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पंजाब के बाद राजस्थान में फेरबदल की अटकलें, लेकिन जमीनी हकीकत अलग

गहलोत के पास निर्दलीय और बीएसपी छोड़कर कांग्रेस में आए विधायक सबसे बड़े हथियार हैं.

पंकज सोनी
नजरिया
Updated:
<div class="paragraphs"><p>अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मनमुटाव जगजाहिर है</p></div>
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अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मनमुटाव जगजाहिर है

(फोटो: Quint)

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राजस्थान में अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के पांव मजबूती से जमे हैं. उनके समर्थन में कांग्रेस के विधायकों के अलावा बड़ी संख्या में निर्दलीय विधायक भी हैं, लेकिन क्या पंजाब (Punjab) में फेरबदल के बाद प्रदेश कांग्रेस के नेताओं और विधायकों के तेवर कुछ बदले हुए दिखाई दे रहे हैं. हमने राज्य के कुछ नेताओं से इस बारे में बात की. कांग्रेस नेता ये तो मानते हैं कि राजस्थान में भी हलचल है, लेकिन स्थिति पंजाब से थोड़ी अलग है.

पायलट खेमा सक्रिय

राजस्थान में सरकार के गठन के साथ ही गहलोत विरोधी राजनीति के धुरी बने सचिन पायलट खेमा भी पंजाब में आलाकमान के चलाए गए डंडे के बाद उत्साहित हैं. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के आश्वासन पर पिछले साल बगावत का रास्ता छोड़ने वाले पायलट आलाकमान को इस बात का भरोसा दिलाने में लगे हैं कि अगर राजस्थान में कुछ बड़े फैसले किए जाते हैं ये पार्टी के हित में होगा. शुक्रवार को पायलट और राहुल गांधी के बीच लंबी बातचीत भी हो चुकी है. पंजाब के फैसले के बाद से पायलट दिल्ली में कांग्रेस नेताओं से लगातार मुलाकात कर रहे हैं.

कहा ये भी जा रहा है कि दरअसल पार्टी आलाकमान को प्रशांत किशोर ने पंजाब के साथ ही राजस्थान और छत्तीसगढ़ में फेरबदल का सुझाव दिया है.

राजस्थान में पूरी पार्टी को राहुल गांधी और कांग्रेस नेतृत्व पर विश्वास है, वो जो निर्णय लेंगे उसका सभी समर्थन करेंगे.
जसवंत गुर्जर, प्रदेश कांग्रेस सचिव

याद रखिएगा कि पंजाब फेरबदल से पहले पार्टी के विधायक और नेता खुले में यह बयान दे चुके थे कि राजस्थान में वही होगा जो गहलोत चाहेंगे. गहलोत सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले संसदीय मंत्री शांति धारीवाल ने सार्वजनिक तौर पर यहां तक कह डाला था कि राजस्थान में आलाकमान गहलोत ही हैं.

गहलोत के खास सिपहसालारों में शुमार उपसचेतक महेन्द्र चौधरी पंजाब के बाद राजस्थान के नंबर पर कहते हैं कि पार्टी आलाकमान भी जानता है कि प्रदेश में विधायक किसके साथ हैं.

राजस्थान में 125 विधायक गहलोत के नेतृत्व में एकजुट हैं. उनके नेतृत्व में सरकार का काम अच्छा चल रहा है. जनता भी खुश है. कोरोनाकाल में जिस तरह सरकार ने काम किया है, उसकी प्रधानमंत्री तक ने तारीफ की है. गहलोत पूरे पांच साल सरकार चलाने में सक्षम हैं.
महेन्द्र चौधरी
अब तक राजस्थान में गहलोत और पायलट के बीच कांग्रेस आलाकमान की सुलह के प्रयासों पर मुख्यमंत्री गहलोत का कद भारी पड़ता दिख रहा था. यहां तक की कई अवसरों पर राजस्थान प्रभारी अजय माकन से गहलोत के मुलाकात से इंनकार करने की खबर भी सामने आई थी.

गहलोत खेमा एक्टिव

इधर पंजाब के फैसले के बाद पार्टी आलाकमान के रुख को देखते हुए गहलोत खेमा भी राजनीतिक सावधानी के तौर पर यकायक सक्रिय हो गया है. खुद गहलोत भी पंजाब के फैसले के बाद राजकाज को लेकर सक्रिय हो गए हैं. बुधवार को लम्बे अर्से बाद गहलोत ने अपने मंत्रिपरिषद के सदस्यों को घर बुलाकर चर्चा की और मंत्रियों को जनता के बीच जाने के निर्देश दिए. साथ ही प्रदेश की महिलाओं, व्यापारियों और किसानों को लेकर भी गहलोत ने इस बैठक में धड़ाधड़ कई निर्णय कर डाले.

सीएम अशोक गहलोत की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में अनुकंपा नियुक्ति का दायरा बढ़ा दिया गया है. अब सरकारी कर्मचारी के निधन के बाद उसकी तलाकशुदा बेटी और अविवाहित राज्य कर्मचारी का निधन होने पर उसके माता, पिता, अविवाहित भाई-बहन या फिर कोई भी आश्रित नहीं होने पर उसकी विवाहित बहन को भी अनुकंपा पर नियुक्ति मिल सकेगी.

यह भी बताया जा रहा है कि गहलोत जल्द ही प्रदेश में लम्बे दौरे का कार्यक्रम भी घोषित कर सकते हैं. गहलोत फरवरी 2020 के बाद से बाड़ेबंदी और उपचुनावों को छोड़कर फील्ड में नहीं गए.

गहलोत की ताकत

गहलोत के पास निर्दलीय और बीएसपी छोड़कर कांग्रेस में आए विधायक सबसे बड़ा हथियार हैं. इनकी संख्या 19 है. इन्हीं की बदौलत गहलोत अब तक आलाकमान पर दबाव बनाने में कामयाब रहे हैं. प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार निकट माना जा रहा है, ऐसे में गहलोत इन्हीं विधायकों के नाम पर ज्यादा से ज्यादा मंत्रियों के पदों को खपाने की योजना पर आगे काम कर सकते हैं.

पंजाब के बाद राजस्थान की चर्चा को लेकर निर्दलीय विधायक बाबूलाल नागर मुखर हो गए हैं. वे राजस्थान में गहलोत के नेतृत्व को सरकार बने रहने के लिए जरूरी बताते हैं. नागर कहते है कि पांच साल सरकार चले इस लिए गहलोत जरूरी हैं. वरना देश के अन्य राज्यों में हालात सबके सामने हैं.

राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत यूं तो राजनीति के बड़े जादूगर कहे जाते हैं. लेकिन पिछले 25 साल में उन्हें कांग्रेस के अंदर से शायद ऐसी चुनौती पहले कभी नहीं मिली होगी जैसे इस कार्यकाल में मिल रही है. मध्यप्रदेश में दलबदल के खेल से सत्ता गंवा चुकी कांग्रेस को राजस्थान में भी बहुमत के बॉडर्र पर बैठी अपनी सरकार के जाने का भय लगातार अब तक गहलोत को मजबूती देता रहा है.

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Published: 23 Sep 2021,08:59 AM IST

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