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Bahanaga Train accident: ओडिशा के बालासोर में 2 जून को हुए भीषण रेल हादसे पर अब सवाल उठ रहे है. हादसे की वजह क्या है? किसकी लापरवाही से हादसा हुआ? जिम्मेदार लोगों पर क्या कार्रवाई हो रही है या होगी? ये सब पूछा जा रहा है. हालांकि, इन तमाम सवालों का जवाब अभी तक सामने नहीं आया है लेकिन रेलवे ने कुछ बातें बताई हैं, उसको हम आपको आसान भाषा में समझाते हैं.
रेलवे बोर्ड के संचालन और व्यवसाय विकास के सदस्य जया वर्मा सिन्हा ने रविवार (4 जून) को बताया कि बालासोर के बहानगा बाजार स्टेशन पर ट्रिपल ट्रेन की टक्कर कैसे हुई. जया वर्मा सिन्हा ने स्टेशन के मैप के जरिए पूरी घटना के दृश्य को समझाया.
उन्होंने कहा, " स्टेशन पर चार लाइनें हैं. दो सीधी मुख्य लाइन हैं. इस लाइन पर ट्रेनें नहीं रुकती हैं, यानी अगर किसी ट्रेन को स्टेशन पर नहीं रूकना होता है तो वो सीधे निकल जाती है. अन्य दो लाइन को लूप लाइन कहा जाता है. अगर हमें किसी ट्रेन को रोकना होता है तो हम उसे लूप लाइन पर रोक देते हैं. दुर्घटना के समय, दो मेल एक्सप्रेस ट्रेनें स्टेशन से अलग-अलग दिशाओं में गुजर रही थीं."
स्टेशन पर, मुख्य लाइनें बीच में होती हैं और लूप लाइनें मुख्य लाइनों के दोनों ओर होती हैं.
यहां पर उस दिन दो मेल गाड़ी को मेन लाइन से अलग-अलग दिशा में पास होना था. दुर्घटना के समय स्टेशन की अलग-अलग लूप लाइन पर दो मालगाड़ी खड़ी थी. एक मालगाड़ी में कोयला भरा हुआ था.
चेन्नई की तरफ से बेंगलुरु-हावड़ा एक्सप्रेस, बैंगलोर से आ रही थी और हावड़ा जा रही थी. ये गाड़ी कुछ सेकेंड पहले कोरोमंडल से आ रही थी. इसकी स्पीड 126 Km/h थी, अधिकतम 130 Km/h हो सकती थी.
अप मेन लाइन से हावड़ा (शालीमार) से चेन्नई जाने के लिए कोरोमंडल एक्सप्रेस आ रही थी, जिसकी स्पीड़ 128Km/h थी. ट्रेन का रूट क्लीयर था, हर तरह से सिग्नल ग्रीन था.
कोरोमंडल और बेंगलुरु-हावड़ा एक्सप्रेस ट्रेन के लिए दो मुख्य लाइनों को मंजूरी दी गई. सब कुछ तैयार था, सिग्नल हरा था. हरे रंग के सिग्नल का मतलब है कि चालक के लिए आगे का रास्ता साफ है और चालक अधिकतम स्पीड़ का उपयोग कर सकता है.
जया सिन्हा ने कहा कि ओवरस्पीडिंग नहीं थी, सिग्नल हरा था.
जया सिन्हा ने कहा, "किसी कारण से, जिसकी जांच की जा रही है, कोरोमंडल एक्सप्रेस पर एक दुर्घटना हुई थी. प्रारंभिक रिपोर्ट में कुछ खराबी का संकेत दिया गया था, लेकिन जब तक रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की जाती, मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगी."
उन्होंने कहा कि कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि तीन ट्रेनें दुर्घटनाग्रस्त हो गई हैं. केवल एक ट्रेन, कोरोमंडल दुर्घटनाग्रस्त हुई है और इसका इंजन और कुछ बोगी लूप लाइन पर खड़ी मालगाड़ी (जिसमें कोयला भरा था) पर चढ़ गये.
जया सिन्हा ने कहा कि ट्रेन की स्पीड काफी तेज थी, लेकिन मालगाड़ी में कोयला भरा था तो वो काफी भारी होती है, ऐसे में उसने टक्कर के असर को कम कर दिया और सारा प्रभाव ट्रेन पर आ गया.
कोरोमंडल के पटरी से उतरे डिब्बे दूसरी मेनलाइन पर चले गए, जहां से यशवंतपुर-हावड़ा गुजर रही थी और यशवंतपुर के आखिरी कुछ डिब्बे प्रभावित हुए.
घटना शाम करीब 6:55 बजे हुई थी.
कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन एलएचबी कोच की थी. जया सिन्हा ने कहा, "एलएचबी कोच बहुत सुरक्षित हैं और वे पलटते नहीं हैं. लेकिन इस मामले में ऐसा हुआ कि पूरा प्रभाव कोरोमंडल एक्सप्रेस पर पड़ा और कोई भी तकनीक इस तरह के हादसे को नहीं बचा सकती."
इससे पहले रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने रविवार को कहा कि ओडिशा के बालासोर में ट्रेन दुर्घटना में इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में बदलाव के कारण कम से कम 290 यात्रियों की मौत हो गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए.
ANI से बात करते हुए मंत्री ने कहा कि रेलवे सुरक्षा आयुक्त ने मामले की जांच की है और घटना के कारणों के साथ-साथ इसके लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान की है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के 'कवच' प्रणाली की अनुपस्थिति के सवाल का जवाब देते हुए, वैष्णव ने यह भी कहा कि दुर्घटना का एंटी कॉलिजन सिस्टम से कोई लेना-देना नहीं है.
उन्होंने कहा, "यह पूरी तरह से अलग मुद्दा है, इसमें प्वाइंट मशीन, इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग शामिल है. इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग के दौरान जो बदलाव हुआ, वह इसके कारण हुआ."
इसे समझने के लिए हमें पहले यह जानना होगा कि इंटरलॉकिंग क्या है.
इंटरलॉकिंग सिस्टम एक सुरक्षा तंत्र को संदर्भित करता है जो रेलवे जंक्शनों, स्टेशनों और सिग्नलिंग बिंदुओं पर ट्रेन की आवाजाही के सुरक्षित और कुशल संचालन को सुनिश्चित करता है. इसमें आमतौर पर सिग्नल, पॉइंट (स्विच) और ट्रैक सर्किट का एकीकरण शामिल होता है.
इंटरलॉकिंग सिस्टम यह सुनिश्चित करता है कि पॉइंट -ट्रैक के मूवेबल सेक्शन जो ट्रेनों को एक ट्रैक से दूसरे ट्रैक पर दिशा बदलने की अनुमति देता है -एक ट्रेन के उनके ऊपर से गुजरने से पहले ठीक से संरेखित और सही स्थिति में लॉक हो जाते हैं.
ट्रैक सर्किट ट्रैक पर स्थापित विद्युत सर्किट होते हैं, जो ट्रेन की उपस्थिति का पता लगाते हैं. वे यह निर्धारित करने में मदद करते हैं कि ट्रैक का एक हिस्सा भरा हुआ है या खाली है, इंटरलॉकिंग सिस्टम ट्रेन की मूवमेंट को कंट्रोल करने में सक्षम बनाता है.
इंटरलॉकिंग सिस्टम सिग्नल, पॉइंट और ट्रैक सर्किट की स्थिति की निगरानी करता है और असुरक्षित स्थितियों को रोकने के लिए एकीकृत करता है, जैसे दो ट्रेनें एक ही ट्रैक या जंक्शन पर आवजाही की दिक्कत से निपटने के लिए उपयोग किया जाता है.
इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग इंटरलॉकिंग तकनीक का एक आधुनिक रूप है जिसमें सॉफ्टवेयर और इलेक्ट्रॉनिक घटकों के माध्यम से ट्रेन की आवाजाही का नियंत्रण और पर्यवेक्षण किया जाता है. यह सिग्नलिंग, पॉइंट और ट्रैक सर्किट को प्रबंधित और समन्वयित करने के लिए कंप्यूटर, प्रोग्रामेबल लॉजिक कंट्रोलर (PLCs) और संचार नेटवर्क का उपयोग करता है.
जैसा कि रेल मंत्री ने सुझाव दिया था, इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में 'परिवर्तन' गलत सिग्नलिंग या अनुचित रूटिंग हादसे का कारण है, जिसने कोरोमंडल एक्सप्रेस को मेन लाइन से दूर धकेल दिया और 128 किलोमीटर प्रतिघंटे की स्पीड से गुजर रही ट्रेन कोयल से लदी खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई और दुर्घटनाग्रस्त हो गई. उधर, मालगाड़ी पटरी से बिल्कुल भी नहीं हटी.
रेल मंत्री ने कहा कि दुर्घटना का सही कारण रेलवे सुरक्षा आयुक्त द्वारा विस्तृत तकनीकी जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद ही पता चलेगा.
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