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Turkey-Syria Earthquake: क्या भारत में भी आ सकता है ऐसा खतरनाक भूकंप?

Turkey-Syria Earthquake:भारत-गंगा के मैदानी इलाकों में इस तरह के भूकंप से 1 करोड़ लोगों की जान जा सकती है.

अखिल बख्शी
नजरिया
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<div class="paragraphs"><p>भारत में बड़े भूकंप&nbsp;की संभावना को देखते हुए,  विशेषज्ञों की टीम होनी चाहिए</p></div>
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भारत में बड़े भूकंप की संभावना को देखते हुए, विशेषज्ञों की टीम होनी चाहिए

फोटो : दीक्षा मल्होत्रा 

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कई वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालय में बहुत जल्द एक प्रचंड भूकंप (earthquake) आने वाला है. इन वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वह भूकंप कम से कम 8.1 से 8.3 M की तीव्रता का रहेगा, हालांकि रिक्टर स्केल पर सात की तीव्रता वाले भूकंप ही काफी खतरनाक माने जाते हैं. अगर इतनी तीव्रता का विशाल भूकंप आता है तो इसके परिणामस्वरूप भारत-गंगा के मैदान (Indo-Gangetic Plain) में 10 मिलियन यानी एक करोड़ लोगों की जान जा सकती है. भारत में बड़े पैमाने पर भूकंप की संभावना को देखते हुए, जान-माल के नुकसान को कम करने के लिए देश में नीति निर्माताओं और जनता को जियोलॉजी, मिटिगेशन इंजीनियरिंग और आपदा प्रबंधन के मुद्दे पर सलाह देने के लिए विशेषज्ञों की टीम होनी चाहिए.

इस संदर्भ में, मैंने गोंडवानालैंड अभियान (खोज यात्रा) की कल्पना की थी. इस सफर में हमारा दल भारतीय हिमालय से होते हुए अफ्रीका के सबसे दक्षिणी छोर केप अगुलहस तक पहुंचेगा, जहां एशिया अफ्रीका से मिलता था. इस दौरान हमारा दल पश्चिम एशिया और अफ्रीका के 17 देशों का दौरा करेगा. हमारा अभियान दल कई ऐसे क्षेत्रों से होकर गुजरेगा, जो पृथ्वी की विकास यात्रा में महत्वपूर्ण थे.

इस अभियान के जरिए वैज्ञानिकों को शुरुआती दौर में रिसर्च करने, रिव्यू करने, भूवैज्ञानिक और प्राकृतिक विशेषताओं से परिचित होने का मौका मिलेगा. यह अभियान भूकंप संभावित उत्तरी, दक्षिणी ईरान और तुर्की के कई क्षेत्रों जैसे संकरी टेथिस सागर की साइटों का भी दौरा करेगा.

भूकंप संभावित इलाकों की जियोलॉजी को नेविगेट करना

इस अभियान के दौरान रास्ते में, हमारे दल के साइंटिस्ट 30 विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों के वैज्ञानिकों के साथ पिछले भूकंपों और वर्तमान भूकंपीयता ज्ञान का आदान-प्रदान करेंगे, जिससे भूकंप भूविज्ञान के बारे में उनकी समझ और बेहतर हो सकेगी. जैसा कि हमारा अभियान दल सीरिया से मोजाम्बिक तक ग्रेट रिफ्ट वैली के साथ-साथ सफर तय करेगा, ऐसे में इसके विकासवादी इतिहास को बेहतर ढंग से समझने के लिए रिफ्ट सिस्टम के ज्वालामुखीय चट्टानों के भू-रासायनिक क्रमिक विकास (geochemical evolution) को अध्ययन के लिए लिया जा सकता है.

ईरान में दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हुए. हमारे अभियान के वाहन (स्कॉर्पियो) जाग्रोस माउंटेन के साथ लगे हुए हाइवे में चलते हैं. ये माउंटेन मुड़े हुए हैं और इन्हें ठीक नहीं किया जा सकता है. इस दौरान हम हरी, भूरी और धूसर चट्टानों के एक सीक्वेंस के साथ चलते रहे, जिनसे सफेद नमक के ग्लेशियर निकल रहे थे. चूंकि वैश्विक टेक्टोनिक्स अरब को एशिया की ओर ले जाता है, इसलिए यह क्षेत्र सक्रिय रूप से क्रस्टल शॉर्टिंग से गुजर रहा है.

इसके परिणाम स्वरूप तलछटी चट्टान की परतें उसी तरह से मुड़ी हुई हैं, जैसे किसी कालीन को धकेलने से वह मुड़ जाएगी. देश के अंदर मौजूद एक प्राचीन समुद्र के वाष्पीकरण द्वारा नमक जमा हुआ, जोकि तलछटी चट्टानों की इन परतों से दब गए थे. अधिकांश अन्य चट्टानों की तुलना में कम घनत्व होने के कारण नमक ग्लेशियर की तरह अलग होने से पहले वर्टिकल कॉलम्स में पृथ्वी की क्रस्ट के जरिए ऊपर की ओर पलायन करता है.

जाग्रोस पर्वत

अखिल बक्शी

ईरान की भूकंपीय भेद्यता

ईरान पांच सूक्ष्म महाद्वीपों या भूमि के छोटे टुकड़ों से बना है, जोकि अलग-अलग समय अवधि के दौरान एक साथ जुड़ गए. ईरानी प्लेट अभी भी एशियाई प्लेट को धकेल रही है, जिससे जाग्रोस माउंटेन की ऊंचाई बढ़ रही है. यह फैक्टर ईरान को भूकंपीय तौर पर अतिसक्रिय और भूकंप के लिए भयावह रूप से संवेदनशील बनाता है.

2003 में दक्षिण-पूर्वी ईरान के बाम में भयानक भूकंप आया था, जिसमें 15 हजार लोगों की जान चली गई थी और 70 फीसदी घर नष्ट हो गए थे. इसी शहर में एक और विनाशकारी भूकंप 1993 में आया था, जिसमें 35 हजार लोगों की जान चली गई थी. ईरान हर हफ्ते औसतन 5.0 M तक के 50 भूकंपों का अनुभव करता है, और हर साल 6 M से अधिक का एक भूकंप आता है. 31 मार्च, 2006 को जब हम शिराज में थे, तब लोरेस्तान प्रांत के खुर्रमाबाद में 5.8 मेगावॉट का भूकंप आया, जिसमें 70 लोगों की मौत हाे गई थी और 1264 लोग घायल हुए थे, जबकि आठ गांव तबाह हो गए थे. इसके बाद अगले दो दिनों में चालीस आफ्टरशॉक्स आए थे.

तेहरान से हम भूकंप संभावित क्षेत्र तबरेज के लिए रवाना हुए, जो कि ईरानी अजरबैजान में 599 किमी दूर था. इस दौरान हम ड्राइविंग करते हुए एक टेक्टोनिक घाटी से होते हुए गुजरे थे. जैसे ही हम तुर्की की सीमा की ओर बढ़े, हम माकू (maku) में दाखिल हुए. माकू दो अनोखे ग्रेनाइट पर्वत श्रृंखलाओं के बीच कसकर फंसा हुआ है और विशाल शिलाखंडों के चक्रव्यूह में ढंका हुआ है. ये पर्वत और शिलाखंड अगले भूकंप की प्रतीक्षा में, नीचे गिरने और बस्ती को कुचलने के लिए तैयार हैं.

तुर्की में, हम ड्राइविंग करते हुए पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी अनातोलिया से भी गुजरे. इराक सीमा के ठीक उत्तर में मौजूद यह जगह तुर्की का एक अशांत क्षेत्र है, जोकि एक स्वतंत्र कुर्दिस्तान के लिए हिंसक अलगाववादी आंदोलन से प्रभावित है. यह वह क्षेत्र है, जो हमारे ग्रह पर सबसे सुंदर क्षेत्रों में से एक है, लेकिन हाल के भूकंप से तबाह हो गया है.
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तुर्की की खामियों का पता लगाना

डोगुबेयाजिट, जो कि 2700 साल से अधिक पहले उरारतु काल से अस्तित्व में है. जब हम इस शहर से निकलते तब हमारे हमारे दृढ़ वाहन (स्कॉर्पियो) बर्फ की ऊंची दीवारों के साथ पिघलती बर्फ से गीली हो रही सड़कों पर ऊंचे और ऊंचे चढ़ते गए.

सोमकाया गांव के बाद हम 6,501 फीट पर एक ऊंचे दर्रे पर पहुंचे, जिसके ऊपर से हमने नीचे बर्फ की एक अद्भुत दुनिया देखी. बड़ा ही शानदार दृश्य था. काली चट्टानों, रोड़ी और खड़ी चट्टानें पूरी तरह से भव्य सफेद घाटी लग रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे गहरी बर्फ के सफेद कालीन से मीनारें और चट्टानें उठ रही हों.

हजारों वर्ष पहले यहां छिद्रयुक्त चट्टान से ज्वालामुखी फटा, जिससे यह बेसिन भर गया. पानी और हवा की वजह से काफी चट्टान को नुकसान पहुंचाया, जिससे यहां चांद की सतह (शिखर, शंकु, विशाल टॉडस्टूल और पिघलने वाले पिरामिड) जैसी स्थालाकृति उभरी. यहां चारों ओर एक गहरा सन्नाटा था, न तो हवा का हल्का झोंका था, न ही घास में कोई हलचल थी. अलगाव, अकेलापन और दूरी का डरावना भाव पूरी तरह से आनंदमय था.

सफेद बर्फ और ठोस काले लावा की बाढ़ वाली नदी के ऊपर एक उठी हुई सड़क पर गाड़ी चलाते हुए हम धीरे-धीरे टूटे हुए बेसिन में उतरे. यह एक सांस थामने वाला दृश्य था. जब भूवैज्ञानिकों ने हमें बताया कि हम एक एक्टिव "स्ट्राइक-स्लिप फॉल्ट लाइन" पर गाड़ी चला रहे हैं तब उनकी बात सुनकर हमारे अंदर जो भी सांस थी वह भी चली गई थी.

हमने एक्सीलेटर पर कदम रखा. नॉर्थ एनाटोलियन फॉल्ट, यह तुर्की की सबसे चिंताजनक दरार है जो कि मार्मरा सागर के नीचे से इस्तांबुल तक चलती है. इस दरार के जल्द ही कभी भी टूटने का खतरा था. ऐसा हमारी यात्रा के 17 साल बाद 6 फरवरी, 2023 को हुआ. इससे पहले, 1999 के 7.6 M भूकंप ने इज़मित और अदपज़ारी को तबाह कर दिया था, जिसमें 18 हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी.

एनाटोलिया में एक एक्टिव "स्ट्राइक-स्लिप फॉल्ट लाइन", सफेद बर्फ और ठोस काले लावा की बाढ़ वाली नदी.

अखिल बख्शी

वैन के लिए A975 पर बाएं मुड़ने पर, पहाड़ों की एक श्रृंखला के जरिए रोलरकोस्टर हाईवे कट जाता है. जैसे ही हम मुरादिये बस्ती के पास से गुजरे, वैसे ही हमारे सामने लेक वैन अचानक से प्रकट हो गई. 3,750 वर्ग किमी में फैली यह लेक तुर्की की सबसे बड़ी और मिडिल ईस्ट की दूसरी सबसे बड़ी वाटर बॉडी है. हालांकि यहां आने के अपने जोखिम हैं, लेकिन इसका दृश्य काफी मनमाेहक है. इसका नीला-सफेद पानी बर्फ से ढके ज्वालामुखियों की एक श्रृंखला से घिरा हुआ है. लहरदार बादलों को छूने वाली उन ज्वालामुखियों की चोटियां, इस लेक को और खूबसूरत बनाती हैं.

लेक वैन

अखिल बख्शी

कभी हरी-भरी दिखने वाली मनोरम स्थलाकृति अब बर्बाद हो गई है

टॉरस माउंटेन (जो अभी भी गहरी बर्फ में ढंका हुआ है) के पूर्वी विस्तार को पार करते हुए हम लेक वैन के पश्चिमी किनारे पर एक छोटी कुर्द बस्ती तातवान पहुंचे. टॉरस रेंज माध्यम से हमारा कोर्स जारी रहा. पहाड़ों से उतरना लंबा और कठिन था. भूस्खलन ने सड़क को बर्बाद कर दिया था. तीखे मोड़ और भारी ट्रकों के लगातार आने वाले ट्रैफिक ने हमारी मुसीबतों को और बढ़ा दिया था. पहाड़ों की ढलानों पर लुढ़कते ट्रकों के बार-बार दिखने से चीजें और कठिन हो गईं.

टॉरस माउंटेन से उतरकर हम विशाल हरे-भरे मैदान में ड्राइव करने लग गए. उतार-चढ़ाव भरा यह सड़क काफी उपजाऊ स्थलाकृति से घिरी हुई दिखाई दी. गेंहू के लहलहाते हरे खेतों में सरसों भी लगी थी, जिसके सुनहरे पीले फूल हवा में झूम रहे थे. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसा मानो कि गहरे नीले आकाश से सुनहरी धूप नीरे गिर रही हो.

टिगरिस नदी को पार करते हुए, हम दियारबाकिर पहुंचे. यह शहर जोखिम भरे काले बेसाल्ट से बनी प्राचीन दीवारों घिरा हुआ है, जोकि बाइजेंटाइन दौर की हैं. जब रोमनों ने यहां फारसियों से लड़ाई लड़ी थी, तब से अब तक, दियारबाकिर कुर्द राष्ट्रवाद का केंद्र रहा है. यह अब मलबे का ढेर बन गया है.

जब हम सीरिया की तरफ बढ़ रहे थे, तब भी हमारे रास्ते की सड़कें गेहूं और पीले सरसों के लहलहाते खेतों के साथ चल रही थीं. सड़के किनारे लाइन से यूकेलिप्टस के पेड़ लगे थे. जंग लगे रंग की मिट्टी के बड़े इलाकों में पिस्ता के बागानों और जैतून के विशाल प्लांटेशन को देखकर ऐसा लग रहा था कि यहां अभी भी वानस्पतिक (vegetative) विकास के चरण में है.

आगे बढ़ते हुए हमने सनलिउर्फा के प्राचीन शहर को देखा, यह शहर 2600 ईसा पूर्व के आसपास व्यापार का बड़ा केंद्र था और यहीं से अब्राहम ने कनान के लिए अपनी यात्रा शुरू की थी. उसके पास ही हर्रन (Harran) नामक जगह थी, जहां पर एडम और ईव ने ईडन से निकाले जाने के बाद खेती करना सीखा था. बिरेपिक में हमने योफ्रेटीज़ (फरात) नदी पार की थी.

हालांकि टिगरिस की तुलना में योफ्रेटीज में अधिक पानी था. यह पर दक्षिण-पूर्वी एनाटोलिया प्रोजेक्ट भी चलता है, जो दुनिया के सबसे बड़े लोक निमार्ण (पब्लिक वर्क्स) में से एक है. इस प्रोजेक्ट ने दोनों नदियों से पानी लिया है, इससे तुर्की में 9.5% भूमि क्षेत्र की सिंचाई होती है. इस प्रोजेक्ट के 22 डैम 19 हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट्स के जरिए बिजली पैदा करते हैं. गाजियांटेप (कुछ दिनों पहले आए भूकंप का एपिसेंटर) से हम किलिस के लिए दक्षिण की ओर मुड़े, जो कि सीरियाई सीमा के नजदीक है.

सालम में तुर्की-सीरिया सीमा पर अलेप्पो विश्वविद्यालय के भूवैज्ञानिकों द्वारा गोंडवानालैंड अभियान दल के रिसीव किया गया.

अखिल बख्शी

अलेप्पो (हाल ही में आए भूकंप से तबाह हो गया) में हमें सीरियाई भूवैज्ञानिकों ने बताया कि यहीं लेबनान और सीरिया में ग्रेट रिफ्ट वैली शुरू हुई थी. समय-समय पर उभार और दरार के साथ यह वैली उत्पन्न हुई. यहां फॉल्टिंग और सेटलिंग की प्रक्रिया करोड़ों साल पहले शुरू हुई थी जो अभी भी चल रही है.

आंतरिक तनाव के कारण जैसे ही पृथ्वी की क्रस्ट क्रैक हुई, वैसे ही समानांतर भ्रंशों के बीच बड़े ब्लॉक ढह गए, जिसके परिणामस्वरूप मीलों-ऊंची चोटी और गहरी-फटी हुई घाटियां निर्मित हो गईं. गलील सागर, मृत सागर और लाल सागर से इन घाटियों में बाढ़ आ गई. अलेप्पो दो टेक्टोनिक प्लेटों (अरब-यूरेशियन प्लेटों के बीच टकराव और लाल सागर की रिफ्ट) पर स्थित है, जो इसे भूकंप के प्रति संवेदनशील बनाता है.

यहां भी अरब-इजरायल टकराव का खतरा उभरा. डॉ. अनीस मातर, जो आम तौर पर एक सौम्य, स्नेही व्यक्ति हैं, उन्होंने अपनी मुट्ठी भींचते हुए ऊंची आवाज में हमें बताया कि सीरिया और अरब भूमि में भूकंप लाने के उद्देश्य से इजरायली मृत सागर के तल के नीचे विस्फोटकों से विस्फोट कर रहे थे. प्रोफेसर ने अतिशयोक्ति के साथ गरजते हुए कहा, कि "यह भूवैज्ञानिक आतंकवाद है."

(अखिल बख्शी, एक लेखक और खोजकर्ता हैं. वे रॉयल ज्योग्राफिकल सोसाइटी और एक्सप्लोरर्स क्लब यूएसए के फेलो हैं. इसके साथ ही इंडियन माउंटेनियर के संपादक हैं. )

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