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पिछले कुछ महीनों में हुए गुजरात-हिमाचल विधानसभा चुनाव के साथ राजस्थान उपचुनाव काफी सुर्खियों में रहा. अब अप्रैल महीने में राज्यसभा की 55 सीटों के लिए चुनाव होने वाले हैं. फिलहाल इसकी चर्चा भले ही कम है लेकिन इसके राजनीतिक मायने काफी अहम हैं. इस चुनाव में काफी हद तक सीटें पहले से तय हैं बावजूद इसके इस चुनाव का देश की राजनीति पर काफी खास असर पड़ने वाला है.
राज्यसभा की 245 सदस्यों में फिलहाल बीजेपी के पास 58 सदस्य हैं. वहीं कांग्रेस के पास अभी 54 सदस्य ही हैं. लेकिन अप्रैल में होने वाले चुनाव के बाद ये आंकड़ा बदलने वाला है. इस चुनाव से जहां बीजेपी को फायदा होगा, वहीं कांग्रेस का नुकसान तय है.
बावजूद इसके इस बात की संभावना कम ही नजर आ रही है कि ऊपरी सदन में बीजेपी बहुमत हासिल कर पाएगी या सभी दलों के साथ मिलकर एनडीए बहुमत के जादुई आंकड़े के करीब पहुंच पाएगा.
2014 लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी बड़े जनादेश के साथ सत्ता में आई थी, उस समय राजनीतिक विश्लेषकों ने भविष्यवाणी की थी कि पांच साल के कार्यकाल पूरा होते-होते मोदी सरकार राज्यसभा में अपना नियंत्रण कायम कर लेगी.
ये भी कहा गया था कि मोदी सरकार अपने एजेंडे को लागू करने के लिए संसद का संयुक्त सत्र भी बुला सकती है. हालांकि अब तक ऐसा हो नहीं पाया.
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जिन 55 सीटों पर चुनाव होने हैं, फिलहाल उनमें से 18 पर बीजेपी का कब्जा है, वहीं 14 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है बाकी 23 सीटों पर अन्य दलों का. इनमें से ऊपरी सदन के लिए उत्तर प्रदेश की 10 सीटों पर चुनाव होंगे. वहीं महाराष्ट्र और राजस्थान से भी राज्यसभा में सदस्य भेजे जाएंगे.
बड़े बहुमत के साथ यूपी की सत्ता पर काबिज हुई बीजेपी को एक तरफ जहां यूपी में 6 से 7 सीटें मिलने की उम्मीद है, वहीं 2012 की तुलना में राजस्थान और महाराष्ट्र में बीजेपी फायदे में दिख रही है.
पिछले तीन सालों में कई प्रमुख राज्यों में चुनाव जीतने के बावजूद, बीजेपी अभी भी राज्यसभा में 24 प्रतिशत सीटों पर ही कब्जा जमा पाई है, जो बहुमत से काफी दूर है. अगर एनडीए के सहयोगी दलों को भी मिला दिया जाए तब भी इनके पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है.
अप्रैल में होनेवाले चुनाव के बाद उम्मीद है कि बीजेपी का 27 फीसदी सीटों पर कब्जा हो जाएगा, वहीं एनडीए के सहयोगी दलों के साथ मिलकर ये आंकड़ा 35 फीसदी तक पहुंच जाएगा. बावजूद इसके यह बहुमत के करीब नहीं है.
राज्यसभा में बहुमत नहीं होने की वजह से मोदी सरकार को अक्सर परेशानियों का सामना करना पड़ा है. लोकसभा से बिल पास करवाने के बावजूद भी राज्यसभा में कांग्रेस या अन्य विपक्षी दलों के सहयोग के बगैर सरकार के लिए किसी विधेयक को पास कराना संभव नहीं है.
अब सरकार के पास महज एक साल का समय बचा है. ऐसे में अहम बिलों को पास कराने के लिए उसे विपक्ष की तरफ ही देखना पड़ेगा.
(इनपुटः राज्यसभा और सेंटर फॉर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज)
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