ADVERTISEMENTREMOVE AD

केंद्र का न्योता,कश्मीर की विपक्षी पार्टियां 370 पर कर रहीं समझौता

जम्मू-कश्मीर चुनाव से लेकर वैक्सीन के रिकॉर्ड तक पर, द क्विंट के एडिटर इन चीफ राघव बहल की राय.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

प्रधानमंत्री मोदी का जम्मू-कश्मीर शांति प्रस्ताव सबका ध्यान अपनी तरफ खींच रहा है. प्रमुख राजनीतिक विपक्षियों ने इस प्रक्रिया में शामिल होने की सहमति दे दी है. प्रकट रूप से विशेष दर्जा बहाल करने की मांग पर सभी मौन हैं जिसे पहले आर्टिकल 370 के तहत गारंटी दी गई थी. यह राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि आप 2019 को याद करें तो तब ये नेता इस पर 'अड़े' थे कि वे 'विशेष दर्जे की पूर्ण बहाली' से कम कुछ भी नहीं मानेंगे, लेकिन अब 'पूर्ण राज्य' की 'एकमात्र' मांग ही मुख्य मुद्दा बन गया है.

यानी अब लगता है कि आर्टिकल 370 को उन लोगों के द्वारा चुपचाप त्याग दिया गया है जो कभी टस से मस होने को तैयार नहीं थे. यहां तक कि महबूबा मुफ्ती भी अब रजामंद लग रही है जो इस मुद्दे पर मुखर विरोधी थीं. क्यों? मुझे लगता है महीनों की हिरासत के बाद उन्होंने संकेत को स्पष्ट पढ़ लिया है.

खासकर जब से सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 370 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाले मामले को सुनने के लिए पहले स्वीकृति दी और फिर उसे अस्वीकार करते हुए निरस्त कर दिया. एक प्रकार से SC ने भी इस मुद्दे पर अपने दृढ़ मौन के माध्यम से फैसला सुना दिया है. तो एक अडिग केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट तथा अस्पष्ट कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के साथ आर्टिकल 370 की समाप्ति को भाग्य के रूप में सबने स्वीकार कर लिया है.

अब नारा "आगे बढ़ते हैं और पूर्ण राज्य लेते हैं" का हो गया है. शायद यह राजनैतिक रूप से सुविधाजनक और समझदारी भरा है. या तो आप डटकर लड़ाई कर सकते हैं-जिसके लिए आधुनिक भारतीय राजनेता बिल्कुल तैयार नहीं है- या आप राजनीतिक प्रक्रिया और सत्ता में वापस आ सकते हैं. दिक्कत ही क्या है, यह तो केवल पहले से बस "थोड़ा सा" कमतर दर्जा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

वैक्सीन के रिकॉर्ड की हेडलाइन बना ली, अब वैक्सीन बनाइए

भारत ने "नई" वैक्सीन पॉलिसी के पहले दिन टीकाकरण दर को तिगुना कर के सभी को चौंका दिया, प्रतिदिन 25-30 लाख की औसत दर के मुकाबले, अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर भारत ने करीब 85 लाख वैक्सीन की खुराक दी. प्रधानमंत्री मोदी ने इस उपलब्धि पर ट्वीट करने में जरा भी देर नहीं की, वहीं उनके मंत्री इसके विश्व रिकॉर्ड होने का दावा कर अपनी पीठ थपथपाने लगे. खैर, कोई उन्हें एक चेतावनी जोड़ने के लिए कहना भूल गया, मतलब "फ्री दुनिया में", कि कई हफ्तों से चीन रोज 1.5 करोड़ से ज्यादा टीके लगा रहा है. तो हां, हमने एक "विश्व रिकॉर्ड" बनाया है, बशर्ते आप दुनिया से चीन के नक्शे को हटा दें. वैसे, जैसे ही वाहवाही होने लगी विश्वसनीय जानकारी सामने आई, जो इस ओर इशारा करता है कि शायद हेडलाइन के लिए इस घटना को प्लान किया गया.

क्यों? क्योंकि बीजेपी शासित पांच राज्यों ने एक हफ्ते तक अपना टीकाकरण प्रोग्राम धीमा कर दिया था, जिससे वैक्सीन जमा की गई, जो ‘वर्ल्ड रिकॉर्ड’ बनाने के ‘कैंपेन’ के तहत 21 जून को दी गई.

आलोचक 'नैतिक खतरे' को लेकर सरकार को घेर सकते हैं, क्योंकि प्लानिंग के तहत धीमा किए गए टीकाकरण का मतलब था कि सैकड़ों-हजारों योग्य लोगों को जानबूझकर कुछ दिनों के लिए टीके से वंचित किया गया, जिससे उन्हें खतरे में डाला गया. जैसा कि हो सकता है, मुझे लगता है कि सरकार ने इस संघर्ष से बाहर निकले के लिए एक "नाटकीय प्रदर्शन" का सहारा लिया.

कुछ हद तक, ये सुस्त टीकाकरण अभियान को तेज कर सकता है, बशर्ते हमारे पास पर्याप्त टीके हों. सच्चाई ये है कि रोजाना 80 लाख डोज की दर को बनाए रखने के लिए, हमें जुलाई में 25 करोड़ वैक्सीन खुराक की जरूरत होगी. खुद सरकार के कहे मुताबिक, केवल 13.5 करोड़ खुराक की आपूर्ति की जाएगी, प्रभावी रूप से दैनिक औसत आधी हो जाएगी, यानी लगभग 44 लाख प्रतिदिन, न कि योग दिवस पर शानदार 85 लाख खुराक जितना. इसलिए फील-गुड के दिखावे के पूरा होने के बाद, हर महीने 30 करोड़ खुराक के निर्माण या आयात के गंभीर कार्य को तेज करना जरूरी है. तभी हमें "वास्तविक" विश्व रिकॉर्ड की डींगें मारने का अधिकार मिलेगा!

PNB हाउसिंग बैंक के करार के बारे में सरकार को नहीं पता था?

कार्लाइल ग्रुप की PNB हाउसिंग बैंक का अधिग्रहण करने की कोशिश दिन ब दिन और मुश्किल होती जा रही है. मुझे ताज्जुब होता है कि एक 'इनडायरेक्ट पब्लिक सेक्टर कंपनी' बिना सरकार यानी अपने इनडायरेक्ट अभिभावक की जानकारी के ऐसी जुर्रत कर सकती है. हमारे पब्लिक सेक्टर बैंक कब से इतने स्वायत्त हो गए कि वो बिना सरकार की अनुमति के भी अपनी अहम सब्सिडियरी को निजी हाथों में बेच पाएं. इसलिए अब PNB हाउसिंग बैंक के बोर्ड के लिए ये चुनौतीपूर्ण होगा कि वो जो भी है साफ-साफ बता दें.

क्या प्रिफरेंशियल शेयर सिर्फ सही वैल्यूएशन पर ही जारी किए जाने चाहिए? अगर ऐसा होता है तो SEBI के फॉर्मूले के तहत सिर्फ जो लीगल फ्लोर प्राइस आता है उसके तहत शेयर जारी नहीं किए जा सकते, लेकिन फेयर वैल्यूएशन के जरिए रियल प्राइस निकाली जानी चाहिए. लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो बोर्ड को ही एक्विजिशन बिड पर 'सही फैसला' लेना होगा. इस तरह के कैल्कुलेशन में निश्चित तौर पर प्रीमियम शामिल करना होगा.

बोर्ड ने ऐसा क्यों नहीं किया? बहुत बुरा हुआ, क्या कार्लाइल से जुड़े डायरेक्टर ने अपने हितों के टकराव के बावजूद इस ट्रांजैक्शन के लिए हामी भरी थी? अगर हां, तो पूरी डील विश्वसनीयता का पैमाना पास करने में असफल होगी. ईमानदार कोशिश ये होगी कि हम गड़बड़ियों को स्वीकारें और इस ट्रांजैक्शन को फिर से अच्छी तरह से परखकर, देखकर और नियमों के तहत रीलॉन्च करें.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

वो और दौर था

क्या आप इनिड ब्लाटन की 700 किताबों के बिना अपने बचपन की कल्पना भी कर सकते हैं? क्या हम उनकी साहसिक कहानियों को पढ़े बिना उन लंबी गर्मी छुट्टियों की शाम बिता सकते थे? लेकिन अब, इस महिला को "नस्लवादी" और "विदेशियों से नफरत" करने के लिए गंभीर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. उदाहरण के लिए, लिटिल ब्लैक डॉल में, उनके सैम्बो को तभी स्वीकार किया जाता है जब उसका "बदसूरत काला चेहरा" बारिश से "साफ" हो जाता है.

आज की दुनिया में, उन्हें इस तरह के लेखन के लिए उन्हें शर्मिंदा या बहिष्कृत किया जा सकता है. लेकिन याद रखें, ये एक सौ साल पहले एक अलग दुनिया में लिखा गया था, जिसमें उस समय मौजूद सामाजिक रीति-रिवाजों के जरिए इस तरह की लाखों “स्वीकार्य बीमारियां” थीं. ये इसे सही या हानि न पहुंचाने वाला नहीं बनाता है, लेकिन कम से कम एक संदर्भ तो जरूर देता है.

यहां अपने देश में, मैंने अक्सर 1970 के दशक का प्रसिद्ध गीत, "कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है" के बारे में सोचा है. इसे रोमांस के प्रतीक, एक शानदार गीत के रूप में माना गया था. लेकिन गीत को ध्यान से सुनेंगे तो: "कि ये बदन, ये निगाहें मेरी अमानत हैं... कि ये होंठ और ये बाहें मेरी अमानत हैं". इसे फिर से पढ़िए. "उसका (मेरे प्रेमी का) शरीर और आंखें, और उसके होंठ और हाथ, मेरी अनमोल विरासत/संपत्ति हैं".

किसी महिला को वस्तु की तरह दिखाने का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है. उसे एक "अमानत", कीमती संपत्ति का एक टुकड़ा कहा जा रहा है. अगर ये आज लिखा गया होता तो निश्चित तौर पर इस पर बैन लग जाता, शायद काले झंडों और एफआईआर का सामना करना पड़ता. लेकिन उस युग में, पुरुषों और महिलाओं ने इसे एक कविता के रूप में देखा था. मेरा मतलब यही था. वो और दौर था, और जमाना, तब के संदर्भ और थे.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×