श्रीलंका (Sri Lanka) इन दिनों आर्थिक तंगी (economic crisis) से जूझ रहा है. इस समय एशिया के अंदर सबसे अधिक महंगाई श्रीलंका में है. वहां की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमरा गई है, आवश्यक वस्तुएं सेना की मौजूदगी में वितरित की जा रही हैं, चारो तरफ हाहाकार मचा हुआ है. राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के भागने के बाद देश में आपातकाल का ऐलान कर दिया गया है. विपक्षी सांसद पाटली चंपिका ने कहा कि इस समय राष्ट्रपति चुनाव नहीं हो सकते, संविधान के अनुसार इसे 2024 में होना चाहिए,अगला राष्ट्रपति अंतरिम अवधि के लिए होगा.
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था संकट में क्यों और कैसे आई?
श्रीलंका की मौजूदा तंग अर्थव्यवस्था के पीछे कोई एक कारण नहीं है बल्कि कई ऐसी वजहे हैं जिससे यह छोटा सा द्वीपीय देश अपनी आजादी यानी 1948 के बाद अब तक के सबसे खराब वित्तीय संकट से जूझ रहा है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी में एशियाई देशों में सबसे ज्यादा महंगाई श्रीलंका में बढ़ी. फरवरी 2021 की तुलना में फरवरी 2022 में खुदरा महंगाई 15.1 फीसदी बढ़ गई.
1. कोविड-19 महामारी : श्रीलंका की जीडीपी में पर्यटन का काफी बड़ा योगदान है. वहां की GDP में टूरिज्म की हिस्सेदारी 10 फीसदी से ज्यादा है और पर्यटन से विदेश मुद्रा भंडार में भी इजाफा होता है, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से यह सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. कोविड की वजह से वहां के विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ी गिरावट देखने को मिली है.
विदेशी मुद्रा में कमी आने की वजह से श्रीलंका के लोगों को सामान आयात करने के लिए पहले विदेशी मुद्रा खरीदनी पड़ी जिससे श्रीलंकाई रुपये में गिरावट आनी शुरु हुई. इस साल तक लगभग 8 फीसदी की गिरावट श्रीलंकाई रुपये ने देखी है.सबसे अहम बात यह है कि श्रीलंका अपनी खाद्य वस्तुओं के लिए आयात पर काफी हद तक निर्भर है, चूंकि श्रीलंकाई मुद्रा में गिरावट आई इस वजह से तेजी से खाद्य पदार्थों की कीमते बढ़ने लगीं. श्रीलंका चीनी, दाल, अनाज जैसी जरूरी चीजों के लिए भी आयात पर निर्भर है.
2. विदेशी मुद्रा भंडार का कम होना : 2019 में श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 7.5 बिलियन डॉलर का था, लेकिन महामारी के दंश से यह गिरकर पिछले साल जुलाई में 2.8 बिलियन डॉलर पर आ गया था. विदेशी मुद्रा की कमी से कनाडा जैसे कई देशों ने फिलहाल श्रीलंका में निवेश बंद कर दिया है.
श्रीलंका के केंद्रीय बैंक की ओर से फरवरी में जारी आंकड़ों के मुताबिक देश का विदेशी मुद्रा भंडार जनवरी 2022 में 24.8 फीसदी घट कर 2.36 अरब डॉलर रह गया था.
3. खेती में रासायनिक उर्वरक के इस्तेमाल में बैन लगाना : गिरती मुद्रा और कम होते विदेशी भंडार के बीच श्रीलंका की सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया जिससे खाद्य संकट की स्थिति और ज्यादा खराब हो गई. राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने पिछले साल घोषणा की थी श्रीलंका 100 फीसदी जैविक खेती वाला दुनिया का पहला देश होगा. यानी सरकार ने खेती में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का फैसला सुना दिया था जिससे कृषि उत्पादन में कमी आई और खाद्य संकट में बढ़ाेत्तरी हुई.
पिछले साल जुलाई में हुए एक सर्वे के अनुसार श्रीलंका के लगभग 90 फीसदी किसान खेती में रासायनिक पदार्थों का उपयोग करते हैं. रासायनिक उर्वरकों पर सबसे अधिक निर्भरता चावल, रबड़ और चाय के किसानों की रही है.
श्रीलंका के चाय एक्सपर्ट्स का मानना है कि जैविक खेती की ओर जबरन दबाव बनाने से चाय और अन्य फसलों का उत्पादन आधा हो सकता है और इससे खाद्य संकट को गंभीर हो सकता है जो वर्तमान संकट से भी बदतर होगा.
4. टैक्स में कटौती : 2019 में नवनिर्वाचित राजपक्षे सरकार ने लोगों की खर्च करने की क्षमता बढ़ाने के लिए टैक्स कम कर दिया था. इससे सरकार के राजस्व को भारी नुकसान हुआ.
सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका (सीबीएसएल) के सितंबर 2020 तक सीनियर डिप्टी गवर्नर रहे पी नंदलाल वीरसिंघे ने समाचार एजेंसी रॉयटर से कहा था कि "चुनावों के बाद टैक्स में कटौती आश्चर्यजनक रूप से की गई. इस बारे में किसी भी तरह की परामर्श प्रक्रिया नहीं हुई थी. यह सरकार की एक बड़ी गलती थी."
5. विदेशी कर्ज : बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार 2022 में श्रीलंका को सात अरब डॉलर का कर्ज चुकाना है. अकेले चीन का ही श्रीलंका पर 5 अरब डॉलर का कर्ज है. भारत और जापान का भी इस पर काफी कर्ज है. श्रीलंका को आयात के लिए महंगा डॉलर खरीदना पड़ रहा है. इससे वो और अधिक कर्ज में डूबता जा रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक चीन से श्रीलंका अब फिर 2.5 अरब डॉलर का कर्ज लेने की तैयारी कर रहा है.
श्रीलंका पर विदेशी कर्ज का बोझ तेजी से बढ़ रहा है. विश्व बैंक के अनुसार 2019 में श्रीलंका का कर्ज बढ़कर सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) का 69 फीसदी हो गया जबकि 2010 में यह केवल 39 फीसदी ही था. श्रीलंका का सार्वजनिक ऋण 2019 में 94% से बढ़कर 2021 में सकल घरेलू उत्पाद का 119% होने का अनुमान है.
श्रीलंका में विपक्ष के प्रमुख नेता और अर्थशास्त्री हर्षा डी सिल्वा ने संसद सत्र के दौरान कहा था कि वर्ष 2022 के फरवरी से लेकर अक्बटूर तक कितनी भी अदायगी कर दी जाए, मगर उसके बावजूद भी श्रीलंका पर चढ़ रहा विदेशी कर्ज उतर नहीं पायेगा. उन्होंने कहा था कि अक्टूबर तक श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा के रूप में सिर्फ 4.8 खरब अमेरिकी डॉलर बचेंगे.
6. आर्थिक आपातकाल की घोषणा : पिछले साल 30 अगस्त को श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने जरूरी सामानों की आपूर्ति पर सख्त नियंत्रण लगाने की घोषणा की थी. तब सरकार ने कहा था कि व्यापारियों को खाद्य पदार्थों की जमाखोरी को रोकने और महंगाई को नियंत्रित करने के लिए ऐसा करना जरूरी था.
जब श्रीलंका की सरकार ने आर्थिक आपातकाल की घोषणा की थी तब सरकार की नीति की आलोचना करने वाले सांसदों ने कहा था कि जमाखोरी और बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने वाले कानून देश में पहले से ही थे. आपातकाल घोषित करने का फैसला "खराब नीयत" से लिया गया है. श्रीलंका की विपक्षी एसजेबी पार्टी के एरान विक्रमरत्ने ने कहा था कि "यह संकट सत्ता संघर्ष की अभिव्यक्ति मात्र है, जहां राष्ट्रपति और सरकार अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए आम नागरिकों की जान जोखिम में डाल रहे हैं."
7. FDI में कमी : प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की बात करें तो सरकारी आंकड़े बताते हैं कि श्रीलंका में एफडीआई 2018 में 1.6 बिलियन डॉलर का हुआ जोकि 2019 में घटकर 793 मिलियन डॉलर पर आ गया और 2020 में गिरकर 548 मिलियन डॉलर हो गया.
यदि किसी देश में FDI घटती है, तो उसके विदेशी मुद्रा भंडार भी कम हो जाता है.
8. सॉवरेन बॉन्ड (sovereign bonds) : CNBC को दिए गए एक इंटरव्यू में श्रीलंका पॉलिसी स्टडीज इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक दुश्नी वीराकून ने कहा था कि श्रीलंकाई सरकारें 2007 से लगातार ऋण चुकाने की बिना किसी योजना के सॉवरेन बाॅन्ड जारी कर रही हैं.
श्रीलंका के एक अरब बिलियन डॉलर के सॉवरेन बॉन्ड इस साल जुलाई में मैच्योर होने वाले हैं. यानी इतनी रकम का उसे बॉन्ड धारकों को भुगतान करना होगा.
9. रूस-यूक्रेन जंग : रूस-यूक्रेन में छिड़ी जंग से श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था की हालत और खराब हो सकती है. रूस श्रीलंका की चाय का सबसे बड़ा आयातक है. रूस और यूक्रेन से बड़ी तादाद में श्रीलंका में पर्यटक भी आते हैं. रूबल की गिरती कीमत, जंग और रूस-यूक्रेन की ओर से चाय की घटती खरीद की वजह से भी इसकी अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ है.
10. बढ़ती महंगाई : ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी में एशियाई देशों में सबसे ज्यादा महंगाई श्रीलंका में बढ़ी है. वहां फरवरी 2021 की तुलना में फरवरी 2022 में खुदरा महंगाई 15.1 फीसदी बढ़ गई है.
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