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मोस्ट वांटेड रियाज नाइकू के साथ ही कश्मीर के सारे बड़े आतंकी खत्म

रिश्तेदारों के मुताबिक नाइकू जब स्कूल और कॉलेज में था तब गुलाबों की पेंटिंग बनाना उसका पैशन था.

अहमद अली फय्याज
नजरिया
Updated:
2015 में जून के अंत तक हिज्बुल में शामिल हुए थे 33 युवा
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2015 में जून के अंत तक हिज्बुल में शामिल हुए थे 33 युवा
(फोटोः Altered by Arnica Kala / The Quint) 

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1 मार्च 2015 को दूसरी बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद ने पुलिस महानिदेशक को राजनीतिक बंदियों की रिहाई के लिए कहा था. जम्मू में अपने इकलौते पत्रकार सम्मेलन में उन्होंने इस बात का खुलासा किया था. शीर्ष अलगाववादी मस्सरत आलम को 7 मार्च 2015 को रिहा किया गया. आलम ने 2010 में उमर अब्दुल्ला सरकार के हाथों गिरफ्तार होने से पहले सड़क पर हिंसा की वारदातों का तीन महीनों तक नेतृत्व किया था.

15 अप्रैल 2015 को आलम ने श्रीनगर में अलगाववादी कट्टरपंथी सैय्यद अली शाह गिलानी के लिए विशाल स्वागत समारोह का आयोजन किया, जब वे नयी दिल्ली से सर्दी की छुट्टियां बिताकर लौटे. श्रीनगर एयरपोर्ट रोड पर जम्मू-कश्मीर पुलिस मुख्यालय के सामने एक बस की छत पर सवार होकर आलम ने नारा लगाया था, “पाकिस्तान से क्या पैगाम, कश्मीर बनेगा पाकिस्तान” और “हाफिज सईद का क्या पैगाम, कश्मीर बनेगा पाकिस्तान”.

तीन हजार से ज्यादा मस्सरत समर्थकों ने, जिनमें से ज्यादातर के पास पाकिस्तानी झंडे और लश्कर-ए-तैय्यबा के बैनर थे, उत्साह के साथ उन्हें जवाब दिया. यह उत्साह 2010 में आलम की गिरफ्तारी के बाद पूरी तरह से खत्म हो चुका था.

एक लंबे अंतराल के बाद गिलानी का स्वागत एक नायक की तरह हुआ. दो दिन बाद 17 अप्रैल की शुक्रवार को आलम ने त्राल में इसी तरह युवाओं की भीड़ इकट्ठा की. ऐसा हिज्बुल मुजाहिदीन के लड़ाके भाई की याद में किया गया.

मस्सरत और बुरहान वानी ने अलगाववाद और मिलिटेंसी को नया जीवन दिया

कई टेलीविजन चैनलों ने आलम की रैलियों की तस्वीरें प्राइम टाइम शो में बार-बार दिखाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर दूसरे शीर्ष बीजेपी नेताओं समेत कई लोगों के लिए परेशान करने वाली परिस्थिति पैदा की. दिल्ली के दबाव में आलम और गिलानी पर अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेन्शन) एक्ट के सेक्शन 13 के तहत केस दर्ज करने को मुफ्ती मजबूर हो गये. जल्द ही आलम गिरफ्तार हो गया और कई सालों से वो जेल में है.

घाटी के कई युवा आतंकी बन गए, जिन्होंने शांतिपूर्वक स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाई की थी. 

इंटरनेट तक मुफ्त पहुंच के साथ त्राल का बुरहान वानी, जिसे घाटी में 2014 तक बहुत कम लोग जानते थे, अब कॉलेज छोड़ चुके युवाओं और हिज्बुल मुजाहिदीन के बीच पोस्टरब्वॉय बन चुका था. उसके पिता जो सरकारी स्कूल में शिक्षक थे, आतंकियों के नाम पर क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन कराया करते थे. मुफ्ती सरकार में केंद्र की वित्तीय मदद से चलने वाला ‘खेलो इंडिया’ कार्यक्रम उन मैदानों में आयोजित हुए, जिनके नाम 2016 के बाद मारे गये आतंकियों के नाम पर रखे गये थे. स्थानीय तौर पर इसे शहीद बुरहान वानी स्टेडियम नाम दिया गया.

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रियाज नाइकू को गुलाबों की पेटिंग बनाना पसंद था

गिलानी के स्वागत के दो महीने के भीतर बुरहान वानी की वह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गयी जिसमें वह 10 सशस्त्र सहयोगियों के साथ लड़ाई की मुद्रा में था. यह आतंकवाद के नये युग की शुरुआत मानी जाती है जिसमें बीते 26 सालों की तरह गनमैन अपना चेहरा मास्क में छिपाता नहीं है और छद्म नाम नहीं रखता.

पुलवामा और त्राल के बीच एक गांव बेगपुरा का रहने वाला 35 साल का रियाज नाइकू उन सैकड़ों शिक्षित युवाओं में एक है जो ज्यादातर दक्षिण कश्मीर से हैं और जिन्होंने ‘हिन्दुस्तानी कब्जे’ के विरोध में हथियार उठाए हैं और बीते पांच साल या उससे भी अधिक समय से मारे जाते रहे हैं. बुधवार 6 मई 2020 को पुलिस और सुरक्षाबलों ने नाइकू को एनकाउंटर में मार गिराया.

अपना नाम बताना नहीं चाह रहे उसके रिश्तेदारों के मुताबिक नाइकू जब स्कूल और कॉलेज में था तब गुलाबों की पेंटिंग बनाना उसका पैशन था.

उनमें से एक ने बताया, “किसी ने नहीं सोचा था कि वह मिलिटेंट बनेगा.” हथियार उठाने से पहले नाइकू एक साइंस ग्रैजुएट था और एक स्थानीय स्कूल में गणित पढ़ाया करता था.

2015 में जून के अंत तक हिज्बुल में शामिल हुए थे 33 युवा

वानी और नाइकू की तरह कई लोगों में पढ़ाई और परिवार छोड़ने एवं गुरिल्ला से जुड़ने का क्रेज पैदा हुआ. मैट्रिक की परीक्षा में 98.4 प्रतिशत अंक लाने वाला लारीबाल का इशाक पार्रे मेडिकल कॉमन इंट्रेंस टेस्ट की तैयारी कर रहा था. वह डॉक्टर बनना चाहता था और स्थानीय तौर पर वह ‘इसाक न्यूटन’ के नाम से मशहूर था. मगर, उसने आतंकवाद का रास्ता चुना और आखिरकार एक एनकाउंटर में मारा गया.

जून 2015 के अंत तक पार्रे जैसे 33 युवा हिज्बुल मुजाहिदीन से जुड़े और पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक अब इनकी ताकत बढ़कर 142 हो गयी है.

बुरहान वानी अपने दो साथियों के साथ पुलिस और सुरक्षा बलों के ज्वाइंट ऑपरेशन में 8 जुलाई 2016 को कोकरनाग (अनंतनाग) के बामदोरा में मारा गया. घाटी में लगातार प्रदर्शन होने लगे और तीन महीने तक संघर्ष चला. वानी के अंतिम संस्कार में 2 लाख से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया और उरी और करनाह से भादेरवाह तक और जम्मू में पुंछ तक केवल पाकिस्तानी झंडे थे और पाकिस्तान समर्थक नारे लग रहे थे. पुलिस और अर्धसैनिक बलों की कार्रवाई में 70 नागरिक, जिनमें पत्थरबाज, प्रदर्शनकारी और आम दर्शक थे, मारे गये. पत्थरबाजी और सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई में हजारों घायल हुए.

2016 से 2020 के बीच सभी टॉप हिज्बुल कमांडर मार गिराए गए

अगले तीन साल में वानी के साथियों की 2015 वाली आइकॉनिक तस्वीर में शुमार एक ने समर्पण कर दिया और बाकी सभी अलग-अलग मुठभेड़ों में मार गिराए गए. उनमें प्रमुख कमांडर और वानी के उत्तराधिकारी शामिल थे. चादौरा बडगाम का यासीन इटू उर्फ गजनवी, सबजार भट्ट और त्राल का जाकिर मूसा, सद्दाम पद्दार, आदिल खाण्डे, नासिर पंडित, वसीम मल्ला, समीर टाइगर, अल्ताफ कचरू, जीनतुल इस्लाम (जो बाद में अल बदर में शामिल हो गया). इनमें से ज्यादातर पुलवामा, शोपियां और कुलगाम जिलों से थे.

आतंकवाद के इस चरण के दौर में यहां तक कि कुछ पीएचडी स्कॉलरों ने भी, जिनमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का मन्नान वानी और यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर में समाजशास्त्र के लेक्चरर डॉ रफी भट्ट शामिल हैं,हथियार उठा लिए और अलग-अलग मुठभेड़ों में मारे गये.

नाइकू इस बैच का आखिरी व्यक्ति था जिसका प्रभाव पूरे दक्षिण कश्मीर और श्रीनगर व बड़गा के कई हिस्सों तक था.

आर्टिकल 370 हटाने का जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पर कैसे असर पड़ा

पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक 13 अगस्त 2017 को शोपियां के अवनीरा में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में यासीन इटू के मारे जाने के कुछ हफ्तों बाद नाइकू ने हिज्बुल मुजाहिदीन के ऑपरेशन चीफ की जिम्मेदारी संभाल ली. वानी के सबसे विश्वस्त सहयोगी जाकिर मूसा ने जब हिज्बुल मुजाहिदीन छोड़ दिया और अलकायदा से जुड़े जीआईएमएफ ने उसे जम्मू-कश्मीर में गजवतुल हिन्द अंसार का पहला चीफ घोषित किया उसके कुछ दिनों बाद यह घटना घटी.

हिज्बुल मुजाहिदीन और दूसरे गुरिल्ला संगठनों को ताबड़तोड़ दो धक्के लगे.

जून 2018 में महबूबा मुफ्ती सरकार की बर्खास्तगी के तुरंत बाद केंद्र सरकार और राज्यपाल प्रशासन ने आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन तेज कर दिए और आतंकियों के राजनीतिक और जमीनी समर्थक के ढांचे को अस्त-व्यस्त कर दिया. ताबूत में आखिरी कील वाला मुहावरा फरवरी 2019 में श्रीनगर-जम्मू हाईवे के पास अवंतीपुरा में उस अपमानजक हमले के रूप में सामने आया जिसमें 40 सीआरपीएफ जवान मारे गये.

जून 2018 में पीडीपी-बीजेपी सरकार की बर्खास्तगी के बाद फरवरी 2019 में अवंतीपुरा आतंकी हमले, जो लोकसभा चुनावों के कुछ हफ्ते पहले हुए थे, ने कई घटनाओं को जन्म दिया. इनमें शामिल हैं जेकेएलएफ और जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध, सभी अलगाववादी नेताओँ की सुरक्षा और वीवीआईपी स्टेटस वापस लेना और सभी हाई प्रोफाइल आतंकियों एवं अलगाववादियों को श्रीनगर से जम्मू और दूसरे राज्यों की जेलों में स्थानांतरित करना.

इसके बाद केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 और 35 ए को हटा दिया, जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को देखते हुए राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया और मुख्य धारा से जुड़े ज्यादातर राजनीतिक नेताओँ को हिरासत में ले लिया गया, जिनमें तीन मुख्यमंत्री भी शामिल थे.

करीब 4 हजार लोग पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत हिरासत में लिए गये और उन्हें यूपी व अन्य राज्यों की जेलों में बंद कर दिया गया. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने अपनी पहचान छिपाने की शर्त पर बताया, “बचाव के लिए यह अच्छा कदम साबित हुआ. अगर यह सब नहीं किया गया होता तो बुरहान वानी की तरह नाइकू की मौत के बाद पूरी घाटी में अशांति फैल जाती. हम एलओसी की ओर से हर दिशा में उन्हें रोक रहे हैं जो 2016 जैसी स्थिति पैदा करने में लगे हैं.”

पुलिस और सशस्त्र बलों के लिए नाइकू था ‘मोस्ट वांटेड आतंकी’

पुलिस और सुरक्षा बल नाइकू को आतंकी मानते थे जो सुरक्षा बलों पर हमले, 2019 में फल व्यापारियों और ट्रक ड्राइवरों की हत्या, पंच, सरपंच, मुख्य धारा के राजनीतिक कार्यकर्ताओं और पुलिसकर्मियों की हत्या समेत अन्य हत्याओं में शामिल था.

बड़े स्तर पर युवाओं को बरगलाने और भर्तियां करने का श्रेय भी उसे है. उसने आतंकियों के सोशल मीडिया नेटवर्क को भी चलाया. एसपीओ और चुनाव में भाग लेने वाले आम नागरिकों को चेतावनी देते वीडियो भी उसने अपलोड किए.

दाखिले की नयी व्यवस्था भी उसने कथित रूप से शुरू की : “ज्वाइनिंग से पहले लक्ष्य को मारो या हथियार लूटो”. इस प्रोफाइल की वजह से वह ए++ कैटेगरी वाले आतंकियों में शुमार कर लिया गया.

अधिकारी कहते हैं, नाइकू “कश्मीर का मोस्ट वांटेड आतंकी” था जिसके सिर पर 12 लाख रुपये का इनाम था. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “यह एक युग का अंत है. अब कश्मीर में कोई जाना पहचाना आतंकी नहीं है. जुनैद (वरिष्ठ अलगाववादी नेता अशरफ सेहराई का पुत्र) कुछ लोगों में मशहूर है लेकिन उसकी क्षमता सीमित है. हम उसे नाइकू की तरह बड़ा खतरा नहीं मानते.”

नाइकू के परिजन कहते हैं- “चेताया, धमकाया, अपहरण किया- लेकिन किसी नागरिक को नहीं मारा”

नाइकू के परिजन पुलिस के आरोप-पत्र को ‘काल्पनिक’ बताते हैं. नाइकू के एक रिश्तेदार ने बताया, “यह सच है कि उसने विशाल अंतिम यात्रा निकाली और दिवंगत आतंकियों को सलामी देने के लिए गन की व्यवस्था की. उसने वोटरों को एसिड से अंधा कर देने की धमकी दी लेकिन शारीरिक रूप से किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाया. वह इस बात के लिए मशहूर था कि उसने नागरिकों और पुलिसकर्मियों को नहीं मारने का निर्देश दे रखा था. सितंबर 2018 में उसने पुलिसकर्मियों के 11 रिश्तेदारों का अपहरण किया लेकिन वह केवल उसकी दबाव की रणनीति थी ताकि वह अपने पिता और दूसरे आतंकियों को छुड़ा सके. उसने किसी का नुकसान नहीं किया.” नाइकू के रिश्तेदार ने दावा किया 25 साल की इशरत जहां जो दांगरपोरा पुलवामा की रहने वाली थी (जिसे 1 फरवरी 2019 को कैमरे के सामने गोली मार दी गयी थी और जब वो दोनों हाथ जोड़कर दया की भीख मांग रही थी.), उसकी हत्या अलबदर के आतंकियों ने की थी, नाइकू ने नहीं.

अधिकारियों ने फोन कॉल का जवाब नहीं दिया लेकिन स्थानीय लोगों का दावा है कि बेगपुरा में एनकाउंटर के बाद पुलिस और सुरक्षा बलों के साथ सैकड़ों युवाओं ने झड़प की. 

उन्होंने कहा कि 17 लोग घायल हुए. इनमें से 6 को गोलियां लगी हैं. जहांगीर युसूफ की अस्पताल में मौत हो गयी. बहरहाल त्राल और पुलवामा के पत्रकारों ने इस बात पर जोर दिया कि ये संघर्ष खत्म हो जाएंगे. कश्मीर वाला रिपोर्टर इरफान अमीन मलिक ने कहा, “5 अगस्त 2019 के बाद परिस्थिति में बड़ा बदलाव आया है. 2016 जैसी अशांति नहीं होगी.”

(लेखक अहमद अली फय्याज श्रीनगर के जर्नलिस्ट हैं. ये लेखक के अपने विचार हैं. इससे क्विंट का किसी तरह का सरोकार नहीं है)

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Published: 08 May 2020,11:10 PM IST

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