advertisement
राजस्थान बीजेपी में किसकी ज्यादा चलती है, वसुंधरा राजे की या अमित शाह की? अभी तो ऐसा लगता है कि राजे के दबाव के सामने बीजेपी के शक्तिशाली हाई कमान को भी झुकना पड़ा है.
राजस्थान में बीजेपी को नया अध्यक्ष 74 दिनों के गतिरोध के बाद मिल पाया. राज्यसभा सांसद मदनलाल सैनी को शाह ने राज्य की कमान सौंप दी. जाहिर है, वो ही इस साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव और फिर 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष रहेंगे.
इस नाम ने बहुतों को हैरान किया. राजस्थान के बीजेपी अध्यक्ष के नाम पर देश के राजनीतिक पंडितों ने नजर गड़ा रखी थी. सैनी के नाम का ऐलान होने के बाद मैंने भी उनके बारे में जानकारी जुटाई.
74 साल के मदनलाल सैनी अपने पूरी राजनीतिक करियर में सिर्फ एक बार विधायक चुने गए, लेकिन राज्य में बीजेपी की कमान हासिल करने में कामयाब रहे. अब इस हॉट सीट पर बैठने वाले को सुनिश्चित करना होगा कि दोबारा सरकार के लिए दिसंबर, 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी कम से कम 100 सीटें हासिल करे. लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि 100 सीटें जीतना सैनी के लिए मुश्किल काम होगा.
राजस्थान बीजेपी के अध्यक्ष के तौर पर उनकी नियुक्ति से कुछ बातें एकदम साफ हो गई हैं:
शेखावत के नाम की चर्चा के बाद से ही राजे ने साफ कर दिया था कि वो किसी नए नेतृत्व को उभरने का मौका नहीं देंगी, भले इसके लिए उन्हें उन नेताओं से संधि करनी पड़े, जिनसे अभी अच्छे रिश्ते नहीं हैं. जैसे उन्होंने राज्यसभा सांसद ओम प्रकाश माथुर से लंबी चर्चा की.
3. सैनी के अध्यक्ष बनने से राजस्थान में बीजेपी के कार्यकर्ता कंफ्यूज हैं. बीजेपी युवा वोटर्स को आकर्षित करने का अभियान छेड़े हुए है, लेकिन राज्य बीजेपी के नए अध्यक्ष 74 साल के हैं.
40 साल के राजनीतिक करियर में मदनलाल सैनी सिर्फ एक बार ही चुनाव जीतने में कामयाब हो पाए हैं, वो भी विधानसभा. 2008 विधानसभा चुनाव में वो चौथे नंबर पर रहे. वो दो बार लोकसभा चुनाव भी हार चुके हैं. उनकी उपलब्धि यही है कि वो राज्यसभा सांसद बना दिए गए.
बीजेपी की दलील कमजोर है कि वो विनम्र और ईमानदार हैं. गजेंद्र शेखावत के नाम की इतनी चर्चा के बाद उन्हें अध्यक्ष नहीं बनाने को राजपूत वोटर हल्के में नहीं लेंगे. राजपूत वोटर वैसे भी गैंगस्टर आनंदपाल के एनकाउंटर और पद्मावत विवाद से नाराज हैं.
राजस्थान की राजनीति को जानने वाले किसी भी व्यक्ति से पूछिए. वो बता देगा कि माली वोट हासिल करने के मामले में गहलोत का कोई मुकाबला है ही नहीं. वैसे भी राजस्थान में सिर्फ 3 परसेंट माली वोटर हैं.
ढाई महीने से राजस्थान बीजेपी का अध्यक्ष नियुक्त न कर पाना केंद्रीय लीडरशिप को कमजोर साबित करता है. उपचुनाव और स्थानीय चुनाव में हार के बावजूद केंद्रीय नेतृत्व मुख्यमंत्री पर किसी तरह का अंकुश नहीं लगा पाया, न ही अपनी पसंद का अध्यक्ष नियुक्त कर पाया.
वसुंधरा राजे वैसे भी एंटी इनकंबेंसी का सामना कर रही हैं. इस ऐलान से साफ हो गया है कि विधानसभा चुनाव उनकी अगुआई में ही लड़े जाएंगे.
मैं जब बीजेपी दफ्तर के सामने से निकला, तो कुछ कारें और एसयूवी वहां खड़ी थीं, पर बीजेपी के ज्यादा कार्यकर्ता वहां मौजूद नहीं थे. मैंने दफ्तर के बाहर खड़े कार्यकर्ताओं से पूछा कि क्या नए पार्टी अध्यक्ष ने काम संभाल लिया?
जवाब मिला, “अभी नहीं, पर उससे क्या फर्क पड़ता है.''
इसी से अंदाज मिल जाता है कि इस दिसंबर में बीजेपी किस तरफ बढ़ रही है.
ये भी पढ़ें-
पूर्वोत्तर की जीत 2019 के लोकसभा चुनावों का ट्रेलर है: अमित शाह
कांग्रेस बोली,नोटबंदी में सबसे ज्यादा नोट अमित शाह के बैंक में आए
(लेखक @journalism_talk के फाउंडर हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @avinashkalla . ये ओपिनियन पीस है, इसमें लेखक के अपने विचार हैं. इसमें क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 02 Jul 2018,04:43 PM IST