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PM Modi in US:अमेरिका से रक्षा-प्रौद्योगिकी संबंधों के बीच भारत की रणनीतिक छलांग

भारत और अमेरिका के बीच व्यावहारिक रूप से 2005 में स्थापित द्विपक्षीय रणनीतिक संबंध अगले स्तर तक पहुंच सकते हैं.

सुबिमल भट्टाचार्जी
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>PM Modi in US: रक्षा और प्रौद्योगिकी संबंधों के बीच भारत की रणनीतिक छलांग</p></div>
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PM Modi in US: रक्षा और प्रौद्योगिकी संबंधों के बीच भारत की रणनीतिक छलांग

(फोटो: नमिता चौहान/द क्विंट)

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) अमेरिका (America) पहुंच गए हैं, जहां वो अमेरिकी नेताओं और उद्योपतियों के साथ बैठक कर रहे हैं. इसके साथ ही वो अमेरिकी कांग्रेस को भी संबोधित करेंगे. पीएम की इस यात्रा से भारत को काफी उम्मीदें हैं. अमेरिकी उद्योग भी कई क्षेत्रों में व्यापार के मोर्चे पर सहयोग की संभावनाओं को लेकर काफी उत्साहित है.

ऐसी संभावनाओं के प्रमुख कारकों में से एक रणनीतिक रास्ते सहित कई क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी सहयोग पर ध्यान केंद्रित करना है जैसे- रक्षा, अंतरिक्ष, साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), क्वॉन्टम कंप्यूटिंग, एडवांस्ड मैटेरियल्स, सेमीकंडक्टर, अगली पीढ़ी के दूरसंचार और बायोटेक.

भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी व्यावहारिक रूप से 2005 में NSSP समझौते (Next Step in Strategic Partnership) पर हस्ताक्षर के साथ स्थापित हुई थी. इस समझौते के बाद मुख्य रूप से परमाणु और रक्षा क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी सहयोग के कई रास्ते खुले और भारत ने कई अमेरिकी रक्षा उपकरण और प्लेटफॉर्म खरीदे.

भारत-अमेरिकी संबंधों के केंद्र में रक्षा समझौते

2016 में अमेरिकी सरकार ने भारत को एक 'प्रमुख रक्षा भागीदार' (MDP) घोषित किया, जिसने भारत को Natoplus-5 में अमेरिका के निकटतम सहयोगियों को प्रदान की गई रक्षा तकनीकों के बराबर रक्षा प्रौद्योगिकियां प्राप्त करने की अनुमति दी. उसी साल, भारत ने लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (Lemoa) पर हस्ताक्षर किए. Lemoa अमेरिका से हाई-टेक सैन्य हार्डवेयर प्राप्त करने के लिए किसी देश द्वारा हस्ताक्षर किए जाने वाले तीन मूलभूत रक्षा समझौतों में से एक है. इसके बाद सितंबर 2018 में कम्युनिकेशन कंपैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (Comcasa) पर हस्ताक्षर किए गए और अक्टूबर 2020 में बेसिक एक्सचेंज और कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA) प्रभावी हुआ.

मूलभूत समझौतों के अलावा, दिसंबर 2018 में यूएस डिफेंस इनोवेशन यूनिट (DIU) और इंडियन डिफेंस इनोवेशन ऑर्गनाइजेशन-इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (DIO-iDEX) के बीच मेमोरेंडम ऑफ इंटेंट (MoI) पर हस्ताक्षर ने दोनों देशों के बीच संभावित रक्षा अनुसंधान के लिए रोडमैप तैयार किया है. इसके बाद दिसंबर 2019 में 2+2 डायलॉग के दौरान औद्योगिक सुरक्षा अनुबंध (ISA) पर हस्ताक्षर हुए, जिसने दोनों देशों के निजी उद्योगों के बीच आदान-प्रदान और सहयोग के लिए रूपरेखा प्रदान की.

दोनों देशों का ध्यान रक्षा सहयोग और बायर-सेलर संबंधों को साझेदारी में बदलने पर केंद्रित था. जिसके तहत उपकरण और सप्लाई चेन इकोसिस्टम के कुछ तत्व भारत से मिल सकते थे. DIO-iDEX ने उन संभावनाओं को और बढ़ावा दिया, जहां भारत में बनी तकनीक उपकरण में जाने वाले सिस्टम में अपना स्थान पा सकती है.

इंडस एक्स (INDUS X) प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देने के साथ, भारतीय और अमेरिकी रक्षा स्टार्ट-अप दोनों देशों में सह-उत्पादन और खरीद के अवसरों के लिए साथ मिलकर काम कर सकते हैं और तकनीकी स्तर का विस्तार कर सकते हैं.

रक्षा क्षेत्र के अलावा संबंधित क्षेत्रों में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल भी एक स्वाभाविक कदम के रूप में देखा गया. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रधानमंत्री मोदी ने मई 2022 में क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (iCET) की घोषणा की थी. इसका उद्देश्य दोनों देशों की सरकारों, व्यवसायों और शैक्षणिक संस्थानों के बीच सामरिक प्रौद्योगिकी साझेदारी और रक्षा औद्योगिक सहयोग को बढ़ावा और विस्तार देना था. वाशिंगटन डीसी और नई दिल्ली में इस साल जनवरी और जून में हुई टू-ट्रैक 1.5 चर्चाओं में दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने भाग लिया और कम से कम समय में हासिल होने वाले लक्ष्यों को निर्धारित किया.

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टेक्नोलॉजी और AI से द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा

जाहिर है, ये कदम पारस्परिक लाभ के लिए काम करते हैं. डिजिटल टेक्नोलॉजी के साथ भारत का प्रयास और इस डोमेन में भारतीय कंपनियों की भागीदारी परिवर्तनकारी रही है और कई भारतीय कंपनियों ने AI प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाया है और हथियारों और उपकरणों की क्षमताओं को बढ़ाने में योगदान दिया है.

बड़ी टेक कंपनियों के साथ ही अमेरिका की अन्य कंपनियों ने भारत में बड़े रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर्स स्थापित किए हैं, जो अत्याधुनिक परियोजनाओं में भारतीय प्रतिभाओं को शामिल कर रहे हैं. भारतीय प्रतिभाओं के इस्तेमाल के लिए उभरते अवसर और टेक्नोलॉजिकल बिल्ड-अप के साथ ही चीन से उत्पन्न होने वाली भू-राजनीतिक चुनौतियों ने एक सख्त प्रतिक्रिया और क्षमता निर्माण की आवश्यकता को बल दिया है.

सेमीकंडक्टर सेक्टर एक ऐसा क्षेत्र है जहां भारत ने न केवल रुचि दिखाई है बल्कि मार्च 2022 में भारत ने सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) की घोषणा के बाद टेक्नोलॉजी और मैन्युफैक्चरिंग में निवेश के लिए कदम भी उठाए हैं.

इस साल मार्च में, भारत और अमेरिका ने कमर्शियल डायलॉग 2023 के दौरान सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला और इनोवेशन साझेदारी को लेकर एक MoU पर हस्ताक्षर किए. इसके तहत, US' CHIPS, साइंस एक्ट और ISM के मद्देनजर सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला को लचीला और विविध बनाने के लिए दोनों सरकारों के बीच एक सहयोगी तंत्र स्थापित करने पर सहमति बनी.

ISM, इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स सेमीकंडक्टर एसोसिएशन (IESA) और यूएस सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री एसोसिएशन (SIA) के टास्क फोर्स को निकट अवधि के अवसरों की पहचान और सेमीकंडक्टर पारिस्थितिक तंत्र के दीर्घकालिक विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए एक "तैयारी मूल्यांकन" विकसित करना है, जो कि सहयोग के संभावित क्षेत्रों को निर्धारित करने की दिशा में एक सही कदम होगा.

अमेरिका ने पहले ही भारत में एक निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र (मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम) के विकास के लिए अपने समर्थन का संकेत दिया है और परिपक्व प्रौद्योगिकी और उन्नत पैकेजिंग के लिए संयुक्त उद्यम और साझेदारी को प्रोत्साहित किया है.

भारत-अमेरिका संयुक्त सामरिक उद्यम

क्वांटम प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करने की परिकल्पना पहले ही की जा चुकी है और दोनों पक्षों ने उद्योग और शिक्षाविदों की भागीदारी के साथ एक क्वांटम समन्वय तंत्र स्थापित किया है. यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि क्वांटम की जेनरेशन और संबंधित टेक्नोलॉजी के लिए भारत में क्षमताएं उपलब्ध हैं, जिनका उपयोग दोनों देशों द्वारा क्षेत्रों में सुरक्षित नेटवर्क स्थापित करने के लिए किया जा सकता है.

भारतीय स्पेस सेक्टर के खुलने के साथ ही, ISRO की NASA के साथ मिलकर मानव अंतरिक्ष उड़ान पर काम करने, NASA की कमर्शियल लूनर पेलोड सर्विसेज (CLPS) परियोजना और STEM टैलेंट एक्सचेंज पर एक साथ काम करने की संभावनाएं बढ़ गई है. पहली बार आयोजित यूएस-इंडिया एडवांस्ड डोमेन डिफेंस डायलॉग (AD3) ने नए रक्षा डोमेन विकसित करने पर सहयोग को गहरा करने के लिए क्षेत्रों की पहचान की है, जिसमें अंतरिक्ष पर जोर दिया गया है और AI और iCET चिन्हित क्षेत्रों पर काम करने का अवसर प्रदान करेगा.

AI रणनीतिक उपयोग के विशिष्ट क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के लिए मानकों को स्थापित करने से लेकर कई मोर्चों पर सहयोग करने के लिए महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है. AI को लेकर दोनों देशों में पहले से ही बहुत सारी परियोजनाओं पर काम चल रहा है. ऐसे में कुछ विशेष परियोजनाओं पर दोनों देश मिलकर काम कर सकते हैं. इसके साथ ही त्वरित कंप्यूटिंग पर ध्यान केंद्रित करने की भी परिकल्पना की जानी चाहिए ताकि लागत प्रभावी और अधिक कुशल जीपीयू जैसे विशेष प्रोसेसर का उपयोग बढ़ाया जा सके. हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग (HPC) के मामले में अमेरिका को भारत को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने में अधिक स्पष्टवादी होना चाहिए ताकि हाइड्रोजन मिशन जैसी मिशन मोड परियोजनाओं को और अधिक बेहतर तरीके से चलाया जा सके.

अगली पीढ़ी के दूरसंचार में, 5G और 6G पर चर्चा की जा रही है और चुनिंदा भारतीय शहरों में इन दूरसंचार नेटवर्कों के लिए ओपन रेडियो एक्सेस नेटवर्क (ORAN) पहुंचाने के लिए द्विपक्षीय सहयोग दिखने की संभावना है. इन पायलट परियोजनाओं को अन्य देशों में ले जाया जा सकता है और हुआवेई/Huawei सिस्टम की तुलना में ये एक विश्वसनीय नेटवर्क होगा.

आने वाले सालों में सहयोग के परिभाषित क्षेत्रों और एक सहायक तकनीकी समुदाय के साथ एक बड़ा एजेंडा शुरू किया जाना है. अभी के लिए, भारत में निर्माण के लिए GE-F414 लड़ाकू विमान इंजन की तकनीक का बहुप्रतीक्षित हस्तांतरण भारत के स्वदेशी LCA 'तेजस' Mk II और अन्य भविष्य के लड़ाकू विमानों के लिए एक बड़ा आत्मविश्वास बढ़ाने वाला होगा. यह सुनिश्चित करेगा कि निर्यात नियंत्रण विनियम और नौकरशाही प्रक्रियाएं भारत-अमेरिका रणनीतिक प्रौद्योगिकी सहयोग की प्रगति को बाधित न करें.

(सुबिमल भट्टाचार्जी पूर्वोत्तर भारत के आसपास साइबर और सुरक्षा मुद्दों पर टिप्पणीकार हैं. उनसे ट्विटर पर @subimal पर संपर्क किया जा सकता है. यह एक ओपिनियन पीस है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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