करके अधिकतम राजनीतिक लाभ निकालने की कोशिश की है. इसके अलावा नई ट्रेनों के उद्घाटन के लिए डायवर्ट किए जा रहे धन, समय, अधिकारियों के ध्यान और रेलवे के ओवरऑल फोकस जैसे मुद्दे भी हैं.
रेलवे बोर्ड कीं मेंबर जया वर्मा सिन्हा ने ओडिशा ट्रेन दुर्घटना के क्रम को समझाया. उन्होंने कहा कि केवल एक ट्रेन, कोरोमंडल एक्सप्रेस, को ही दुर्घटना का सामना करना पड़ा. इसके इंजन/बोगियों ने लूप लाइन पर मालगाड़ी को टक्कर मारी, और फिर बगल की मेनलाइन पर यशवंतपुर-हावड़ा ट्रेन के रास्ते में आ गई. उन्होंने कहा कि कवच भी इस दुर्घटना को नहीं रोक सकता था क्योंकि तेज रफ्तार ट्रेन के सामने अचानक एक बाधा (मालगाड़ी) आ गई थी.
रेल दुर्घटना स्थल का दौरा करते हुए, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि जिम्मेदार लोगों को "कड़ी सजा दी जाएगी". यह देखा जाना बाकी है कि क्या उस सूची में वे लोग शामिल होंगे जिन्होंने रेलवे में मौजूद रिक्तियों को भरने में संकोच किया, सिर्फ तामझाम पर जोर देने के लिए यात्री सुरक्षा की उपेक्षा की, या तेजी से नई ट्रेन शुरू करने से संबंधित समस्याओं को रेखांकित करने के अपने संवैधानिक कर्तव्य को पूरा नहीं किया?
हमारे देश की त्रासदी हमारी धुंधली यादों में भी बसी है- इस त्रासदी ने महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न से जुड़ी खबरों को दबा दिया है. 2024 के चुनाव नजदीक आने के साथ, एक और घोटाला, एक अन्य घटना, या दुर्घटना इस आपदा को भी दबा सकती है. ऐसे में एक बार फिर हादसे की सार्वजनिक जांच, जवाबदेही और सुधार की मांग विफल हो जायेगी.
(कुलदीप सिंह भारतीय सेना से रिटायर्ड ब्रिगेडियर हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी का सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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