ADVERTISEMENTREMOVE AD

पंजाब से पहले भी कांग्रेस कई राज्यों में कर चुकी है राजनीतिक खुदकुशी

कांग्रेस खुद ही राज्यों में गुटबाजी को बढ़ावा देती है, पंजाब इसकी एक और मिसाल है

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

कांग्रेस (Congress) की इस हरकत को आप राजनैतिक खुदकुशी कह सकते हैं. एक जमे हुए और सम्मानित मुख्यमंत्री को बाहर का दरवाजा दिखाना और उससे अपनी सफाई पेश करने का मौका न देना- इस बार यह पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt Amrinder Singh) के साथ हुआ है. इसके कई बुरे संदेश हैं, सिर्फ मशहूर कैप्टन को ही नहीं, बल्कि पार्टी के हर खासो-आम को.

ऐसा लापरवाह व्यवहार किसी ऐसी पार्टी की नींव को भी हिला सकता है जिसके पास एक मजबूत राष्ट्रीय नेतृत्व हो. कांग्रेस के लिए तो यह अनर्थ से कम नहीं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

आज सोनिया गांधी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं, और परदे के पीछे रहती हैं. उनके वारिस राहुल गांधी अध्यक्ष तो नहीं लेकिन वह और उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा जोकि उत्तर प्रदेश की महासचिव हैं, पार्टी चला रहे हैं. उनके सहायक-सलाहकारों के लिए खुद कांग्रेस में एक टर्म है, ‘स्टाफ मेंबर’. ये सहयोगी-सलाहकार स्वर्गीय अहमद पटेल जैसे तपे-तपाए अनुभवी लोग नहीं, न ही अंबिका सोनी या गुलाम नबी आजाद जैसे हैं जो रसूख वाले थे, जिनके पास गुस्सा शांत करने का मंत्र था, जो गुटीय झगड़ों को सुलझाना जानते थे.

दरअसल सोनिया गांधी की सर्वसम्मति वाली राजनीति का दौर बीत चुका है और उसकी जगह मनमाने फैसलों ने ले ली है. वह भी उनकी सलाह के चलते जिन्हें न के बराबर अनुभव है, और उससे भी खराब बात यह है कि उनके एजेंडे का पार्टी हित से कोई लेना-देना नहीं है.

पर कोई सबक नहीं सीखा गया

पंजाब का प्रकरण दिखाता है कि कांग्रेस में आज क्या गलत हो रहा है. इससे पहले कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में गुटबाजी को खूब हवा दी थी. दिलचस्प यह है कि इन्हीं दो राज्यों में उसकी सरकार है.

याद कीजिए, 2020 में केंद्रीय नेतृत्व को मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुटों के बीच सुलह कराने के लिए एक भी काबिल शख्स नहीं मिला था. राज्य में कांग्रेस की सरकार गिर गई. सिंधिया भारतीय जनता पार्टी में चले गए और अब राज्यसभा सांसद हैं. उनके कांग्रेस छोड़ने के नाटकीय घटनाक्रम के बाद राज्य में भाजपा की सरकार बन गई.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव के बीच अनबन जारी है. बघेल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के इरादे से सोमवार 20 सितंबर को सिंह देव दिल्ली पहुंचे हैं.

दूसरी तरफ बघेल के समर्थक करीब 36 विधायकों ने धमकी दी है कि अगर ऐसा हुआ तो वे विधानसभा से इस्तीफा दे देंगे.

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के नेतृत्व वाले धड़ों के बीच एक साल से ज्यादा समय से खींचतान बेरोकटोक जारी है. पिछले साल उस कमिटी, जिसमें कांग्रेस के संकटमोचन कहे जाने वाले अहमद पटेल शामिल थे, ने हस्तक्षेप किया था लेकिन उसके फैसलों को कभी लागू नहीं किया गया.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

कैप्टन के जाने पर दो तरह की राय

पंजाब और राजस्थान में शख्सीयतें एक सरीखी नहीं- नवजोत सिंह सिद्धू की तुलना में पायलट का ट्रैक रिकॉर्ड लंबा और उल्लेखनीय है, सांसद और मुख्यमंत्री, दोनों के तौर पर. सिद्धू भाजपा से कांग्रेस में आए हैं और आते ही उन्होंने अमरिंदर सिंह की कुर्सी खींचनी शुरू कर दी. लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है कि राजस्थान में भी ऐसे ही नतीजे देखने को मिलने वाले हैं. गहलौत की जगह पायलट की नहीं, किसी तीसरे की ताजपोशी की जा सकती है.

जैसे पंजाब में अमरिंदर सिंह की जगह चरणजीत सिंह चन्नी को लाने पर दो तरह की राय है. राहुल गांधी की ऐसी सलाह देने वालों (इनमें चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर शामिल हैं जिन्होंने 2017 में पंजाब के चुनावों में अमरिंदर सिंह की मदद की थी लेकिन अब उनसे अलग हो चुके हैं) का कहना है कि चन्नी दलित हैं और वह राज्य की 34 दलित बहुल सीटों पर वोटों को बहुत अधिक प्रभावित करेंगे, साथ ही अन्य 44 पर भी असर डालेंगे. पंजाब में कुल निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 117 है. उनका कहना है कि इससे शिरोमणि अकाली दल (SAD) को बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के साथ गठजोड़ का फायदा नहीं होगा और मालवा में आम आदमी पार्टी बेदम हो जाएगी. इस दलित बहुल इलाके में आम आदमी पार्टी ने अपनी जड़ें जमाई हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
लेकिन कई कांग्रेसियों के मुताबिक, यह विश्लेषण बताता है कि इन लोगों को पंजाब की राजनीति की समझ नहीं. वहां की राजनीति को ताकतवर जाट सिख प्रभावित करते हैं. कांग्रेस और शिअद, दोनों खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में उनके हितों को ध्यान में रखते हैं. बाकी के समुदाय, चाहे उच्च जाति के ब्राह्मण हों, बनिया, ओबीसी या दलित, किसी न किसी जाट गुट के पीछे खड़े हो जाएंगे.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

तेलंगाना में नाकाम प्रयोग

हाल ही में किसानों के प्रदर्शनों के दौरान अमरिंदर सिंह ने 34 में से 18 किसान यूनियन्स को एक मंच पर लाने में मदद की थी और बदले में चुनावों में वे उनकी मदद कर सकते थे. लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय से उनकी बिदाई के बाद अब यह सुनिश्चित हो जाएगा कि मैदान में केवल एक जाट सिख पार्टी शिअद है. कांग्रेस के एक सूत्र का कहना है, "अमरिंदर सिंह कांग्रेस के लिए सबसे अच्छा दांव थे, भले ही आम आदमी पार्टी तेजी से आगे बढ़ रही है और नई चुनौती भी है."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

हालांकि अगले साल राज्य के चुनावी नतीजे क्या होंगे, अभी से इस बारे में नहीं कहा जा सकता. लेकिन अभी बहुत वक्त नहीं गुजरा है जब नए मंत्रणाकारों ने कांग्रेस को तेलंगाना में दलित पार्टी बनने का मशविरा दिया था. तेलंगाना में कांग्रेस को ‘रेड्डी पार्टी’ माना जाता है. इसका नतीजा क्या हुआ, राजनीतिक विनाश.

जैसा कि राज्य के एक सीनियर नेता ने इस लेखक को उस समय कहा था: “मै मंडल का बहुत बड़ा समर्थक हूं, जैसा कि आपको पता है, और मैं दलितों का हित भी चाहता हूं. लेकिन जब तक हम चुनाव नहीं जीतते, हम कुछ नहीं कर सकते. जब हम सरकार बनाएंगे तभी उन नीतियों पर काम कर सकते हैं जिनमें हमें विश्वास है. दुनिया के इस छोर पर कांग्रेस एक रेड्डी पार्टी है.”

ADVERTISEMENTREMOVE AD

(स्मिता गुप्ता एक सीनियर जर्नलिस्ट हैं जो द हिंदू में एसोसिएट एडिटर रह चुकी हैं. इसके अलावा वह आउटलुक, इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदुस्तान टाइम्स के साथ काम कर चुकी हैं. वह ऑक्सफोर्ड रॉयटर्स इंस्टीट्यूट की पूर्व फेलो हैं. वह @g_smita पर ट्वीट करती हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×