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श्रीलंका को जब चीन ने पहुंचाई चोट, भारत कर रहा मदद

श्रीलंका को बस अर्थव्यवस्था नहीं बल्कि इससे आगे जाकर कई स्तरों पर सुधार करना होगा.

सुबिमल भट्टाचार्जी
नजरिया
Updated:
<div class="paragraphs"><p>श्रीलंका में गहराया आर्थिक संकट</p></div>
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श्रीलंका में गहराया आर्थिक संकट

फोटो : क्विंट हिंदी

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Sri Lanka's Economic Crisis: श्रीलंका में अभी जो स्थिति है, वह भयावह संकेत दे रही है. जरूरी चीजें खरीदने के लिए लोग लंबी लंबी कतारों में नजर आ रहे हैं. वहीं जरूरी चीजों की भारी कमी के चलते लोग जगह जगह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और चारों तरफ अशांति का माहौल है. देश में वस्तुओं और सेवाओं की कीमत तेजी से बढ़ी है जिसमें खाना, ईंधन और ट्रैवल कॉस्ट सभी कुछ शामिल है. कई कारणों की वजह से ये स्थिति पैदा हुई है, जिसमें सबसे पहला कारण खराब इकोनॉमिक गर्वनेंस है.

श्रीलंका धीरे धीरे दीवालिया होने की तरफ बढ़ रहा है क्योंकि, देश का मौजूदा मुद्रा कोष, जो मार्च 2022 में 2.3 बिलियन था, वो 7 बिलियन डॉलर के विदेशी कर्ज को चुकाने के लिए काफी नहीं है. इसमें इंटरनेशनल सॉवरिन बॉन्ड भी शामिल हैं.

देश में महंगाई आसमान छू रही है. नेशनल कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स के मुताबिक, फरवरी 2022 में महंगाई का स्तर 17.5 प्रतिशत तक पहुंच गया और विदेशी कर्ज हैरान करने वाले 35 बिलियन डॉलर के आंकड़े तक पहुंच गया.

कैसे कोविड और रूस—यूकेन संकट ने श्रीलंका को तबाह कर दिया

राजनीतिक बदलावों से घिरी आर्थिक अस्थिरता के बावजूद नवंबर 2019 के चुनावों तक अर्थव्यवस्था काबू में दिखी. हालांकि 2020 से चीजें बिगड़ने लगीं.

इसके बाद कोविड 19 महामारी ने आगे और नुकसान पहुंचाया. द्वीपों के देश में राजस्व के दो मुख्य सोर्स पर्यटन और विदेशों से भेजे जाने वाले धन में भारी कमी आई. मौजूदा रूस-यूक्रेन संघर्ष ने भी इस पतन में योगदान दिया है क्योंकि, रूस श्रीलंका की चाय इंडस्ट्री के लिए शीर्ष खरीदारों में से है और युद्ध का नतीजा ये हुआ कि रूस को अपनी खरीद को कम करना पड़ा.

साल 2019 के चुनावों में देश ने राजपक्षे भाइयों की सत्ता में वापसी देखी. जिसके बाद गोटबाया राजपक्षे राष्ट्रपति बने, बड़े भाई और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री बने ओर छोटे भाई बसिल राजपक्षे ने वित्त मंत्री का पद संभाला. ये लोकप्रिय जनादेश देश की अर्थव्यवस्था के साथ कई दूसरे मोर्चों पर सुधार के लिए मिला था.

हालांकि नई सरकार द्वारा लोगों के लिए जरूरी टैक्स में छूट ने स्थिति को बेहतर करने में मदद नहीं की. ये साफ था कि देश टैक्स में इस तरह की छूट देने की स्थिति में कहीं से भी नहीं है. तीनों भाई अभी तक अपने-अपने पदों पर बने हुए हैं और स्थिति को ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इसका तुरंत कोई हल मिलेगा, ऐसा नजर नहीं आता.

देश की बीमार अर्थव्यवस्था की जड़ें गहरी हैं. खराब मौद्रिक नीति जिसका अनुसरण सालों तक किया जाता रहा, इसे व्यापक संरचनात्मक बदलावों के जरिए ही ठीक किया जा सकता है.

देश में लोग खाने की चीजों और प्रतिदिन के ईंधन के लिए कतारों में लगे हैं. वहीं कई जगहों पर सेना लोगों की इस भीड़ पर निगरानी कर रही है.

बार एसोसिएशन ऑफ श्रीलंका (BASL) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दी है और इसमें कहा है कि जरूरी चीजों और सेवाओं में भारी कमी, कानून—व्यवस्था के भंग होने के डर और कानून के शासन पर मंडरा रहे खतरे ने उन्हें कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर कर दिया.

बढ़ता हुआ विदेशी कर्ज

श्रीलंका की आर्थिक चिंताएं विदेशी कर्ज की वजह से शुरू हुईं. चीन जो कई दूसरे देशों के साथ अपने कर्ज में फंसा लेने वाली व्यवस्था के लिए बदनाम है, श्रीलंका पर इसके विदेशी कर्ज का बोझ करीब 10 प्रतिशत है. ये रियायती लोन हैं और इसके अलावा चाइनीज स्टेट बैंकों के जरिए कमर्शियल लोन का भार भी श्रीलंका के ऊपर है.

इन लोन की शर्तें मुश्किल हैं और इसे चुकाने में असफल होना कितना भारी पड़ेगा श्रीलंका इसका सामना कर रहा है. लोन को चुकाने की प्रक्रिया के तहत श्रीलंका को Hambantota port का नियंत्रण 99 सालों के लिए चीन को देना होगा.

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ये देखना बाकी है कि चीन इस स्थिति में सुधार के लिए किस तरह सामने आएगा. वहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और दूसरी बहुपक्षीय संस्थाओं को भी ऐसे उपाय करने चाहिए जिनकी मदद से देश संकट की स्थिति से निकल सके.

मदद के लिए आगे आया भारत

ऐसे भारत आगे आया और उसने जनवरी 2022 में श्रीलंका को मूलभूत सुविधाओं जैसे पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स की खरीद के लिए 400 मिलियन डॉलर दिए.

इस हफ्ते भारत ने श्रीलंका को 40,000 टन डीजल भेजा है. 17 मार्च 2022 को भारत ने एक बार फिर 1 बिलियन डॉलर की क्रेडिट लाइन श्रीलंका को दी जिससे देश अत्यंत जरूरी चीजें हेल्थकेयर और खाने की वस्तुएं खरीद सके.

दोनों ही सरकारों को मदद की लागत को लेकर एक स्ट्रैटजी पर काम करना होगा. मौजूदा संकटपूर्ण स्थिति की वजह से पिछले कुछ हफ्तों में कई लोग श्रीलंका छोड़कर भारत आए हैं. सरकार को मौजूदा स्थिति से निकलने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे और स्थिरतापूर्वक दूरदर्शी गवर्नेंस का प्रभाव भी पैदा करना होगा. इसके लिए सबसे पहले कर्ज को रिस्ट्रक्चर करना होगा, इसमें चीन से लिया कर्ज भी शामिल हो और जिससे कर्ज का बोझ कम से कम दो वर्षों के लिए हट जाए.

सरकार को फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स से इस पर बात करनी चाहिए, उन्हें इसमें शामिल करना चाहिए कि वो कौन से तरीके होंगे जिससे आर्थिक नीतियों से जुड़ी इस स्थिति को संभाला जा सके. इसके लिए गवर्नेंस और निर्णय लेने में स्पष्ट रूप से पारदर्शिता और जवाबदेही की जरूरत होगी.

इकोनॉमी को ठीक करना बस पहला कदम होगा

देश में ज्यादातर लोग और दूसरे कुछ राष्ट्र श्रीलंका में आर्थिक सुधारों के साथ राजनीतिक बदलावों का समर्थन कर रहे हैं. संविधान के 20वें संशोधन को खत्म करना और Prevention of Terrorism Act (PTA) को आगे कोई समाधान ढूंढने को लेकर अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

ये सबको मिलाकर चलने वाले गर्वनेंस मॉडल को हासिल करने में मदद करेगा. जिससे ऐसे समुदाय जो अहित करने वाला इरादा रखते हैं, वह भी राष्ट्र निर्माण के इन प्रयासों का हिस्सा होंगे.

तात्कालिक उपाय के तौर पर ऐसे नागरिकों को राहत उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जानी चाहिए जिन्होंने इस समय व्यवहारिक रूप से अपना सबकुछ खो दिया है. ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर को लेकर बड़ी नाकामयाबी के बाद किसानों को किफायती रूप से फसल उगाने में मदद करनी चाहिए.

इससे आगे बिल्कुल नये तरीके से टूरिज्म और चाय के निर्यात पर ध्यान देना चाहिए. कोविड 19 से कुछ समय तक स्थगित रहने के बाद देश में पर्यटन धीरे धीरे रफ्तार पकड़ रहा है. प्रभावी टैरिफ और सेवाओं के साथ, होटल और सर्विस इंडस्ट्रीज दोबारा उछाल के साथ वापसी कर सकती हैं.

ये कहने की जरूरत नहीं है कि श्रीलंका को कई स्तरों पर सुधार की जरूरत है और इसमें दीर्घकालिक और अल्पकालिक दोनों तरह के सुधार शामिल हैं. देश को सामूहिक रूप से अपने लिए खुद एक रोडमैप तैयार करना होगा

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Published: 27 Mar 2022,10:51 AM IST

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