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पाकिस्तान (Pakistan) में चल रहे आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और संवैधानिक संकट के बीच सबकी निगाहें सेना प्रमुख (Army Chief) जनरल असीम मुनीर (General Asim Munir) पर टिकी हैं. ऐसा इसलिए है, क्योंकि पाकिस्तान एक ऐसा देश है जहां मार्शल लॉ का इतिहास रहा है. तथ्य है कि आज पाकिस्तान की स्थिति की मूल वजह मिलिट्री और सैन्य तानाशाह हैं, लेकिन इसके उलट अब उनको यह सुनहरा हल मिल गया है कि पाकिस्तान के यह हालात भ्रष्ट राजनेताओं द्वारा पैदा की गई समस्यायों की वजह से हैं.
हालांकि, सत्ता पर कब्जा और खुद के फायदे के लिए खुले तौर पर काम करते हुए तानाशाहों और सत्तावादियों ने हमेशा देश के सर्वोत्तम हित में काम करने का ढोंग किया है. लेकिन वह एक अलग कहानी है.
पाकिस्तान और जाहिर तौर पर भारत भी, पाकिस्तान में मार्शल लॉ लगाए जाने की उम्मीद पाल रहा है. "वहां अब क्या बचा है?" ये सवाल वे इस तरह से पूछते हैं कि जैसे कि अभी जो कुछ भी पतन हो रहा है या खराब हालात चल रहे हैं, यह (मार्शल लॉ) उसका समाधान है.
खैर, न केवल मुझे लगता है कि मार्शल लॉ कोई समाधान नहीं है, बल्कि मेरा मानना है कि आसीम भी इस (मार्शल लॉ) बारे में नहीं सोच रहे होंगे और पाकिस्तान में कोई सैन्य तख्तापलट नहीं होगा. इससे पहले कि मैं अपना तर्क रखूं, चलिए थोड़ा पीछे चलते हैं.
पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश (CJP) ओमर अट्टा बंदियाल और सुप्रीम कोर्ट के तीन अन्य जजों के खिलाफ सोमवार को कदाचार (अनैतिक आचरण) की शिकायत सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल (न्यायाधीशों के आचरण पर निर्णायक निकाय) में दायर की गई थी. अन्य तीन जज- जस्टिस मजाहिर अली अकबर नकवी, इजाज उल अहसन और मुनीब अख्तर हैं. चीफ जस्टिस के साथ मिलकर पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान को बचाने के लिए खुले तौर पर किसी भी स्तर तक जाने के इनके प्रयासों के लिए इन्हें "हमखियाल" के रूप में जाना जाता है.
एक प्राइवेट शिकायत दर्ज कराकर, सरकार ने दायर किए जाने वाले रेफरेंस में देरी करने की अल्वी की क्षमता को नाकाम कर दिया है. इसके साथ इस साल के अंत में पाकिस्तान के वरिष्ठ न्यायाधीश (जस्टिस काजी फैज ईसा) को अगला चीफ जस्टिस बनने से रोकने के लिए सीजेपी को समय भी नहीं दिया है.
बंदियाल की साजिश का खुलासा तब हुआ जब उन्हें जस्टिस ईसा की सुओ मोटो सुनवाई पर विस्तृत नोट मिला और शनिवार को प्रकाशित होने के कुछ घंटों के भीतर सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट से फैसला हटा लिया गया. इसके साथ ही इमरान खान, जब वे प्रधानमंत्री थे, द्वारा जस्टिस ईसा के खिलाफ लगाई गई याचिका "क्यूरेटिव रिव्यू" की सुनवाई तय की गई.
चूंकि दस सदस्यीय पीठ ने जस्टिस ईसा को दोषमुक्त कर दिया था और अपने मामले को फेडरल बोर्ड ऑफ रेवेन्यू (FBR) को भेजने के अपने पहले के फैसले को गलत घोषित कर दिया था. इसलिए यह अभूतपूर्व याचिका (सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपील खारिज किए जाने के बाद ऐसी किसी चीज का कोई प्रावधान नहीं है) पिछले एक साल से धूल फांक रही थी.
तो ऐसा नहीं है कि बंदियाल ने बिना किसी वजह के असंवैधानिक, और स्पष्ट रूप से दुर्भावनापूर्ण, समस्याओं का पिटारा खोला है. ईसा के मुख्य न्यायाधीश का पद ग्रहण करने के बाद इमरान खान को अवैध, असंवैधानिक राहत देने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास करने की उम्मीद नहीं है, जैसा कि उन्हें पिछले मुख्य न्यायाधीश निसार, खोसा, शेख, गुलजार और वर्तमान में बंदियाल के कार्यकाल में राहत मिलती आ रही है.
इस समय, सुप्रीम कोर्ट ईसा और बंदियाल समूहों के बीच क्रमशः 8-7 से बंटी हुई है. बंदियाल की पॉलिटिकल इंजीनियरिंग की मंशा न केवल उनके हाल के कार्यों से स्पष्ट है, बल्कि उनके (और उनके पूर्ववर्तियों के) रिकॉर्ड से भी है, जब तक कि वे बेंच पर अल्पमत में नहीं थे तब तक कभी भी किसी भी महत्वपूर्ण संवैधानिक मामलों में ईसा और अन्य स्वतंत्र दिमाग वाले न्यायाधीशों को शामिल नहीं किया गया.
सभी कानूनी और संवैधानिक मानकों के अनुसार स्पष्ट रूप से इमरान खान अयोग्यता की ओर बढ़ रहे हैं और शायद जेल में जाने के लिए भी. इमरान खान को राजनीतिक अस्तित्व का मौका देने के लिए न्याय के रास्ते में बंदियाल बाधा डालना चाहते हैं, वह अपने कार्यकाल के दौरान अगला आम चुनाव भी कराना चाहते हैं ताकि खान अपनी काल्पनिक लोकप्रियता का उपयोग करके दो-तिहाई बहुमत से सत्ता में आ सकें और इमरान खान न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 से बढ़ाकर 68 करने के लिए संविधान में संशोधन कर सकें. यह कदम खान और बंदियाल के राज करने और रिक्ग्नेशन से परे जाकर संविधान बदलने की दिशा में होगा, यह उत्तर कोरिया/चीन की तरह एक निरंकुश एकदलीय और राष्ट्रपति शासन की ओर जाने जैसा होगा.
सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर इन सब में कहां हैं? वह कोर्ट में जजों की तरह टिप्पणी नहीं करते हैं, वह रैलियों या प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजनेताओं की तरह बयान नहीं देते हैं, न ही वह एंकरों के समूहों को बुलाते हैं और "थ्योरी या सिद्धांतों" की ब्रीफिंग करते हैं, और न ही वह पूर्व COAS बाजवा की तरह अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए पत्रकारों को आधा सच और आधा झूठ लीक करते हैं.
इसलिए, उनके रवैये और उसके संभावित भविष्य के कार्यों को निर्धारित करने के लिए उनकी पिछली और वर्तमान कार्रवाइयां या उनकी कमी को अत्यधिक सावधानीपूर्वक पढ़ना होगा.
सबसे पहले, यह कहा जाता है कि तत्कालीन डीजी आईएसआई के रूप में मुनीर बुशरा बीबी के भ्रष्टाचार पर तैयार की गई एक फाइल तत्कालीन पीएम इमरान खान के पास ले गए थे और उनसे अनुरोध किया था कि वे अपने घर और पार्टी में व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म करें. जिसका नतीजा यह निकला कि उनका ट्रांसफर कर दिया गया और फैज हमीद को एक दिन के भीतर ही डीजी आईएसआई नियुक्त किया गया. तर्क के अनुसार एक व्यक्ति, जो खुद आर्थिक रूप से भ्रष्ट है, वह अपने आका (बॉस) से झगड़ा मोल नहीं लेगा, इसके बजाय वह आंखें मूंद लेगा या उसको (बॉस को) सपोर्ट करेगा. इससे साबित होता है कि मुनीर वित्तीय तौर पर साफ-सुथरे हैं और इमरान खान के प्रति उनमें कोई सहानुभूति नहीं है.
दूसरा, तथ्य यह है कि अनुशासन का पालन करते हुए मुनीर इसे राजनीतिक मुद्दा न बनाकर चुपचाप डीजी आईएसआई के अपने पद से चले गए. आईएसआई में हुए बड़े बदलाव पर किसी ने गौर भी नहीं किया. यह दर्शाता है कि वह गहरे किस्म के व्यक्ति हैं जो हार और निराशा में नहीं रहते बल्कि एक और चुनौती का सामना करने के लिए जीते हैं.
तीसरा, उन्हें एक प्रमुख कोर कमांडर के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने आलाकमान को "तटस्थ" होने के लिए मजबूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और पूरी तरह से यह जानते हुए कि घटनाओं का सामान्य क्रम देश को इमरान खान से छुटकारा दिलाएगा, मुनीर ने राजनीति को स्वाभाविक रूप (अच्छे या बुरे तरीके) से विकसित होने दिया.
चौथा, उन्होंने इमरान खान द्वारा उनसे मिलने, उनके साथ "बातचीत" करने और चुनावी राजनीति में दखल देने या उसकी ओर से प्रक्रिया के प्रयासों को खारिज किया है.
अंत में, एक तथ्य यह भी है कि जनरल बाजवा, फैज, अजहर, और इमरान खान आदि द्वारा उनके (मुनीर के) आर्मी प्रमुख बनने के खिलाफ साज़िशों के जो हमले किए गए थे उस पर उन्होंने (मुनीर ने) गरिमा के साथ जीत हासिल की है, जो यह दर्शाता कि वे ऐसे व्यक्ति हैं जो आखिरी तक लड़ता है.
हालांकि मौजूदा सरकार ने भयानक गलतियां की हैं, ऐसे में उन्हें पता है कि अब कोई विकल्प नहीं है. एक विभाजित सेना, एक विभाजित राजनीति, अपने पूर्ववर्तियों द्वारा बनाया गया एक फ्रेंकस्टीन मॉन्स्टर (एक व्यक्ति जो कुछ ऐसा बनाता है जो उसके विनाश का कारण बनता है), सोशल मीडिया की एक ऐसी दुनिया जिसे अंततः नियंत्रित नहीं किया जा सकता, हिचकोले खाती अर्थव्यवस्था, एक ऐसी दुनिया जिसका पाकिस्तान के लिए कोई सामरिक महत्व नहीं है, और युद्ध विहीन क्षेत्र जो किसी भी नाजायज महत्वाकांक्षा को बनाए रखने में मदद कर सकता है; ये सब मुनीर को विरासत में मिला है. महत्वपूर्ण बात यह है कि उनका सरकार के साथ कोई टकराव नहीं है. यह एक कब्र और दो संभावित शवों का मामला नहीं है जैसा कि भुट्टो के साथ जिया या नवाज के साथ मुशर्रफ के मामलों में हुआ था.
इसके अलावा, मुनीर को तालिबान की विकट चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है. पाकिस्तान में तालिबान फैला है, यह कानून प्रवर्तन एजेंसियों और सेना और आईएसआई के कर्मियों पर रोजाना हमले कर रहा है. मुनीर को पता है कि उनकी सेना तालिबान, बलूच, राजनयिक अलगाव और सभी लोगों से एक ही समय में नहीं लड़ सकती है, वो भी तब जब उसके पास पैसे भी नहीं हैं.
आसिम मुनीर जानते हैं कि बाजवा-फैज-इमरान के मार्शल लॉ ने ही पाकिस्तान को आज इस मुकाम पर पहुंचाया है, इसलिए वे वर्तमान राजनीतिक और संवैधानिक संकट के समाधान के तौर पर मार्शल लॉ लागू नहीं करेंगे. वह कैंसर को ठीक करने के लिए कैंसर की ओर देखने वाले नहीं हैं. इसलिए, तार्किक निष्कर्ष यह है कि मुनीर न तो बंदियाल और इमरान खान के साथ मिलकर पाकिस्तान के लोगों के खिलाफ एक और डकैती की साजिश रचने के लिए कुछ करेंगे और न ही वे मार्शल लॉ लगाएंगे.
(गुल बुखारी, पाकिस्तानी पत्रकार और मनवाधिकारों के लिए काम करने वाली एक्टिविस्ट हैं. उनका ट्विटर हैंडल @GulBukhari है. इस लेख में व्यक्त विचार उनके अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं.)
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