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लिज ट्रस के बाद अब ऋषि सुनक ब्रिटेन के नए प्रधान मंत्री बनने को तैयार हैं. ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी के नए नेता के तौर पर सुनक के नाम की पुष्टि तब हो गई थी, जब नए पीएम की रेस में सुनक के सामने एकमात्र प्रतिद्वंद्वी पेनी मोर्डंट ने अपना नाम वापस ले लिया और इस तरह पीएम पद के लिए सुनक अकेले उम्मीदवार बच गए थे.
यह लगभग परियों की कहानी जैसा है. दीवाली पर जिस तरह से हजारों दीयों की रोशनी चारों ओर घिरे अंधेरे को भेदती हैं, वैसे ही संकट और समस्याओं से जूझ रहे ब्रिटेन को अपना पहला हिंदू प्रधान मंत्री मिला. वाकई में, ब्रिटेन की शीर्ष राजनीतिक गद्दी पर बैठने वाले पहले गैर-श्वेत व्यक्ति और G-7 राष्ट्र का नेतृत्व करने वाले भारतीय मूल के पहले व्यक्ति के लिए यह एक ऐतिहासिक क्षण है.
ऋषि सुनक की जीत इसलिए हुई क्योंकि उनकी पार्टी (कंजर्वेटिव पार्टी), उन्हें एक सक्षम-भरोसेमंद आर्थिक प्रबंधक के तौर पर देखती हैं, जो कॉस्ट ऑफ लिविंग, सामने मौजूद मंदी और मार्केट के गिरते विश्वास से उबारने में देश को मार्गदर्शन प्रदान करने में मदद कर सकते हैं. पार्टी को उम्मीद है कि सुनक ब्रिटेन में चल रहे राजनीतिक भूचाल को शांत कर सकते हैं, लेकिन देश की गंभीर समस्याओं और विकट राजनीतिक उथल-पुथल को देखते हुए, इसकी बहुत ज्यादा संभावना नहीं है!
यह एक उल्लेखनीय कमबैक है. हाल ही में सुनक ने जब जुलाई में चांसलर ऑफ द एक्सचेकर (वित्त मंत्री) के पद से इस्तीफा दे दिया था तब उन्होंने अपने बॉस यानी बोरिस जॉनसन के पैरों के नीचे से जमीन खिसकाने का काम किया था. इसके बाद जॉनसन के उत्तराधिकारी की रेस शुरु हुई, जोकि पिछले महीने खत्म हुई. इस रेस में सुनक को कंजर्वेटिव सांसदों के बीच सबसे ज्यादा समर्थन मिला था, लेकिन कंजर्वेटिव पार्टी के सदस्यों ने जो मतदान किया उसमें सुनक दक्षिणपंथी लिज ट्रस से निर्णायक रूप से हार गए थे.
तब से सुनक बेहद लो प्रोफाइल बने हुए थे और चुप्पी साध रखी थी. वे चुपचाप देख रहे थे कि ट्रस ने राजनीतिक प्रभाव और समर्थन खो दिया है, जिसकी वजह से नाटकीय रूप से कुछ दिन पहले 20 अक्टूबर को सात सप्ताह से भी कम समय तक प्रधान मंत्री रहने वाली लिज ट्रस को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा.
सुनक को एक विभाजित और निराश पार्टी विरासत में मिली है. हमेशा की तरह विवादों में घिरे बोरिस जॉनसन फिर से शीर्ष पद पर वापसी के लिए पर्याप्त समर्थन नहीं जुटा पाए. बोरिस के समर्थकों में सुनक के प्रति नाराजगी की भावना प्रबल है क्योंकि सुनक की वजह से उनके नायक (बोरिस) का पतन हुआ था. ऐसे में नए प्रधान मंत्री के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक काम यह भी होगा कि 'बोरिस समस्या' से कैसे निपटा जाए.
आने वाले कुछ महीनों में, सुनक को सार्वजनिक खर्च में कटौती और कर वृद्धि को लेकर कुछ कड़े निर्णय लेने की जरूरत होगी, जिससे उनकी पार्टी और उनके देश की गुडविल बढ़ेगी. ब्रिटेन में अगले आम चुनाव दो साल में होने हैं. ऐसे में चुनावी जीत हासिल करने के लिए कंजर्वेटिव्स अपने नए लीडर को बड़ी ही उम्मीदों से देख रहे होंगे. कंजर्वेटिव्स को भविष्य धुंधला नजर आ रहा है. पिछले कुछ महीनों से कंजर्वेटिव पार्टी में जो उथल-पुथल या अराजकता देखने को मिली है उसने विपक्षी लेबर पार्टी को ओपीनियन पोल्स में प्रमुख बढ़त दिलाने में मदद की है. कुछ कंजर्वेटिव्स को यहां तक डर है कि उनकी पार्टी अगला चुनाव पहले ही हार चुकी है.
उनकी जीत के वक्त यह कहना थोड़ा निष्ठुर होगा, लेकिन ऋषि सुनक ज्यादा से ज्यादा 10 डाउनिंग स्ट्रीट में दो साल की उम्मीद कर सकते हैं. अपने नेतृत्व में, 2024 में कंजर्वेटिव पार्टी को लगातार पांचवीं चुनावी जीत दिलाने के लिए सुनक को राजनीतिक प्रतिभा, भविष्य में अच्छी अर्थव्यवस्था और एक बड़े जादुई पिटारे की आवश्यकता होगी.
कुछ ने इसकी तुलना ब्रिटेन के ओबामा मोमेंट यानी ओबामा वाले पल से की है. लेकिन ऐसा नहीं है. स्लेव ट्रेड यानी गुलामों (दासों) के व्यापार में ब्रिटेन गहराई से जुड़ा था, लेकिन वहां की आबादी ने कभी दासता को सहा नहीं है या ऐसा कोई कड़वा सिविल वार नहीं देखा जिसमें दासता बड़ा मुद्दा रहा हो. और आप चाहें ऋषि सुनक के बारे में कुछ भी कहें लेकिन उन्हें एक उत्पीड़ित अल्पसंख्यक के तौर पर देखना मुश्किल है.
ऋषि सुनक और उनकी पत्नी अक्षता मूर्ति की संयुक्त संपत्ति, सुनक को ब्रिटेन का अब तक का सबसे अमीर सांसद बनाती है. वह किंग चार्ल्स से ज्यादा अमीर हैं. भले ही सुनक बिलेनियर नहीं हैं लेकिन वे इस मुकाम से बहुत पीछे भी नहीं है. भले ही सुनक बिगडैल और खास वर्ग के तौर पर सामने नहीं आते हैं, जैसा कि कुछ अत्यंत धनी लोग करते हैं. आम मतदाताओं की बात को छोड़ ही दें, सुनक की लाइफ स्टाइल (कई बेहतरीन स्मार्ट घरों का मालिक होना, उन घरों को लग्जरी फिटनेस सेंटर और स्विमिंग पूल से लैस करना और महंगे कपड़े पहनना) अधिकांश कंजर्वेटिव सांसदों की दुनिया से काफी अलग या दूर है.
सुनक की सफलता ब्रिटेन के भारतीय समुदाय के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव की ओर इशारा करती है. ब्रिटेन में भारतीय समुदाय की आबादी 1.5 मिलियन है, जो कि इसे देश का सबसे बड़ा जातीय अल्पसंख्यक बनाती है. और यह सफलता इस बात को भी दर्शाती है कि भारतीय समुदाय धीरे-धीरे राइट की ओर शिफ्ट हो रहा है. यह बिजनेस, रिटेल और प्रोफेशन्स में भारतीयों की प्रमुखता को दर्शाता है.
सुनक की यह सफलता ब्रिटिश राजनीति में एक मील का पत्थर है. एक ऐसा देश जो लूट के आधार पर वर्ल्ड पावर बन गया था और उसके साम्राज्य ने नस्लीय श्रेष्ठता प्राप्त कर ली थी, वहां अब सरकार के मुखिया के तौर पर एक शख्स या नेता है जिसकी जड़ें उपनिवेश से जुड़ी हुई हैं उपनिवेशवादियों से नहीं. यह बड़ी बात है!
जॉर्ज ओसबोर्न का कंजर्वेटिव पार्टी में बड़ा कद है, उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि "आपकी राजनीति चाहे जो भी हो, आइए हम सब पहले ब्रिटिश एशियाई के पीएम बनने का जश्न मनाएं और अपने देश पर गर्व करें जहां ऐसा हो सकता है."
इसका यह मतलब नहीं है कि ब्रिटेन में साम्राज्य की परछाई को खत्म कर दिया गया है, या ब्रिटेन में नस्लवाद को हटा दिया गया है. लेकिन ऐसा महसूस हो रहा है कि हम धीरे-धीरे वहां तक पहुंच रहे हैं.
फिर से, यह कंजर्वेटिव्स हैं, जिन्होंने ब्रिटेन को अपनी पहली तीन महिला प्रधानमंत्री दिए है और समावेशिता का यह शक्तिशाली उदाहरण पेश किया है. सामाजिक न्याय और वंचितों के सशक्तिकरण के समर्थन का दावा करने वाली विपक्षी लेबर पार्टी के लिए यह शर्म की बात होनी चाहिए कि उसके सभी नेता गोरे लोग हैं.
अब यह ऋषि सुनक का काम है कि वह यह सुनिश्चित करें कि उन्हें ब्रिटेन के पहले अश्वेत प्रधान मंत्री होने से बढ़कर और अधिक के लिए याद किया जाए.
(एंड्रयू व्हाइटहेड, बीबीसी इंडिया के पूर्व संवाददाता हैं. वह बीबीसी के लिए ब्रिटिश पॉलिटिक्स की रिपोर्टिंग करते हैं. यह उनकी निजी राय है. क्विंट का उनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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