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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन हाल में भारत की यात्रा पर दिल्ली आए. हालांकि वे कुछ ही घंटों की यात्रा पर आए थे, लेकिन उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों की एक नई शुरुआत की है. सबसे पहली बात यह कि उनकी यात्रा की टाइमिंग काफी महत्वपूर्ण रही. पुतिन ऐसे समय में आए जब यूक्रेन की सीमाओं पर रूसी सैनिकों का जमावड़ा हो गया और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ उनकी वर्चुअल मीटिंग की पूर्व संध्या पर वे आए. इस मीटिंग में यूक्रेन प्रमुख रूप से एजेंडे में था.
नाटो और पश्चिम के साथ रूस के संबंध अभूतपूर्व स्तर तक बिगड़ गए हैं. अर्थव्यवस्था संकट में है वहीं COVID-19 के मामले बढ़ रहे हैं. पुतिन की इस यात्रा में दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों के बीच 2+2 संवाद की शुरुआत भी देखी गई है. CAATSA के खतरे के बावजूद, भारत S-400 Triumf मिसाइल प्रणाली की खरीद के साथ आगे बढ़ा है और अगले दशक के लिए एक रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किया है. अमेरिका के साथ भारत की निकटता और रूस के चीन के साथ घनिष्ठ संबंधों को देखते हुए भारत और रूस दोनों ने अपने-अपने प्रतिद्वंद्वियों को एक संदेश दिया है. इसके बारे में पहले ही बहुत कुछ कहा और लिखा जा चुका है.
दूसरी ओर द्विपक्षीय संबंधों का यह नया अध्याय भारत के अपने लंबे समय के सहयोगी को आश्वस्त करने के बारे में नहीं हो सकता है कि वह दूर नहीं गया है या प्रत्येक पक्ष भारत-अमेरिका संबंधों और चीन-रूस (Sino-Russian संबंध) संबंधों के कारण पैदा हुई बेचैनी के बारे में बताता है. यह रूस के बारे में भी हो सकता है कि अंततः भारत को एक उभरती ताकत के रूप में महसूस किया जाए और स्वीकार किया जाए. कार्नेगी मॉस्को सेंटर के रूसी विश्लेषक दिमित्री ट्रेनिन ने अपने लेख "रूस-इंडिया: फ्रॉम रीथिंक टू एडजस्ट टू अपग्रेड" में यह बात कही थी, जिसमें उन्होंने रूसी राजनीतिक अभिजात वर्ग यानी पॉलिटकल एलीट्स से भारत जो है उसको उसी तौर पर देखने (see India for what it is) को कहा.
खुद पुतिन ने अपने भाषण में कहा कि "भारत को रूस एक प्रमुख ताकत या शक्ति के तौर पर देखता है, जिसके लोग हमारे लिए काफी दोस्ताना रहे हैं. हमारी दोस्ती एक मजबूत बुनियाद पर बनी है. हमारे यही संबंध विकसित हो रहे हैं और भविष्य को देखते हुए आगे की ओर बढ़ रहे हैं."
इस समिट के बाद रूसी स्तंभकार दिमित्री कोसिरेव Dmitry Kosyrev ने रिया नोवोस्ती में जो कॉलम लिखा उसमें उन्होंने इस घटना का विश्लेषण करते हुए इसको रिकॉल किया.
सीधे शब्दों में कहें तो रूस को अब भारत की जरूरत है, शायद भारत को रूस की जरूरत से भी ज्यादा.
इसके बाद Sino-Russian यानी चीन-रूस घनिष्ठ संबंध ऑर्गेनिक यानी जीवंत नहीं हैं. अविश्वास के गहरे क्षेत्र हैं, इस प्रकार निर्भरता एक राजनीतिक आवश्यकता से अधिक है. दोनों (रूस-चीन) अमेरिका से विरोध के कारण साथ एकजुट हैं. वहीं चीन के लिए रूस ऊर्जा और रक्षा प्रौद्योगिकी का एक अच्छा स्रोत है. हालांकि रूस की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था में चीनी निवेश में कमी आई है. रूस के सेंट्रल बैंक के अनुसार, चीन ने 2020 में रूसी अर्थव्यवस्था में अपना निवेश वापस ले लिया. तीन तिमाहियों में प्रत्यक्ष निवेश 52 फीसदी गिरकर 3.735 बिलियन यूएस डॉलर से 1.83 बिलियन यूएस डॉलर हो गया.
अमेरिका के प्रति अपने विरोध के बावजूद चीन ने क्रीमिया के रूसी कब्जे को अभी तक मान्यता नहीं प्रदान की है. दूसरी ओर रूस के सुदूर पूर्व में चीनी जनसांख्यिकीय आक्रमण का डर रशियन को सता रहा है क्योंकि वहां कई चीनी नागरिक बस गए हैं और वहां अपना व्यवसाय स्थापित कर रहे हैं. रूस के सुदूर पूर्व में भारतीय सहयोग पर विचार करते समय, यह गौर करने वाले कारकों में से एक है. रूस के रणनीतिक बैकयार्ड कहलाने वाले साइबेरिया और मध्य एशिया में चीन के दावों का डर रशियन को सता रहा है.
इस समय रूसी सुरक्षा रणनीति ग्रेटर यूरेशियन पार्टनरशिप (GEP) पर केंद्रित है, जिसका उद्देश्य यूरेशियन क्षेत्र तक (दक्षिण पूर्व एशिया से यूरोप तक) अर्थव्यवस्था को जोड़ना है. अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण इस साझेदारी में रूस खुद को केंद्रीय भूमिका निभाने वाले के तौर पर देखता है. इसके हिस्से के रूप में देखा जाए तो रूस के नेतृत्व में यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (EEU) ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के साथ करार किया है, हालांकि चीन ने यूरेशिया रेलवे जैसी परियोजनाओं को लाभहीन बताकर खारिज कर दिया है.
जबकि चीन से बड़ा निवेश प्राप्त करने की उम्मीद में मध्य एशियाई देशों ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पर उत्सुकता से करार किए हैं. लेकिन इसमें क्षेत्रीय विवाद भी देखने को मिले हैं जैसे कजाकिस्तान और चीन के बीच क्षेत्रीय संघर्ष हुआ है. चीन की विस्तारवादी नीतियों ने भी इस क्षेत्र में हलचल या अशांति पैदा कर दी है, जैसा कि उस क्षेत्र में देखा जा सकता है जिसे ताजिकिस्तान को पहले चीन को सौंपना पड़ा था और हाल ही में चीनी मीडिया द्वारा किए गए दावों में देखा गया. चीन ने अपनी आर्थिक ताकत का इस्तेमाल वहां सैन्य अड्डा स्थापित करने में किया है.
शुरुआत में रूस ने अमेरिकी विरोधी ताकत के रूप में तालिबान का स्वागत किया लेकिन अब इस समूह से रूस का मोह भंग हो रहा है. ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान में अफगान सीमा के पास इसके (रूस के) लगातार सैन्य अभ्यास ने अफगानिस्तान में बदलती परिस्थितियों के परिणामों से निपटने के लिए अपनी इच्छा का प्रदर्शन किया, जिसमें मादक पदार्थों की तस्करी, शरणार्थी प्रवाह, आतंकवाद की वृद्धि और धार्मिक कट्टरवाद शामिल हैं.
इस सब में भारत एक अहम भागीदार है, क्योंकि रूस के चीन के साथ जो मतभेद हैं, वे भारत के साथ समीकरण में नहीं हैं.
अंत में, पैन-तुर्कवाद pan-Turkism का नए खतरे से यूरेशिया में रूस की भूमिका खतरे में आ सकती है. तुर्किक राज्यों के संगठन जिसका नेतृत्व तुर्की कर रहा है, उन्होंने हाल ही में चार तुर्क मध्य एशियाई राज्यों कज़ाखस्तान, किर्गिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान के साथ-साथ अज़रबैजान व तुर्की को एक और आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक ब्लॉक बनाने के लिए एक साथ लाने का प्रयास किया है. सैन्य शक्ति के साथ, इस क्षेत्र में तुर्की की सॉफ्ट पावर बढ़ रही है और रूसी संघ की सीमाओं के भीतर 'ग्रेटर तुरान' की अवधारणा तुर्क आबादी के बीच जोर पकड़ रही है जोकि रूस के लिए चिंता का विषय है.
पैन-तुर्कवाद भारत के लिए भी एक चुनौती है, क्योंकि दक्षिण एशिया में तुर्की ने संकट पैदा करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है. कतर द्वारा समर्थित तुर्की तेजी से अफगानिस्तान की पटकथा में अपना नियंत्रण स्थापित करने या प्रभावित करने की कोशिश कर सकता है. अफगानिस्तान पर भारत और रूस के बीच मतभेद लगातार कम होते जा रहे हैं.
भारत पहले से ही ब्रिक्स देशों के समूह और शंघाई सहयोग संगठन का सदस्य है. यह चाबहार बंदरगाह और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (North-South Transport Corridor) जैसी कनेक्टिविटी परियोजनाओं में निवेश करके ईईयू के साथ संबंधों को मजबूत करना चाहता है.
इसके साथ ही भारत रूस का सबसे बड़ा हथियारों का बाजार बना हुआ है. इस प्रकार पुतिन की यह यात्रा द्विपक्षीय संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक हो सकती है, जिसमें रूस के लिए भारत एक बड़ी रणनीतिक भूमिका निभाता है.
(अदिति भादुड़ी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. वह ट्विटर पर @aditijan से ट्वीट करती हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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