मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019RBI के सरकार को फंड ट्रांसफर करने पर इतनी हायतौबा क्यों?

RBI के सरकार को फंड ट्रांसफर करने पर इतनी हायतौबा क्यों?

भारतीय रिजर्व बैंक ने केंद्र सरकार को दिए 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये

टीसीए श्रीनिवास राघवन
नजरिया
Published:
RBI ने केंद्र सरकार को दिए 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये
i
RBI ने केंद्र सरकार को दिए 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये
(फोटो: द क्विंट)

advertisement

पिछले 20 साल की घटनाओं की करीब-करीब अनदेखी के कारण (इससे पुरानी घटनाओं की तो खैर रहने ही दीजिए), अक्सर नेता और अखबारों में विश्लेषण करने वाले किसी बात पर यूं ही हायतौबा मचाने लगते हैं. सिर्फ इसी महीने की बात करें तो ऐसी दो घटनाएं हो चुकी हैं.
पहली घटना आर्टिकल 370 से जुड़ी है, जिसे सरकार ने बिल्कुल बेअसर कर दिया है. इस घटना के बाद हर शख्स इतिहास और संविधान का जानकार बन बैठा, जिसके हास्यास्पद नतीजे सामने आए. दूसरी घटना, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के सोमवार को अपने रिजर्व से 1.76 लाख करोड़ रुपये सरकार को ट्रांसफर करने के फैसले से जुड़ी है.

RBI के फंड ट्रांसफर पर कांग्रेस का रुख

इन दिनों कांग्रेस का किसी भी मुद्दे पर हुक्का-पानी लेकर चढ़ना आम बात है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ. पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे ने रिजर्व बैंक के फंड ट्रांसफर पर कुछ चतुराई भरे कमेंट्स किए. अगर उन्हें अच्छी तरह सिखाया गया होता, तो वह इस बात से वाकिफ होते कि आरबीआई के रिजर्व पर आंख गड़ाने की प्रक्रिया की शुरुआत उनके पिता के प्रधानमंत्री रहने के दौरान हुई थी, जो तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष भी थे.

ये भी पढ़ें - पॉलिटिक्‍स और इकनॉमिक्‍स के अनुमान अक्‍सर फ्लॉप क्‍यों हो जाते हैं

1986 में बने थे ऐसे ही हालात

यह साल 1986 की बात है. राजीव गांधी चाहते थे कि सरकार निवेश बढ़ाकर जीडीपी की रफ्तार तेज करे. ग्रोथ तब 4 पर्सेंट तक फिसल गई थी, जिसे वह 6 पर्सेंट से ऊपर ले जाना चाहते थे. दिक्कत यह थी कि सरकार का खर्च अधिक था और निवेश के लिए उसके पास बहुत पैसा नहीं बचा था. ऐसे में उनके वित्त सचिव एस वेंकटरमणन ने रिजर्व बैंक से अधिक सरप्लस सरकार को ट्रांसफर करने को कहा. तब तक और काफी लंबे समय से रिजर्व बैंक सरकार को हर साल 250 करोड़ रुपये ट्रांसफर करता आया था.
आर एन मल्होत्रा उस वक्त रिजर्व बैंक के गवर्नर थे और इससे पहले वह वेंकटरमणन के पद पर यानी वित्त सचिव रह चुके थे. मल्होत्रा ने अधिक सरप्लस ट्रांसफर करने से इनकार कर दिया. इसके बाद यह मुद्दा 1991 तक यानी वेंटकरमणन के आरबीआई गवर्नर बनने तक ठंडा पड़ा रहा. जैसा कि आज है, उस वक्त भी सरकार की वित्तीय हालत बेहद खराब थी. वित्त मंत्री के पद पर मनमोहन सिंह बैठे थे, जो आगे चलकर देश के प्रधानमंत्री बने.

राजीव गांधी चाहते थे कि सरकार निवेश बढ़ाकर जीडीपी की रफ्तार तेज करे. (फोटो: द क्विंट)
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
पहले से ही तैयार बैठे वेंकटरमणन से मनमोहन ने सरकार को कुछ पैसा देने को कहा और उन्होंने अच्छी-खासी रकम दी. तब से लेकर आज तक रिजर्व बैंक की तरफ से सरकार को दी जाने वाली रकम लगातार बढ़ी है. 2019 के बजट में सरकार ने आरबीआई से 90 हजार करोड़ रुपये मिलने का अनुमान लगाया था. पिछले चार साल में उसे इस रास्ते से करीब दो लाख करोड़ रुपये मिल चुके हैं.
1991 में तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहन सिंह के कहने पर तत्कालीन RBI गवर्नर एस वेंकटरमणन ने सरकार अच्छी-खासी रकम दी थी. (फोटो: indian-coins.com)

बैंकों को डूबने से बचाने में RBI की ताकत कम हुई

रिजर्व बैंक के मौजूदा गवर्नर शक्तिकांत दास ने पिछले गवर्नर और डिप्टी गवर्नर की सलाह पर बजट अनुमान से 86 हजार करोड़ अधिक रकम सरकार को देने का फैसला लिया है.
इससे आड़े वक्त में काम आने वाला आरबीआई का रिजर्व (जिसे कंटिंजेंसी रिजर्व कहा जाता है) उसकी कुल संपत्तियों के 7 पर्सेंट से घटकर 5 पर्सेंट से नीचे आ गया है. रिजर्व बैंक के एक और पूर्व गवर्नर ने 2006 में इसके लिए 12 पर्सेंट का लक्ष्य तय किया था. कुल मिलाकर, अगर कुछ बैंकों के डूबने का खतरा पैदा हो तो इस ट्रांसफर के कारण रिजर्व बैंक की उन्हें बचाने की ताकत कुछ कम हो गई है. दूसरी तरफ, इससे सरकार की बकायेदारों की पैसा लौटाने की क्षमता बढ़ गई है. यानी आरबीआई के कंटिंजेंसी फंड का इस्तेमाल सरकार की कंटिंजेंसी को पूरा करने के लिए हो रहा है.

इस मामले में सबसे बुनियादी सवाल पर सोच-विचार किए बगैर विश्लेषकों और नेताओं ने इस कदम की आलोचना की है. मैंने पिछले साल यह बुनियादी सवाल आपके सामने रखा था- असल में यह पैसा किसका है?

यह पैसा सरकार का है क्योंकि उसकी सॉवरिन पावर की मदद से रिजर्व बैंक ने यह कमाई की है. जब पैसा सरकार का है तो उसके इसे लेने पर हायतौबा क्यों मचनी चाहिए. सरकार जिस काम के लिए भी चाहे, यह पैसा ले सकती है. बाकी सब तो मैनेजमेंट डिटेल की बातें हैं.

(लेखक आर्थिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखने वाले वरिष्ठ स्तंभकार हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

ये भी पढ़ें - PM मोदी को इकनॉमी पर चिंतन शिविर आयोजित करना चाहिए

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT