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नाम बहुत काम का: BJP की राष्ट्रवाद की राजनीति का जवाब है 'INDIA'

INDIA Vs NDA: इस गठबंधन को मोदी के करिश्मे की ताकत का मुकाबला करने के लिए एक कल्पनाशील नारे और नैरेटिव की जरूरत है.

आरती जेरथ
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>नए गठबंधन को PM मोदी की ताकत का मुकाबला करने के लिए एक कल्पनाशील नारे और नैरेटिव की जरूरत.</p></div>
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नए गठबंधन को PM मोदी की ताकत का मुकाबला करने के लिए एक कल्पनाशील नारे और नैरेटिव की जरूरत.

(फोटो: चेतन भाकुनी/द क्विंट)

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बेंगलुरु (Bangalore) में विपक्ष की दूसरी एकता बैठक में पक्के इरादे का मजबूत जज्बा दिखा, जिसे भारतीय जनता पार्टी (BJP) की डराने-धमकाने वाली चालें डिगा पाने में नाकाम रहीं.

पटना (जहां पहला विपक्षी सम्मेलन हुआ था) और बेंगलुरु के दौरान BJP ने दोहरा दांव चला. इसने महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) को तोड़कर, विपक्ष की सबसे मजबूत कड़ी को तोड़ दिया और ताकतवर मराठा नेता शरद पवार के बनाए महा विकास अघाड़ी (MVA) को बिखेर कर रख दिया.

फिर, 26 विपक्षी दलों के सम्मेलन से कुछ ही दिन पहले BJP ने विस्तारित राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की एक बड़ी बैठक बुलाई, जिसमें 38 साझेदारों का जमावड़ा हुआ. इनमें कुछ पुराने थे तो कई नए थे.

अगर BJP को विपक्ष को चौंका देने और रणनीति तय करने में उनके परेशान होने की उम्मीद थी, तो वह नाकाम रही. विपक्ष ने जवाबी हमला करते हुए दो दांव चले, जिनसे उसकी राह आसान हो गई.

पहला, इसने सोनिया गांधी को विपक्षी एकता के केंद्रीय व्यक्तित्व के रूप में दोबारा स्थापित कर दिया. दूसरा, इसने नए गठबंधन के लिए एक नाम का ऐलान करके चौंका दिया: INDIA या इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (Indian National Developmental Inclusive Alliance). यह काफी लुभावना है और इसकी उपयोगिता पर अभी बहुत चर्चाएं होंगी.

विपक्षी एकता को नए मायने मिले

विपक्ष ने ऐलान के साथ फौरन दो प्वाइंट की बढ़त हासिल कर ली:

  • पहला, अगर गठबंधन इसे समझदारी से इस्तेमाल करता है, तो यह नाम राष्ट्रवाद के खेल में माहिर BJP को बचाव की मुद्रा में डाल सकता है. ऐसे में कह सकते हैं कि BJP से उसका मुद्दा छीना जा रहा है.

  • दूसरा, इसने एक लुभावनी हेडलाइन दे दी. (I.N.D.I.A बनाम NDA, हर तरफ टीवी और अखबार इसी हेडलाइन से पटे हैं) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीखे हमले वाले दो भाषणों से कड़े मुकाबले के बीच विपक्ष को खबरों में बनाए रखा. मोदी ने दूसरे पक्ष को “भ्रष्ट परिवारवादी” कहा था.

2024 की चुनावी लड़ाई से पहले, एक परसेप्शन की लड़ाई लड़नी और जीतनी है. इसकी रफ्तार अब तेज हो रही है क्योंकि विपक्ष ने एकजुट होने का जज्बा दिखाकर खुद को मुकाबले में बनाए रखा है, जिसका 2019 के आम चुनाव से पहले अभाव था.

अभी तो यह शुरुआत है और विपक्ष को नरेंद्र मोदी जैसे नेता के सामने दमदार चुनौती पेश करने की उम्मीद जगाने से पहले कई मंजिलें तय करनी होंगी.

वैसे, बेंगलुरु ने इशारा दे दिया है कि लोगों की नजरों से दूर काफी गतिविधियां चल रही हैं और एकता के लिए एक ढांचा तैयार हो चुका है. यह इस बात से भी साबित होता है कि सभी 26 दल सर्वसम्मति से गठबंधन के लिए एक नाम पर सहमत हुए.
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नाम को सार्थक करना

हालांकि खामोशियों में रंजिशें भी छिपी होती हैं. विपक्ष को सीट-बंटवारे का एक फॉर्मूला तैयार करना होगा, जिस पर सभी दल रजामंद हों. यह देखते हुए कि कई राज्य ऐसे हैं जिनमें इनमें से कई पार्टियां राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं, यह आसान नहीं होने वाला है.

उदाहरण के लिए:

  • दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस आमने-सामने हैं.

  • पश्चिम बंगाल में कांग्रेस, लेफ्ट और तृणमूल कांग्रेस (TMC) के बीच तलवारें खिंची हुई हैं.

  • UP में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (SP) कांग्रेस को रियायतें देने को तैयार नहीं है, जिसे 2021 के विधानसभा चुनावों में 2% से कम वोट मिले थे.

हालांकि, एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मोटे तौर एक सहमति बनी है. ऐसा लगता है कि विपक्ष ने भी परसेप्शन की लड़ाई की बारीकियों को समझ लिया है. जाहिर तौर पर, इसने अपनी भविष्य की योजनाओं का धीरे-धीरे खुलासा करने का फैसला किया है ताकि हर बैठक में सुर्खियों में छाने वाली घोषणाएं हों.

विपक्ष के लिए दूसरा बड़ा काम है, जो ज्यादा कठिन साबित हो सकता है. नवगठित गठबंधन को मोदी के करिश्मे की ताकत का मुकाबला करने के लिए एक कल्पनाशील नारे और नैरेटिव की जरूरत होगी.

I.N.D.I.A नाम का मकसद मतदाताओं को BJP से अपनी ओर खींचना है, खासकर उत्तर भारत के राज्यों में जहां कांग्रेस और BJP की आमने-सामने की सीधी टक्कर होगी. उत्तर भारत के कई निर्वाचन क्षेत्रों में BJP ने 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट शेयर के साथ जीत हासिल की.

मोदी को चुनौती देने के लिए किसी चेहरे के अभाव में एक लुभावना नारा और एक दमदार नैरेटिव जरूरी हो जाता है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केंद्रीय भूमिका में हैं

यह ध्यान देने वाली बात है कि सोनिया गांधी फिर से सक्रिय हो गई हैं. उनकी सेहत अच्छी नहीं है और उनके चुनाव लड़ने या धुआंधार प्रचार करने की उम्मीद नहीं है. मगर उन्हें आगे रखकर, कांग्रेस आम सहमति बनाने में न केवल उनके तजुर्बे और कौशल का इस्तेमाल करने की उम्मीद कर रही है, बल्कि उनकी मौजूदगी राहुल गांधी को सुर्खियों से अलग भी रखती है.

BJP चाहे जितनी कोशिश कर ले, 2024 के चुनाव को मोदी बनाम राहुल बनाना मुश्किल होगा. विपक्षी गठबंधन की नाम भर की प्रमुख के रूप में सोनिया के रहते ऐसा नहीं होगा. यह BJP के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि इससे वह अपना बोलने का मुख्य मुद्दा खो देगी.

BJP मोदी की अगुवाई में 2024 की दौड़ जीतने की तैयारी में दिख रही है, लेकिन वह घबराहट के अप्रत्याशित संकेत दिखा रही है. उदाहरण के लिए, यह अब तक एजेंडा तय करने के बजाय विपक्ष के कदमों पर प्रतिक्रिया देती आ रही है.

अजित पवार को NCP से निकालकर लाने और उन्हें उपमुख्यमंत्री पद तथा उनकी पसंद के विभागों की पेशकश करने के साथ-साथ अचानक विस्तारित NDA की बैठक बुलाने का कदम, शायद बीते नौ साल में अपनी तरह का पहला संकेत है कि BJP दूसरे पक्ष के घटनाक्रम पर बहुत बारीकी से नजर रख रही है.

मोहभंग से निपटने के लिए BJP को एक विस्तृत योजना की जरूरत है

BJP हमेशा आमने-सामने की सीधी लड़ाई में, जैसा कि विपक्ष पेश करना चाहता है, खराब प्रदर्शन करती है. बहुकोणीय मुकाबला इसके लिए फायदेमंद है. इसलिए विपक्ष को एक साथ आने से रोकना BJP के हित में होगा.

इसके साथ ही BJP ने तमाम छोटी, जाति-आधारित और क्षेत्रीय पार्टियों को अपने साथ मिलाकर सिरदर्द बढ़ा लिया है. यह अपने उम्मीदवारों की कीमत पर ही उन्हें टिकट देगी.

इसे साझेदारों के बीच खींचतान से भी निपटना होगा. उदाहरण के लिए राम विलास पासवान के बेटे चिराग और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के बीच मनमुटाव है. हालांकि उन्होंने NDA की मेगा मीटिंग में मेल-मिलाप का दिखावा किया और चिराग ने अपने चाचा के पैर छुए, लेकिन BJP नेताओं को फिक्र है कि दोनों के बीच प्रतिद्वंद्विता बिहार में नीतीश कुमार के महागठबंधन से लड़ने की उनकी उम्मीदों के लिए आत्मघाती न साबित हो.

इसी तरह, BJP ने भले ही ने शिवसेना और NCP के अलग हुए धड़ों को अपने साथ मिलाकर MVA को कमजोर कर दिया है, लेकिन साथ ही इसने अपने खेमे में उन लोगों के बीच नाराजगी पैदा कर दी है, जिन्हें नए लोगों के लिए जगह बनाने को मजबूर किया जा रहा है.

यह साफ है कि आने वाले हफ्तों और महीनों में चुनावी सरगर्मी बढ़ने के साथ और ज्यादा ड्रामा और एक्शन होगा. 2024 तक अभी और दिलचस्प माइंड गेम देखने को मिलने वाला है.

(आरती आर जेरथ दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @AratiJ है. यह लेखक के निजी विचार हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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