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पेट्रोल का दाम 1 जून 2021 को मुंबई में ₹100 प्रति लीटर के पार पहुंच गया. 29 अप्रैल को खत्म हुए 4 राज्यों और एक UT के चुनाव के बाद से अब तक पेट्रोल-डीजल के दामों को कम से कम 20 बार बढ़ाया गया है.
CMIE के डेटा के अनुसार लगभग एक करोड़ लोगों ने अपना रोजगार खो दिया है जबकि 2020 की अपेक्षा 97% जनसंख्या गरीब हुई है. आने वाले महीनों में तेल की बढ़ती कीमतों का असर महंगाई पर भी देखने को मिल सकता है.
हाल में पेट्रोल/डीजल के दामों में होती बढ़ोतरी का कारण वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दामों में 1 महीने के अंदर 6% का इजाफा है. अगली तिमाही में तेलों की मांग में तेजी की उम्मीद के बीच ब्रेंट क्रूड अभी प्रति बैरल 70 USD के ऊपर ट्रेंड कर रहा है.
यह GST के अंतर्गत स्वास्थ्य के लिए हानिकारक उत्पादों जैसे तंबाकू, सिगरेट, पान मसाला और लग्जरी आइटम पर लगने वाले टैक्स (28%) के दुगने से भी ज्यादा है. अभी पेट्रोल और डीजल GST के अंतर्गत नहीं आते.
नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में कच्चे तेलों के कम कीमतों का उपयोग करके राजस्व बढ़ाने की नीति जारी रखी है .सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कम कीमत का लाभ अंतिम उपभोक्ता को ना देकर उसका प्रयोग इंफ्रास्ट्रक्चर और समाज कल्याण के प्रोजेक्ट पर किया है .
कोविड-19 महामारी के समय कच्चे तेलों के दो दशकों में सबसे कम अंतरराष्ट्रीय दामों का लाभ उठाते हुए सरकार ने मार्च 2020 से मई 2020 के बीच पेट्रोल और डीजल के एक्साइज ड्यूटी में क्रमश ₹13 और ₹16 की बढ़ोतरी कर दी.
अगर एक्साइज ड्यूटी और VAT में मई 2014 से कोई बदलाव नहीं आता तो आज पेट्रोल का दाम ₹62 प्रति लीटर होता ,यानी आज के दाम से 35% कम.अगर हम एक्साइज और VAT में 6% की सामान्य महंगाई दर को लागू भी करते हैं तो आज पेट्रोल का दाम मई 2014 के स्तर से ऊपर नहीं होता.
महामारी के पहले भी भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी की ओर जा रही थी जब वित्त वर्ष 19-20 में जीडीपी ग्रोथ रेट मात्र 4.18% का ही रहा. वित्त वर्ष 19-20 में टैक्स कलेक्शन में 4% की कमी आई जबकि वित्त वर्ष 20-21 में 14% की.
इस दौरान सरकार के लिए फ्यूल पर एक्साइज ड्यूटी बहुत महत्वपूर्ण हो गया है जिसमें क्रमशः 4% और 26% की वृद्धि हुई है .फ्यूल पर एक्साइज ड्यूटी(टैक्स कलेक्शन के प्रतिशत के रूप में )जहां वित्त वर्ष 18-19 में 12% था वहीं यह वित्त वर्ष 20-21 में बढ़कर 20% हो गया है.
सरकार 6.8% के अनुमानित राजकोषीय घाटे के साथ आगे बढ़ रही है और उसके सामने राजस्व कलेक्शन के मोर्चे पर गलती की गुंजाइश नहीं है .इसमें कोई भी बड़ा शिफ्ट भारतीय रेटिंग के डाउनग्रेड का खतरा पैदा कर सकता है.
मेरे कैलकुलेशन के हिसाब से पेट्रोल डीजल की कीमतों में ₹5 प्रति लीटर की कमी से अर्थव्यवस्था को 62,500 करोड रुपए का बूस्ट मिल सकता है और उससे भी ज्यादा- मल्टीप्लायर इफेक्ट से.
चूंकि सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में कमी का लाभ उपभोक्ताओं को नहीं दिया था इसलिए अब कि जब सरकार के पास बहुत कम राजकोषीय गुंजाइश है तब उससे राहत की उम्मीद करना मुश्किल है.
(लेखक एक स्वतंत्र राजनैतिक टिप्पणीकार हैं और @politicalbaaba पर ट्विट करते हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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