मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019सियासी संकट के बीच पाकिस्तान के नए सेना चीफ भारत के लिए बेहतर नीति बना पाएंगे?

सियासी संकट के बीच पाकिस्तान के नए सेना चीफ भारत के लिए बेहतर नीति बना पाएंगे?

Pakistan: मौजूदा पाकिस्तानी चीफ रिटायर हो रहे हैं, अफवाहें गर्म हैं कि उन्हें पद पर बने रहने के लिए कहा जा सकता है.

डॉक्टर तारा कार्था
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>सियासी संकट के बीच पाकिस्तान के नए सेना चीफ भारत के लिए बेहतर नीति बना पाएंगे?</p></div>
i

सियासी संकट के बीच पाकिस्तान के नए सेना चीफ भारत के लिए बेहतर नीति बना पाएंगे?

फोटो- क्विंट हिंदी

advertisement

एक बार फिर से यह वैसा ही वक्त है. पाकिस्तान (Pakistan) को नया सेना प्रमुख मिलना है. कोई और लोकतांत्रिक देश होता तो यह शायद सामान्य नियुक्ति वाला मामला होता लेकिन पाकिस्तान में नए सेना प्रमुख का चुना जाना टीवी डिबेट बन जाता है.  

जैसे-जैसे इमरान खान (Imran Khan) सड़कों पर आगे बढ़ रहे हैं. पाकिस्तान में हर गलत चीज और हर गलती के लिए सेना पर आरोप मढ़ा जा रहा है. आर्मी चीफ के लिए ना बताया जाने वाले विशेषणों का इस्तेमाल किया जा रहा है. यह सब अभूतपूर्व है.

इसके अलावा, यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कौन आर्मी चीफ बनता है. जिस तरीके से यह सब होता है उससे इसका भविष्य तय होगा. भारत के लिए यह सब काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. आखिरकार, पड़ोस में उठापटक कोई सामान्य बात तो नहीं है.

पाकिस्तान संकट में इमरान की भूमिका को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया

सेना प्रमुख के खिलाफ इमरान खान का गुस्सा दरअसल इमरान की सत्ता वापसी में सेना प्रमुख की तरफ से मदद से इनकार किए जाने के कारण है. इसलिए इमरान सेना प्रमुख के खिलाफ हैं, पूरी सेना के नहीं. इसकी जड़ में अमेरिका में पाकिस्तानी दूतावास है. कथित तौर पर वहां के राजदूत को अमेरिकी अधिकारी ने धमकाया कि इमरान से छुटकारा पाओ.

हालांकि उस केबल को कभी भी सार्वजनिक रूप से नहीं दिखाया गया.. लेकिन अक्सर भीड़ में इसे लहराया जाता रहा है. ISI प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम अपने साक्षात्कार में, अब कहते हैं कि इमरान खान ने वास्तव में उस केबल को खारिज कर दिया था, लेकिन वही समस्या की जड़ है.

आज कोई भी सेना पर विश्वास नहीं करता है. जनरल ने पुष्टि की है कि उन्हें पक्षपाती बताए जाने के बाद भी उन्होंने बातचीत की कोशिश की थी. ये शक्तिशाली तर्क हैं, लेकिन जनता इस पर यकीन नहीं कर रही है.  जैसा कि इमरान खान के चारों ओर मिल रही भारी भीड़ और उनपर कथित हत्या के प्रयास पर राष्ट्रीय हंगामे से स्पष्ट है .

समस्या की जड़ इमरान नहीं है. सच तो यह है कि राजनीति में सेना का दखल इस कदर जिंदगी की सच्चाई बन गई है कि लोग अब सही या गलत देश की हर बुराई को उसके कंधों पर थोपने के लिए तैयार रहते हैं.  

पाकिस्तान में आर्मी चीफ का चयन- कठिन निर्णय

जैसा कि ISI के एक पूर्व प्रमुख कहते हैं.  हर कोई इस 'हाइब्रिड' मॉडल से थक गया है, जो दरअसल बिल्कुल ही काम नहीं करता है. यह भी हो सकता है कि लोग अंतहीन भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन से थक चुके हों, जिसमें इमरान खान ने भी बड़ी भूमिका निभाई.  

ऐसे में हर कोई चाहता है कि किसी ना किसी पर आरोप मढ़ दिया जाए. सबसे सही होता है कि अमेरिकी हस्तक्षेप पर आरोप लगा दिया जाए. सेना और अमेरिकी की मिलीभगत सबसे बढ़िया ब्लेमगेम है. यह कोई संयोग नहीं है कि सोशल मीडिया पर #GoBajwago और #BajwaTraitor ट्रेंड कर रहा है. और कोई आश्चर्य नहीं कि नवाज शरीफ और उनके भाई लंदन में गुपचुप बैठकें कर रहे हैं. अपने अगले कदम पर.  

इस सबकी वजह से एक नए/पुराने सेना प्रमुख का चयन बेहद जटिल मामला बन गया है. चीफ खुद सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि वो रिटायर होने वाले हैं. इस बात के सबूत भी हैं कि उनकी विदाई का दौर शुरू हो गया है, लेकिन अफवाहें गर्म हैं कि उन्हें बने रहने के लिए कहा जा सकता है.

बाजवा की पहेली

2019 में जनरल बाजवा को जब सर्विस एक्सटेंशन मिला था तब भी मामला कोर्ट पहुंचा था. कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था और पूछा था कि इस तरह सर्विस एक्सटेंशन के लिए संसद से पारित कानून या अनुमति दिखाया जाए. हालांकि बाद में कानूनी इजाजत मिल गई और 64 साल तक सर्विस में रहने का प्रावधान दिया गया. बाजवा अभी 61 साल के हैं, जो उन्हें तकनीकी रूप से फिर से चीफ के रुप में रहने की इजाजत देता है.

इमरान को ठीक यही डर है. यह बाजवा की 'तटस्थता' थी जिसके कारण उन्हें बाहर कर दिया गया था. इसीलिए, वो आरोप लगा रहे हैं कि बाजवा अमेरिकी मोहरा हैं. पाकिस्तान में अब तक का सबसे खराब आरोप जो सबसे चुनिंदा पंजाबी अपशब्दों से भी खराब है. लेकिन बाजवा को चीफ बनाने का मतलब शरीफ सरकार के लिए और मुसीबत होगा.

एक, यह वरिष्ठ अधिकारियों की एक और किश्त को दरकिनार कर देगा जो ऐसे समय में सेवानिवृत्त होंगे जब सेना पहले से ही (कथित तौर पर) खान को हटाने के मुद्दे पर और देश को चलाने के तरीके पर बंटी हुई है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

आर्मी चीफ के चुनाव की कानूनी प्रक्रिया

नियमों के मुताबिक जब लेफ्टिनेंट-जनरल या समकक्ष से ऊपर के रैंक के अधिकारी की नियुक्ति में सरकार के पास वरिष्ठतम जनरल को नियुक्त करने और नियमों का सख्ती से पालन करने का विकल्प है. संविधान के अनुच्छेद 243 (3) के अनुसार, राष्ट्रपति 'परामर्श' के बाद प्रधानमंत्री की सिफारिश पर सेना प्रमुखों की नियुक्ति करता है.

प्रक्रिया यह है कि चार-पांच वरिष्ठ अधिकारियों की सूची और उनकी फाइलें मंत्रालय PMO को भेजता है. अधिकांश देशों में, ऐसी सूची को मंत्रालय सावधानी से देखता है. पाकिस्तान में, यह सिर्फ पोस्ट ऑफिस की तरह है. इसके बाद दिलचस्प हिस्सा आता है. पीएमओ को इस पर विचार-विमर्श करना होता है और मौजूदा चीफ के साथ एक 'अनौपचारिक' मीटिंग होनी चाहिए. 

खान ने इस प्रक्रिया को बनाए रखने की कोशिश की जब उन्होंने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि वह आईएसआई प्रमुख के लिए संभावित उम्मीदवारों का 'साक्षात्कार' करना चाहते हैं. संविधान में यहां कोई स्पष्ट नियम नहीं हैं, लेकिन आम तौर पर चीफ की 'सलाह' पर भरोसा करते हुए पीएम का ऐसा करना काफी अभूतपूर्व था. यदि इस नई 'परंपरा' का पालन किया जाता है, तो शरीफ को सेना प्रमुख की 'अनौपचारिक सिफारिश' को स्वीकार करना होगा और बस उसी के साथ जाना होगा, या समान रूप से संवैधानिक रूप से, (और अधिक पारदर्शिता के साथ) वह सिर्फ वरिष्ठतम को चुन सकते थे. यह सबसे सुरक्षित दांव है.  

परेशानी यह है कि वरिष्ठतम लेफ्टिनेंट जनरल मुनीर सेना प्रमुख के रूप में लगभग उसी समय सेवानिवृत्त होंगे. उन्हें 4 स्टार रैंक तक प्रोमोट किया जा सकता है. शरीफ जब इसे कानूनी मान्यता दे देंगे तो मुनीर पदभार संभाल सकते हैं. मुनीर सबसे कम समय तक सेवा देने वाले ISI प्रमुख थे, जब इमरान खान ने उन्हें अपने पसंदीदा लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद के पक्ष में बाहर कर दिया. इसलिए, मुनीर के पास इमरान जैसा कोई कारण नहीं है, बल्कि इसके खिलाफ है. जो उन्हें काफी पसंदीदा उम्मीदवार बनाता है.

वरिष्ठतम अधिकारी के नाम की सिफारिश ?

नवाज शरीफ भले ही कितने चतुर हों, .. लेकिन दस में से पांच सेना प्रमुखों को नियुक्त करने के बावजूद, अपने सभी विभिन्न कार्यकालों में, वे मुश्किलों से अछूते नहीं रहे हैं. वर्तमान स्थिति को देखते हुए जहां बाजवा (और उनके समर्थक) 'सलाह' दे सकते हैं कि किसे चुनना है, वह शायद उसी के साथ जाना पसंद करेंगे - खासकर जब से उन्हें अब उनकी वापसी के लिए एक राजनयिक पासपोर्ट जारी किया गया है.

यह पार्टी का गिफ्ट है. बाजवा करीबी विश्वासपात्र माने जाने वाले लेफ्टिनेंट जनरल आमिर की सिफारिश कर सकते हैं. वह आर्टिलरी रेजिमेंट से संबंधित हैं. वर्तमान में गुजरांवाला में XXX कोर की कमान संभाल रहे हैं, जो उन्हें जरूरी क्रेडिट देता है. फिर, सिंध रेजीमेंट से लेफ्टिनेंट जनरल शमशाद मिर्जा हैं, जो हालांकि, ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष बनने के लिए तैयार हैं.

असल में समस्या यह नहीं है कि बाजवा किसे नॉमिनेट करते हैं. वह जिस किसी को भी चुनेंगे, उसे 'गद्दार बाजवा' बताने वाली जनता संदेह की दृष्टि से देखेगी. इस तरह का संदेह, सशस्त्र बलों के भीतर और नीचे तक गहरा जाता है.  

‘मेरिट’ यह बहुत संदेहास्पद है  

ज्यादातर मामलों में, मेरिट एक प्रमुख फैक्टर होगा- कम से कम सार्वजनिक रूप से. इसके अलावा, इमरान खान का भी मुख्य मुद्दा यही रहा है कि एक सेना प्रमुख को सिर्फ मेरिट के आधार पर चुना जाना चाहिए .  समस्या यह है कि, जिन पर विचार किया जाना है , वे सभी न केवल समान वरिष्ठता के हैं, बल्कि काफी हद तक समान योग्यता वाले भी हैं. ऐसी स्थितियों में, 'मेरिट' बहुत सब्जेक्टिव मामला हो जाता है.  

बेशक, लेफ्टिनेंट जनरल नौमन महमूद हैं, जो सभी खांचों में फिट बैठते हैं. इसमें ISI में डीजी (एनालिसिस) के रूप में एक कार्यकाल शामिल है, जिसे हमेशा एक शीर्ष पद के रूप में देखा जाता है.  एक संवेदनशील समय में पेशावर कोर की कमान संभाली, और अमेरिका और ब्रिटेन की विदेशी खुफिया एजेंसियों के साथ संपर्क बनाने के लिए भी उनका नाम है.

फिर, लेफ्टिनेंट जनरल अजहर अब्बास हैं जो "भारत विशेषज्ञ", चीफ ऑफ जनरल स्टाफ (सीजीएस) है. एक शक्तिशाली 'हैंड्स-ऑन' पोस्ट हैं. इससे पहले, उन्होंने रावलपिंडी स्थित एक्स कॉर्प्स की न केवल विशाल राजनीतिक महत्व के साथ बल्कि कश्मीर में प्रत्यक्ष भूमिका के साथ कमान संभाली.  

इसमें कोई शक नहीं कि उनके पास चीफ का पूरा भरोसा था. लेकिन इस समय भारत वास्तव में एक प्राथमिकता नहीं है - कोई फर्क नहीं पड़ता कि नेता और सेना के लोग कितनी बार कश्मीर के बारे में बात करते हैं, लेकिन वह निश्चित रूप से  बाजवा के आदमी हैं. परेशानी सिर्फ लेफ्टिनेंट जनरल फैज हामिद से होगी. जो कि वास्तव में सबसे अनुभवी हैं. अफगान मामले में उनको महारत है. बल्कि DG ISI के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान अंदरुनी राजनीति को भी जानते हैं.

यदि आप एक 'हाइब्रिड' मॉडल को जारी रखना चाहते हैं, तो फैज हामिद सही है.. लेकिन शहबाज शरीफ उस व्यक्ति को नामित करना शायद ही पसंद करेंगे जिसने भ्रष्टाचार को घर घर चर्चा का विषय बना दिया.  

तो योग्यता, सबसे अच्छा मार्गदर्शक नहीं हो सकता है - कम से कम मुश्किलों में फंसे शरीफों के लिए.

क्या नए आर्मी चीफ पाकिस्तान की भारत नीति को जारी रखेंगे?

दरअसल इमरान अपने कैंपेन को बहुत तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं. अपनी पसंद के एक आर्मी चीफ की नियुक्ति पर उनका पूरा कैंपेन केंद्रित है.  यह दिखाता है कि संस्था देश को किस हद तक चला रही है. इमरान भले ही कुछ और कहें, लेकिन वह अलग नहीं हैं.  

लेकिन यह सच है कि प्रत्येक पाकिस्तानी नेता ने खुलकर हाथ आजमाया है - विशेष रूप से भारत नीति पर - विशेष रूप से नवाज शरीफ, जो इस चक्कर में जेल भी गए. इमरान भी उनसे अलग नहीं .  

इसलिए भारत के लिए यह चुनाव नहीं बल्कि चुनावी प्रक्रिया मायने रखती है. कोई भी सेना प्रमुख भारतीयों के प्रति अपनी धारणा के मामले में दूसरे से अलग नहीं है.  

हालांकि, एक प्रक्रिया जो उचित संवैधानिक प्रावधानों पर निर्भर करती है और लोकतंत्र को मजबूत करती है, वही पाकिस्तानियों और बाकी सभी के लिए सबसे अच्छा है. सिवाय शायद उस चीनी गुड़िया के जो शांत कोने में अपना सिर हिला रही है.. लेकिन वहां बेचैनी होना अच्छी बात है.    

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT